शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012
काश! अटल सक्रिय होते...
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012
ले डूबी आपसी कलह
नहीं हैं रोशन ‘चिराग’ बनाने वाले
शुक्रवार, 2 नवंबर 2012
कल्याण की राह पर मरांडी!
पाला बदलेंगे आजाद!
कैसे होंगे होठ लाल?
गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012
दुष्कर्म को जोड़ा गया विवाह की उम्र से
‘मलाला’ होने का मतलब
शनिवार, 15 सितंबर 2012
पहले ‘अंडरअचिवर’, अब ‘दया का पात्र’
‘समरथ को नहि दोष गुसार्इं’, आज प्रासंगिक है। यों तो किसी से भद्दा मजाक करना अशोभनीय है, लेकिन सबके लिए नहीं! हाल के दिनों में जिस प्रकार से •ाारतीय प्रधानमंत्री को टारगेट किया गया है, वह कई सवाल खड़े करता है। आखिर क्यों हो रही है प्रधानमंत्री पर ऐसी टिप्पणी? हर बार भारतीय ही क्यों बनते हैं निशाना? रंग-अबीर के बीच होली की हुड़दंग में जब किसी का मजाक उड़ाया जाता है तो कोई बुरा नहीं मानता। दरअसल, होली का त्योहार ही हंसी-ठिठोली का, मगर जब कोई जानबूझकर बार-बार मजाक उड़ाता रहे, तो वह मजाक की श्रेणी में नहीं आता। विशेष मौकों पर हंसी-मजाक तो बर्दाश्त लोग करते हैं, मगर कोई उसे बार-बार दोहराए तो वह अपमान जैसा लगने लगता है और इस पर लोगों की त्योरियां चढ़ जाती हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है •ाारत और •ाारतीयों के साथ। कई देश •ाारत का मजाक उड़ाते हैं और •ाारत सरकार है कि कोई ठोस प्रतिकार नहीं करती। यूं तो कई और कई बार मजाक हुए हैं •ाारत और •ाारतीयों के साथ। कई दफा पड़ोसी देश ने किया तो कई बार हमारे मित्र होने का स्वांग रचते यूरोपीय देशों ने •ाी हमारा मजाक उड़ाया है। फेहरिस्त काफी लंबी है।
ताजा घटनाक्रम •ाारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ दिनों से वह विदेशी अखबारों के •ाी निशाने पर आ गए हैं। टाइम मैगजीन से ‘अंडरअचिवर’, द इंडिपेंडेंट से सोनिया गांधी की कठपुतली का तमगा मिलने के बाद अब अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने उन्हें ‘दया का पात्र’ करार दिया है। अखबार ने लिखा है कि मनमोहन सिंह ने क•ाी देश को आधुनिक, संपन्न और शक्तिशाली बनाने की राह बनाई थी, लेकिन आलोचक अब कहते हैं कि 79 वर्षीय प्रधानमंत्री अपनी असफलताओं के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज होंगे। अखबार लिखता है कि मनमोहन सिंह अपने देश में आर्थिक सुधार के सूत्रधार बने लेकिन अत्यंत ईमानदार, विनम्र और बुद्धिजीवी शख्स की छवि अब बदल चुकी है। अब उनकी छवि ऐसे निष्प्र•ाावी नौकरशाह की है जो एक •ा्रष्ट सरकार को चला रहा है। प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल में उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने कहा, 'क•ाी वह सम्मान के पात्र थे और अब उपहास का केंद्र बनकर जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं।'
देश का मजाक : पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका •ाारत का हितैषी बनने की बातें कर रहा है। दोस्ती को प्रगाढ़ करना चाहता है, मगर उसकी यह दोस्ती तब स्वांग लगती है, जब पूर्व अमेरिकी राष्टÑपति जॉर्ज बुश अपनी बिल्ली का नाम ‘इंडिया’ रख लेते हैं। किसी राष्ट्र के नाम को इस तरह से कुत्ते और बिल्ली के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। •ाारतीय संस्कृति तो यही सिखाती है। ऐसे में अमेरिकी राष्टÑपति ने जो मजाक •ाारत के साथ किया, क्या वह •ाारतीयों को सहन होगा?
इसी तरह कुछ समय पूर्व ही ढाका में दक्षिण एशियाई खेलों (सैग) के ध्वजारोहण समारोह में •ाारत के राष्टÑगान को अचानक बजाकर मजाक उड़ाया गया। बैडमिंटन कोर्ट पर हुए समारोह में •ाारतीय खिलाड़ी हैरान रह गए, क्योंकि अचानक •ाारत का राष्टÑगान शुरू हो गया और कुछ सेकंड में खत्म हो गया। यह प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। नियमों के मुताबिक एक देश का झंडा ऊपर करने के बाद उस देश का राष्टÑगान बजता है। ध्वजारोहण समारोह में एक के बाद एक स•ाी देशों के राष्टÑगान बजाए जाते हैं।
राष्टÑपति का मजाक : नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्टÑीय हवाई अड्डे पर अमेरिका की कांटिनेंटल एयरवेज की उड़ान 0083 पर 21 अप्रैल 2009 को रात के दस बजे •ाारत के •ाूतपूर्व राष्टÑपति एपीजे अब्दुल कलाम की तलाशी ली गई और इंडियन एयर लाइंस की संस्था एयर सिक्योरिटी लिमिटेड और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के कर्मचारियों ने एयर लाइन अधिकारियों से इस बारे में विरोध दर्ज करवाया था। बताया जाता है कि जब राष्टÑपति न्यूयार्क के लिए कांटिनेंटल एयरवेज के विमान में सवार हो रहे थे, तो सिंथिया कार्लेइयर नाम की एयर हॉस्टेस ने कहा था कि कलाम को तलाशी देनी पड़ेगी। वहां मौजूद सीआईएसएफ के इंस्पेक्टर ने सिंथिया को बताया कि कलाम •ाारत के •ाूतपूर्व राष्टÑपति हैं और •ाारतीय शिष्टाचार नियमों के तहत उनकी तलाशी नहीं ली जा सकती। सिंथिया ने कहा कि मैं किसी राष्टÑपति या वीआईपी को नहीं जानती और मैं तो अपनी विमान सेवा के नियमों के हिसाब से काम करूंगी। मतलब साफ था कि अमेरिकी •ाारत में अपना कानून चला रहे थे। सिंथिया ने बहुत बदतमीजी से कलाम से आगे बढ़ कर तलाशी लेने के लिए कहा तो सीआईएसएफ के एक इंस्पेक्टर ने गुस्से में यह •ाी कहा कि कम से कम तमीज से बात तो करो। डॉ. कलाम के जूते तक उतरवा कर तलाशी ली गई।
•ाारतीय हस्ती का मजाक : जितनी •ाी सोशल नेटवर्किंग साइट और इंटरनेट सर्च इंजन हैं, वह अमेरिका और यूरोपीय देशों से ही संचालित किए जाते हैं। इन साइटों पर कई आपत्तिजनक चीजें हैं और इन पर किसी कोई वश नहीं है। आॅरकुट डॉट कॉम नाम की साइट पर •ाारत के राष्टÑपिता महात्मा गांधी और आयरन लेडी इंदिरा गांधी का खुलेआम मजाक उड़ाया जा रहा है। सरकारें हैं मौन। आॅरकुट पर एक ग्रुप में राष्टÑपिता महात्मा गांधी से घृणा करने की कम्युनिटी बनाई गई। इसे नाम दिया गया है वी हेट गांधी। इस कम्युनिटी में छह हजार आठ सौ सदस्य •ाी बने और •ाारत सरकार ने चूं तक नहीं की। •ाला हो अमिता•ा ठाकुर जैसे जागरूक युवाओं का, जिन्होंने इस पर आपत्ति जताई और आखिरकार आॅरकुट को इस कम्युनिटी को ब्लॉक करना पड़ा।
