दर्शन और कूटनीति कहता है कि यदि किसी देश व समाज को बर्बाद करना है, तो सबसे पहले उसका आर्थिक ताना-बाना नष्टï कर दें। उसकी उलटी गिनती शुरू हो जाएगी। चाहकर भी वह संभल नहीं पाएगा। आर्थिक उदारीकरण के बाद साम्राज्यवादी विचारधारा से ओत-प्रोत कुछ देश दूसरों को इसी तर्ज पर नस्तो-नाबूद करने पर आमादा है। चीन उसी का जीता-जागता उदाहरण है। बिना किसी मानक का ख्याल रखते हुए वह कम लागत में उत्पादन कर भारत सहित दूसरे देशों में अपने माल को खपाता है। जबकि उसके दुष्प्रभाव अनेक है।
महंगाई के इस जमाने में सस्ता माल मिले तो कौन नहीं लपकना चाहेगा। वह भी तब, जब माल औरों से टिकाऊ हो। जाहिरतौर पर हर कोई हाथों-हाथ लेगा। कुछ ऐसे ही स्थिति भारत की है। जहां विदेशी उत्पादक अपने लिए एक अच्छा बाजार और खरीददार वर्ग तैयार कर चुके हैं। आलम यह है कि चीन सस्ता और टिकाऊ माल बनाता है और भारतीय ग्राहक हाथों-हाथ उसे उठा लेते हैं। बिना सोचे-समझे। क्या इसके प्रभाव-दुष्प्रभाव होंगे।
विशेषज्ञों की रायशुमारी है कि यदि किसी देश को बर्बाद करना हो अथवा उसे अपने अधीन करना हो तो उसकी अर्थव्यवस्था को अपने कब्जे में कर लें या फिर उसे बर्बाद कर दें। जरूरत के समय वह संभल नहीं पाएगा। चीन आजकल यही कर रहा है। सामरिक स्तर पर वह सदा ही भारत के लिए परेशानी का सबब रहा है और पिछले कुछ वर्षों से वह भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है।
इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि चीन का बढ़ता हुआ वर्चस्व आज सारे विश्व के लिए एक चुनौती बन गया है। वह न केवल एशिया में बल्कि सारे विश्व में अपना दबदबा दिखाना चाहता है। इसमें वह सफल हो रहा है। वह सम्पूर्ण विश्व को अपनी उपस्थिति का आभास कराना चाहता है। इसके लिए वह हर तरह की साजिश और चाल चल सकता है और वह यही कर भी रहा है। उसकी पास जनसंख्या के रूप मेंं मानव शक्ति अपार है। वह अपनी सम्पूर्ण मानव शक्ति का प्रयोग अपने छोटे और बड़े उद्योगों में लगाता है। पड़ोसी देशों की आर्थिक और उत्पादन क्षमता को तोडऩे का वह बहुत ही संगठित प्रयास करता है। आज हमारे देशा में अति सस्ते दामो में चीजें उपलब्ध कराता है। उस कीमत पर हमारे देश में हम कुछ भी नहीं उत्पादन कर पा रहे हैं । परिणाम - साफ़ है की हम सस्ते में मिलने वाली चीजों की ओर आकर्षित होकर चीन का ही माल खऱीदते हैं। भारतके पास इसका कोई जवाब नहीं है। भारतीय उपभोक्ता और उत्पादक भी मजबूर हो गए हैं की वे चीन की इस आर्थिक नीति को चाहे अनचाहे स्वीकार कर लें और अपना व्यापार चीन से ही करें। आज सभी विकासशील देशों की वाणिज्यिक मंजिल चीन ही है (शंघाई या बीजिंग)। भारतीय पारंपरिक आवश्यकताओं को पूरा करना भी चीन सीख गया है। चप्पल,जूते, कपड़े से लेकर इलेक्ट्रानिक उपकरणों तक सभी मेड इन चाइना - बिक रही है । और वह भी सस्ते में । भारतीय उत्पाद जब चीनी उत्पाद से महंगा हो तो उसे कौन खरीदेगा ? भारत सरकार की आर्थिक और बाज़ार की नीतियां क्या हैं ? आयात और निर्यात के नियमों में क्या संशोधनों की आवश्यकता नही है ? आज देशा के सामने चीन से निपटने की चुनौती सभी मोर्चो पर सबसे ज्यादा है । चीन हमारा प्रतिद्वंद्वी भी है और दोस्त के रूप में बहुरुपिया भी । उस पर विश्वास करना दिशा के हित को खतरे में डालना ही है।
