मंगलवार, 30 मार्च 2010

क्यों घसीटते हो राधा-कृष्ण को

पिछले कुछ वर्षों से 'सहजीवनÓ जिसे लिव इन रिलेशनशिप भी कह लीजिए को लेकर काफी बावेला काटा जा रहा है। कभी सामाजिक ठेकेदारों द्वारा तो अभी कोर्ट द्वारा। कोर्ट ने यह कहकर इस मुद्दे को फिर तूल दे दी कि भारतीय पुरातन परंपरा में राधा-कृष्ण भी तो इसी तरह रहते थे। बस क्या था? विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों ने विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू कर दिया।
यदि कोर्ट की बातों पर गौर किया जाए तो यह कहने में जीभ नहीं सकुचाती कि कोर्ट को इस संबंध में और अध्ययन की जरूरत है। प्रेम की जब भी चर्चा होती है राधा-कृष्ण उद्घृत किया जाते हैं। उनके उपमा से प्रेम गौरवान्वित होती है। रही बात सहजीवन की तो उससे भला कैसे सहमत हुआ जाए। पिछले वर्ष जब महाराष्टï्र में मलिथियान कमेटी की रिपोर्ट आई तो सहजीवन पर काफी बहस छिड़ी थी। उसमें तो राधा-कृष्ण का जिक्र नहीं था। राधा-कृष्ण ने प्रेम किया था, लिव इन रिलेशनशिप में तो नहीं थे। आठो पहर में एक-दो पहर मिलना - सहजीवन नहीं कहा जा सकता। राधा-कृष्ण एक छत के नीचे भी कभी पति-पत्नी की तरह नहीं रहे। आज के तथाकथित आधुनिक सोच की महिलाएं अपना 'संवेदना पुरूषÓ बनाती हैं तो पुरूष 'संवेदना महिलाÓ को गढ़ लेते हैं। साथ रहते हैं। एक ही छत के नीचे। दिन हो या रात। लेकिन राधा के कृष्ण संवेदना पुरूष नहीं थे। हाँ, प्रेमी अवश्य थे।
हालांकि, कहने वाले यह भी कह सकते हैं कि राधा-कृष्ण का प्रेम मुकाम हासिल नहीं कर पाया। बात बिलकुल सही है। प्रेम का मुकाम यदि विवाह है, तो हासिल नहीं हुआ। प्रेम तो हमें दानशीलता, सहनशीलता का पाठ पढ़ाती है। प्रेम पाने का नाम नहीं है। वह तो समर्पण है। राधा का समर्पण कृष्ण के प्रति था। इसलिए उनके प्रेम को आध्यात्मिकता से जोड़कर आज भी रूपायित किया जाता है। राधा ने जिस प्रकार का त्याग किया, वह अप्रितम था। वह नारी समाज के लिए यह भी संदेश देती हैं कि महिलाएं अपने इष्टï अथवा इच्छित से प्रेम तो कर सकती हैं, लेकिन उन्हें वरण का अधिकार आज भी उसके पास नहीं है। भला, त्याग की देवी को सहजीवन जैसे फर्में में फिट करना कहां तक उचित है।

5 टिप्‍पणियां:

chhattishgarh_neelam ने कहा…

achhi story hai samsamaik aur gambhir bhi

करण समस्तीपुरी ने कहा…

तुलसी इस संसार में भांति-भांति के लोग............ ! रहने दीजिये ! लेने दीजिये नाम !! गोसाईंजी ने रामचरित मानस में कहा है, "भाय-कुभाय, अनख आलसहु ! नाम लेत मंगल दिशी दसहु !!" शायद नाम से ही ऐसे आदर्श आ जाएँ कि राधा-कृष्ण की तरह वे भी प्रेम की पराकाष्ठा का स्पर्श कर सकें ! लेख अच्छा लगा ! तथ्यपरक और बेवाक !!! धन्यवाद !!!!

कृष्ण मुरारी प्रसाद ने कहा…

धर्म में इशारे समझने चाहिए न कि शब्दशः अर्थ......
हनुमान जी मेरे लिए इतने बड़े प्रेरणा-स्त्रोत है कि ....
...मैनेजमेंट में उनका प्रयोग करता हूँ ....
..."अगर आप संजीवनी बूटी नहीं पहचान सकते तो पहाड़ ही उठा लाओ , पहचानने बाले पहचान लेंगे...और काम हो जाएगा...."...go extra miles...do some extra work....cross the limit.....
....शत् शत् नमन.....


वैसे आज का मेरा पोस्ट मेरा कमेन्ट है आपके पोस्ट के लिए.....
.भविष्य में नारियाँ शक्तिशाली होती जायेंगी ......पुरुष कमजोर होते जायेंगे....
http://laddoospeaks.blogspot.com/

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कबिरा इस संसार में भांति भांति के लोग.

arvind ने कहा…

achha lekh,bevaak our clear.vaise court ne is maamale me sahi dhang se vichar kiya hai.usake adhyayan ki jarurat nahi hai.krisna vali baat sirf story ke tour par liya gayaa hai reality nahi.