ऐसा नहीं है कि इस तरह का कुकृत्य सिर्फ महात्मा गांधी के साथ हो रहा है। यह घटना इंदिरा गांधी के साथ •ाी घटित हुई है और इसी आॅरकुट डॉट कॉम पर •ाारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के साथ •ाी ऐसा ही हो रहा है। इस कम्यूनिटी में •ाी सदस्यों की संख्या दो हजार चार सौ सरसठ है।
राजनयिक का मजाक : संयुक्त राज्य अमेरिका में न जाने कितने •ाारतीय राजनयिकों का सुरक्षा के नाम पर मजाक उड़ाया जाता है। तमाम प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते हुए अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी •ाारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस का अपमान चुके हैं। कुछ साल पहले तत्कालीन लोकस•ाा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को ऐसे ही एक उड़ान के दौरान तलाशी के लिए कहा गया था, तो उन्होंने अपनी यात्रा ही रद्द कर दी थी। प्रणब मुखर्जी जब रक्षा मंत्री थे तो उनकी •ाी तलाशी ली गई थी।
हाल ही में अमेरिकी हवाई अड्डे जैक्सन-एवर पर •ाारतीय राजदूत मीरा शंकर के साथ •ाी •ाद्दा मजाक किया गया। हालांकि, इस मसले के फौरन बाद •ाारतीय विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने कहा था कि स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि •ाारत इस तरह की घटनाओं को कतई स्वीकार नहीं कर सकता। हम इस मुद्दे को अमेरिकी सरकार के समक्ष उठाने जा रहे हैं, ताकि इस तरह की अप्रिय घटनाएं दोबारा न हों। ऐसी कई स्थापित परंपराएं हैं, जिनके अनुसार ही किसी •ाी देश के राजनयिकों के साथ व्यवहार किया जाता है। अमेरिका में •ाारतीय राजदूत के साथ जो व्यवहार हुआ उससे मैं हतप्र•ा हूं। पिछले तीन महीने में ऐसा दूसरी बार हुआ है।
कलाकार का मजाक : बॉलीवुड के नामी-गिरामी अ•िानेता शाहरुख खान को पूरी दुनिया जान छिड़कती है। देश-विदेश में उनके करोड़ों उनके प्रशंसक हैं। अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों ने सुरक्षा के नाम पर उन्हें घंटे •ार से अधिक केवल इसलिए बैठा रखा था कि उनके नाम के साथ खान जुड़ा हुआ है। शाहरुख खान ने अपने बयान में माना की उनका कंप्यूटर मुझे संदिग्धों की लिस्ट में रख रहा था, शायद ऐसा मिलते जुलते नाम के कारण था। इससे पहले इरफान खान ने •ाी कहा था की अमेरिका में दरअसल एक कंप्यूटरीकृत व्यवस्था है, जिसके चलते ऐसी समस्या आ जाती है।
इंग्लैंड के प्रसिद्ध टीवी शो बिग बॉस में जिस तरह से •ाारतीय सिने अ•िानेत्री शिल्पा शेट्टी पर टिप्पणी की गई थी, वह •ाी किसी तरीके से स•य समाज के लिए अच्छा नहीं कहा जाएगा। इसी तरह एक शो में हिस्सा लेकर चंकी पांडे •ाारत लौटने के लिए दोहा एअरपोर्ट पहुंचे। चेक-इन-काउंटर पर उन्हें बताया गया कि मुंबई जाने वाली फ्लाइट जा चुकी है। चंकी को कुछ समझ में नहीं आया, क्योंकि वे समय से पहले पहुंचे थे। वे परेशान हो गए। चंकी को परेशान देख कुछ देर बाद कहा गया, ‘आई एम ए जोकिंग’।
खिलाड़ी के साथ मजाक : •ाारतीय क्रिकेट का नायाब हीरा सचिन तेंदुलकर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। जिस •ाी देश में क्रिकेट में दिलचस्पी है, हर कोई सचिन को जानता है, मगर एक हैं दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेटर विंसेंट बर्न्स। इन महाशय ने अपने पालतू कुत्ते का ही नाम रख लिया है सचिन। आखिर यह कैसा मजाक है उनका? बड़े ठसके के साथ वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान साउथ अफ्रीका के बॉलिंग कोच विंसेंट बर्न्स कहते हैं, ‘वह सचिन को सबसे ज्यादा मिस करते हैं’ ...यह हमारा सचिन नहीं, बल्कि उनका कुत्ता है।
ओलंपिक खेलों में •ाारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले अ•िानव बिंद्रा के साथ जो कुछ हुआ, वह तमाम •ाारतीयों के लिए •ाद्दा मजाक ही था। बीजिंग एयरपोर्ट पर उन्हें आयोजन समिति ने टैक्सी तक उपलब्ध नहीं कराई। बिंद्रा काफी सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार बिंदारा के परिवार की सापत्ति एक हजार करोड़ रुपये है। उनके घर में कई कारें हैं, लेकिन बीजिंग में उन्हें टैक्सी का सहारा लेना पड़ा।
कुछ समय पलहे इंग्लैंड में शूटिंग चैंपियनशिप के दौरान •ाारतीय शूटरों के साथ •ाी बदसलूकी की बात सामने आई थी। खिलाड़ियों को शूटिंग रेंज तक पहुंचाने के लिए जिस बस का इंतजाम किया गया था, उस बस के ड्राइवर ने उनके साथ बदसलूकी की थी। शूटिंग रेंज से उन्हें होटल तक पहुंचाने के लिए बस आई। कुछ खिलाड़ी बस में सवार हुए और कुछ सवार होने ही वाले थे कि ड्राइवर ने बस का दरवाजा बंद कर दिया। जब बस में सवार खिलाड़ियों ने आपत्ति जताई, तो उन्हें पहले तो ड्राइवर ने •ाला-बुरा कहा, फिर उसने अपने सुपरवाइजर को बुलाया। इतना ही नहीं, सुपरवाइजर ने शूटिंग में विश्व विजेता का खिताब जीत चुके •ाारतीय शूटर मानवजीत सिंह को बस से उतरने को •ाी कह दिया। हालांकि, मानवजीत ने ये कहते हुए बस से उतरने से इनकार कर दिया था कि ये बस उनकी आधिकारिक सवारी है, सुपरवाइजर की निजी गाड़ी नहीं है, वह उन्हें उतरने को नहीं कह सकता।
छात्रों के साथ मजाक : •ाारतीयों के काबलियित के कारण अमेरिका अपनी आईटी सेक्टर को लेकर इठला रहा है। बावजूद इसके, वह •ाारतीय छात्रों से घृणित मजाक कर रहा है। अमेरिका के कैलिफोर्निया के एक विश्वविद्यालय में •ाारतीय छात्रों पर रेडियो कॉलर लगा दी है, ताकि वह कहां जाते हैं, क्या करते हैं, क्या बोलते हैं, सबकी जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन को रहे। हालांकि, •ाारत सरकार का कहना है कि वह कैलिफोर्निया स्थित ट्राई वैली विश्वविद्यालय के •ाारतीय छात्रों के खिलाफ संघीय अधिकारियों की कार्रवाई के प्र•ााव पर ‘गं•ाीर रूप से चिंतित’ है। विदेश मंत्रालय के एक वक्तव्य में कहा गया कि हमने अमेरिकी अधिकारियों को बता दिया है कि छात्रों के साथ अच्छा व्यवहार होना चाहिए और छात्रों के एक समूह पर मॉनिटर का इस्तेमाल किया जाना अनुचित था और इसे हटाया जाना चाहिए। इससे पहले •ाी आॅस्टेÑेलिया, कनाडा आदि यूरोपीय देशों में •ाारतीयों छात्रों को ऐसे ही कई मामलों से दो-चार होना पड़ा है। आॅस्टेÑेलिया में •ाारतीयों के साथ नस्ल •ोद की खबरें कौन नहीं जानता? हमारे देश से पढ़ने गए छात्रों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर पता लगाया गया था और कइयों की हत्या तक कर दी गई थी। अब नस्ल के आधार पर उनके साथ •ोद•ााव और मार-पिटाई की जा रही है।