वर्तमान का सच यही है कि हर किस्म के बाजारों पर चीनी कम्पनीयां अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए भारतीय कम्पनीयों से काफी कम कीमत पर अपने माल को बेच रही है। जिससे ग्राहक भारतीय कम्पनीयों के माल को न खरीद कर चीनी माल को ज्यादा तवज्जो देते है। जिस कारण भारतीय कम्पनीयो की बिक्री दर काफी प्रभावित हुई है। जिससे चीनी उद्योगों की पकड़ भारतीय बाजारों मजबूत होती जा रही है। भारतीय उद्योग के लिए दुविधा ये है की आज मंहगाई के कारन कच्चे माल की कीमते बढ़ गयी है जिससे उन्हें भी अपने निर्मित माल की कीमत में विरधी करनी पड़ रही है। ऐसे में चीनी उद्योग भारतीय ग्राहक को और भी सस्ती कीमत पर माल उपलब्द करा रही है। चीनी उद्योगों में निर्मित माल इतनी सस्ती दर पर मिलता है की इतनी कीमत पर तो भारतीय बाज़ार में कच्चा माल भी नही मिलता।
हालांकि इस सच तो झुठलाया नहीं जा सकता है कि चीन हमसे तेज रफ्तार से तरक्की कर रहा है। और, कई मामलों हमारे देश के नीति-नियंता भी चीन का ही उदाहरण देकर विकास की गाड़ी चीन से भी तेज रफ्तार से दौड़ाना चाहते हैं। तेज रफ्तार से विकास करते चीन का यही हल्ला आज भारत के विकास को बट्टा लगा रहा है। दरअसल, चीनी सामानों ने कुछ इस तरह से हमारे आसपास घर कर लिया है कि अब तो, मेड इन चाइना के ठप्पे पर नजर भी नहीं जाती। चीनी सामानों की घटिया क्वालिटी के बारे में जानने के बाद भी जाने-अनजाने भारत के लोग इसे खरीद रहे हैं और चीन के विकास की रफ्तार और तेज कर रहे हैं।
सच तो यही है कि भारत में कंज्यूमर नाम का प्राणी सबसे तेजी से बढ़ा है। यानी वो खर्च करने वाले जिनकी जेब में पैसा है जो, मॉल में शॉपिंग करता है, मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखता है। कंज्यूमर नाम का ये प्राणी कंज्यूम करना जानता है, इसे इस बात की ज्यादा परवाह नहीं होती कि खरीदा हुआ सामान कितना चलेगा। कंज्यूमर के पास पैसे हैं तो, उस पैसे को खींचने के लिए हर मॉल में माल ही माल भरा पड़ा है। किस समान की बात करें। ग्रॉसरी, खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक, कपड़े, ऑटोमोबाइल सेक्टर, दवा, मोबाइल, एफएमजीसी सहित हरेक क्षेत्र में चीनी कंपनियों का दबदबा है। आंकड़े बताते हैं कि ग्रॉसरी और फर्नीचर आइटम्स का 65 प्रतिशत चीनी कंपनियों का ही माल भरा पड़ा है। फैशन-कॉस्मेटिक्स-बनावटी गहने इसके 75 प्रतिशत पर चीनी कंपनियों का ही कब्जा है। मॉल से खिलौने खरीदने वाले करीब 15 प्रतिशत बच्चे ही देसी खिलौने के साथ अपना बचपन बिता पाते हैं।
