बुधवार, 14 जनवरी 2015

मांझी, महादलित और मुख्यमंत्री

सबकुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी। सच है दुनियावालों के हम हैं अनाड़ी - यही कह रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी। मुख्यमंत्री बनने के बाद से कई बार विभिन्न मंचों से खुद को महादलित होने की बात कर चुके हैं। जब भी जीतन राम मांझी के बयानों से सियासी बवंडर उठता दिखा है, वो इसे दिल से निकली हुई आवाज कह देते हैं। उनकी पार्टी जदयू की ओर से इसे मांझी की व्यक्तिगत टिप्पणी करके पल्ला झाड़ लिया गया है। अब, एक नया सियासी हुदहुद का अंदेषा हो रहा है। पटना के सियासी गलियारों में यह कानाफूसी तेज हो चली है कि मकर संक्रांति के बाद जैसे ही सूर्य उत्तरायण होगी, मांझी को भी पूर्ववर्ती कर दिया जाएगा। यानी मांझी की जगह जदयू नेतृत्व किसी और पर अपना भरोसा जताएगा। 
बेषक, अभी यह सियासी कानाफूसी हो, लेकिन पटना से लेकर दिल्ली तक सियासी तपिष बढ़ने का अंदेषा है। पटना में नीतीष कुमार के आवास से लेकर दिल्ली में षरद यादव के आवास पर आवाजाही कुछ अधिक हो चुकी है। असल में, जीतन राम मांझी को लेकर बिहारी के राजनीतिक प्रेक्षक भी कुछ यकीनी तौर पर कहने की स्थिति में नहीं हैं। राजनीति को जानने वालों की मानें, तो जब मांझी ने ये कहा - ‘सबकुछ सीखा हमने, न सीखी होषियारी। सच है दुनियावालों के हम हैं अनाड़ी‘ - तो ये मांझी की जनता के लिए लाइन थी, लेकिन जब आदेश और काम करने की बात आती है, तो वह किसी के रिमोट नहीं रहे। हालांकि अगले ही पल नीतीश की दिल्ली यात्रा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह विलय के मुद्दे पर लालू यादव, शरद यादव और मुलायम सिंह से बात करने जा रहे हैं। सरकार चलाने का जिम्मा उनके कंधों पर है। जब विलय हो जाएगा, तो उस परिस्थिति में मांझी इतने आश्वस्त दिखे की बोल दिया कि वह सबके साथ मिलकर काम करेंगे। मांझी ने नीतीश को खुश करने के लिए भाजपा पर भी हमला बोला और कहा कि केंद्र की सरकार उनके साथ सहयोग नहीं कर रही है और हर मद में बिहार के हिस्से की कटौती की जा रही है।
फिलहाल, अपने बयानों से लगातार चर्चा में रहे बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है। राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज हो गई हैं कि खरमास बाद यानी 14 जनवरी के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है। नीतीश ने साफ कहा कि वो ऐसा कोई आश्वासन नहीं दे सकते कि मांझी ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। छह महीने पहले मांझी को अपनी पसंद से मुख्यमंत्री बनाने वाले नीतीश का ये बयान क्या संकेत दे रहा है ? नीतीश कुमार बागी विधायकों पर मांझी के बयान पर भी इशारों में ही नाराजगी जता चुके हैं। नीतीश ने कहा कि जदयू अपना काम ठीक से कर रहा है। जो पार्टी लाइन से अलग बयान दे रहे हैं, उससे जेडीयू पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। गौरतलब है कि मांझी ने बयान दिया था कि बागी विधायकों की सदस्यता खत्म कराना सही नहीं था। इस मामले को लेकर जदयू और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के शीर्ष नेताओं के बीच बैठक में फैसला लिया जा सकता है। उधर, नीतीश कुमार ने कहा है कि जदयू में सब ठीक है। सब ठीक चल रहा है। 
