क्या ईवीएम आने के बावजूद वोटों से खिलवाड़ किया जा सकता है? चुनाव संबंधी निर्णय लेने में क्यों लग जाता है वर्षों का समय? क्या अरुणाचल प्रदेश की जनता देश के दूसरे लोगों के साथ नहीं कदमताल कर सकती हैं? नीदो आज भी मांग रहा है जवाब, लेकिन कौन देगा उसे?
सुभाष चंद्र
यदि यह कहा जाए कि चुनावी मौसम में सियासी दांवपेंच अपने चरम पर होता है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सुदूर पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसा ही हुआ और मामला अभी गुवाहटी हाईकोर्ट के ईटानगर बेंच में है। मामला रागा विधानसभा क्षेत्र (25) का है। 2014 विधानसभा चुनाव परिणाम में जैसे ही निवर्तमान विधायक नीदो पवित्र को महज 21 वोटों से हारने की सूचना मिलीं, उन्हें भरोसा नहीं हुआ। तमाम चीजों का आकलन करने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मामला कोर्ट में है।
रागा विधानसभा क्षेत्र से 2004 और 2009 के विधानसभा चुनाव में नीदो पवित्र हजार वोटों से अधिक के अंतर से चुनाव जीते थे। उन्हें कई विभागों का संसदीय सचिव बनाया गया था और अपने कर्तव्य का बेहतर निर्वहन किया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता नीदो पवित्र ने कहा कि 2014 विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेता तमार मुरतेम ने धांधली की है। ईवीएम मशीन के वोटों की गिनती में मैं आगे चल रहा था। पोस्टल बैलेट की गिनती में भाजपा नेता ने गड़बड़ी की है और महज 21 वोटों से विजयी घोषित करवाया है। हमारे पास तमाम साक्ष्य हैं, जिससे इस गड़बड़ी का खुलासा हो रहा है। मैंने गुवाहटी हाईकोर्ट से गुहार लगाई है। सुनवाई शुरू हो चुकी है। मुझे सौ फीसदी भरोसा है कि मैं पहले दो बार रागा का विधायक रहा हूं और इस बार भी क्षेत्र की जनता ने मुझे ही अपना प्रतिनिधि बनाया है।
उल्लेखनीय है कि रागा विधानसभा अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुअनसरी जिला में आता है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा नेता तमार मुरतेम को 6401 और कांग्रेस नेता नीदो पवित्र को 6380 वोट मिलने की घोषणा हुई। इस चुनाव में इस सीट पर 139 लोगों ने ‘नोटा’ का बटन दबाया था। इससे पहले 2009 के विधानसभा चुनाव में नीदो पवित्र 5460 वोटों के साथ और 2004 के विधानसभा चुनाव में 4258 वोटों के साथ विजयी हुए थे। बता दें कि 2004 के चुनाव में नीदो ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपना चुनाव जीता था और फिर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। उससे पहले 1999, 1995 और 1990 के विधानसभा चुनाव में भी रागा विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी तालो मुगली विजयी हुए थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2014 विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद नीदो पवित्र ने चुनाव से जुड़े तमाम साक्ष्य जुटाएं। स्थानीय प्रशासन से भी बात की। जब उनकी बातों पर समुचित गौर नहीं फरमाया गया तो आखिरकार हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट में दायर याचिका में नीदो पवित्र ने भाजपा नेता तमार मुरतेम और पीठासीन पदाधिकारी तालुक रिगिया के खिलाफ याचिका दाखिल किया है। याचिका में कहा गया है कि नीदो पवित्र को ईवीएम में 6275 वोट और 105 पोस्टल वोट मिलाकर कुल 6380 हुआ, जबकि भाजपा नेता तमार मुरतेम को ईवीएम में 6241 वोट और 160 पोस्टल वोट मिलाकर कुल 6401 वोट हुआ। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि मतदान के दिन यानी 9 अप्रैल 2014 को पोलिंग बूथ संख्या 25/15 जिग्गी एलपी स्कूल पर भाजपा नेता अपनी पत्नी श्रीमती यपी मुरतेम और कुछ कार्यकर्ताओं के साथ आर्इं और गड़बड़ियां की। ऐसे एक नहीं, कई मौका-ए-वारदात का जिक्र करते हुए नीदो पवित्र ने याचिका दाखिल किया है। उन्हें पूरा भरोसा है कि न्यायपालिका से उन्हें पूरा न्याय मिलेगा और एक जनप्रतिनिधि के रूप में वे फिर से अपने क्षेत्र सहित अरुणाचल प्रदेश के विकास में अपना योगदान देंगे।
