सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

कांग्रेस की कारस्तानी

कांगे्रस का हाथ, गरीब आदमी के साथ। यही नारा है कांग्रेस का। विशेषकर चुनावों के मौसम और प्रदेशों में तो और भी। लेकिन वह आम आदमी की कितनी फिक्र करती है? लोकसभा चुनाव से पूर्व जिस वस्तु की कीमतें कुछ कम थी, उसमें जैसे आग लग आई है। चीनी तीस रुपए के पार तो आलू बीस रुपए के पार? पेट्रोल और डीजल की तो पूछिए ही मत?
अब, तीन प्रदेशों में कांगे्रस के हाथ में सत्ता क्या आई, दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने 'आम आदमीÓ की जरूरत से अधिक फिक्र की। चौंकिए मत? जिस प्रकार से तत्काल प्रभाव से दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने दिल्ली परिवहन निगम के बसों के किराए को तत्काल प्रभाव से बढ़ाया, उससे तो यही लगता है न कि यह सरकार आम आदमी का ख्याल रख रही है। आखिर बेहतर सुविधा जो मिलेगी? बसों के किराए 3,5, 7 और 10 रुपए थे, जो 5, 10 और 15 रुपए ही तो किए गए हैं। आम आदमी की जेब का ख्याल किसी को नहीं, लेकिन उन्हें बेहतर सुविधा के लिए कृतसंकल्पि है दिल्ली की कांग्रेसी सरकार। अब तो ब्लू लाइन वाले भी यही वसूलेंगे, आखिर वे तो सरकार का नियम-कानून पालन करेंगे ही न?? इतना ही नहीं, ऑटो किराया किस कदर कुलांचे मारता है, वह भी देखिए... और वृद्घि के लिए झारखण्ड के विधानसभा चुनावों की प्रतीक्षा करिए।

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

किश्तों में जिन्दगी

कहीं न कहीं
मेरे अंदर
पैदा होता है एक जीवन
झकझोरता है मुझे
दिखाता है राह नई
मिलती है ऊर्जा
बढ़ती है ऊष्मा
उठने से लगते हैं
मेरे कदम
उसी पल
उभरता है
एक भयानक चेहरा
असफल अतीत
हताश वर्तमान
और
अनिश्चित भविष्य का
दहलता हँू में
थरथराने से लगते हैं
मेरे कदम
इसी तरह
कत्तरों में बनता-बिगड़ता रहा हँू
टुकड़ों में संवरता-बिखरता रहा हँू
किश्तों में जीता-मरता रहा हँू
चेतना के प्रसव से
चेतना के शून्य होने तक...
- विपिन बादल

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

प्रकृति उपासना का महापर्व


छठ सूर्य की पूजा है। यह एकमात्र पर्व है, जब न सिर्फ उगते हुए, बल्कि डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है। वैसे भारत में सूर्य पूजा की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। अथर्ववेद पर आधारित सूर्योपनिषद में तो सूर्य को ही ब्रह्मा माना गया है, क्योंकि उसी से यह जगत परिचालित होता है।

कहीं समूह में गीत गाती महिलाएं, तो कहीं ढोल-नगाड़ों पर थिरकते युवा। कहीं पटाखे जलाते खुशी से तालियां बजाते बच्चों का टोल, तो भरे-पूरे परिवार को खुश देखकर भाव-विभोर होते घर के बड़े-बुजुर्ग। सब के सब नए कपड़े पहने हुए। रंगे-पुते, रंगीन बल्बों की रोशनी से जगमगाते सजे-धजे मकान। साफ-सुथरी सड़कें। जगह-जगह लाउडस्पीकरों पर गूंजते भजन व लोकगीत। नदी, नहर, सरोवर, पोखर, तालाब जैसे जलाशयों की ओर हाथ में पूजन-सामग्री लेकर जाती भीड़ में मानो जात-पांत व अमीर-गरीब का भेद कहीं विलीन हो जाता है।

छठ-पूजा के मौके पर यह नजारा अब केवल बिहार के गांव शहर तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत के किसी भी शहर में बिहार व पूर्वांचल के निवासियों के बाहुल्य वाले इलाकों में देखने को मिल जाता है। दीपावली के बाद सूर्य उपासना का यह पर्व पूरे बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल में अपार श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की यह तिथि यहां सूर्य षष्ठी व 'डाला छठÓ के नाम से भी जानी जाती है। इस पर्व में नियम-निष्ठा व पवित्रता, शुचिता, सफाई का बहुत खयाल रखा जाता है। पूजा में तनिक भी भूल होने पर अपशकुन होने की आशंका से लोग भयभीत रहते हैं।