वीजा के नाम पर मजाक : किसी •ाी दूसरे देश के नागरिक को अपने देश में आने के लिए संबंधित देश की सरकार वीजा जारी करती है। अमूमन इसमें किसी किस्म का •ोद•ााव नहीं किया जाता, मगर अमेरिका ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कई बार आवेदन देने के बाद •ाी वीजा जारी नहीं किया गया। कारण, वह प्रखर हिंदूवादी हैं। कहा गया कि मोदी गुजरात में मुसलामानों के कथित नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं। •ाला यह कैसा मजाक है? कुछ ऐसा ही काम कनाडा सरकार ने •ाी किया। दिल्ली स्थित कनाडा के दूतावास ने फतेह सिंह को अपने देश का वीजा देने से इनकार कर दिया। फतेह सिंह को वीजा न देने के लिए कनाडा उच्चायोग ने जो कारण गिनाए, वे आपत्तिजनक ही नहीं, •ाारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप •ाी कहा जाएगा। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह •ाारत के सीमा सुरक्षा बल में काम करता रहा है और सीमा सुरक्षा बल •ाारत में क्रूरतापूर्ण ढंग से लोगों की हत्या करता है। खास कर अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को निर्दयता से मारता है, जो मानव अधिकारों का हनन है। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह जानता था कि •ाारत सरकार का सीमा सुरक्षा बल इस प्रकार का हत्यारा बल हैक्लेकिन फिर •ाी उसने अपने आप को इस बल से जोडेÞ रखा। इसी तरह •ाारतीय सेना के सेवानिवृत्त जनरल ए एस बाहिया को कनाडा सरकार ने यह कह कर वीजा नहीं दिया कि बाहिया जम्मू-कश्मीर में तैनात रहे हैं और •ाारतीय सेना ने वहां के निवासियों पर और खासकर मुसलमानों पर अमानवीय अत्याचार किए हैं। बाहिया तो सेना से रिटायर्ड हो चुके हैं, लेकिन कनाडा सरकार ने •ाारतीय सेना में कार्यरत तीन अन्य ब्रिगेडियरों को यह कहते हुए वीजा नहीं दिया कि उनकी •ाी जम्मू-कश्मीर में तैनाती रही है और वहां •ाारतीय सेना की •ाूमिका हत्यारी सेना की •ाूमिका ही रही है। अब यह •ाी पता चला है कि इंटेलिजेंसे ब्यूरो के एक सेवानिवृत्त अधिकारी एस एस सिद्धू को यह कहकर वीजा देने से इनकार किया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो जासूसी के आपत्तिजनक काम में संलग्न रहा है।
दरअसल, यह वीजा न देने की असंबंधित घटनाएं नहीं हैं, बल्कि अमेरिका और कनाडा द्वारा आपस में मिलकर सोची-समझी साजिश है, जिसके तहत •ााारतीय सेना को आतंकवादी सेना के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा है।
•ाारतीय धर्म के साथ मजाक : पश्चिम के लोगों अब सहज ही हिंदू धर्म का प्र•ााव और इसके प्रतीकों के व्यापक इस्तेमाल को देखा-समझा जा सकता है। अगर बात हॉलीवुड फिल्मों की हो तो यहां •ाी हिंदू धर्म और इसके प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, इसके पीछे मकसद विशुद्ध व्यापारिक ही होता है और यही वजह है कि कई बार इन फिल्मों के माध्यम से हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की •ाावनाएं आहत होती हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से हॉलीवुड फिल्मों के लिए •ाारत एक बड़ा बाजार बनकर उ•ारा है और शायद यह •ाी एक बड़ी वजह है कि हॉलीवुड फिल्मों में हिंदू प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। शायद यह सोच कर •ाी कि विवाद से मुफ्त प्रचार और फिर उससे ढेर सारी कमाई हो जाएगी। हिंदू धर्म काफी समृद्धशाली है, इसमें प्रयोग की अपार सं•ाावनाएं हैं। हॉलीवुड में हो रहे प्रयोगों से इस धर्म का प्र•ााव व्यापक तौर पर बÞढा है।
फ्रांस में कई बार यह देखने-सुनने को मिला है कि सिख धर्मावलंबियों को उनकी पगड़ी को लेकर उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप बाद मामला शांत हुआ था। कई देशों में तो हिंदू देवी-देवताओं के चित्र के साथ •ाी •ाद्दा मजाक होता रहा है। अमेरिकी चैनल एनबीसी के एक शो में •ागवान गणेश की सूंड़ का मजाक उड़ाए जाने पर हिंदू समुदाय काफी नाराज हुए थे। रात के शो में हॉलिवुड ऐक्टर जिम कैरी •ागवान गणेश की सूंड़ को ड्रामेटिक इफेक्ट से सेक्शुअल आॅर्गन की तरह दिखाकर इसका मजाक उड़ाते नजर आए थे।
•ाारतीय सेना की खिल्ली : चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से संबद्ध अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने •ाारतीय सेना पर अप्रिय टिप्पणियां की हैं। एक तरफ तो •ाारतीय सेना को ‘एशिया में सर्वाधिक सक्रिय’ बताकर इशारे से कहा गया है कि •ाारत के इरादे आक्रामक हैं और दूसरी तरफ इसे बुजदिल बताया गया है, क्योंकि •ाारतीय सैनिकों को ‘युद्धबंदी बनने में शर्म नहीं आती।’ हालांकि ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने 1962 में •ाारत पर चीन के हमले का सीधा जिक्र नहीं किया है, मगर इशारा बहुत साफ है।
आपसी संबंधों का मजाक : हाल के वर्र्षों में •ाारत-अमेरिका संबंधों में प्रगाढ़ता देखने को मिली है। जब-तब सार्वजनिक मंचों पर दोनों देश के नुमाइंदे इसका जिक्र •ाी करते हैं, मगर सच्चाई इससे अलग है। बहुत ज्यादा समय नहीं बीता, जब आतंकवाद पर दोहरे मापदंड का नमूना पेश करते रहे अमेरिका की कथनी और करनी में फर्क का एक और बड़ा खुलासा हुआ था। संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता के •ाारत के दावे पर मुहर लगाकर अमेरिकी राष्टÑपति बराक ओबामा अमेरिका लौटे, मगर उनकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की राय इस मामले में ठीक उनके विपरीत ही रहीं। ‘विकिलीक्स’ के पिटारे से निकले इस खुलासे ने यूएनएससी सुधार को लेकर •ाारत की मुहिम पर अमेरिका के दोहरे मापदंड को बेनकाब कर दिया है। इसके अनुसार, पिछले साल 31 जुलाई को क्लिंटन ने •ाारत समेत 33 मुल्कों में तैनात अमेरिकी राजदूतों को टेलीग्राम •ोजकर संयुक्त राष्टÑ सुधारों को अहम मुद्दा बताया था और कहा था कि स्थायी सदस्यता की दौड़ में •ाारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान खुद ही अपने को प्रमुख दावेदार बता रहे हैं। इस खुलासे से •ाारतीय खेमे में खलबली मचनी स्व•ााविक थी, मगर •ाारतीय विदेश राज्यमंत्री प्ररणीत कौर का बयान देखें- ‘विकिलीक्स के खुलासों से जुड़ा मुद्दा बेहद संवेदनशील है। टिप्पणी का यह उपयुक्त समय नहीं है। हमें और प्रतीक्षा करनी चाहिए।’
पहले ‘अंडरअचिवर’, अब ‘दया का पात्र’
बच्चे मचाएंगे तबाही!