सियासी गलियारों में चल रही बातों पर यकीन करें, तो राजद अध्यक्ष लालू यादव चाहते हैं कि नीतीश कुमार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री का पदभार संभालें। जदयू-राजद की बैठक में शीर्ष नेतृत्व इस बात पर चर्चा करेगा कि क्या जीतनराम मांझी को बदला जाए या नहीं ? बैठक में अगर मांझी को बदलने पर सहमति बन जाती है, तो इस बात पर भी चर्चा होगी कि बिहार का नया मुख्यमंत्री कौन बनेगा? 
उधर पटना में जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाने को लेकर बयानबाजी तेज हो गई है। अटकले लगाई जा रही हैं कि खरमास बाद मांझी को पद से हटाया जा सकता है। दरअसल, मांझी लगातार अपने बयानों से चर्चा में रहे हैं। कई बार तो उनके बयान उनकी ही पार्टी के लिए मुसीबत बनते नजर आए। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में जेडीयू के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद एक नई व्यवस्था के तौर पर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। नीतीश कुमार ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के उद्देश्य से अपने विश्वस्त मांझी को मुख्यमंत्री पद सौंपा। उस समय तीन दिन की ड्रामेबाजी और उसके बाद जो पटाक्षेप जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी थमाकर हुई, उसके बाद ही यह कहा जा रहा था कि जीतन राम मांझी नीतीष कुमार के मनमोहन ही साबित होंगे। यूपीए सरकार में जिस प्रकार से सोनिया गांधी ने अपने रिमोट से मनमोहन सिंह को चलाया, उसी राह पर अब नीतीष कुमार निकल पड़े हैं। सत्ता में दखल रहेगा, लेकिन जिम्मेदारी नहीं। जाहिरतौर पर ऐसे में यदि विधानसभा चुनाव में नीतीष कुमार का खूंटा-पगहा लोकसभा चुनाव की तरह ही उखड़ेगा, तो कोई भी उनसे इस्तीफे की मांग भी नहीं कर सकता है। इसे कहते हैं कि सियासत में सयानापन। 
लेकिन हाय रे सयानापन... यह तो उलटा ही हो गया। जीतन राम मांझी अपने बयानों के कारण उल्टे कई बार नीतीश के लिए ही मुसीबत बनते नजर आए। यहां तक की नीतीश के समर्थक विधायकों ने कई मौकों पर पार्टी नेतृत्व से मांझी का इस्तीफा लेने की मांग तक कर डाली। इसके साथ ही अहम सवाल यह भी है कि जदयू के अंदर सियासी बिसात पर भले ही नीतीष कुमार और मांझी यादव एक-दूसरे से परोक्ष रूप से भिड़े हों, लेकिन आने वाले समय में इसका जवाब बिहार के नए सूबेदार बने जीतन राम मांझी को ही देना होगा। विधानसभा चुनाव में जनता उनसे सवाल करेगी। नीतीष कुमार ने जिस प्रकार का विकास का मुलम्मा चढाया हुआ है, उसको लेकर भी जनता मांझी से हिसाब मांगेगी। पार्टी के स्टार प्रचारक भले ही नीतीष हों, लेकिन एक मुख्यमंत्री होने के नाते मांझी को भी पोस्टर में स्थान मिलेगा। जाहिर है, इस स्थान की कीमत भी होती है। कुल जमा यह कि चुनावी परिणाम आने के बाद भी पार्टी के अंदर और बाहर मांझी को लेकर ही तर्क-वितर्क किए जाएंगे। यदि चुनाव की तारीखों के एलान से पहले जदयू और नीतीष कुमार ने मुख्यमंत्री बदला, तो जाहिरतौर पर भाजपा सहित अन्य विपक्षी दल इसे महादलित मुद्दे से भी जोड़ेगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के इस बयान को भी ध्यान में रखना होगा। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा था - मुझे यह पता है कि मैं प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री नहीं होऊंगा, लेकिन कोई गरीब का बेटा ही अगला मुख्यमंत्री होगा, जो महादलित समाज से होगा। मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि मैं सीएम बनता हूं या नहीं, लेकिन मेरे महादलित भाई-बहनों का काम होना चाहिए।

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