यूं तो एक मात्र प्रत्यक्ष देवता सूर्य की पूजा पूरे वर्ष ही विभिन्न रूपों से की जाती है। पर छठ-पूजा के मौके पर सूर्य की उपासना का ढंग निराला है। इसमें न केवल उगते सूर्य को बल्कि डूबते सूर्य को भी अघ्र्य दिया जाता है। मान्यता है कि अघ्र्य के बाद नदी से निकले व्रती के भीगे कपड़ों से शरीर पोछने पर सफेद दाग के ध4बे मिट जाते हैं।

वैसे तो छठ पर्व व्रती की हर मनोकामना को पूरा करने वाला है पर लोग सबसे ज्यादा इसे पुत्र प्राप्ति की कामना से करते हैं। शायद इसकी वजह यह है कि इस व्रत का संबंध षष्ठïी माता से भी है। छठ पर्व के बारे में अनेक पौराणिक कथाएं कही जाती हैं, जिनमें छठ पर्व की परंपरा के प्रारंभ होने का वर्णन मिलता है।

छठ पूजा के इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो इसका प्रारंभ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है। प्राचीन काल में इसे बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था। लेकिन आज इस प्रान्त के लोग विश्व में जहाँ भी रहते हैं वहाँ इस पर्व को उसी श्रद्धा और भक्ति से मनाते हैं।

आज जब पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण तथा पर्यावरण संरक्षण की समस्या से जूझ रहा है, सूर्य की उपासना का महापर्व छठ का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि ऊर्जा के अक्षय स्रोत सूर्य की पूजा और उन्हें अप्रसंस्कृत वस्तुओं का भोग लगाया जाना पर्यावरण के प्रति इस पर्व के महत्व को रेखांकित करता है। सोनपुर के गजेन्द्र मोक्ष नौलख्खा मंदिर महंत आचार्य लक्ष्मणानंद शास्त्री के अनुसार पर्यावरण संरक्षण और छठ पूजा के बीच गहरा संबंध है। छठ पूजा में प्रसाद के रूप में नई फसलों का उपयोग किया जाता है।

उन्होंने कहा गन्ना, सिंघाड़ा, नींबू, हल्दी, अदरख, नारियल, केला, संतरा, सेब के अलावा आटा चीनी एवं घी के मिश्रण से बनी ठेकुआँ जैसी वस्तुएँ प्रकृति के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के इस पर्व के महत्व को स्पष्ट करती हैं। शास्त्री ने कहा छठ पूजा में मिट्टी के बने हाथी चढ़ाए जाते हैं, जो इस पर्व के माध्यम से प्रकृति प्रदत्त इस अद्भुत जीव के संरक्षण का संदेश देती है। मिट्टी के बने हाथी को नई तैयार धान की फसल चढ़ाई जाती है।

छठ का पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। इसे छठ से दो दिन पहले चौथ के दिन शुरू करते हैं जिसमें दो दिन तक व्रत रखा जाता है। इस पर्व की विशेषता है कि इसे घर का कोई भी सदस्य रख सकता है तथा इसे किसी मन्दिर या धार्मिक स्थान में न मना कर अपने घर में देवकरी ( पूजा-स्थल) व प्राकृतिक जल राशि के समक्ष मनाया जाता है। तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के लिए महिलाएँ कई दिनों से तैयारी करती हैं इस अवसर पर घर के सभी सदस्य स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं जहाँ पूजा स्थल होता है वहाँ नहा धो कर ही जाते हैं यही नही तीन दिन तक घर के सभी सदस्य देवकरी के सामने जमीन पर ही सोते हैं। पर्व के पहले दिन पूजा में चढ़ावे के लिए सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के मौसमी फल, केले की पूरी गौर (गवद), इस पर्व पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकुआ ( बिहार में इसे खजूर कहते हैं। यह बाजरे के आटे और गुड़ व तिल से बने हुए पुए जैसा होता है), नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, बादाम, नारियल, इस पर चढ़ाने के लिए लाल/ पीले रंग का कपड़ा, एक बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गन्ने के बारह पेड़ आदि। पहले दिन महिलाएँ अपने बाल धो कर चावल, लौकी और चने की दाल का भोजन करती हैं और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करती हैं। छठ पर्व पर दूसरे दिन पूरे दिन व्रत ( उपवास) रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की बखीर बनाकर देवकरी में पांच जगह कोशा ( मिट्टी के बर्तन) में बखीर रखकर उसी से हवन किया जाता है। बाद में प्रसाद के रूप में बखीर का ही भोजन किया जाता है व सगे संबंधियों में इसे बाँटा जाता है।