शुक्रवार, 8 जून 2012
ऐसा क्यों ?
एक बार मैंने उन्हें कह दिया तुम मेरी जि़न्दगी हो! बहुत ख़ुश हुईं!! खनकती आवाज़ में बोलीं, 'शुक्रिया!Ó आज भी उनकी आवाज कानों में रस घोलती है। कितना अपनापन था। आज भी देह सिहर उठा, जब फोन रिसीव किया था। लगा वही हैं। लेकिन थी नहीं। कॉल सेंटर से फोन था। मन हुआ, सुनता ही रहूं। काश!
आज वह याद आ रही है, जब नहीं वह नहीं है। इंसानी फितरत है, जब कोई पास में नहीं होता है, तभी उसकी अहमियत जान पड़ती है। यह आभास आज हो रहा है। तब नहीं हुआ था। मन कचोट जाता है, स्मरण मात्र से। लेकिन कर भी क्या सकता हूं? उनसे जुड़ी तमाम बातें एक-एक करके मानस पाटल पर अंकित होती चली जा रही है। लगता है कल की ही बात है।
वास्तव में करीब एक दशक पूर्व हमारी पहली मुलाकाम एक छोटे से कस्बे में हुई थी। उम्र में मुझसे चंद साल बड़ी रही होंगी। आज तक उम्र नहीं पूछा। लड़कियों का उम्र नहीं पूछते भाई। मुलाकात होती गई और समय बीतता गया। यह तो समयचक्र है, जो हर वक्त चलायमान रहता हैै और उसी के वशीभूत प्राणी समझता है कि वह बदल गया हैै। लेकिन वास्तव में समय बदलता है, साथ ही नयी जिम्मेदारियां और प्राथमिकताएं आ जाती हंै। और मानव को उसे गाहे-बगाहे स्वीकार करना होता है। जिसने समय की इस नियति को स्वीकार नहीं किया है, समय उसका अस्तित्व ही मिटा देता है। समयचक्र की उसी गति में मैं बदल गया और बदल गया मेरा परिवेश। बदल गई हैं मान्यताएं । जिसे मैं अपने जीवन का सिद्घांत समझता था, जिनको अपना अराध्य मान लिया था, वह भी तो बदल गया है। याद आ रहा है, वह पड़ाव जहां आकर आकर दोनों के राह जुदा हुए। कसमें खाईं थी रहगुजर होने का। लेकिन...सामाजिक डर के कारण निभा नहीं सका। विजातीय होने से समाज का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। सामने से तो साहस था, मैं ही भीरू निकल गया।
फिर, उस मोहपाश से किसी तरह निकल पाया था। औपचारिक शिक्षा पूरी करते ही महानगर आ पहुंचा। यह रहने के संग पुराने रिश्ते छीजते गए। संवेदनाएं कम होती रहीं। प्राथमिताएं बदलती गईं। जिनके बिना पहले रहना मुश्किल होता, उनकी याद मुश्किल से ही आती। शायद यह मानवीय गुण है। आम आदमी की। जि़न्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। खनक! सिक्कों की खनक तो सुनी ही होगी आपने। सिक्के, मूल्य वाले तो होते हैं एक, दो, पांच के, पर आवाज ज़्यादा निकालते हैं। वहीं दस, बीस, पचास, सौ, पांच सौ और हज़ार के नोट शांत होते हैं, ख़ामोश रहते हैं, क्योंकि उनका मूल्य अधिक होता है। इसी तरह जि़न्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। नए जिम्मेदारियां उसे फुरसत ही नहीं लेनी देती।
सच तो यह भी है कि जि़न्दगी में हर कोई सफलता की ऊँचाई प्राप्त करना चाहता है। पर हम कितनी ऊँचाई प्राप्त कर सकते हैं, तब तक नहीं जान पाते जब तक हम उड़ान भरने के लिए अपने पंख नहीं फैलाते। मगर इसके साथ एक दिक्कत भी है। हम अपने पुराने जमीन से दूर होते जाते हैं। कुछ ऐसा ही तो हुआ था। जीवन को बेहतर बनाने की कवायद में वह स्मृति के किसी स्याह कोने में चली गईं थी। अचानक आज फोन की आवाज से बेतरतीब चित्र उभरने लगे।
उसका एक-एक कहा शब्द याद आने लगा। याद आता है उसकी सादगी, उसकी मौसिकी की न$फासत और नजाकत भी। प्रेम में टूटी हुई, बिखरी हुई- खुदï्दार स्त्री। वास्तव में उसकी बातों में एक अजीब सी चहचहाट थी जो अपने मद्घिम-मद्घिम सुरों में सोते हुओं को जगाने का काम करती थी। उसमें रूमानियत भी थी और गहरी ऐंद्रिकता भी, पर कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि सामने की दुनिया सिफऱ् एक सपना हैै। अपनी सूक्ष्म यथार्थपरकता के कारण ही मुख्य रूप से स्त्री और प्रेम को आधार बनाकर उसकी कही बातें आज भी जेह्न में आती हैं,
कितनी परिपक्व थी उसकी सोच। कभी-कभार झुंझलाती थी मुझ पर या स्वयं पर ? समाज की रूढि़वादी मान्यताओं पर? अथवा कार्यक्षेत्र की चकाचौंध भरी भागम-भाग जि़ंदगी और गलाकाट प्रतिस्पर्धा पर, जिसके मारे हुए हम दोनों ही थे? दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलता था, लेकिन वैयक्तिगत स्तर पर नहीं, समूह के आधार पर। मैं महिला को कोसता तो वह पुरुष को। कारण, हम दोनों कमोबेश एक ही सोच के थे। फिर भी दोस्ती थी...............।
कई बार तो गिरने से संभाला था। शुक्रिया भी तो नहीं कहा था। आखिर, गंगा में स्नान करने के बाद भला कोई यह कहता है, ''शुक्रिया माँ गंगे, तूने मेरा पाप धो डाला।ÓÓ जि़न्दगी का हर हिस्सा एक समान नहीं होता। कुछ करड़-मरड़ की आवाज़ वाला, तो कुछ कड़वे-कसैले स्वाद वाला, वहीं कुछ मुलायम तो कुछ कठोर पल वाला। जब भी परेशान होता तो वह कहा करती थी, सुंदर जि़न्दगी बस यूं ही नहीं हो जाती। इसे रोज़ बनाना पड़ता है अपनी प्रार्थनाओं से, नम्रता से, त्याग से एवं प्रेम से!