इतना ही नहीं, सड़क किनारे बिकने वाले अजीब-अजीब से खिलौने, टॉर्च, बैटरी, कॉस्मेटिक्स, कैलकुलेटर, डिजिटल डायरी- सब कुछ चाइनीज है। सामान बेचने वाला चिल्ला-चिल्लाकर पहले ही बता देता है कि सामान मेड इन चाइना है, कोई गारंटी नहीं है। फिर भी मोलभाव कर खरीदने वाले की लाइन लगी है। सड़क किनारे लगे इस बाजार में तो, 90 प्रतिशत सामान मेड इन चाइना ही है। देश के रिटेल बाजार में अनऑर्गनाइज्ड रिटेल का हिस्सा 95 प्रतिशत है। हाल तो यह है कि मेहनती जापानियों के बाजार में भी चीन ने जमकर कब्जा कर रखा है। जापान के बाजार में भी जापानी में मेड इन चाइना लिखे सामान भरे पड़े हैं।
पिछले दिनों प्राकर्तिक रबड़, कार्बन ब्लैक और कच्चे टेल की कीमते बढ़ गयी है जिससे हमारा टायरों की कीमतों को बढऩा लाजमी हो गया। परन्तु साथ ही चीनी टायरों का आयात भी पिछले दिनों कई गुना बढ़ गया है। पहले भारत चाइना से टायर आयात करने में 39 वां था, परन्तु आज ये वहां से खिसक कर तीसरे स्थान पर आ गया है। भारत में टायरों का कारोबार 1200 करोड़ का है। जिसमें 7800 करोड़ का पुराने टायरों का कारोबार है। और इसमे चाइना की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। भारतीय टायर गुवात्ता में चीनी टायरों से कहीं बेहतर है परन्तु ग्राहक गुणवत्ता से ज्यादा कम कीमत को ज्यादा तरजीह देते है। और चीनी टायर भारतीय टायरों से लगभग 30 प्रतिशत कम कीमत पर मिल जाते है। इसलिए उनका रुझान चीनी टायरों की तरफ़ जयादा है। इसी प्रकार आज से 4 साल पहले ऑटो पार्ट्स का आयात मात्र 1.6 प्रतिशत था। परन्तु इन दिनों आयात 10 प्रतिशत बढ़ गया है। यहाँ भारत में ऑटो पार्ट्स की कीमते चीनी ऑटो पार्ट्स से 30 प्रतिशत ज्यादा पड़ती है। चीनी ऑटो पार्ट्स इतने सस्ते मिलते है की इतनी कीमत में तो हमारे यहाँ कच्चा माल भी नहीं मिलता।
आज हर आदमी के पास कुछ और हो न हो, लेकिन एक अदद मोबाइल सेट हाथ में जरूर होगा। इस सोच को चीनी कंपनियों ने बखूबी समझ लिया है। बेशक, एक दिसंबर से नकली ईएमआई नंबर के कारण भले ही लाखों चीनी मोबाइल खामोश हो गए हों, लेकिन इसके बाद भी लोगों को भ्रम इसके आकर्षण के प्रति नहीं टूटा है। हालांकि एक दिसंबर के देश भर में लाखों चीनी मोबाइल धारकों को हैंडसेट बंद हो गया। लेकिन इस बाद भी मोबाइल रिपेयर करने वालों ने किसी न किसी तरह का जुगाड़ अपना कर इसे फिर चालू कर दिया है। रहस्यम तकनीक के कारण देशभर के बाजार में अभी भी चाइना मोबाइल फोन के हैंडसेट धडल्ले से बगैर बिल और गारंटी के बिक रहे हैं। चीनी हैंडसेटों की ब्रिकी कानूनी है या गैर-कानूनी इस बारे में न पुलिस के पास कोई जवाब है और न ही कस्टम विभाग और चुंगी विभाग कुछ स्पष्ट कहते हैं। कस्टम विभाग का कहना है कि आयातित मोबाइल के संबंध में कोई मानक नहीं है। कोई भी उत्पादक पांच प्रतिशत की कस्टम ड्यूटी देकर हैंडसेट देश के अंदर निर्यात कर सकता है। तो वहीं चुंगी विभाग का कहना है कि जब जानकारी मिलती है, तो छापा मारने की कार्रवाई होती है। किसी भी शहर में ट्रांसपोर्ट के जरिये इलेक्ट्रॉनिक आइटम जो कुछ भी आता है, उसकी बिल्टी व