तीसरे यानी छठ के दिन 24 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है, सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है और पूजा के लिए एक बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी, जिसे दौरी कहते हैं, में पूजा का सभी सामान डाल कर देवकरी में रख दिया जाता है। देवकरी में गन्ने के पेड़ से एक छत्र बनाकर और उसके नीचे मिट्टी का एक बड़ा बर्तन, दीपक, तथा मिट्टी के हाथी बना कर रखे जाते हैं और उसमें पूजा का सामान भर दिया जाता है। वहाँ पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल कपड़े में लिपटा हुआ नारियल, पांच प्रकार के फल, पूजा का अन्य सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पुरूष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी, समुद्र या पोखर पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो जाए इसलिए इसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं।

नदी किनारे जा कर नदी से मिट्टी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाते हैं वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल चढ़ाते हैं और दीप जलाते हैं। उसके बाद टखने भर पानी में जा कर खड़े होते हैं और सूर्य देव की पूजा के लिए सूप में सारा सामान ले कर पानी से अर्घ्य देते हैं और पाँच बार परिक्रमा करते हैं। सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुए घर आ जाते हैं और देवकरी में रख देते हैं। रात को पूजा करते हैं। कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रद्धालु अलस्सुबह सूर्योदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर नदी किनारे जाते हैं। पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिट्टी निकाल कर चौक बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है।

सूर्य देव की प्रतीक्षा में महिलाएँ हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करती हैं। जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोगों के चेहरे पर एक खुशी दिखाई देती है और महिलाएँ अर्घ्य देना शुरू कर देती हैं। शाम को पानी से अर्घ देते हैं लेकिन सुबह दूध से अर्घ्य दिया जाता है। इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुए पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं। घर पहुँच कर देवकरी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलाएँ प्रसाद ले कर अपना व्रत खोलती हैं तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है।

छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोशी भरी जाती है इसके लिए छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का बड़ा घड़ा जिस पर छ: दिए होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है। कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है।

छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के हर कोने में किया जाता है दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई चेन्न्ई जैसे महानगरों में भी समुद्र किनारे जन सैलाब दिखाई देता है पिछले कई वर्षों से प्रशासन को इसके आयोजन के लिए विशेष प्रबंध करने पड़ते हैं। इस पर्व की महत्ता इतनी है कि अगर घर का कोई सदस्य बाहर है तो इस दिन घर पहुँचने का पूरा प्रयास करता है।

