सोमवार, 26 अगस्त 2013

नाम नहीं, आइडिया कहिए जनाब

इतिहास ने कई प्रभावशाली नेता देखे हैं, जिन्?होंने देश की जनता को आगे बढ़ाने में सकारात्?मक भूमिका अदा की। आपदा के समय उन्?होंने देश को संकट से उबारा। ऐसी ही एक आंधी गुजरात से उठी है, जिसने दिल्?ली में बैठे कई लोगों के होश उड़ा दिये हैं। उस आंधी का नाम है नरेंद्र मोदी। जब भ्रष्?टाचार की बात आती है तो आपको नरेंद्र मोदी की छवि पर एक भी दाग नहीं मिलेगा। यही कारण है कि मोदी हर मंच पर बेबाक बोलते हैं। यदि आप विकीलीक्?स के द्वारा किये गये खुलासों में देखें तो भारत में तमाम नेताओं की छवि को धूमिल करने के लिये हजारों प्रयास किये गये हैं। उनमें 100 से अधिक प्रयास तो सिर्फ मोदी की छवि को धूमिल करने के लिये हैं। कहते हैं अच्?छी राजनीति अच्?छी अर्थव्?यवस्?था नहीं होती, अच्?छी अर्थव्?यवस्?था अच्?छी राजनीति नहीं होती। यही कारण है कि एक राजनीतिक पार्टी का मकसद साम दाम दंड भेद किसी भी प्रकार से चुनाव जीतना होता है। आर्थिक मंदी के चलते कई बार राजनीतिक इच्?छाशक्ति भी समाप्?त हो जाती है। राजनीति में आने वाले लोगों में किसे राजस्?व की चिंता रहती है। ऐसे बहुत कम ही मिलेंगे। लेकिन नरेंद्र मोदी हैं, जिनके अंदर आर्थिक मामलों में कुशाग्रता हासिल है। आप ही देख लीजिये देश में कौन सा नेता है उनके अलावा जिसने फूड सिक्?योरिटी बिल का विरोध किया है। यह वो व्?यक्ति है, जिसने हमेशा जमीनी स्?तर पर सोचा और काम किया साथ ही अपनी गवर्नेंस से लोगों को चौंका दिया है। कांग्रेस से एकदम अलग हट कर देखें तो मोदी की ख्?याति का सिर्फ एक कारण है गुजरात में उनका प्रदर्शन। उनके नेतृत्?व में गुजरात का लोहा कई बड़े अर्थशास्?त्री मानते हैं। न्?यूज मैगजीन इक्?नॉमिस्?ट ने लिखा, "गुजरात में जिस तरह कई काम चल रहे हैं, वैसे भारत में बहुत कम दिखाई पड़ता है।" भारत की 5 फीसदी जनसंख्?या को समेटे हुए इस गुजरात में 16 फीसदी औद्योगिक आउटपुट और 22 फीसदी निर्यात होता है। पिछले दस साल में यहां की विकास दर दोगुनी हो गई है। कृषि विकास दर 10 फीसदी है, जबकि भारत 3 फीसदी पर अटका हुआ है। मोदी ने अपने शाासन में यहां के इंफ्रास्?ट्रक्?चर को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बिजली की निरंतर सप्?लाई उद्योगों को बल देती है। नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन फिर भी जहां वो जाते हैं जनता उनकी ओर खिंची चली आती है। हाल ही में हैदराबाद की रैली ही ले लीजिये। कांग्रेस जहां तेलंगाना पर राजनीति कर रही है और तेलंगाना व सीमांध्रा के लोग एक दूसरे को मारने-काटने पर उतारु हैं, वहीं मोदी ने दोनों से अपील की कि हिंसा बंद करके एक साथ मिलकर शांतिपूर्वक राज्?य का बंटवारा करें। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी कांग्रेस का मुद्दई बनने में कामयाब हो गये हैं। अभी तक भले ही कांग्रेस उनके बारे में कहती रही हो कि वे मोदी को बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं और मोदी उनके लिए कोई चुनौती नहीं हैं लेकिन जहां एक ओर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मोदी नाम की माला जपी तो कांग्रेसी महासचिव दिग्विजय सिंह और केन्द्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने मोदी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि मोदी कांग्रेस से बड़ा खतरा भाजपा के लिए हैं। बिहार में जदयू भाजपा गठजोड़ के टूटने के बाद कांग्रेस के तीनों दिग्गजों ने नरेन्द्र मोदी पर अलग अलग मौकों पर राजनीतिक हमला बोलते हुए जो कुछ कहा उससे एक बात तो साफ हो गई कांग्रेस के लिए मोदी मुद्दई नंबर एक हो गये हैं। और राजनीतिक रूप से नरेन्द्र मोदी की मंशा भी यही थी, इसीलिए अपने भाषणों में नरेन्द्र मोदी केन्द्र की कांग्रेस सरकार पर तीखे हमले करने से कभी पीछे नहीं रहते हैं। ऐसे में बरबस ही सवाल उठता है कि क्या मोदी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखकर कोई अपराध कर रहे हैं? क्या मोदी पीएम पद के लिए आवश्यक योग्यता नहीं रखते? क्या मोदी राष्ट्र और विकास विरोधी हैं? क्या मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश और जनता का कोई बड़ा नुकसान होने वाला है? ऐसे तमाम सवाल है जिनका सीधा जबाव देने की बजाय विपक्ष मोदी को व्यक्तिगत तौर पर कीचड़ उछालने, गोदरा कांड ओर फर्जी हत्याओं का आरोप उन पर लगाता है। पिछले कई सालों से सुरक्षा और जांच एजेसिंया मोदी के खिलाफ इन घटनाओं में शामिल होने के पर्याप्त और पुख्ता सुबूत ढूंढ नहीं पाई हैं। इन स्थितियों में विपक्ष का विरोध ऊपरी तौर पर दुष्प्रचार और दुर्भावना से ओत-प्रोत दिखता है। और जहां तक पार्टी के भीतर मोदी के विरोध की बात है तो स्वाभाविक तौर पर पीएम बनने की इच्छा पार्टी के कई दूसरे नेता भी पाले बैठे हैं फिर अगर मोदी पीएम पद के लिए प्रयासरत हैं तो इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है।

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