बिल देखकर तीन प्रतिशत चुंगी कर लगाई जाती है। पर चीनी हैंडसेट के डिलर सारा काम चोरी-छिपे करते हैं। चोरी-छिपे होने वाले इस कारोबार से विभाग चुंगी कर कैसे वसूल सकता है? इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। वहीं बिना बिल के बिकने वाले इन हैंडसेट से सरकार को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। बिक्री कर विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि चाइनामेड हैंड सेटों के बारे में संपूर्ण जानकारी जुटा रहा है कि ये कहां से कैसे आते हैं? मजे की बात यह है कि इन हैंडसेट के आईएमआई यानी इंटरनेशन मोबाइल इक्विपमेंट आईडेटिटी नंबर प्रमाणिक हैं कि नहीं, इसकी गारंटी देने वाला कोई नहीं है। हालांकि कई चाइनिज हैंडसेटों पर ये नंबर अंकित होते हैं, वे असली होते हैं या नकली? इसका जवाब दुकानदारों के पास नहीं है? जब कोई मोबाइल बिकता है, तो दुकानदार इसी आईएमआई नंबर को बिल में लिखता है। मोबाइल खोने से इसी नंबर से यह जानने की कोशिश की जाती है कि वह हैंडसेट कहां है? विभिन्न आपराधिक घटनाओं में पुलिस दोषियों के मोबाइल के इन्हीं नंबरों से ट्रैस करने की कोशिश करती है। जानकार यह भी कहते हैं कि आईएमआई नंबर गलत होने से ऐसे हैंडसेट्स के दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि एक दिसंबर के बाद हजारों की संख्या में चाइनिज मोबइल के बंद होने के बाद एक गिरोह ऐसा सक्रिय हो गया है जो पुराने बंद हो चुके मोबाइल के ईएमआई नंबर का इसमें उपयोग कर रहे हैं।
देश की साइकिल इंडस्ट्री भी चीन से दुखी है। देश में दिनोंदिन स्टील की कीमतें बढती जा रही हैं उधर चीन सस्ती साइकिलें देश में सप्लाई कर रहा है। वह दिन दूर नहीं जब आपके बाजारों से मेड इन इंडिया लापता होगा। हर चीज मिलेगी मगर मेड इन चाइना की। हमारे उद्योग दम तोड चुके होंगे तब चीन हमारी कमर तोडेगा। फिर हम कुछ नहीं कर पाएंगे। अभी तो थोडे सस्ते के चक्कर में हम चीन को अपने घर की चौकठ दिखा रहे हैं। वह वक्त भी आएगा जब चीन हमारे बेडरूम में होगा और हम घर के बाहर। सोचने की जरूरत है।
सच तो यही है कि विश्व व्यापार समझौते के बाद भारतीय बाजार कई देशों के लिए सबसे बड़ी मंडी साबित हुआ है। विभिन्न देश अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए धड़ाधड़ अपने उत्पाद भारतीय बाजार में उतार रहे है। भारतीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में भारतीय त्योहारों की अहम भूमिका है। विविध संस्कृतियों के चलते भारत में हर मौसम व हर माह में विशेष पर्व मनाया जाता है। भारतीय त्योहारों को भुनाने में चीन पहले नंबर पर आता है। होली की पिचकारी और रंग तक 'मेड इन चाइनाÓ हो गया। गत दिनों, होली के अवसर पर जब एक दुकानदार से इस बाबत पूछा तो उसने दलील दी कि हमारे यहां तो केवल वही एक घीसी पिटी पंप वाली पिचकारी बनती है, जबकि चीन की बनी पिचकारियों पर हजारों वैराइटियां मौजूद हैं। साथ ही इनकी कीमत भी काफी कम है। एक और बात यह कि