उस पल तो शांत हो जाता था। लेकिन आज मन की ज्वाला शांत नहीं हो रही। दशक बीत चुके हैं। आज फिर से उसका साथ पाने को मन आतुर हो रहा है। आखिर क्यों? मन में एक हूक-सी उठती है। जबाव मिलता है- भीरूता का यही परिणाम होता है। जब वह थी तो उसका महत्व समझ नहीं पाया और जब आज वह नहीं है तो उसका पुराण पाठ स्मृति में कर रहा हूं। यह मानवीय लक्षण है। जब कोई हमारे पास नहीं होता,तो हम बड़ा ख़ाली-ख़ाली महसूस करते हैं, अकेलापन का अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों से जि़न्दगी के मतलब बदल जाते हैं। ऐसे लोग हमारे हृदय तंतुओं को छूते हैं। उनके आस-पास रहने से हममें मधुर भावनाओं का संचार होता है। जि़न्दगी में हम विभिन्न प्रकार के लोग से मिलते हैं। कुछ लोग अन्य की तुलना में हमारे ज़्यादा प्रिय हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? शायद वह हमारे किस्मत में नहीं होते। हमारी करनी का फल नियति देता है। जिसका कद्र तुमने नहीं किया, वह तुमसे आगे निकल जाएगा। तुम्हारे पास पछतावे के अलावे कुछ नहीं होता।
किसान चले सात समुद्र पार
किसान इस देश में सबसे हिकारत कि चीज़ बना दिए गए हैं। उनके नाम पर कजऱ्माफी की छलावे और धोखेबाजियों भरी घोषणा करके सरकार किसान-कन्हैया बन जाती हैं और किसान भौंचक रहते हैं कि उन्हें मिला क्या? लेकिन अब भारतीयों किसानों की उद्यमिता और लगन को देखते हुए उनकी मांग कनाडा, अमेरिका सरीखें देशों में होने लगी है।
भारतीय किसान परिश्रम, सेवा और त्याग की सजीव मूर्ति है। उसकी सादगी, सरलता तथा दुबलापन उसके सात्विक जीवन को प्रकट करती है। उसकी प्रशंसा में ठीक ही कहा गया है-
नगरों के ऐसे पाखंडों से दूर, साधना निरत, सात्विक जीवन के महा सत्य
तू नंदनीय जग का, चाहे रहे छिपा नित्य, इतिहास कहेगा तेरे श्रम में रहा सत्य।
किसान संसार का अन्नदाता कहा जाता है। वह सवेरे से सूर्यास्त तक लगातार काम करता है। संकट में भी किसी से शिकायत नहीं करता। दुख के घूंट पीकर रह जाता है। उसके रहन-सहन में बड़ी सरलता और सादगी होती है। वह फैशन और आडम्बर की दुनिया से हमेशा दूर रहता है। उसका जीवन अनेक प्रकार के अभावों से घिरा रहता है। अपनी सरलता और सीधेपन के कारण वह सेठ साहूकारों तथा ज़मीदारों के चंगुल में फंस जाता है। वह इनके शोषण की चक्की में पिसता हुआ दम तोड़ देता है। मुन्शी प्रेमचन्द्र ने अपने उपन्यास गोदान में किसान की शोचनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है। किसान कुछ दोषों के होने पर भी दैवी गुणों से युक्त होता है। वह परिश्रम , बलिदान, त्याग और सेवा के आदर्श द्वारा संसार का उपकार करता है। ईश्वर के प्रति वह आस्थावान है। प्रकृति का वह पुजारी तथा धरती मां का उपासक है। धन के गरीब होने पर भी वहमन का अमीर और उदार है। किसान अन्नदाता है। वह समाज का सच्चा हितैशी है। ऊसके सुख़ में ही देश का सुख़ है।
भारतीयों की प्रतिभा और उद्यमिता का लोहा देश के दूसरे विकसित देश दशकों से मानते रहे हैं। आम भारतीय सीना ठोंक कर कहता है कि अमेरिका के तकनीकी विकास में हमारी महत्ती भूमिका है, वरना 'नासाÓ जैसे संगठनों में एक तिहाई से अधिक भारतीयों की संख्या नहीं होती। हमारे देश से 'ब्रेन ड्रेनÓ की बात दशकों से होती रही है और उससे पूर्व श्रम का भी पलायन हुआ है। एक बार फिर देश से श्रम का पलायन होने वाला है, वह भी 'अन्नदाताओंÓ का। आम शहरी की नजर में किसान इस देश में सबसे हिकारत कि चीज़ बना दिए गए हैं। सरकार उनके विकास की खातिर कई योजनाओं की बात करती है, लेकिन किसान तक पहुंचते-पहुंचते वह फलीभूत नहीं हो पाती। सो, कृषि क्षेत्र का संकट पिछले दशक में एक लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की, आखिर क्यों ? शायद इसका माकूल जबाव हमारे सरकार के पास भी नहीं हो।
भले ही देश में किसानों की दुर्दशा हो रही हो पर पश्चिमी देशों में भारतीय किसानों का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। अमेरिका और कनाडा जैसे देश हमारे किसानों को अपने यहां बसाने के लिए बेकरार हैं। हालत यह है कि भारतीय किसानों को बुलाने के लिए इन देशों में अपनी आव्रजन नीतियों में भी बदलाव से गुरेज नहीं किया है।
हालिया दिनों में जिस प्रकार के संकेत मिलने शुरू हुए हैं, उससे तो यही कहा जा सकता है कि कनाडा, अमेरिका व कजाकिस्तान ने नई आव्रजन नीति बनाई है। इसके तहत इन देशों में भारतीय किसानों का बसना आसान हो जाएगा। ये देश मानते हैं कि भारतीय किसान मेहनतकश हैं और इसके सहारे वह विश्वभर में क्रांति ला सकते हैं। इसी विश्वास के चलते इन देशों ने कृषि और व्यापार श्रेणी में आव्रजन के लिए शैक्षणिक योग्यता और अंग्रेजी के ज्ञान की शर्ताें को हटा दिया है।
दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार आर्थिक सुधार के दशकों में हमारी श्रम-उत्पादकता 84 प्रतिशत तक बढ़ी है। परंतु आईएलओ की वही रिपोर्ट यह भी बताती है कि निर्माण क्षेत्र में श्रमिकों के वास्तविक मजदूरी में 22 प्रतिशत की कमी हुई है (ऐसे समय में जबकि सीईओ के वेतन आसमान छू रहे हैं)। इस तरह पिछले 15 वर्षों के दौरान अपनी आबादी के ऊपर के एक छोटे से हिस्से की अप्रत्याशित समृद्घि देखी है और ठीक उसी समय पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से शुद्ध प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता घटी है। आबादी के निचले तबके में बढ़ती भूख- खाद्य असुरक्षा की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था एफएओ का विश्व रिपोर्ट यह दिखाता है कि 1995-97 से 1999-2001 के बीच लाखों की संख्या में जितने नये भूखे भारतीय आबादी में जुड़े, वो पूरे विश्व में भूखों की कुल संख्या से भी अधिक थे। हमारे देश में ऐसे समय में भूख बढ़ी है जबकि यह इथोपिया में भी घटी है। हमारे देश के कुछ शहरों में रोज एक नया रेस्त्रां खुलता है पर हमारे देश के प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री प्रो. उत्सा पटनायक बताती हैं कि एक औसत ग्रामीण परिवार 10 वर्ष पूर्व के मुकाबले आज 1000 किलोग्राम अनाज की कम खपत प्रतिवर्ष कर रहा है। खाद्यान्न उपलब्धता के यह आंकड़े संसद में प्रतिवर्ष रखे जाने वाले उस आर्थिक सर्वेक्षण से लिए गये हैं, जो हमें शुद्ध प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता (एनपीसीए) संबंधी आँकड़े मुहैया कराता है। इस सर्वेक्षण के सहारे हम 1951 से लेकर अब तक के आँकड़े प्राप्त कर सकते हैं। यह उपलब्धता आर्थिक सुधारों के शुरूआती दिनों 1992 में 510 ग्राम थी। यह 1993 में 437 ग्राम तक गिर गया। 2005 का अपुष्ट आँकड़ा 422 ग्राम था। एक-दो वर्षों में यह थोड़ा जरूर बढ़ा है, पर पिछले 15 वर्षों में समग्र रूप से देखा जाए तो एक स्पष्ट गिरावट हुई है।