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

भाग रहे हैं पाकिस्तानी हिंदू

एक ओर भारत-पाक संबंधों में सुधार की बात की जाती है, लेकिन दूसरी ओर पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति दयनीय है और हजारों की संख्या में हिंदू पलायन कर रहे हैं। पाकिस्तान में बढ़ते अत्याचारों से दुखी होकर पिछले 3 सालों में करीब 8 हजार हिन्दू पाकिस्तानी जोधपुर आकर डेरा डाल चुके हैं। वहां से लौटकर आए हिन्दू पाकिस्तानियों की माने तो हिन्दू लड़कियां को उठा कर ले जाने का सिलसिला आज भी जारी है।
पाकिस्तान में राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का शासन समाप्त होने के बाद से भारी संख्या में हिन्दू भारत लौट रहे हैं। कराची से भारत के मुनाबाव के बीच चलने वाली थार एक्सप्रेस से प्रति फेरे में करीब 40-50 हिन्दू भारत आ रहे हैं। साथ ही बड़ी संख्या में हिन्दुओं ने भारत लौटने के लिए वीजा का आवेदन किया है। तालिबान के अत्याचार से परेशान होकर हिन्दू या तो इस्लाम कबूल कर रहे हैं या मजबूर होकर भारत का रूख कर रहे हैं।
पाकिस्तान में हिन्दुओं की हालत काफी दयनीय और चिंताजनक है। पाकिस्तान के उत्तरपश्चिम सीमांत प्रांत में बट्टाग्राम जिले में तालिबान का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले एक फोनकर्ता ने अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से जजिया कर के रूप में 60 लाख रुपए की मांग की। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार एक व्यक्ति ने तालिबान प्रतिनिधि होने का दावा करते हुए फोन कर एक स्थानीय हिंदू नेता से कहा कि वह बट्टाग्राम के हिंदुओं से 60 लाख रुपए की रकम जमा करें और तालिबान को अदा करें। फोनकर्ता ने कहा है कि बट्टाग्राम में रहने वाले सभी अल्पसंख्यकों को जजिया कर देना होगा। गौरतलब है कि पिछले माह औराकजइ कबायली इलाके में स्थित सिख परिवारों से 5 करोड़ रुपए की मांग की गई ती। जब वे यह रकम नहीं दे सके तो उग्रवादियों ने उनके घर जला डाले और उनकी दुकानें लूट ली थीं।
भारत पहुंचे पाकिस्तान के रहिमियार खान जिले के निवासी राणाराम के अनुसार, 'कट्टरपंथी तालिबानी उसकी पत्नी को उठाकर ले गए और बलात्कार किया तथा जबरन मुसलमान बना दिया। उसकी छोटी बच्ची को भी शबीना बना दिया।Ó यह हादसा केवल राणाराम के ही साथ नहीं हुआ है। पाक में हिन्दुओं में सबसे ज्यादा खौफ जबरन मुसलमान बनाने को लेकर है। मुसलमान होने पर ही उन्हें नौकरियां दी जाती हैं। तालिबानियों ने रहिमियार खान, उमरकोट, डिप्लो, सांगढ, खोखरापार, खिपरो, कराची आदि में धर्म परिवर्तन के लिए नए केन्द्र खोल रखे हैं। अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर, यहां तक की अपना परिवार तक छोड़कर, आना आसान नहीं है। लेकिन इन लोगों का कहना है कि उनके पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार यह वाकया हाल-फिलहाल के दिनों में शुरू नहीं हुए हैं, बल्कि वर्ष 1965 से सिलसिला शुरू है। गत दो वर्षों में 10 हजार से ज्यादा अल्पसंख्यक हिन्दू पाकिस्तान से भारत लौट चुके हैं। करीब 5 हजार हिन्दू प्रतिवर्ष पाकिस्तान से भारत लौट रहे हैं। पाकिस्तान से हिन्दुओं के भारत आने का सिलसिला 1965 में शुरू हुआ। भारत-पाक युद्ध के चलते करीब 15 हजार हिन्दू भारत आए। 