झारखण्ड की राजनीति का सत्ता द्वार माने जाने वाले संथाल परगना मंे आते ही तमाम राजनीतिक दलों के सुर और प्राथमिकताएं बदल गईं। क्षेत्रीय दल तो क्षेत्रीय मुद्दों को उठाते ही रहे हैं, लेकिन विकास के पैरोकार माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताएं भी संथाल में आते ही बदल गईं। अपने विरोधियों पर सीधे तौर पर हमला करने वाले मोदी ने यहां अपना चिर-परिचित रूप नहीं धरा। झामुमो के सर्वमान्य नेता षिबू सोरेन पर सीधे हमला नहीं किया। परोक्ष रूप से जनता से संवाद किया। संथाल की जनता से इन्हें सुधारने की बात की, इन्हें सीधे तौर पर मौका नहीं दी। नरेंद्र मोदी की भाजपा भी संथाल में अपने घोषणापत्र की बात नहीं करती है। भाजपा भी यहां केवल आदिवासी हित की बात करती है। क्या हुआ अगर संथाल परगमना में होने वाले 16 सीटों में से 9 सीटें आरक्षित हैं ? क्या हुआ अगर यह भाजपा की स्थिति बीते दो विधानसभा चुनाव मंे खराब हुई ? मोदी जी जीत के रथ पर सवार होने वाली भाजपा को क्या अपने एजेंडे और विकास के प्रारूप पर संथाल मंे भरोसा नहीं रहा ? क्या संथाल में वह आदिवासियों के सर्वमान्य नेता षिबू सोरेन को सीधे चुनौती देने की स्थिति में नहीं है? क्या भाजपा लोकसभा चुनाव में आदिवासियों के नेता बनने ही चाह लिए बाबूलाल मरांडी की हार से डरी हुई है ?
ऐसे एक नहीं, कई सवाल हैं। जो मन में उमड़-घुमर रहे हैं। अब पूरे झारखण्ड की नजर केवल और केवल संथाल पर टिक गई है। एक बार संथाल अपने चरित्र को और भी अधिक मजबूत कर रहा है कि सत्ता की धारा यहीं से तय होती है। अब तो भाजपा के प्रदेष अध्यक्ष रवीन्द्र राय भी कह रहे हैं कि संथाल में मुख्य मुकाबला भाजपा और झामुमो के बीच ही है। कांग्रेस और झाविमो तो वोट कटवा पार्टी हैै। मतदान से पहले यहां के तमाम राजनीतिक दल स्थानीयता की बात कर रहे हैं। जमीन कानून की बात कर रहे हैं। आदिवासियों के हित की बात कर रहे हैं। सिद्धू-कान्हू की षहादत की बात कर रहे हैं। बिरसा मुण्डा की परंपरा की बात कर रहे हैं। सिद्धू-कान्हू की धरती बरहेट से जैसे ही राज्य के मुख्यमंत्री और दिषोम गुरू षिबू सोरेन के राजनीतिक उत्तराधिकारी हेमंत सोरेन ने चुनावी पर्चा भरा, आदिवासियों में एक नई उर्जा का संचार हुआ।
वस्तुस्थिति को समझने के लिए जरा अतीत मंे चलें। लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के कंधों के सहारे पूरे देष में जीत की रथ पर सवार हुई, तो अचानक यह सवाल लोगों के जेहन में उभरने लगा कि आदिवासी क्षेत्रों में भी जो वोट प्रतिषत और भाजपा के जीत का आंकड़ा बढ़ा है, उसके क्या कारण हैं? यह सच है कि भाजपा ने आदिवासी नेताओं को सत्ता और संगठन में बराबर का महत्व दिया है। बावजूद इसके उसे अभी भी करिश्माई आदिवासी नेता की तलाश है। झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेष, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों में जिस प्रकार से भाजपा के वोट और सीटों में इजाफा हुआ है, वह काफी चैंकाने वाला है। कहा जा रहा है कि इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों ने दषकों तक जो जन जागरण अभियान चलाया, धर्मांतरण को रोका, उसका प्रतिफल अब जाकर मिला है। यह कहने की आवष्यकता नहीं है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ईसाई मिषनरियां हिंदुओं को जबर्दस्त तरीके से धर्मांतरण कराती रही हैं। संघ और उसके संगठनों ने इसे काफी हद तक रोका है। साथ ही कई बार ईसाइयों को पुनः हिंदू बनाने के लिए संघ ने काफी काम किया है। मध्य प्रदेष में भाजपा के अध्यक्ष प्रभात झा हुआ करते थे, उस समय मंडला, झाबुआ सहित दूसरे आदिवासी इलाकों में संघ और भाजपा ने मिलकर ऐसा अभियान चलाया था। जिसके बाद कई दूसरे क्षेत्रों में भी इस योजना पर काम किया गया।