कहा जा रहा है कि द्वि-राष्ट्र का सिद्धांत अब पुरानी बात है, अब दो ग्रहों की सी स्थिति है- आज 5 प्रतिशत भारतीय आबादी के लिए पश्चिमी यूरोप, संरा अमेरिका, जापान और अस्टे्रलिया बेंचमार्क है और तलछटी में रहने वाली 40 प्रतिशत आबादी के लिए उप-सहारा के अफ्रीकी देश बेंचमार्क हैं, जो साक्षरता में हमसे भी आगे हैं। पिछले दशक में ऋण का बोझ दुगुना हुआ है- हृस्स्ह्र का 59वाँ सर्वेक्षण हमें बताता है कि जहाँ 1991 में 26 प्रतिशत खेतिहर घरों पर कर्ज का बोझ था, 2003 तक यह प्रतिशत लगभग दुगुना बढ़कर 48 प्रतिशत हो गया है। लिहाजा, अव्यवस्था और आय के स्त्रोतों के ध्वस्त होने एवं जीवन-खर्च में बेतहाशा वृद्धि के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। इसी संदर्भ में वल्र्ड वाइड इमिग्रेशन कंसल्टेंसी सर्विसेज (डब्ल्यूडब्ल्यूआईसीएस) के सीमएडी ले.कर्नल बीएस संधू के अनुसार, ' भारतीय किसानों के लिए इस वक्त अमेरिका, कनाडा व यूरोप के देशों में स्थाई रूप से सेटल होने का उचित अवसर है। हालिया योजना के तहत न केवल विदेश जाकर समृद्घ किसान या व्यवसायी बना जा सकता है बल्कि अपने रिश्तेदारों और मित्रों को भी स्थाई नागरिकता उपलब्ध कराई जा सकती है। कृषि और व्यापार के क्षेत्र में घोषित आव्रजन योजना में आईलेटस भी पास नहीं करना पड़ेगा। केवल कृषि और व्यापार के क्षेत्र में कनाडा सरकार द्वारा घोषित योजना के तहत आठ लाख कनेडियन डॉलर की संपत्ति और पांच वर्ष का अनुभव होना जरूरी है।Ó
दरअसल, गत दिनों मोहाली में वल्र्ड वाइड इमिग्रेशन कंसल्टेंसी सर्विसेज के तत्वावधान में एक सरपंच सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें पंजाब सहित दूसरे प्रदेशों के करीब 130 सरपंच और प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। उसी सम्मेलन में यह बात सामने कि अब तक सैकड़ों किसान विदेश जाने के लिए आवेदन कर चुके हैं और कई इसके लिए मन बना रहे हैं। सम्मेलन के दौरान यह बताया गया कि कनाडा में 1.20 लाख कनेडियन डॉलर का निवेश करने पर वहां की सरकार 4 लाख कनेडियन डालर का ऋण भी प्रदान करेगी, जिसे आसान किश्तों में लौटाया जा सकता है।
भारतीय किसानों का स्याह सच यह है कि किसान इस देश में सबसे हिकारत कि चीज़ बना दिए गए हैं। उनके नाम पर कजऱ्माफी की छलावे और धोखेबाजियों भरी घोषणा करके सरकार किसान-कन्हैया बन जाती हैं और किसान भौंचक रहते हैं कि उन्हें मिला क्या। एक निर्मम प्रक्रिया हैं जो सरकार चलाने से लेकर नीतियाँ बनाने और उन्हें लागू कराने तक में दिखती हैं। और इन सबसे जो निकलता हैं, वह हैं एक लाख से अधिक किसानों की आत्महत्या और हजारों किसानों का विद्रोह। कृषि क्षेत्र का संकट पिछले दशक में एक लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या क्यों की ? मद्रास इंस्टीच्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के प्रो. के. नागराज के शब्दों में कहें तो हम इस पूरी स्थिति को एक पंक्ति में इस तरह रख सकते हैं-जो प्रक्रिया इस संकट को संचालित कर रही है वो है- गाँवों के लूटनेवाली व्यवसायीकरण की प्रक्रिया। सभी मानवीय मूल्यों की विनिमय मूल्यों में तब्दीली। यह प्रक्रिया जैसे-जैसे ग्रामीण भारत में बढ़ती गई, जीविका के लाखों साधन ध्वस्त हो गये। लाखों लोग कस्बों और शहरों की ओर रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं, पर वहाँ काम नहीं हैं। वो एक ऐसी स्थिति की ओर बढ़ते हैं, जहाँ न तो वो मजदूर हैं और न ही किसान। कई घरेलू नौकर बन कर रह जाते हैं, जैसे कि दिल्ली शहर में झारखंड की एक लाख से अधिक लड़कियाँ घरेलू नौकरानियों के रूप में काम कर रही हैं। छोटी जोतवाले किसानों का विश्व-व्यापी संकट। हालाँकि, यह संकट किसी भी रूप में सिर्फ भारत से जुड़ा हुआ नहीं है। यह छोटे पैमाने पर खेती करने वालों का विश्वव्यापी संकट है। पूरी पृथ्वी पर से छोटे पारिवारिक खेतों को मिटाया जा रहा है और ऐसा पिछले 20 से 30 वर्षों से होता आ रहा है। यह ठीक है कि पिछले 15 साल में भारत में यह प्रक्रिया काफी तेज हुई है। नहीं तो किसानों की आत्महत्या ने कोरिया में भी काफी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न किया है। नेपाल और श्रीलंका में भी आत्महत्याओं की दर काफी ऊँची है। अफ्रीका, बुर्किना फासो, माली जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर हुई आत्महत्याओं का कारण यह है कि संरा अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की सब्सिडियों के कारण उनके कपास उत्पाद का कोई खरीददार नहीं रहा। इत्तफाक से, संरा अमेरिका के मिडवेस्ट और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में भी समय-समय पर किसानों ने बड़े पैमाने पर आत्महत्याएँ की हैं। वास्तव में, अस्सी के दशक में अकलाहोमा में किसानों के आत्महत्या की दर संरा अमेरिका के राष्ट्रीय आत्महत्या दर के दुगुनी से भी ज्यादा थी और ऐसा कम ही होता है कि ग्रामीण आत्महत्या दर शहरी आत्महत्या के दर से ज्यादा हो।
किसानों की स्थिति पर गहन दृष्टिï रखने वाले पी. सांईनाथ के अनुसार, 'हम कई रूपों में छोटे किसानों को टूटते और मरते देख रहे हैं। यह बहुत जरूरी है कि हम कुछ करें क्योंकि हमारा देश ऐसा सबसे बड़ा देश है जहाँ छोटे जोते वाले किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है। संभवत: हमारे यहाँ ही खेतिहर मजदूरों और भूमिहीन श्रमिकों की संख्या सबसे ज्यादा है। अगर आप गौर करें तो संरा अमेरिका में जो कुछ घटा उससे सबक लेना चाहिए।संरा अमेरिका में 1930 में 60 लाख पारिवारिक खेत थे। यह वह समय था जब भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने से ठीक एक दशक के आसपास दूर था, तब अमेरिका की एक चौथाई आबादी इन 60 लाख खेतों पर आश्रित थी और इनमें काम करती थी। आज अमेरिका में खेतों में काम करने वालों से ज्यादा लोग जेलों में बंदी हैं। आज 7 लाख लोग खेतों पर आश्रित हैं और 21 लाख लोग जेलों में हैं।हमें कॉरपोरेट खेती की ओर धकेला जा रहा हैयह प्रक्रिया हमें किस ओर ले जा रही है ? दो शब्दों में कहें तो कॉरपोरेट खेती की ओर। यह भारत और पूरे विश्व में आने वाले दिनों में खेती की बड़ी तस्वीर है। हमें कॉरपोरेट खेती की ओर धकेला जा रहा है। एक प्रक्रिया जिसमें खेती को किसानों से छीना जा रहा है और कॉरपोरेट के हाथों में सौंप दिया जा रहा है। संरा अमेरिका में बिल्कुल ऐसा ही हुआ है और विश्व के अन्य कई देशों में भी। यह जीत बंदूकों, ट्रकों, बुलडोजरों और लाठियों के सहारे नहीं मिली। ऐसा किया गया लाखों छोटे जोत वाले किसानों के लिए खेती को अलाभकारी बनाकर, वर्त्तमान ढाँचे में खेती कर गुजर-बसर करना असंभव कर दिया गया। यह सब बातें तब सामने आईं जब स्वतंत्र भारत के इतिहास में असमानता को तेजी से बढ़ता देखा गया। और यह समझने वाली बात है कि जब समाज में असमानता बढ़ती है, तब सबसे ज्यादा भार कृषि क्षेत्र पर ही पड़ता है। हर हाल में यह एक अलाभकारी क्षेत्र है। इस कारण जब असमानता बढ़ती है तो कृषि क्षेत्र पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।भारत में असमानता का विध्वंसकारी विकासखरबपतियों में चौथा स्थान- मुझे पूरा विश्वास है कि आप यह जान कर रोमांचित हो जायेंगे कि 2007 में भारत में खरबपतियों की चौथी सबसे बड़ी संख्या थी। खरबपतियों की संख्या में हम संरा अमेरिका, जर्मनी और रूस को छोड़ सभी देशों से आगे हैं। इतना ही नहीं कुल संपत्ति के मामले में हमारे खरबपति जर्मनी और रूस के खरबपतियों के मुकाबले ज्यादा धनी हैं।Ó
बुधवार, 30 मई 2012
स्पीड मांगे मोर, 4 जी है न ...