1971 के युद्ध में करीब 90 हजार से ज्यादा हिन्दू शरणार्थियों ने भारत की शरण ली। अब यह संख्या बढ़कर साढे तीन लाख हो गई है। लौटने वाले अधिकतर हिन्दू जैसलमेर, बाडमेर, जोधपुर, जालोर, बीकानेर और गुजरात, हरियाणा तथा दिल्ली में हैं। बताया जाता है कि पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान में हो रहे अत्याचारों से तंग आकर हमेशा के लिए भारत आ रहे हिन्दुओं की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। थार एक्सप्रेस के हर फेरे में करीब 12 से 15 परिवार भारत लौट रहे हैं। लौटने वालों में ज्यादातर रहिमियार खां और मीरार खास आदि जिलों के निवासी है।
काबिलेगौर है कि 2006 में पहली बार भारत-पाकिस्तान के बीच थार एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी। हफ्ते में एक बार चलनी वाली यह ट्रेन कराची से चलती है भारत में बाड़मेर के मुनाबाओ बॉर्डर से दाखिल होकर जोधपुर तक जाती है। पहले साल में 392 हिंदू इस ट्रेन के जरिए भारत आए। 2007 में यह आंकड़ा बढ़कर 880 हो गया। पिछले साल कुल 1240 पाकिस्तानी हिंदू भारत जबकि इस साल अगस्त तक एक हजार लोग भारत आए और वापस नहीं गए हैं। वह इस उम्मीद में यहां रह रहे हैं कि शायद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए, इसलिए वह लगातार अपने वीजा की अवधि बढ़ा रहे हैं। गौर करने लायक बात यह है कि यह आंकड़े आधिकारिक हैं, जबकि सूत्रों का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या कहीं अधिक है जो पाकिस्तान से यहां आए और स्थानीय लोगों में मिल कर अब स्थानीय निवासी बन कर रह रहे हैं। अधिकारियों का इन विस्थापितों के प्रति नरम व्यवहार है क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग पाकिस्तान में भयावह स्थिति से गुजरे हैं। वह दिल दहला देने वाली कहानियां सुनाते हैं। बकौल मुुनाबाओ रेलवे स्टेशन के इमिग्रेशन ऑफिसर हेतुदन चरण, ' भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या अचानक बढ़ गई है। हर हफ्ते 15-16 परिवार यहां आ रहे हैं। लेकिन इनमें से कोई भी यह स्वीकार नहीं करता कि वह यहां बसने के इरादे से आए हैं। लेकिन आप उनका सामान देखकर आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वह शायद अब वापस नहीं लौटेंगे।Ó बाड़मेर और जैसलमेर में शरणार्थियों के लिए काम करने वाले सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा के अनुसार, 'भारत में शरणार्थियों के लिए कोई पॉलिसी नहीं है। यही कारण है कि पाकिस्तान से भारी संख्या में लोग भारत आ रहे हैं। पाकिस्तान के साथ बातचीत में भारत सरकार शायद ही कभी पाकिस्तान में हिदुंओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार व अत्याचार का मुद्दा नहीं उठाती है।Ó कुछ संगठनों का कहना है कि 2004-05 में 135 शरणार्थी परिवारों को भारत की नागरिकता दी गई, लेकिन बाकी लोग अभी भी अवैध तरीके से यहां रह रहे हैं। यहां पुलिस इन लोगों पर अत्याचार करती है। पाकिस्तान के मीरपुर खास शहर में दिसंबर 2008 में करीब 200 हिदुओं को इस्लाम धर्म कबूल करवाया गया। बहुत से लोग ऐसे हैं जो हिंदू धर्म नहीं छोडऩा चाहते लेकिन वहां उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं।

