देश को बजट मिल गया। सत्ता में बैठे नेताजी सब खुश हैं, उनके दोनों मंत्रियोंं ने एकदम धांसू बजट पेश किया है, तो विपक्षी नेताओं की परेशानी यह है कि बजट का पोस्टमार्टम कर वह जनता को जो उसका सड़ा-गला पार्ट दिखा रहे हैं, उसको देखकर जनता को हार्ट अटैक नहीं हो रहा। सदन की परंपरा को ताक पर रखकर पहली बार 'वाकऑउटÓ भी किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। विपक्ष की मानें तो 'पब्लिक निकम्मी हो गई है। पहले लालू ने सब्जबाग दिखा दिया, वह खुश हो गई... इस दफा ममता ने दिखाया तब भी खुश। अब प्रणव दा ने भी खूब छकाया, कई ख्वाब दिखाया, वह चुप रही। जबकि आम आदमी के नाम पर पेश बजट में आम कुछ भी नहीं है।
दो दिन पहले ममता दी का दिन था...अब प्रणब दा का । प्रणब दा को फिक्र रही ..फिस्कल घाटे की...जीडीपी की...रुपया आएगा कहां से...रुपया जाएगा कहां...लेकिन आंकड़ों की बाज़ीगरी के इस वार्षिक अनुष्ठान से हमारा-आपका सिर्फ इतना वास्ता होता है कि क्या सस्ता और क्या महंगा...इनकम टैक्स में छूट की लिमिट बढ़ी या नहीं...होम लोन सस्ता होगा या नहीं...लेकिन इस देश में 77 करोड़ लोग ऐसे भी हैं जिनका प्रणब दा से एक ही सवाल है...रोटी मिलेगी या नहीं...?
बजट से एक दिन पूर्व आर्थिक सर्वे में सुनहरी तस्वीर दिखाई गई कि भारत ने आर्थिक मंदी पर फतेह हासिल कर ली है...अगले दो साल में नौ फीसदी की दर से विकास का घोड़ा फिर सरपट दौडऩे लगेगा...लेकिन आम आदमी को इस घोड़े की सवारी से कोई मतलब नहीं...उसे सीधे खांटी शब्दों में एक ही बात समझ आती है कि दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए भी उसकी जेब में पैसे होंगे या नहीं...? दाल, चावल, आटे के दाम यूं ही बढ़ते रहे तो कहीं एक वक्त फ़ाके की ही नौबत न आ जाए...ये उसी आम आदमी का दर्द है जिसके दम पर यूपीए सरकार सत्ता में आने की दुहाई देते-देते नहीं थकती थी...चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस नारा लगाती थी...आम आदमी के बढ़ते कदम, हर कदम पर भारत बुलंद...लेकिन आठ महीने में ही आम आदमी की सबसे बुनियादी ज़रूरतों पर ही सरकार लाचार नजऱ आने लगी...।
सच तो यही है कि यूपीए सरकार की ओर से वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की ओर से पेश किए 2010-11 का बजट सरसरी तौर पर देखा जाए तो बजट कम और राहत पैकेज ज्यादा लग रहा है। प्रत्यक्ष तौर पर एक ओर तो वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सरकार की आमदनी बढऩे के लिए कारगर कदम उठाए हैं वहीं आम लोगों को आयकर में छूट का लॉलीपॉप भी पकड़ा दिया है। खाने पीने की चीजों के बढ़ते दामों पर चिंता जताते हुए इसपर लगाम लगाए जाने की बात कही है। सरकार महंगाई पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रही है। सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में सरकारी विनिवेश के जरिए 25 हजार करोड़ रुपये जुटाएगी और इसे सोशल सेक्टर में खर्च किया जाएगा। हालंाकि, बजट प्रावधानों में पेट्रोल और डीजल पर सीमा शुल्क को मौजूदा 2.5 फीसदी से बढ़ाकर 7.5 फीसदी कर दिया गया, जबकि उत्पाद शुल्क एक रुपए प्रति लीटर बढ़ाया गया। सीधे तौर पर आम आदमी की जेब पर धावा है यह। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढऩी से रोमजर्रा की तमाम चीजें महंगी होंगी, कारण माल ढ़ुलाई का खर्च बढ़ जाएगा। इस संदर्भ में सरकार का कहना है कि अगर सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क में की कईग बढोत्तरी के प्रभाव को उपभोक्ता पर नहीं डाला जाता तो इससे सावर्जनिक क्षेत्र की खुदरा तेल विपणन कंपनियों को करीब 17,240 करोड़ रुपए का नुक सान होता। सो, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी ओएनजीसी के सीमएडी आर.एस.शर्मा ने बजट के इस प्रावधान को सराहा है। बकौल शर्मा, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं गैस उत्खनन व उत्पादन कंपनी ओएनजीसी के लिए बजट काफी बढिय़ा है। कस्टम डयूटी बढाए जाने से कंपनी की आय में 370 करोड़ रुपए सालाना की बढोतरी होगी। बजट कंसोलिडेशन का है इसलिए वित्त मंत्री के लिए ज्यादा रैडिकल होने की गुंजाइश नहीं थी।
टैक्स सिस्टम को आसान बनाने की बात भी वित्त मंत्री ने कही और कहा कि इस बारे में काम चल रहा है। इसके लिए नया टैक्स कोड 1 अप्रैल 2011 से लागू कर दिया जाएगा और अप्रैल 2011 से ही जीएसटी को भी लागू कर दिया जाएगा। गौर फरमाया जाए तो अधिकत्तर मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय लोगों को इस टैक्स सिस्टम की नई स्लैब का असर पड़ेगा। शालीमार बाग में रहने वाली गृहिणी सीमा मिश्रा की बेबाक रायशुमारी है कि परोक्ष रूप में यह बजट मंहगाई में इजाफा करने वाला ही है। वित्त मंत्री ने व्यक्तिगत आयकर सीमा बढ़ाकर जहां नौकरी पेशा तबके से लेकर मध्य आयवर्ग को बड़ी राहत दी वहीं उन्होंने उत्पाद एवं सीमा शुल्क जैसे अप्रत्यक्ष करों को बढ़ाकर महंगाई से त्रस्त आम जनता की चिंता और बढ़ा दी। साथ ही पेट्रोल और डीजल के बढ़े हुए दामों का असर भी आम जन जीवन की दैनिक उपयोग की चीजों में पड़ेगा। हमें क्या मतलब की जीडीपी का क्या हाल है और राजकोषीय घाटा को कैसे पूरा किया जाए। आम आदमी और विशेषकर गृहिणियों की चिंता तो यही है कि उनके किचन का बजट कितना सुधरेगा या फिर बिगड़ेगा। इस बजट ने तो पूरे घर के बजट को बिगाड़ दिया।
यथार्थ के धरातल पर यही सच्चाई है कि बजट का हौआ खड़ा किया जाता है। जबकि आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता। संसद से लेकर केवल टीवी चैनलों और मीडिया के दूसरे कार्यालयों में बहस-मुहाबिसे होते रहते हैं, पक्ष-विपक्ष के तर्क-कुतर्क होते हैं, लेकिन इससे आम सरोकारों पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। आम आदमी तो इसी चिंता में दुबला होता जाता है कि उसके घर का चूल्हा और रोजमर्रा की चीजें कितनी सस्ती हुईं? जो कि होती नहीं है। बजट पेश होने से पूर्व यही कयास लगाए जा रहे थे कि यह बजट आम आदमी और बाजार के लिए कुछ सख्त होगा। हुआ भी यही।