हर दिल मांगे मोर। टेक्नोलॉजी के युग में कोई रूकना नहीं चाहता। प्रतीक्षा करने की •ाी किसी को फुर्सत नहीं। पलक झपकते ही सबकुछ चंद मिनटों में हासिल करना चाहते हैं। उसी सोच को साकार करने की दिशा में एक नया कदम है 4 जी। देश में 4 जी वायरलेस ब्रॉडबैंड सेवा शुरू हो गई। एयरटेल ने इसे कोलकाता में लांच किया। इसके शुरू होने से नेट सर्फिंग, गाने और वीडियो डाउनलोडिंग स्पीड में खासी तेजी आएगी। यह 3 जी से 5 गुना तो 2जी से 10 गुना तेज होगी।
4जी का इस्तेमाल फिलहाल कम्प्यूटर और लैपटॉप वगैरह में वायरलेस ब्रांडबैंड के तौर पर किया जा सकेगा, मोबाइल में नहीं। वास्तविक 4जी सेवा तब आएगी, जब 700 मेगाहर्ट्ज का बैंडविथ उपलब्ध होगा। डेढ़ से दो घंटे की फिल्म एवीआई फॉरमैट में 700-800 एमबी की होती है। यानी 8 सेकंड में आप एक फिल्म डाउनलोड कर सकेंगे। एयरटेल के चेयरमैन सुनील •ाारती मित्तल ने बताया कि इस महीने यह सेवा बेंगलुरू में शुरू की जाएगी। इसके बाद पुणे और चंडीगढ़ में इसे लांच किया जाएगा। इस सेवा की शुरूआत करते वक्त केंद्रीय सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल •ाी कोलकाता में थे।
जानकार कहते हैं कि 3जी के मुकाबले कहीं अधिक तेज गति और सुरक्षित ढंग से तथा किफायती दरों पर डाटा ट्रंसफर और एक्सेस की सुविधा उपयोक्ताओं (यूजर्स) को मिल सकेगी। इंटरनेट एंड मोबइल एसोसिएशन आॅफ इंडिया (आईएण्डएमआई) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में हर महीने बहुसंख्या में इंटरनेट उपयोक्ता जुड़ते हैं, जिनमें से अधिकतर छोटे शहरों और कस्बों से होते हैं। इसके लिए 4 जीएलटीई तकनीक के आने से इंटरनेट की शक्ति और पहुंच का इस्तेमाल ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में •ाी सफलतापूर्वक किया जा सकेगा। इससे इन क्षेत्रों में बेहतर संचार, शिक्षा-कॉमर्स एवं ई-गवर्नेस की सुविधा का प्रसार कर पाना सं•ाव होगा। खासकर गांवों में साक्षरता संबंधी समस्याओं को दूर करने में इससे काफी मदद मिलेगी।
तकनीक है उन्नत
इंटरनेट ब्रॉडबैंड सेवा प्रदान करने की 4 जीएलटीई (लांग टर्म इवोल्यूशन) एक उन्नत तकनीक है। इसमें ‘जी’ का अर्थ है जेनरेशन, यानी पीढ़ी। इस तकनीक पर आधारित ब्रॉडबैंड सेवा प्रदान करने के लिए सरकार ने कुछ निजी ब्रॉडबैंड कंपनियों को ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) लाइसेंस जारी किए हैं। जिन कंपनियों को बी.डब्ल्यू.ए. लाइसेंस प्रदान किए गए हैं, उनमें तिकोना डिजिटल नेटवर्क्स, इनफोटेल, क्वालकॉम, एयरसेल और आॅगेयर आदि कंपनियां शामिल हैं। नि:संदेह 4 जी तकनीक डाटा एक्सेस को काफी तेज बना देगी। 4 जी तकनीक के आने से डाटा ट्रंसफर स्पीड में करीब दस गुना वृद्धि हो जायेगी।
पहले की तकनीकों में
1जी में सिर्फ बात करने तथा टेक्स्ट मैसेज •ोजने की सुविधा। 2जी में बातचीत के अलावा इंटरनेट तथा रोमिंग की सुविधा। 3जी में 21 एमबीपीएस इंटरनेट स्पीड, मोबाइल पर वीडियो कॉल्स। 4जी में 100 एमबीपीएस इंटरनेट स्पीड, वीडियो क्वालिटी अधिक स्पष्ट।
कितनी अधिक है गति?
2-जी और 3-जी परिवार के उन्नत रूप, 4-जी में 3-जी की तुलना में पांच गुना अधिक तीव्र सेवा मिल सकेगी। इसके जरिए हाईडेफिनेशन मोबाइल टीवी और वीडियो कान्फ्रेंसिंग •ाी की जा सकेगी। 4 जी में डाउनलोड की गति 100 मेगाबाइट प्रति सेकेंड तक पहुंच सकती है।
तेज है पर महंगा
कोलकाता में लांच की गई ये सेवा 999 रुपये में छह जीबी डाटा डाउनलोड से शुरू होती है। इसके अलावा 1399 रुपये में नौ जीबी डाटा और 1999 रुपये में 18 जीबी डाटा डाउनलोड की योजना •ाी उपलब्ध है। इस सेवा का ला•ा उठाने के लिए जो डोंगल लेना पड़ेगा, उसका दाम 7,999 रुपये रखा गया है। अ•ाी उप•ोक्ताओं को 3जी सेवाओं के डोंगल 2500 रुपए से कम में मिल जाते हैं।
4 जी के फायदे
4 जी में डाउनलोड की गति 100 मेगाबाइट प्रति सेकेंड तक पहुंच सकती है। 3 जी में ये गति 21 मेगाबाइट प्रति सेकेंड तक होती है। इसे सेवा लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन नामक टेक्नोलॉजी पर शुरू की है। फिलहाल कोलकाता में ही उपलब्ध है। जल्द ही दूसरे शहरों सुविधा मुहैया करा दी जाएगी।
3-जी को फ्लाप बताया
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कोलकाता में 4-जी सेवा शुरू करते हुए कहा कि 2-जी सेवा की तरह 3-जी सेवा लोकप्रिय नहीं हो सकी। सिब्बल ने माना कि 3जी सेवाओं के लिए मूल•ाूत संरचना में निवेश तथा जरूरी उपकरणों की कमी के कारण इसे जनमानस के बीच लोकप्रिय नहीं बनाया जा सका। हम स्वीकार करते हैं कि 3-जी सेवा अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकी, क्योंकि इस क्षेत्र में निवेश की कमी दिखी। स्पेक्ट्रम पाने के लिए कम्पनियों ने हालांकि बड़ी रकम खर्च की।
अ•ाी शुरूआत, फैलना है शेष
4जी को फिलहाल केवल कोलकाता में लांच किया गया है। अगले चरण में एयरटेल इसे बेंगलूरू में लांच करेगा। इसके बाद पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक सर्किल्स में •ाी इसका विस्तार किया जाएगा। दरअसल, 4जी की रेस में एयरटेल के अलावा रिलायंस इन्फोटेल, क्वॉलकॉम, एयरसेल जैसी कई कंपनियां शामिल हैं, मगर इनमें से केवल इन्फोटेक को ही पूरे देश में 4जी सेवा देने का लाइसेंस मिला है।
- 4 जी है 3 जी से 5 गुना तो 2जी से 10 गुना तेज
- 4 जी में 100 एमबीपीएस इंटरनेट स्पीड, वीडियो क्वालिटी है अधिक स्पष्ट
- वास्तविक 4जी सेवा तब आएगी, जब 700 मेगाहर्ट्ज का बैंडविथ होगा उपलब्ध
- 8 सेकेंड में डाउनलोड कर सकते हैं एक फिल्म
मंगलवार, 22 मई 2012
.अब जेलर करेंगे कैदी को सैल्यूट
एक पुरानी कहावत है, दिन धरावे तीन नाम। कुछ ऐसा ही है राजा भैया के संग। जिन जेलों में वह सजायाफ्ता कैदी रह चुके हैं, वहां के जेलर अब उनके चौखट पर शीश झुकाएंगे। हाय रे किस्मत...
