भारत में कहते हैं कि अदालत के चक्कर लगाते- लगाते चप्पल घिस जाती है, बाल सफेद हो जाते हैं मगर अदालत का फैसला नहीं आता। मगर अब अदालतों के सुस्त रफ्तार फैसलों से जल्दी निजात मिल जाएगी। केन्द्र सरकार ने अदालतों में मामलों पर निर्णय के लिये औसत अवधि 15 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष करने के लिए राष्ट्रीय विधिक अभियान के तहत देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए राष्ट्रीय अभियोग नीति तैयार की है।
विधि एवं न्याय मंत्री एम वीरप्पा मोइली राष्ट्रीय अभियोग नीति की घोषणा की। यह नीति इस वर्ष पहली जुलाई से लागू होगी। इस नीति का सम्पूर्ण पाठ अंग्रेजी भाषा में पसूका की वेबसाईट पर उपलब्ध है। राष्ट्रीय अभियोग नीति इस मान्यता पर आधारित है कि सरकार और इसकी विविध एजेंसियां देश में अदालतों और न्यायाधिकरणों में प्रमुख वादी है।इस नीति को रेखांकित करने का उद्देश्य अदालतों में सरकारी अभियोग कम करना है ताकि अदालतों का कीमती समय अन्य लंबित मामलों को निपटाने में लगाया जा सके। राष्ट्रीय विधिक अभियान का भी यही लक्ष्य है कि अदालतो में लंबित मामलों की औसत अवधि 15 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष कर दी जाए। इस नीति में विभिन्न स्तरों पर जवाबदेही पर बल दिया गया है। इस नीति के कार्यान्वयन और जवाबदेही की निगरानी के लिए अधिकार प्राप्त समितियां होंगी। नोडल अधिकारियों और विभागाध्यक्षों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी प्रासंगिक आंकड़े अधिकार प्राप्त समितियों को भेजे जाएं।
राष्ट्रीय स्तर पर अधिकार प्राप्त समिति की अध्यक्षता भारत के महाधिवक्ता करेंगे, अन्य सदस्य (छह से अधिक नहीं) विधि मंत्रालय मनोनीत कर सकता है। इसके अलावा चार अधिकार प्राप्त क्षेत्रीय समितियां होंगी, जिनकी अध्यक्षता विधि मंत्रालय द्वारा मनोनीत अतिरिक्त महान्यायवादी करेंगे।
1 टिप्पणी:
यह नीति एक धोखा सिद्ध होने वाली है।
एक टिप्पणी भेजें