यूपीए सरकार के वित्तमंत्री के बतौर अपना पहला बजट प्रस्तुत करते हुए समाजवादी अर्थव्यवस्था के पक्षधर प्रणव मुखर्जी ने कारपोरेट और आम आदमी के बीच संतुलन साधने की भरसक कोशिश की है। वित्त मंत्री के मुताबिक सरकार को ग्रामीण इलाकों में साद्य सुरक्षा पर खास ध्यान देना है। सरकार का काम समाज के कमजोर तबके की मदद करना है। सबसे पहली प्राथमिकता बेहतर सरकार चलाना है। अपने बजट भाषण में वित्तमंत्री ने माना कि भारत एक विकासशील और जटिल अर्थव्यवस्था है और इसका प्रबंधन कठिन कार्य है।
इससे पूर्व बाजार के लिए कुछ सख्त कदम उठाए जाने की भी संभावना जताई जा रही थी। कहा गया था कि स्लोडाउन के दौरान दिए गए राहत पैकेजों की वापसी की प्रक्रिया भी शुरू हो सकती है। इन सब अटकलों के बावजूद महंगाई की मार से दबे आम आदमी और ग्रोथ रेट में तेजी की उम्मीद पाले बाजार को प्रणव दादा से कुछ दरियादिली की उम्मीद रही। बजट से एक दिन पहले गुरुवार को आर्थिक समीक्षा को संसद में पेश करने के बाद प्रणव ने जिस तरह नई परंपरा बनाते हुए पत्रकारों से बातचीत की, उससे लग रहा था कि दादा देश की विकास और आम आदमी के बीच बजट में बैलेंसिव अप्रोच बनाने के मूड में हैं। बेशक बजट में कुछ सख्त कदम उठाएं, लेकिन महंगाई से तपते आम आदमी पर राहत के कुछ छींटे डालने में परहेज नहीं करेंगे। दादा ने यूं तो आर्थिक समीक्षा में सरकार के आर्थिक सेक्टर को लेकर रणनीति और वित्त आयोग की सिफारिशों के बारे में बात की। मगर वह बार-बार कहते रहे कि बढ़ती महंगाई से हम बहुत चिंतित हैं और चाहते हैं कि आम आदमी को इससे जल्द निजात मिले।
आर्थिक समीक्षा के आंकड़ों से स्पष्ट है कि बाजार में डिमांड बढ़ रही है। कंपनियों के कारोबार में इजाफा हो रहा है। ऐसे में सरकार की आमदनी बढऩा तय है। मगर प्रणव के सामने महंगाई के बाद सबसे बड़ी चिंता है बढ़ता राजस्व घाटा। पिछले बजट में सरकारी खर्च 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। इसे पूरा करने के लिए सरकार को तीन लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त कर्ज लेना पड़ा था। दादा की प्राथमिकता है कि इस घाटे को घटाकर 5 पर्सेंट तक लाना, जो अभी जीडीपी के परिप्रेक्ष्य में 6.5 पर्सेंट पर पहुंच गया है। यह तभी मुमकिन है कि जब खर्च कम हो और आमदनी ज्यादा। इस लक्ष्य को पाने के लिए दो काम करने होंगे। पहला, आमदनी के नए रास्ते खोजना और दूसरा, राहत और छूट खत्म करना, जिसमें बढ़ती सब्सिडी भी शामिल है। दोनों हालातों में वित्त मंत्री के पास कुछ करने का स्कोप न के बराबर है। नॉर्थ ब्लॉक स्थित वित्त मंत्रालय के सूत्रों से मिल रहे संकेतों के अनुसार मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने प्रणव से साफ कहा है कि बेशक मौजूदा आर्थिक परिस्थिति विकट है, फिर भी बजट को इतना सख्त न बनाया जाए कि आम आदमी और बाजार दोनों के मुंह से आह निकल जाए। इस बजट में आने वाले समय के लिए आथिर्क मोर्चे का रोड मैप साफ कर दिया जाए ताकि आम आदमी और बाजार दोनों इन ठोस कदमों के लिएखुद को तैयार कर सकें।