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

नक्सलियों को धन मुहैया कराते एनजीओ

एक ओर प्रदेश स्तर से लेकर केंद्रीय सरकार नक्सलियों पर नकेल कसने की बात करती हैं, लेकिन विभिन्न एनजीओ के माध्यम से विदेशों से मिलने वाले धन के बल पर नक्सली अपने मंसूबों को पालने में सक्षम हो रहे हैं। प्रदेश की सत्ता पर पिछले तीन दशक से वाम मोर्चा काबिज है और इसी दरम्यान नक्सली गतिविधि भी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती दिखी। जब केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद ऑपरेशन लालगढ़ चलाया गया तो कुछ दिन बाद ही प्रदेश सत्ता ने अपने तथाकथित वोट बैंक को बिखरता देख पूरे ऑपरेशन पर सवालिया निशान लगा दिया। कहा गया कि यह नक्सलियों की जीत रही। हालिया घटनाक्रम में इस प्रकार के संकेत मिल रहे हैं कि नक्सली संगठनों को विदेशों से पैसा मिल रहा है और उसका माध्यम कई गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) हैं। इसकी स्वीकारोक्ति पश्चिम बंगाल पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भी की है।
राज्य के पुलिस महानिदेशक भूपिंदर सिंह ने बताया कि कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा जनजातियों के कल्याण के नाम पर लिए जा रहे विदेशी धन का कुछ हिस्सा नक्सलियों के पास पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति (बीयूपीसी) के साथ नक्सलियों के संबंध हैं। इसी संगठन ने सरकार के प्रस्तावित केमिकल हब के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था। तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस जैसी कुछ पार्टियां बीयूपीसी का हिस्सा हैं।
जाहिरतौर पर कोई भी संगठन बगैर आर्थिक मदद के नहीं चल सकता। सो, नक्सली संगठनों को भी विदेशों से धन मिलना कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता। गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि कुछ समय पूर्व पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकत्ता से महज 150 किलोमीटर दूर स्थित लालगढ़ के पुलिस स्टेशन पर महीनो से ताले पड़े थे ,सरकारी अमला लगभग पुरे वेस्ट मिदनापुर इलाके से भाग खड़े हुए थे । पश्चिम बंगाल सरकार त्राहिमाम संदेश लगातार केन्द्र को भेज रही थी । रॉयटर्स बिल्डिंग में पिछले 30 सालों से जड़ जमा चुके वाम दल की सरकार को यह एहसास हो गया था कि नक्सालियों का अगला मुकाम कोलकत्ता ही है । तभी तो ख़ुद केंद्रीय गृह मंत्री 'ऑपरेशन लालगढ़Ó का नेतृत्व कर रहे थे । तकऱीबन 20 हजार फॉर्स नक्सालियों के किलेबंदी को तोडऩे के लिए लगे हुए थे । इस अभियान में तकऱीबन 1000 गाँव में पैर पसार चुके नक्सालियों को खदेरने की पुरी रणनीति दिल्ली में बनाई गई थी । कह सकते है कि मुल्क के 80 जिलों में अपना मजबूत आधार बना चुके नक्सालियों के लिए यह एक संदेश था कि उनका दिन अब लदने वाला है । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । पूरे अभियान में फॉर्स के विरोध के लिए जनता खड़ी रही और नाक्सली पीछे से उनका नेतृत्व करते रहे । इस अभियान में एक भी नाक्सली कमांडर पकड़े नहीं गए और न ही नक्सालियों कोई नुकसान उठाना पड़ा । कहा गया कि नाक्साली मैदान छोड़ चुके है । केन्द्र सरकार इसे बड़ी कामयाबी मान रही थी । लेकिन इन इलाकों में एक के बाद एक वाम दल के कार्यकर्ताओं की मौत ने यह साबित कर दिया कि सरकार का यह दावा ग़लत था । पश्मिम बंगाल सरकार अपने 19 कार्यकर्ताओं की मौत से इस कदर आहत हुई कि उसने पूरे ऑपरेशन पर ही सवाल उठा दिया।
जाहिर है कार्यकर्ताओं के भरोसे हुकूमत चलाने वाली वाम दल सरकार को यह यकीं हो चला है कि आम लोगों का उनसे भरोसा उठ चुका है । जाहिर है इस भरोसे को माओवादियों ने जीता है यही वजह है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में हुकूमत को कोई खुफिया जानकारी मिलना मुश्किल है । यानि नक्सल के इस तथाकथित क्रान्ति में सीधे तौर पर आम लोगों का सहयोग है । ऐसा क्यों हुआ इसका जवाब 30 साल से पश्मिम बंगाल में शाशन करने वाली सरकार ही दे सकती है ।
इसी परिप्रेक्ष्य में राजद सुप्रीमो और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ने पश्चिम बंगाल को नक्सली गतिविधियों का विश्वविद्यालय करार दिया था। लालू यादव के अनुसार, 'पश्चिम बंगाल नक्सलियों की यूनिवर्सिटी है, जहां पर उन्हें हथियार चलाने और नक्सली गतिविधियों के संचालन की ट्रेनिंग दी जाती है। नक्सली राज्य में हिंसा की ट्रेनिंग लेकर दूसरे राज्यों में नक्सली वारदातों को अंजाम देते हैं।Ó हालात इस कदर बदत्तर हो रहे हैं कि नक्सलियों ने सरकार से सशर्त वार्ता की पेशकश की है। हालांकि, इस बारे में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रई बुद्धदेब भट्टाचार्य ने फि़लहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस बीच देश में बढ़ती नक्सली हिंसा से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक बड़ी कार्य योजना तैयार कर लेने का दावा किया है। महाराष्ट्र, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के निपटने के बाद इस योजना पर काम शुरू होगा। नक्सलियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन के अलावा इस योजना के तहत प्रभावित इलाकों के विकास के लिए भी धन राशि मुहैया कराई जाएगी।