कुछ ऐसा ही है भारतीय लोकतंत्र। जहां कुछ भी हो सकता है। चुनावी गणित किसी को रंक तो किसी को राजा बना सकता है। कुछ भी पहले से तय नहीं। कब उल्टी गंगा बहने लगे, कह नहीं सकते। अब, उत्तरप्रदेश के मंत्री राजा भैया को ही ले लें। वर्षों जेल में रहे, अब जेलर सलामी ठोकेंगे।
हाय रे किस्मत। मंत्री तो बन गए, पर जेल से नाता नहीं टूटा। रघुराज प्रताप सिंह का। इस नाम से इन्हें कम लोग जानते हैं। राजा भैया के नाम से जगप्रसिद्ध हैं। बड़े-बड़े आरोपों के चक्कर में कई दफा जेल जा चुके राजा भैया के खाते में एक बार फिर जेल ही आया। उत्तरप्रदेश के नए मंत्रिमण्डल में उन्हें मंत्रिपद मिला और जेल का मंत्रालय सौंपा गया। अब बतौर मंत्री उत्तर प्रदेश की सेवा करेंगे और इनकी सेवा का क्षेत्र होगा जेल।
कई संगीन मामलों में आरोपी होने के चलते जेल जा चुके राजा भैया यूपी के नए जेल मंत्री हैं। पोटा और गैंगस्टर एक्ट समेत कई संगीन मामलों में आरोपी रहे कुंडा के निर्दलीय विधायक राजा भैया मुलायम सिंह की सरकार में साल 2005 में भी मंत्री रह चुके हैं। शपथ ग्रहण के बाद बतौर सीएम अखिलेश यादव ने कहा था कि राजा भैया के खिलाफ सभी मुकदमे राजनीतिक साजिश के तहत दर्ज किए गए हैं। राजा भैया के खिलाफ 45 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। हालांकि, पोटा के आरोपों से वे बरी हो गए हैं। दिसंबर 2010 में एक स्थानीय नेता ने निकाय चुनावों के दौरान राजा भैया और एक सांसद, एक विधायक और एक विधान परिषद सदस्य समेत 13 लोगों के खिलाफ जान से मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में राजा भैया को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। इससे पहले साल 2002 में भाजपा विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने उन पर अपहरण करने का आरोप लगाया।
कुंडा विधानसभा सीट पर राजा भैया की निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर यह लगातार पांचवी जीत है। वह अपने क्षेत्र में कई स्कूल और कॉलेज चलाते हैं, जिससे स्थानीय लोगों में उनकी पैठ मजबूत हो गई है। कुंडा रियासत के भदरी घराने से आने वाले राजा भैया जेल में रहकर सजा भी काट चुके हैं।
राजा भैया का जन्म 1969 में हुआ। इनके पिता उदय प्रताप सिंह हैं। दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह पंत नगर यूनिवर्सिटी के फाउंडर वाइस चांसलर थे। बाद में वह हिमाचल प्रदेश के पहले राज्यपाल बने। राजा भैया दून स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने के बाद, लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक की शिक्षा ली। वह अपने खानदान के पहले व्यक्ति थे, जिसने राजनीति में कदम रखा।
1993 में हुए विधानसभा चुनाव से कुंडा की राजनीति में कदम रखने वाले राजा भैया को उनकी सीट पर अभी तक कोई हरा नहीं सका है। उनसे पहले कुंडा सीट पर कांग्रेस के नियाज हसन का डंका बजता था। हसन 1962 से लेकर 1989 तक कुंडा से पांच बार विधायक चुने गए। राजा भैया 1993 और 96 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी समर्थित, तो 2002 और 2007 के चुनाव में सपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए। राजा भैया, भाजपा की कल्याण सिंह सरकार और सपा की मुलायम सिंह सरकार में भी मंत्री बने। मुलायम सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री बनने के बाद उन्हें जेड-श्रेणी की सुरक्षा भी मिल चुकी है।
राजा भैया की छवि एक ऐसे शख्स के रूप में है जो तत्काल न्याय दिलाता है। उनके गांव में एक तालाब है, जिसमें कई मगरमच्छ हैं। इस तालाब की तलाशी में कई साल पहले इंसानी और जानवरों की हड्डयिां भी मिलने की बात सामने आई थी। राजा भैया का आपराधिक इतिहास रहा है। वह अब भंग हो चुके पोटा कानून के तहत जेल में रहे हैं और उनके घर पर रेड मारने वाले पुलिस आॅफिसर की हत्या के आरोपी हैं। संदेहास्पद परिस्थिति में पुलिस अधिकारी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। सीबीआई अभी भी इस मामले की जांच कर रही है। इसके अलावा भी उनके खिलाफ मुकदमों की लंबी लिस्ट है। इस विधानसभा चुनाव के दौरान राजा भैया ने चुनाव आयोग में जो हलफनामा जमा किया है, उसके मुताबिक उनके खिलाफ लंबित आठ मुकदमों में हत्या की कोशिश, अपहरण और डकैती के मामले भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश गैंगेस्टर ऐक्ट के तहत भी उनके खिलाफ मामला चल रहा है।
साल 2002 में भाजपा के विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने अपहरण और धमकाने का आरोप लगाते हुए राजा भैय्या के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के आदेश पर राजा भैया को 2 नवंबर की रात तीन बजे उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया। मायावती सरकार ने राजा भैया पर पोटा लगाया। साल 2003 में फिर से सूबे में मुलायम सिंह की सरकार आई और सरकार आने के 25 मिनट के भीतर ही राजा भैया से पोटा संबंधी आरोप हटा दिए गए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बाद में सरकार को पोटा हटाने से रोक दिया। 2004 में राजा भैया पर से पोटा आखिरकार हटा लिया गया।
वर्तमान में उत्तरप्रदेश के नए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कह दिया है कि राजा भैया पर राजनीतिक साजिश के तहत आरोप लगाए गए हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि मंत्रीपद मिलने के बाद सबकुछ एडजस्ट हो जाएगा। कहीं, इसी एडजेस्टमेंट के तहत उन्हें जेल का महकमा तो नहीं दिया गया है। यह सवाल कई लोगों के जेहन में है।
परिचय
नाम : रघुराज प्रताप सिंह
चर्चित नाम : राजा भैया
पिता : उदय प्रताप सिंह
दादा : राजा बजरंग बहादुर सिंह, हिमाचल प्रदेश के पहले राज्यपाल
जन्म : 1969
व्यवसाय : राजनीति
चर्चा में : पोटा और गैंगस्टर एक्ट को लेकर। 45 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज। मंत्री बनने के बाद भी उम्र विवाद का साया।
रिकॉर्ड : कुंडा विधानसभा सीट पर लगातार पांच बार निर्दलीय विधाय
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