राजनीतिक हलकों में 'प्रणब दाÓ के नाम से पुकारे जाने वाले वित्त मंत्री कर प्रस्तावों की बात करते हुए कौटिल्य के एक कथन हवाला दिया। उन्होंने कहा, ''राजस्व एकत्र करने वाले अधिकारी को इस तरीके से अपने काम को अंजाम देना चाहिए कि उत्पादन और उपभोग पर इसका बुरा असर न पड़े। वित्तीय समृद्धि जनता की संपन्नता, कृषि में प्रचुरता और विभिन्न क्षेत्रों में वाणिज्यिक संपन्नता पर निर्भर करती है।ÓÓ यह पहली बार नहीं है कि उन्होंने अपनी बात कहते हुए कौटिल्य का जिक्र किया हो। बीते साल जुलाई में बजट भाषण के दौरान मुखर्जी ने कौटिल्य के कथन का उल्लेख करते हुए कहा था, ''जिस तरह से पके हुए फलों को बागीचे से तोड़ लिया जाता है उसी तरह एक राजा को भी बकाया राजस्व को एकत्र करना होगा। जिस तरह से कच्चे फलों को नहीं तोड़ा जाता, उसी तरह राजा को भी वह धन नहीं लेना चाहिए जो बकाया न हो क्योंकि इससे जनता में क्रोध आएगा और राजस्व के स्रोत भी खत्म हो सकते हैं।ÓÓ हर कोई जानता है कि कौटिल्य कड़े फैसले के लिए जाने जाते रहे हैं। एक लक्ष्य के लिए पूरी तरह समर्पित।
कृषि क्षेत्र और कृषकों के लिए सरकार ने बजट में खासा ध्यान देने की बात की है। एक ओर तो किसानों के लिए खाद में पोषण आधारित सब्सिडी 1 अप्रैल से लागू करने का एलान किया गया है और किसानों को मिलने वाली ऋण की सीमा बढ़ाने की भी बात की है। साथ ही किसानों के लिए कर्ज चुकाने की अवधि को उन्होंने छह महीने बढ़ाकर जून 2010 तक कर दिया है वहीं समय पर कर्ज चुकाने वालों को ब्याज में दो प्रतिशत की छूट मिले"ी। हरित क्रांति के विस्तार के लिए 400 करोड़ देने का प्रस्ताव है। खराब मॉनसून के चलते महं"ाई बढ़ी है। सरकार की कोशिश होगी कि किसानों को सीधे सब्सिडी दी जाए। सरकार खाद पर किसानों को राहत देने की कोशिश कर रही है वहीं दूसरी ओर पर पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ाकर किसानों की मुसीबतें और बोझ बढ़ाया ही है। इसके अलावा दादा ने बाढ़ व सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों के लिए कोई भी अतिरिक्त राहत की घोषणा नहीं की है। बजट भाषण में प्रणव ने ग्रामीण इलाकों में फूड सिक्युरिटी मुहैया कराने पर जोर दिया है। इकॉनमी को गति देने के लिए कई कदम उठाने की बात की है। महं"ाई का जिक्र करते हुए कहा कि खाने के सामान की बढ़ती हुई कीमतें चिंता का विषय हैं और महंगाई पर काबू पाना सरकार का बड़ा मकसद होगा। महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार हरसंभव कदम उठाएगी। यहां यह भी गौर करना होगा कि दादा ने सदन में बजट पेश करने से पहले ही यह स्पष्ट कह दिया था चूंकि विकास दर 9 फीसदी हो गई है तो मंहगाई तो और भी बढ़ेगी। अब ऐसे विरोधाभासी बयानों में से किसपर भरोसा करें।
ज़ाहिर है कि खाद्यान्न की कीमतें काबू से बाहर हुईं तो लोगों को राहत पहुंचाना भी तो सरकार की जि़म्मेदारी बनती है...सौ दिन में तस्वीर बदलने के दावे करने वाली सरकार ने वादा तो पूरा किया...लेकिन नई तस्वीर आम आदमी को और बदहाल करने वाली रही...विरोधी दल महंगाई पर सरकार को घेरती है तो सरकार इसे राजनीति कह कर खारिज कर सकती है...लेकिन अगर सरकार का आर्थिक सर्वे ही सरकार पर उंगली उठाता है तो स्थिति वाकई ही गंभीर है...आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि सरकार ने सूखे और मानसून फेल होने पर खरीफ़ ( मुख्यतया चावल) की फसल बर्बाद होने का ढिंढोरा पीटा, जिससे जमाखोरियों को बढ़ावा मिला। सरकार ने स्टॉक में मौजूद खाद्यान्न को नजऱअंदाज किया नतीजन सही तस्वीर प्रचारित न होने से आपदा जैसी स्थिति महसूस की जाने लगी। सरकार ने रबी (मुख्यता गेहूं) की फसल अच्छी रहने का सही अनुमान नहीं लगाया। आयातित चीनी को बाज़ार में लाने में देर की गई, जिससे अनिश्चितता का माहौल बना और महंगाई को पर लग गए। ऐसे में स्पष्ट है मानसून फेल होने से स्थिति इतनी नहीं बिगड़ी जितनी कि बाज़ार शक्तियों ने मोटे मुनाफे के चक्कर में बंटाधार किया...सरकार इन शक्तियों पर काबू पाने की जगह अपने ही विरोधाभासों में उलझी रही...कभी कांग्रेस शरद पवार को महंगाई के लिए कटघरे में खड़ा करती तो कभी पवार पूरी कैबिनेट को ही नीतियों और फैसलों के लिए जि़म्मेदार ठहरा देते...सरकार के इसी ढुलमुल रवैये के बीच आर्थिक सर्वे जो इशारे दे रहा है, वो आम आदमी की और नींद उड़़ाने वाले हैं। वाम दलों ने प्रणव मुखर्जी के आम आदमी के बजट पर पलट वार करते हुए कहा है कि यह बजट सही मायने में 'आम आदमी विरोधीÓ बजट है। वामदलों ने चेतावनी दी है कि सरकार के इस आम आदमी विरोधी बजट के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चलाया जाएगा। अगले महीने संसद के सामने विशाल प्रदर्शन किया जाएगा। सीपीएम ने परोक्ष रूप से लगाए जाने वाले कर प्रावधानों को भी सरकार से वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि इससे मुद्रास्फीति बढ़े। आम आदमी पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। सीपीएम के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी ने कहा कि आम आदमी विरोधी बजट प्रस्तावों के खिलाफ प्रभावी ढंग से आंदोलन चलाने के लिए आरजेडी , एसपी , बीएसपी , टीडीपी , बीजेडी , एआईएडीएमके के नेताओं से बातचीत चल रही है। सीपीआई के नैशनल सेक्रेटरी डी. राजा का कहना है कि बजट प्रस्तावों से मुदास्फीति बढ़ेगी। सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें और बढ़ जाएंगी। पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढऩे से दूरगामी दुष्प्रभाव होगा। यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि यह बजट गरीब विरोधी है। सरकार ने जिस तरह पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाने की घोषणा की है, उससे आने वाले वक्त में महंगाई आसमान पर पहुंच जाएगी। इससे जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि इससे विकास को बढ़ावा मिलेगा। बजट में समाज के हर वर्ग का वित्त मंत्री ने ध्यान रखा है।
सच तो यही है कि राशन के खाने, खाद और डीजल पर से सब्सिडी वापसी की तलवार और वार करने के लिए तैयार है...आर्थिक सर्वे में विकास दर में बढ़ोतरी के अनुमान के साथ आने वाला कल बेशक सुनहरा नजऱ आए, लेकिन आम आदमी की फिक्र आज की है...और इस आज को सुधारने में सरकार भी हाथ खड़े करती नजऱ आती है...और शायद यही सबसे बड़ा संकट है। एक दम तीखा, लाल मिर्ची की मानिंद।
3 टिप्पणियां:
bhai bazat aaye aur mahgai na badhe aisa to ho hi nahi sakta. sarkar ki achhi khichai ki hai apne
achha lekh hai
vishay achha uthate hain........keep it up
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