झारखंड में षुरू से ही धर्मांतरण बड़े पैमाने पर होता रहा है। रांची, खूंटी, दुमका, पाकुड, साहिबगंज, जमषेदपुर, पाकुड, लोहरदगा आदि क्षेत्रों में यह काम होता रहा है। कहा जा रहा है कि जब से भाजपा अस्तित्व में आई, तब से इस क्षेत्र की भलाई के लिए वह काम करती रही है। धर्मांतरण पर रोक और गरीबों की बेहतरी के लिए पार्टी की ओर से कई योजनाएं चलाई गई। संघ ने काफी सक्रियता से काम किया है, जिसका लाभ अब जाकर उसे मिला है। राज्य की कुल 14 लोकसभा सीटों में से 12 सीट पर उसे जीत मिली है। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में मोदी की लहर में भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा की 56 सीटों पर बढ़त मिली,दुमका में भाजपा को एक और झामुमो को चार तथा झाविमो को 2 क्षेत्रों में कामयाबी मिली। गोड्डा में भाजपा को तीन, कांग्रेस को 2 व झाविमो को एक, चतरा में भाजपा को सभी पांच, कोडरमा में भाजपा को 3 व माले को 3, गिरिडीह में भाजपा को 4 व झामुमो को 2, धनबाद में भाजपा को सभी 6 सीटों में, रांची में भाजपा को 5 और आजसू को 1, जमशेदपुर में भाजपा को 5 और झाविमो को 1, सिंहभूम में भाजपा को 3 और जय भारत समानता पार्टी को 3, खूंटी में भाजपा को 4 और झारखंड पार्टी को 2, लोहरदगा में भाजपा को 4 और कांग्रेस को एक, पलामू में सभी 6 और हजारीबाग में भी भाजपा को सभी 5 सीटों पर सफलता मिली।
अब सवाल फिर वहीं आकर ठहर जाता है कि संथाल का कैसा चरित्र होगा ? बेषक लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 12 सीटें पर परचम लहराया हो, लेकिन उसे दुमका और राजमहल में मुंह की खानी पड़ी थी। अब विधानसभा चुनाव इसी दुमका और राजमहल के इलाकों में बचा हुआ है। बीते चुनाव में षिबू सोरेन उम्मीदवार थे, तो इस बार उनके पुत्र ने पूरी कमान संभाल ली है। दिन-रात एक किए हुए हैं। अपने चैदह महीने के मुख्यमंत्रित्व काल की उपलब्धियां गिना रहे हैं। आदिवासियों में बीच में उनकी भाषा और रंग में बात करते हैं। मोदी ने भी इसी राह का अनुसरण किया। संथाली में अपने संबोधन की षुरुआत की। सियासी जानकारों का कहना है कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को संथाल में लाख घेराबंदी करने की कोषिष की जाए, लेकिन विरोधियों के लिए उसे मात देना कभी आसान नहीं रहा। पहले तो अकेले षिबू सोरेन थे, अब तो उनका बेटा और कुनबा रणक्षेत्र में तैयार हो गया है।
ऐसे एक नहीं, कई सवाल हैं। जो मन में उमड़-घुमर रहे हैं। अब पूरे झारखण्ड की नजर केवल और केवल संथाल पर टिक गई है। एक बार संथाल अपने चरित्र को और भी अधिक मजबूत कर रहा है कि सत्ता की धारा यहीं से तय होती है। अब तो भाजपा के प्रदेष अध्यक्ष रवीन्द्र राय भी कह रहे हैं कि संथाल में मुख्य मुकाबला भाजपा और झामुमो के बीच ही है। कांग्रेस और झाविमो तो वोट कटवा पार्टी हैै। मतदान से पहले यहां के तमाम राजनीतिक दल स्थानीयता की बात कर रहे हैं। जमीन कानून की बात कर रहे हैं। आदिवासियों के हित की बात कर रहे हैं। सिद्धू-कान्हू की षहादत की बात कर रहे हैं। बिरसा मुण्डा की परंपरा की बात कर रहे हैं। सिद्धू-कान्हू की धरती बरहेट से जैसे ही राज्य के मुख्यमंत्री और दिषोम गुरू षिबू सोरेन के राजनीतिक उत्तराधिकारी हेमंत सोरेन ने चुनावी पर्चा भरा, आदिवासियों में एक नई उर्जा का संचार हुआ।
