अपेक्षाकृत अशिक्षित और अविकसित अफ्रीकी देशों में कभी संस्कृति और परंपरा के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर कट्टरता का फैलाव हो रहा है। नतीजतन अलग-अलग कबिलाई इलाकों और अलग अलग मान्यताओं में विश्वास रखने वाले लोगों के बीच संघर्ष की घटनाएँ भी तेजी से बढ रही है। इसका भोग बन रही हैं वहाँ की महिलाएँ और बच्चे। नाइजीरिया सहित अफ्रीका महाद्विप के अनेक देशों में महिलाओं के साथ बलात्कार किए जाने और उनकी हत्या किए जाने की घटनाएँ चिंताजनक रूप से बढ रही है।
और तो और, धर्म और संस्कृति के नाम पर बच्चियों के शरीर के साथ खिलवाड़ किया जाता है और उनके प्रजनन अंगों का बेरहमी से ऑप्रेशन कर दिया जाता है। अफ्रीकी महाद्वीप में कई ऐसे देश हैं, जहां मासूम बच्चियों को इस क्रूर रिवाज का सामना करना पड़ता है। चार से बारह साल की उम्र में उनके जननांगों के कुछ हिस्से को आपरेशन करके हटा दिया जाता है।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने इस खतरनाक परंपरा के खिलाफ मुहिम चलाई है और हर साल छह फरवरी का दिन इसके खिलाफ संघर्ष के प्रति समर्पित किया है। फिर भी इस पर अंकुश लगाना संभव नहीं दिख रहा है। मान्यताओं के अनुसार करीब दो हजार साल पहले अफ्रीका के कुछ देशों में इस बर्बर परंपरा की शुरुआत हुई, जिसे बाद में धार्मिक रूप देने की भी कोशिश की गई। स्थानीय लोगों की मानें तो यहां यह ऑपरेशन आम बात है। सब करते हैं। एक अच्छी मुसलमान लड़की को ऐसा करना है क्योंकि अगर हम अपनी बेटियों का ऑपरेशन नहीं करवाया तो कोई उनसे शादी नहीं करेगा। खतरे तो इसमें कोई नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट बताती है कि दुनिया भर में इस वक्त दस से चौदह करोड़ महिलाएं इस कुप्रथा के साथ जीने को विवश हैं। अफ्रीका में तो हर साल कऱीब तीस लाख बच्चियों को इस सदमे से गुजऱना पड़ता है। बताया जाता है कि इस ऑप्रेशन के लिए माहिर डॉक्टरों की मदद नहीं ली जाती, बल्कि गांव देहात की दाई या नीम हकीम ही ऑप्रेशन कर देते है। कांच के टुकड़े से, रेजऱ से, या चाकू से। कई मौक़ों पर बच्चियों को बेहोशी की दवा भी नहीं दी जाती और तड़पते हुए उन्हें इस डरावने एहसास से गुजऱना पड़ता है। हालांकि कुछ मौक़ों पर डॉक्टरों की भी मदद ली जाती है।
सच तो यह भी है कि विगत वर्षों में इस्लामिक कट्टरता का प्रभाव अफ्रीका के विभिन्न देशों में बढा है। नाइजीरिया भी इससे अछूता नहीं रहा है। नाइजीरिया में 50 फीसदी मुस्लिम आबादी है। बाकी कि 50 फीसदी आबादी में से 40 फीसदी ईसाई हैं और 10 फीसदी विभिन्न मतों को मानने वाले कबिलाई लोग हैं। नाइजीरिया में 50 फीसदी लोग इस्लाम धर्म का पालन करते हैं और देश के लगभग आधे भूभाग पर शरिया कानून लागू है। इन इलाकों में इस्लामिक समूहों के द्वारा ईसाईयों पर हमले किए जाने की घटनाएँ बढ रही है। नाइजीरिया में पिछले दिनों मिसाटे विल्डिंग गैंग के द्वारा एक ईसाई गाँव पर हमला किया गया। इस हमले में करीब 500 लोग मारे गए थे। इस हमले से सकते में आई नाइजीरिया की सरकार ने वहाँ सेना भेजी और उसके बाद स्थिति काबू में आई। इस हमले से कुछ ही दिन पहले मुस्लिम-ईसाई दंगे में सैंकड़ो लोग मारे गए थे। हमलावरों ने अल्लसुबह बजे यह हमला किया और हमले से पहले हवा में फाइरिंग की। इसके बाद जो भी व्यक्ति घर से बाहर निकला उसे गोली मार दी गई। हमलावरों ने लोगों को पकडऩे के लिए मछली पकडऩे वाले जाल और जानवरों को पकडऩे वाले सीकंजे का भी इस्तेमाल किया था।
दरअसल, नाइजीरिया में विभिन्न कबीले अब धार्मिक आधार पर बँटने लगे हैं। इन कबीलों के बीच आपसी संघर्ष होता रहता है। कबीलों के पुरूष दूसरे कबीले के महिलाओं को अगुवा कर बलात्कार करते हैं। इसके अलावा दूसरे कबीले के जानवरों की चोरी भी की जाती है। लेकिन विगत वर्षों में आपसी संघर्ष की वजहों में एक वजह धार्मिक कट्टरता भी हो गई है। धार्मिक कट्टरता और शत्रुता का यह माहौल पुरूषों के द्वारा तैयार किया गया है लेकिन इन सबका भोग बनती हैं महिलाएँ और मासूम बच्चे।
1 टिप्पणी:
Ishlam janha bhi hai, wanha ye sab aam bat hai.
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