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तानिया के पिता हैं नीदो पवित्र
अरुणाचल प्रदेश के लोगों के लिए नीदो पवित्र एक जाना-पहचाना नाम है। दो बार कांग्रेस के विधायक और महत्वपूर्ण मंत्रालय के संसदीय सचिव के रूप में उन्होंने बेहतर काम किया है। इसे विडंबना ही कहा जाए कि पूर्वाेत्तर से बाहर निकलते हुए उनकी पहचान उनके बेटे नीदो तानियाम से अधिक है।
नीदो तानिया, एक युवक, केवल उन्नीस साल का, दुबला-पतला लड़का था। एक निजी प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में फर्स्ट इयर का छात्र। जिसे 29 जनवरी को अचानक, दिल्ली के व्यावसायिक बाजार लाजपतनगर में, आठ दुकानदारों द्वारा पीट-पीट कर खत्म कर दिया गया। उसने अपने बाल आजकल के युवाओं की तरह ‘कलर’ (रंगीन) कर रखे थे। वह दिल्ली की एक पनीर की दुकान में, पनीर या क्रीम-मक्खन खरीदने नहीं, बल्कि अपने किसी दोस्त का पता पूछने गया था। उसने अपने ऊपर की गई टिप्पणी पर नाराज हो कर उस दुकान का शीशा तोड़ दिया। इसके लिए उसने दस हजार रुपये का जुर्माना भर दिया और अपने हत्यारों के साथ ‘समझौता’ कर लिया।
उसकी हत्या करने वालों में दो हत्यारे नाबालिग थे, ठीक उसी तरह, जैसे ‘निर्भया’ बस बलात्कार कांड का सबसे जघन्य बलात्कारी भी नाबालिग था। जाहिर है जब तक मौजूदा कानूनों में संशोधन नहीं किए जाते, तब तक उसे हत्या की सजा नहीं दी जा सकेगी। कानून को अब यह समझना होगा कि बदले हुए सामाजिक यथार्थ में बच्चे अब नाबालिग नहीं, ‘वयस्क’ हो चुके हैं। वे बलात्कार, चोरी, डकैती, लूट और हत्याएं करने लगे हैं।
आज भी बरकरार है सवाल
निदो तानिया उस अरुणाचल प्रदेश का था, जो उत्तर-पूर्व में है, जहां रहनेवालों के चेहरे-मोहरे दिल्ली और उत्तर-भारतीयों से अलग होते हैं। वही अरुणाचल प्रदेश, जिसे चीन कई वर्षों से अपने नक्शे के भीतर दिखाता है, लेकिन इसके बावजूद वह अभी तक भारत का हिस्सा इसलिए बना हुआ है, क्योंकि वहां की जनता अब भी स्वयं को भारतीय गणतंत्र का हिस्सा मानती है।
नीदो की हत्या ने उस समय जो सवाल खड़े किए, वह आज भी कायम है। जबाव नहीं मिला। कुछ ही समय पहले अमेरिका के मशहूर अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने एक सर्वेक्षण में दुनिया के उन दस सबसे मुख्य देशों में भारत को शिखर पर रखा है, जहां नस्ल, जेंडर (लिंग), सामुदायिक और जातीय असहिष्णुता सबसे अधिक है। इस पर सोचने की जरूरत है। निदो तानियाम की हत्या के कुछ ही दिन पहले, दक्षिण दिल्ली के उसी इलाके में, बाहर घूमने निकलीं मणिपुर की दो लड़कियों के जूते में, दो युवकों ने अपने पालतू कुत्ते का पट्टा बांध दिया था और जब डर कर वे लड़कियां चिल्लाने लगीं, तो वे हंसने लगे और जब उनमें से एक लड़की ने कुत्ते को दूर रखने के लिए उसे पैर से ठोकर मारी तो उन्होंने उस लड़की को बाल पकड़ कर घसीटा और उसे ‘चिंकी’ कहते हुए गालियां दीं। उन लड़कियों की मदद में आए उत्तर-पूर्व के दो युवकों को उन्होंने मारा-पीटा। शिकायत करने पर भी पुलिस ने एफआइआर दर्ज नहीं की।
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