इन पिचकारियों को बच्चे होली के बाद भी खिलौनों के तौर पर खेल सकते हैं। इसके अलावा चाइना मेड रंग और चाइना के गुब्बारे इस बार हमारे बाजारों में होली खेल रहे हैं। इससे पहले दीपावली पर चाइना मेड लाइट झालर और भगवान गणेश से लेकर माता लक्ष्मी तक चीन हमें मुहैया करा रहा है। नवरात्रों में होने वाले रामलीलाओं के वस्त्र और मुकुट भी मेड इन चाइना लेबल के हो चुके हैं। गौरतलब है कि छह वर्ष पूर्व चीन ने सबसे पहले दीपावली के त्योहार को ध्यान में रख कर भारतीय बाजार में रंग-बिरंगी रोशनियों वाली लाइटे व उससे संबंधित अन्य छोटी-मोटी सामग्री उतारी थी। इसके बाद पूजा के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियां व उससे संबंधित अन्य सजावटी उत्पाद भई बाजार में आ गए। गत वर्ष तो चीन ने पटाखें भी उतार दिए हैं। देखने में आकर्षक व सस्ती होने के कारण यह उत्पाद लोगों की पहली पसंद बने हुए है। दिल्ली के एक गिफ्ट सेंटर के मालिक रमेश आहूजा का कहना है कि उनकी दुकान में अस्सी प्रतिशत सामान मेड इन चाइना है। चाइना ने भारतीय बाजार की मंशा भांपते हुए न केवल खिलौने, इलेक्ट्रिकल सामान, इलेक्ट्रानिक्स व खाद्य पदार्थ संबंधित उत्पाद बाजार में उतारे हैं।
ऐसा नहीं है कि चीन केवल इसी महकमे में है। अब तो वह दवा उद्योग में भी अपना दबदबा कायम करने लगा है। भारत में जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री और सर्जिकल उपकरणों के बाजार में चीन ने अच्छा - खासा दबदबा कायम कर लिया है। भारत में दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले 75 प्रतिशत इंटरमीडिएट प्रोडक्ट का आयात चीन से होता है। इसके अलावा सिरिंज , ग्लूकोमीटर , बीपी मीटर सहित हर तरह के सर्जिकल उपकरण का आयात भी चीन से हो रहा है। दुनिया के दवा बाजारों में चीन का अभी आठवां नंबर है। ब्रांड के मामले में चीन की कंपनियों ने कोई खास झंडे नहीं गाड़े हैं , लेकिन हालत यह है कि थौक में दवा बनाने की सामग्री के निर्माण में अमेरिका तक चीन पर निर्भर है। दिल्ली के भागीरथ प्लेस सर्जिकल मार्केट में बड़े पैमाने पर चीन से सर्जिकल उपकरण खरीदे जा रहे हैं। चीन में झेजियांग , गुआंगदोंग , शंघाई , जिआंगसू और हेबेई प्रांत दवा और सर्जिकल कारोबार के मुख्य गढ़ हैं। इन पांचों प्रांतों में पिछले पांच वर्ष से दवा उद्योग 20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है। इनमें से दो इलाकों में जबरदस्त विकास हुआ है , जबकि बाकी तीन हिस्सों में आधारभूत सेवाओं की अपेक्षाकृत कमी है। ईस्टर्न चाइना जोन और साउथ चाइना जोन के विकसित इलाकों को चीन के दवा उद्योग का विकास धुव कहा जाता है। ईस्टर्न चाइना जोन का प्रतिनिधित्व झेजियांग प्रांत और साउथ चाइना जोन का प्रतिनिधित्व गुआंगदोंग प्रांत करता है। चीन के कुल उत्पादन में इन प्रांतों की भागीदारी 25 प्रतिशत है।