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

पाक आतंकी वाया नेपाल

अमेरिका एक पल पाकिस्तान पर लगाम कसना चाहता है तो दूसरे पल में उसे आर्थिक सहायता प्रदान करता है। उस सहायता का इस्तेमाल पाकिस्तान अब सीधे भारत के खिलाफ नहीं करके नेपाल के रास्ते कर रहा है। तभी तो नेपाल के माओवादी संगठनों में मुस्लिम आतंकवादी भी नजर आने लगे हैं।
अमेरिकी मदद पाकर पाकिस्तान पहले भी भारत के खिलाफ आतंकियों को शह देता रहा है। पहले अमेरिका और बाद में पाक के पूर्व राष्टï्रपति परवेज मुर्शरफ के खुलासे के बाद पाकिस्तान ने अपने काम करने के तरीके में बदलवा कर लिया है। हालिया घटनाक्रम के अनुसार पाकिस्तान के आतंकी संगठन लगातार नेपाल के माओवादी संगठनों के लगातार संपर्क में हैं। पाक के आतंकी नेपाली माओवादियों के भेष में बिहार-उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के रास्ते भारत में प्रवेश करते हैं और अपने मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने की फिराक में रहते हैं।
हाल के दिनों का सच तो यही है कि आतंकवाद की शिक्षा केवल पाकिस्तान के मदरसों में ही नहीं बल्कि भारत के तमाम मदरसों में भी दी जा रही है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में पिछले तीन-चार साल के दौरान मदरसों की बाढ़ आ गई है, जिससे इस धारणा की और भी पुष्टि होती है। इसी का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमाई इलाकों में तकरीबन छह सौ मदरसे काम कर रहे हैं। तभी तो नेपाल के माओवादियों के भेष में मुस्लिम आतंकवादी सक्रिय दिखाइ दे रहे हैं। खुफिया एजेंसियों की तहकीकात से भी खुलासा भी हुआ है कि इन इलाकों की कई मसजिदें जेहादी काम-काज के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। इसकी अगुवाई तबलीगी जमात तथा अहले हदीस के माध्यम से की जा रही है। इन संगठनों को तमाम अरबी एजेंसियों से भी वित्तीय मदद प्राप्त होती है। पाकिस्तान इनका मददगार है। इसके लिए वह पीर पगारों जैसे बरेलवी धड़ों का इस्तेमाल करता है। अकेले उत्तर प्रदेश में इस पट्टी में 800 किमी के क्षेत्र में विध्वंसक गतिविधियां जारी हैं। इसमें पीलीभीत से महाराजगंज तक के कई जिले शामिल हैं। अकेले सिद्धार्थनगर में 51 मदरसे हैं, जबकि महाराजगंज में 52 मदरसे। इनमें 14 नए मदरसे व मसजिदें 1997 के बाद निजी जमीन पर बनाए गए हैं। सन् 1990 से पहले इन मदरसों में आम तौर पर मजहबी तालीम दी जाती थी। लेकिन इसके बाद यहां उग्रवादी विचारधारा का पोषण होने लगा। यही वह दौर था जब आईएसआई ने मदरसों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाना शुरू कर दिया।
खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक मुस्लिम विचारक व शिक्षक बेरोकटोक इन मदरसों का दौरा करते हैं, जिनमें मौलाना अब्दुल रुऊफ रहमानी का नाम प्रमुख है। वह नेपाल का रहने वाला है और मरकजी जमाएत अहले हदीस का अमीर है। इस राबिता-अहले-अलम इसलामी संगठन का मुख्यालय मक्का में है। भारत नेपाल सीमा के पास बन रहे मदरसों का संचालन अहले हदीस और मौलवी रहमानी किया करते हैं। इसी तरह नेपाल के कृष्णा नगर में रहने वाला मौलाना अब्दुल मदनी अहले हदीस का नायब अमीर है। यह मदरसा खिजत-उल-कुब्रा को चलाता है। कहा जाता है कि इसका संबंध आईएसआई व दाऊद इब्राहिम से है। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले में बैरहवा में एक मदरसा तालिमात-ए-दीन के नाम से चल रहा है। इस मदरसे के मौलवी मोहम्मद अली को उस समय दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था जब वह पाकिस्तान जा रहा था। उसने आईएसआई के साथ अपने संबंधों को कबूल भी किया था।
गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि अमेरिकी कांग्रेस के शक्तिशाली पैनल ने कुछ कठिन शर्त् लगाते हुए उस विवादास्पद अधिनियम को मंजूरी दे दी जिसमें पाकिस्तान की असैन्य मदद को बढ़ाकर तिगुना कर दिया गया है। अमेरिकी संसद के कुछ सदस्यों ने क़ानून में इस तरह की कड़ी शर्तों पर चिंता जताई है। पाकिस्तान सहायता और सहयोग क़ानून के तहत अमरीका से पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक सहायता तिगुनी हो जाएगी। इसके तहत वर्ष 2013 तक उसे हर साल डेढ़ अरब डॉलर की राशि दी जाएगी। इसका उपयोग पाकिस्तान के राष्ट्रीय और प्रांतीय संस्थानों, शिक्षा और न्यायिक प्रणाली को मज़बूत बनाने में किया जाएगा। तालिबन और अन्य चरमपंथी गुटों से लड़ रही पकिस्तानी सेना और विशेष बलों की क्षमता बढ़ाने के लिए भी पैसे दिए जाएंगे। अमेरिकी संसद ने अलग से युद्ध कोष विधेयक के तहत 40 करोड़ डॉलर का राशि देने को मंज़ूरी दी है। संसदीय समिति के चेयरमैन होवर्ड बर्मन के अनुसार, 'हम सभी पाकिस्तान के स्थायित्व और सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं। हम अल क़ायदा या किसी अन्य आतंकवादी समूह को पाकिस्तान में गतिविधियाँ चलाने की अनुमति नहीं दे सकते जिनसे अमरीका की सुरक्षा को ख़तरा है।Ó
दरअसल, नई शर्तो में इस्लामाबाद को पड़ोसी देशों में सीमा पार आतंकवाद रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की बात शामिल है। करीब एक घंटे की बहस के बाद इस अधिनियम को सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दी गई थी। पाकिस्तान मदद एवं सहायता वृद्धि अधिनियम (पीस) 2009 को मंजूरी देते हुए सदन की विदेश मामलों की समिति ने पाकिस्तानी सेना और इसकी खुफिया एजेंसी को आतंकी गतिविधियों और संगठन को समर्थन नहीं देने की सख्त ताकीद की है। यह बिल अब मंजूरी के लिए प्रतिनिधि सभा के पास जाएगा। सदन की विदेश मामलों की समिति के चेयरमैन हावर्ड एल बरमेन द्वारा 2 अप्रैल को पेश इस मूल अधिनियम से पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की कड़ी आपत्ति के बाद 'भारतÓ शब्द हटाया गया है। 'भारतÓ शब्द के बजाय अब अधिनियम में 'पड़ोसी देशÓ शब्द इस्तेमाल किया गया है। ओबामा प्रशासन ने सांसदों से कहा कि 'भारतÓ शब्द के इस्तेमाल से विपरीत प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि पाकिस्तानी सरकार को इस पर आपत्ति है। अधिनियम में नए बदलाव के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति को आतंकरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए पाकिस्तान सरकार की प्रगति से हर वर्ष कांग्रेस को अवगत कराना होगा। मूल अधिनियम में यह शर्त भी लगाई गई थी कि पाकिस्तान किसी भी स्थिति में अपने क्षेत्र का उपयोग पड़ोसी देश भारत में आतंकी गतिविधि के लिए नहीं होने देगा। इसके साथ ही पाकिस्तान किसी ऐसे समूह को समर्थन नहीं देगा जिसका संबंध भारत में आतंकी गतिविधि को बढ़ावा देने से है। वैसे, देशहित में अधिनियम में में किसी प्रावधान को जोडऩे अथवा हटाने का अधिकार अमेरिकी राष्टï्रपति को दिया गया है।
अव्वल तो यह कि नेपाल के इस्लामी मुक्ति मोर्चा के लोग माओवादियों और वाईसीएलएल के कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलते हैं, और आए दिन नेपाली सीमा पर हिंदू और भारत विरोधी नारे लगाते हैं। प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता भी सोनौली स्थित भारतीय सीमा पर माओवादियों और इस्लामी आतंकवादियों के विरोध में नारे लगाते हैं, किंतु सोनौली पुलिस चौकी वाले कुछ नहीं बोलते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्य नाथ और सांसद योगी आदित्य नाथ, पाटेश्वरी देवी शक्तिपीठ देवीपाटन के महंत और तुलसीपुर (बलरामपुर) के विधायक महंत योगी कौशलेंद्र नाथ इन्ही मदरसों और उनमें छिपे बैठे भारत और हिंदु विरोधी तत्वों की विध्वंसक गतिविधियों से दिन रात जूझ रहे हैं। एक और तथ्य सामने आया है और वो यह है कि नेपाल में वहां के माओवादियों के बीच में घुसकर मुस्लिम कट्टरपंथी, नेपाल में और भारत के सीमावर्ती जिलों में हिंदुओं पर जानलेवा हमले कर रहे हैं। नेपाल में माओवादियों की आड़ में इनका हिंदुओं को डराने और उनको खत्म करने का सुनियोजित खेल चल रहा है।