वस्तुस्थिति को समझने के लिए जरा अतीत मंे चलें। लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के कंधों के सहारे पूरे देष में जीत की रथ पर सवार हुई, तो अचानक यह सवाल लोगों के जेहन में उभरने लगा कि आदिवासी क्षेत्रों में भी जो वोट प्रतिषत और भाजपा के जीत का आंकड़ा बढ़ा है, उसके क्या कारण हैं? यह सच है कि भाजपा ने आदिवासी नेताओं को सत्ता और संगठन में बराबर का महत्व दिया है। बावजूद इसके उसे अभी भी करिश्माई आदिवासी नेता की तलाश है। झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेष, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों में जिस प्रकार से भाजपा के वोट और सीटों में इजाफा हुआ है, वह काफी चैंकाने वाला है। कहा जा रहा है कि इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों ने दषकों तक जो जन जागरण अभियान चलाया, धर्मांतरण को रोका, उसका प्रतिफल अब जाकर मिला है। यह कहने की आवष्यकता नहीं है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ईसाई मिषनरियां हिंदुओं को जबर्दस्त तरीके से धर्मांतरण कराती रही हैं। संघ और उसके संगठनों ने इसे काफी हद तक रोका है। साथ ही कई बार ईसाइयों को पुनः हिंदू बनाने के लिए संघ ने काफी काम किया है। मध्य प्रदेष में भाजपा के अध्यक्ष प्रभात झा हुआ करते थे, उस समय मंडला, झाबुआ सहित दूसरे आदिवासी इलाकों में संघ और भाजपा ने मिलकर ऐसा अभियान चलाया था। जिसके बाद कई दूसरे क्षेत्रों में भी इस योजना पर काम किया गया।
झारखंड में षुरू से ही धर्मांतरण बड़े पैमाने पर होता रहा है। रांची, खूंटी, दुमका, पाकुड, साहिबगंज, जमषेदपुर, पाकुड, लोहरदगा आदि क्षेत्रों में यह काम होता रहा है। कहा जा रहा है कि जब से भाजपा अस्तित्व में आई, तब से इस क्षेत्र की भलाई के लिए वह काम करती रही है। धर्मांतरण पर रोक और गरीबों की बेहतरी के लिए पार्टी की ओर से कई योजनाएं चलाई गई। संघ ने काफी सक्रियता से काम किया है, जिसका लाभ अब जाकर उसे मिला है। राज्य की कुल 14 लोकसभा सीटों में से 12 सीट पर उसे जीत मिली है। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में मोदी की लहर में भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा की 56 सीटों पर बढ़त मिली,दुमका में भाजपा को एक और झामुमो को चार तथा झाविमो को 2 क्षेत्रों में कामयाबी मिली। गोड्डा में भाजपा को तीन, कांग्रेस को 2 व झाविमो को एक, चतरा में भाजपा को सभी पांच, कोडरमा में भाजपा को 3 व माले को 3, गिरिडीह में भाजपा को 4 व झामुमो को 2, धनबाद में भाजपा को सभी 6 सीटों में, रांची में भाजपा को 5 और आजसू को 1, जमशेदपुर में भाजपा को 5 और झाविमो को 1, सिंहभूम में भाजपा को 3 और जय भारत समानता पार्टी को 3, खूंटी में भाजपा को 4 और झारखंड पार्टी को 2, लोहरदगा में भाजपा को 4 और कांग्रेस को एक, पलामू में सभी 6 और हजारीबाग में भी भाजपा को सभी 5 सीटों पर सफलता मिली।
अब सवाल फिर वहीं आकर ठहर जाता है कि संथाल का कैसा चरित्र होगा ? बेषक लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 12 सीटें पर परचम लहराया हो, लेकिन उसे दुमका और राजमहल में मुंह की खानी पड़ी थी। अब विधानसभा चुनाव इसी दुमका और राजमहल के इलाकों में बचा हुआ है। बीते चुनाव में षिबू सोरेन उम्मीदवार थे, तो इस बार उनके पुत्र ने पूरी कमान संभाल ली है। दिन-रात एक किए हुए हैं। अपने चैदह महीने के मुख्यमंत्रित्व काल की उपलब्धियां गिना रहे हैं। आदिवासियों में बीच में उनकी भाषा और रंग में बात करते हैं। मोदी ने भी इसी राह का अनुसरण किया। संथाली में अपने संबोधन की षुरुआत की। सियासी जानकारों का कहना है कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को संथाल में लाख घेराबंदी करने की कोषिष की जाए, लेकिन विरोधियों के लिए उसे मात देना कभी आसान नहीं रहा। पहले तो अकेले षिबू सोरेन थे, अब तो उनका बेटा और कुनबा रणक्षेत्र में तैयार हो गया है।
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