पूर्व में उपेक्षित प्रदेश जब अपनी विकास की गति को पाना चाहता है तो वह केंद्र सरकार से कई प्रकार की सुविधा ‘विशेष राज्य’ का दर्जा पाने के बाद लेना चाहता है। बिहार के तमाम नेता और जनता का अब यही सपना है कि उन्हें भी विशेष का दर्जा मिल जाए। काफी अरसे से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा के नाम पर नेताओं की बयानबाजी होती आ रही है। कई मुख्यमंत्रियों ने इसकी बात उठाई और बात ठंडे बस्ते में चली गई। मगर इस दफा नीतिश कुमार ने स्वयं मोर्चा खोला है तो जाहिरतौर पर उनकी सरकार और दल के लोग उनके साथ हैं। पटना से दिल्ली तक हस्ताक्षर अभियान भी उसी का हिस्सा है। तभी तो केंद्र सरकार इतना कह रही है कि वह जल्द ही इस मसले पर विचार कर रही है और एक एक अंतर-मंत्रालय ग्रुप का गठन किया जाएगा, जिसकी सिफारिशों के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा।
दरअसल, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आक्रामक मुद्रा में हैं। केन्द्र से दो-दो हाथ करने की तैयारी में है। उन्होंने साफ कहा है कि बिहार से नाइन्साफी बर्दाश्त नहीं करेंगे और विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला तो बिगुल फूंकेगे। इस मांग के समर्थन सूबे के एक करोड़ से अधिक लोगों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन दिल्ली तक पहले ही पहुंच चुका है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि दिल्ली में बैठे लोग जस्टिस नहीं कर रहे हैं। लेकिन अब हम बर्दाश्त भी नहीं करने वाले। विशेष राज्य का दर्जा किसी एक दल की नहीं बल्कि सर्वदलीय मांग है जिसे विधान मंडल के दोनों सदनों से सर्वानुमति प्राप्त है। फिर केन्द्र की हीलाहवाली क्यों? बिहार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती उसके साथ हो रहा अन्याय है। एक ओर तीन राज्यों को कर्ज की माफी की तैयारी हो रही है तो दूसरी ओर बिहार के हितों को नजरअंदाज किया जा रहा है। विपक्ष को भी समझना चाहिए। दलीय भावना से उपर उठकर काम करने का समय है। बिहार की पीड़ा ती दूर हो सकेगी।
उधर, इस मांग का विरोध नहीं करते हुए भी राज्य के कांग्रेसी नेता इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक चाल देखते हैं। उनका आरोप है कि इस सरकार के विकास संबंधी खोखले दावे और विफल हो रही योजनाओं से उत्पन्न जनाक्रोश का रुख़ केंद्र सरकार की तरफ़ मोडऩे के लिए नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने वाला शोर मचा रहे हैं।
लेकिन जहां तक राज्य के आम लोगों की बात है, तो इस मुद्दे पर प्राय: सभी इस मांग के समर्थन में एकजुट होने लगे हैं। ख़ासकर उद्योग धंधे के लिए पूंजी निवेश को इस राज्य में आकर्षित करने का एकमात्र उपाय अब इसी विशेष राज्य वाले दर्जे की मांग में नजऱ आ रहा है। दरअसल, विश्ेष दर्जा वाली श्रेणी में जिस राज्य को शामिल कर लिया जाता है, वहाँ कोई कारखाना या उद्योग लगाने वालों को विभिन्न करों में भारी रियायत और केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य सरकार को बड़ी छूट मिल जाती है। यही कारण है कि इस श्रेणी वाले प्रदेशों में पूंजी निवेश करने वालों की ख़ास दिलचस्पी होती है। देश के ग्यारह राज्य, यानी जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर और सिक्किम को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है।
