बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

पर्यटन को लगे पंख

भारत में विदेशी पर्यटकों के शीर्ष दस स्थानों की वार्षिक सूची में गोआ की जगह बिहार का नाम आया है। हालांकि, 2009 में गोआ में 7 फीसदी के इजाफे के साथ विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़कर 376,000 हो गई थी, लेकिन बिहार में 22 फीसदी बढ़कर इस संख्या के 423,000 से ज्यादा थी
प्रदेश के विकास में पर्यटन उद्योग का खासा योगदान होता है। जितनी अधिक संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं, उसी अनुपात में ज्यादा से ज्यादा लोग इस उद्योग से जुड़कर जीवनयापन कर सकते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए नीतीश सरकार ने प्रदेश के पर्यटन स्थलों को विकसित और सुव्यवस्थित करने का संकल्प लिया है। पूरा खाका तैयार है और इसके प्रभाव भी देखे जा रहे हैं।
लोगों को यह बात हजम करने में भले ही थोड़ी दिक्कत हो, मगर यह सोलह आने सच है कि बीते साल बिहार में गोवा से अधिक पर्यटक आए हैं। यह खबर किसी भी बिहारी के लिए गर्व का विषय हो सकता है। यह आंकड़ा किसी निजी संस्था का नहीं, बल्कि भारतीय पर्यटन मंत्रालय का है। भारत के पर्यटन मंत्रालय द्वारा हाल में जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि देश में विदेशी पर्यटकों के शीर्ष दस स्थानों की वार्षिक सूची में गोआ की जगह बिहार का नाम आ गया है। हालांकि, 2009 में गोआ में 7 फीसदी के इजाफे के साथ विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़कर 376,000 हो गई थी, लेकिन बिहार में 22 फीसदी बढ़कर इस संख्या के 423,000 से ज्यादा हो जाने से गोआ की साख को बट्टा लग गया। इसकी तुलना में 2001 के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो स्थिति काफी चौंकाने वाली है, क्योंकि 2001 में लगभग 260,000 विदेशी पर्यटक गोआ गए थे, जबकि सिर्फ 85,700 विदेशी पर्यटकों ने बिहार की ओर रुख किया था। विदेशी पर्यटकों के गोआ की तुलना में कहीं अधिक बिहार जाने के इन तथ्यों से अनेक लोगों को हैरानी हो सकती है।
इन बदली हुई स्थितियों को भांपते हुए पर्यटकों को लुभाने के लिए बिहार सरकार अब पूरब की तरफ रुख कर रही है। पर्यटन विभाग पूर्वी एशिया के उन मुल्कों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में जुटा है, जहां बौद्ध धर्म को मानने वालों की तादाद काफी ज्यादा है। इसके लिए विभाग ने कई तरह की तैयारियां भी कर रखी हैं। बिहार राज्य पर्यटन निगम के उप महाप्रबंधक नवीन कुमार के अनुसार, इस वक्त हम बौद्ध मुल्कों को काफी तरजीह दे रहे हैं। ऐसे मुल्कों को लुभाने के लिए हम काफी कोशिशें कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार के राजस्व आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा पर्यटन से ही आता है। ऐसे में सरकार अधिक से अधिक संख्या में देशी-विदेशी सैलानियों को राज्य की ओर आकर्षित करना चाहती है, जिससे राज्य के आय में बढ़ोत्तरी हो। पर्टयन निगम ने कुछ समय पहले ही नदी पर्यटन शुरू किया है। इसी तरह मुजफ्फरपुर के लीची के बागानों को हरा-भरा रखने के लिए सरकार किसानों को आर्थिक मदद देने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, अभी इन्हें बतौर ऋण आर्थिक सहायता दी जाती है।
योजनाओं की कड़ी में पटना के गंगा तट पर बनारस जैसी गंगा आरती भी अब पर्यटकों को लुभाएगी। जल्द ही लोगों को गंगा तट पर गंगा आरती देखने को मिलेगी। राज्य पर्यटन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक धर्मनगरी काशी में प्रत्येक शाम गंगा के कई घाटों के किनारे होने वाली गंगा आरती का विहंगम दृश्य गंगा तटों पर भी लोगों को देखने को मिलेगा। इसके लिए सरकारी स्तर पर तैयारी शुरू कर दी गई है।
राज्य के पर्यटन मंत्री सुनील कुमार 'पिंटुÓ का कहना है कि गंगा आरती से जहां लोगों में धार्मिक जागृति आएगी, वहीं गंगा तट पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा। विदेशी पर्यटक यहां की समृद्धि सांस्कृतिक विरासत को भी नजदीक से देख सकेंगे। पटना में ऐसे तो कई ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थल हैं, मगर गंगा आरती विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए काफी मददगार होगी। पहले चरण में गंगा आरती सप्ताह में दो दिन किए जाने की योजना है, इसके बाद इसे हर दिन कराया जाएगा।
सच तो यह है कि बिहार की गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहरें किसी भी सैलानी को यहां आने के लिए विवश करती हैं, मगर एक दशक पहले यहां की अराजक राजनीतिक व्यवस्था में असुरक्षा की भावना लोगों में खौफ पैदा करती थी। इस कारण इस सूबे की ओर रुख करने में लोग नाक-भौं सिकोड़ते थे। अब परिस्थितियां बदली हैं, लोगों का नजरिया बदला है और सामाजिक माहौल बदला है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर बदला है। ऐसे में प्रदेश के विकास में पर्यटन उद्योग नई इबारत लिखने जा रहा हो तो हैरत कैसी?

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