ये तो कुछ ऐसे सेक्टर हैं जो प्रत्यक्ष दिखाई पड़ते हैं। कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जिनमें चीन अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय बाजार में दखल बनाए हुए हैं। 'सेक्स टॉयÓ और 'पोर्न फिल्मेंÓ कुछ इसी प्रकार के हैं। देश की राजधानी दिल्ली में जब इनकी उपलब्धता है तो और जगहों की बात ही क्या किया जाए। तथाकथित अतिआधुनिकता के लिपटे में अवसादग्रस्त पुरूष-महिला इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। क़ानून के मुताबिक़ भारत में 'सेक्स-ट्वायÓ बेचने पर प्रतिबंध है। हालांकि इसमें 'सेक्स-ट्वायÓ का जि़क्र नहीं है लेकिन कहा गया है कि ऐसी कोई भी सामग्री जो समाज में अश्लीलता फ़ैलाए उसे बेचना क़ानूनन अपराध है। साथ ही कई सैक्स रेकैटों के पर्दाफाश होने से में भी चीनी बालाओं का नाम सामने आया है।
कुछ साल पहले देश के बाज़ारों में चीन में बने सामानों की बाढ़ आ गई थी। खिलौने से लेकर झालर-मालर सब चीन के बिकने लगे थे। दो रूपए में इलेक्ट्रिक टॉर्च से लेकर और जाने क्या क्या? सब कुछ ऐसा लगता था कौडिय़ों के मोल मिलने लगा हैं। जिसे देखों वहीं चीन के गुण गाता फिरता, कम दामों में अगर बढिय़ा सामान मिले तो कोई ये क्यों ले चीन वाला न ले। चारो तरफ चिंताएं दिखने लगी। ये क्या चीन ने तो हमारे बाज़ारों पर कब्जा कर लिया। लोगों को इसमें चीन की साजिश भी नजऱ आती थी। ज्ञान बांटने वालों की नजऱ में चीन चतुरायी से भारत के निचले दर्जे के की अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर रहा था। हमारे यहां का मजदूर वर्ग बेरोजगार हो जाएगा। चीन दिवाली के दीए से लेकर होली के रंग तक बना कर हमारे लघु उद्योगों को बर्बाद करने की साजिश रच रहा है। हालांकि इस प्रकार के चिंताओं के बीच हवा से भरा ये गुब्बारा जल्द ही फुस्स होकर धड़ाम बोल गया। वजह थी रिलाएबिलिटी, विश्वसनीयता और गुणवत्ता। चीनी सामान इन सभी पैमानों पर लूले नजऱ आने लगे। दस रूपए की टॉर्च दुकान से घर पहुंचते-पहुंचते कराहने लगती थी। दिवाली के झालर अगली दिवाली पर टिमटिमाना भूल जाते थे। खिलौने चलते चलते दम तोड़ देते थे। तब लोगों को इनकी असलियत का अंदाज़ा हुआ। आखिर भारतीय खरीददार ठहरा। हर चीज़ को ठोंक पीट कर उसकी मजबूती का अंदाज़ा लगा कर ही अंटी से पैसा ढीला करता है। यहां बात-बात में ये कहने का चलन तो आपको भी पता होगा कि, फलां चीज़ हमारे दादा के ज़माने की है। अब इस तरह की सामाजिक ताने बाने वाली मानसिकता में चीनी कब तक अपनी टुकटुकिया चमकाते। लिहाजा चार दिन की चांदनी के बाद आयी अंधेरी रात चीनी सामानों के लिए काल बन गई।
आज हालत यही है कि हमारी तरक्की को दिखाने वाले सारे प्रतीक चिन्हों पर चीन ने कब्जा कर रखा है। चीन की तरक्की की वजह भी साफ पता चल जाती है। दुनिया जिन सामानों को आगे इस्तेमाल करने वाली हो, उसे बनाने में आगे निकलो। दुनिया के बाजार को अपने माल से पाट दो, जब तक दुनिया को ये समझ में आएगा कि ये सामान कहां से आ रहा है तब तक दुनिया उन्हीं सामानों की आदी हो जाएगी। ये बात भारतीय कंपनियों के लिए समझने की है।