वैसे आमतौर पर बिहारवासियों में फि़लहाल यह उम्मीद या भरोसा उस हद तक नहीं है कि मौजूदा केंद्र सरकार यह मांग मान ही लेगी। लेकिन इस बाबत आवाज़ बुलंद करने की कुलबुलाहट यहाँ आम जनों में उभरती हुई दिखने लगी है।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार का कहना है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने पर जल्द ही विचार किया जाएगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में ही राज्य के कई नेताओं के साथ प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी और राज्य को विशेष दर्जा देने का अनुरोध किया था। योजना राज्यमंत्री अश्विनी कुमार का कहना है कि बिहार को विशेष दर्जा देने के मामले में विचार करने के लिए एक अंतर-मंत्रालय ग्रुप का गठन किया जाएगा। इस ग्रुप की सिफारिशों के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा।
गाडगिल फार्मूला की कसौटी पर खरा हैदुनिया के सभी संघीय गणराज्यों में यह नियम है कि केंद्र विभिन्न राज्यों को वित्तीय सहायता देता रहता है। जो राज्य संपन्न हैं, उन्हें थोड़ी सहायता दी जाती है और जो गरीब हैं, उन्हें अधिक। भारत में गरीब राज्यों को ‘विशेष श्रेणी’ में रखने का सिलसिला 1969 में ‘गाडगिल फॉर्मूले’ के तहत शुरू किया गया। इस फॉर्मूले के अनुसार, वित्त आयोग ने गरीब राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया और यह तय किया कि उन्हें केंद्र से जो आर्थिक सहायता दी जाएगी, उसका 90 प्रतिशत अनुदान के रूप में होगा और 10 प्रतिशत ऋण के रूप में। अन्य राज्यों को, जो संपन्न हैं, उन्हें केंद्र से जो आर्थिक सहायता दी जाएगी, वह अनुदान के रूप में 30 प्रतिशत और ऋण के रूप में 70 प्रतिशत होगी। इसके पीछे मकसद यही था कि गरीब राज्य देर-सबेर अपने पैरों पर खड़े हो सकें। गाडगिल फॉर्मूले के अनुसार, विशेष राज्य का दर्जा देते समय यह कहा गया था कि उन्हीं राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए, जो किसी अन्य देश की सीमा पर स्थित हैं, जहां से देश की सुरक्षा को खतरा है। जो पहाड़ी क्षेत्र हैं और जहां की जमीन ऊबड़-खाबड़ है और जहां लोग आसानी से एक जगह से दूसरी जगह जा नहीं सकते हैं। जहां आबादी का घनत्व कम है, जहां जनजातीय लोग बहुतायत में रहते हैं, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर नाममात्र का है और जो क्षेत्र आर्थिक रूप से बहुत ही पिछड़ा है। जहां प्रति व्यक्ति औसत आय बहुत ही कम है। इन सारे मानदंडों पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है। वह नेपाल और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है, जहां से सुरक्षा को भयानक खतरा है। उसका अधिकतर क्षेत्र पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ नहीं है, परंतु हर वर्ष उत्तरी बिहार नेपाल से निकलने वाली नदियों के कारण डूब जाता है और दक्षिण बिहार में आए दिन सूखा पड़ता रहता है। बिहार में ऐसे लोग सबसे ज्यादा हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे हैं।
महत्वपूर्ण तिथिवार :
4 अप्रैल 2006 को बिहार विधानसभा का सर्वसम्मत प्रस्ताव।
3 जून 2006 को मुख्यमंत्री का प्रधानमंत्री के नाम पत्र।
31 मार्च 2010 को बिहार विधानपरिषद का सर्वसम्मत प्रस्ताव।
10 मार्च 2011 प्रभात खबर, पटना कार्यालय से मुख्यमंत्री ने हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की।
23 मार्च 2011 राज्य के सभी राजनैतिक दलों के सांसदों का प्रधानमंत्री के नाम पत्र।
10 जुलाई 2011 वशिष्ठ नारायण सिंह के नेतृत्व में हस्ताक्षर ज्ञापन यात्रा पटना से दिल्ली के लिए रवाना।
14 जूलाई 2011 जदयू प्रतिनिधिमंडल पीएम से मिला, पीएम ने एनडीसी में चर्चा का आश्वासन दिया।
बुधवार, 31 अगस्त 2011
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