सोमवार, 21 सितंबर 2009
प्रासंगिक है रामलीला का मंचन
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
सुरक्षा की कीमत 10 रुपए
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
ओवर स्मार्ट मिस्टर मिनिस्टर आॅफ स्टेट
हमें पता है कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के कहने पर आपको पांच सितारा होटल का अस्थायी निवास छोड़ने पर बड़ा दुख हुआ है। लेकिन यह तो केंद्र सरकार की पाॅलिसी मेटर है। आम जनता इसमें आपकी कोई मदद भी नहीं कर सकती। लेकिन आपके इस कथन से कि इकोनाॅमी क्लास भेड़-बकरियांे की क्लास है, लगता है कि थरूर साहब, आप अब भी खुन्नस में हैं। अरे, यह तो केंद्र सरकार की मितव्ययिता अभियान है, जिसकी सराहना की जानी चाहिए। जैसे और कांग्रेसी इस अभियान की प्रशंसा कर रहे हैं, वैसे आपको भी करनी चाहिए। आप छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा लेते हैं। आप विदेश राज्य मंत्री हैं, तो आपको यात्राआंे की दिक्कत कहां है? खामख्वाह परेशान हो रहे हैं। पार्टी की ओर से इस सादगी अभियान का संदेश देने में आपको हिस्सा लेना चाहिए और मुक्त कंठ से प्रशंसा करनी चाहिए।
अब आपसे क्या कहंे, आपने यह कहकर कि एकजुटता दिखाने के लिए आप भी अब अन्य नेताओं के साथ कैटल क्लास में सफर करेंगे, साथी नेताओं को भी नीचा दिखाया है। आप पर कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन पूरी तरह नाराज हैं। आपकी कार्यशैली कांग्रेसी कार्य संस्कृति से भी मेल नहीं खाता। अपने में बदलाव लाएं, वरना आपका तो कुछ नहीं होगा, आपकी आपत्तिजनक सार्वजनिक आचरण से पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। कम से कम पार्टी के लिए ऐसा न किया करें। आपसे अच्छे तो नंदन नीलेकणी जी हैं, जो बड़े औद्योगिक घराने से संबंधित होने के बावजूद पार्टी लाइन पर छोटी कार और सामान्य आवास जैसे सादगीपूर्ण उपायों पर गौर कर रहे हैं। कई बार तो यह लगा कि आप इस देश के नागरिक भी हैं या नहीं, क्योंकि आपने हवाई जहाज की इकोनाॅमी श्रेणी को, जिससे भारत के आम लोग यात्रा करते हैं, ‘मवेशी श्रेणी’ कह दिया है। इतना ही नहीं, आप तो पवित्र गायों पर भी कमेंट करने से बाज नहीं आए। आपकी इस व्यंग्यात्मक टिप्पणी के कारण सोनिया जी अपमानित महसूस कर रही हैं।
आपके जैसे ओवर स्मार्ट मिनिस्टर आॅफ स्टेट को जनता की अदालत में इस अपमान के बदले क्या सजा मिलनी चाहिए। शशि थरूर जी आपकी संवेदनहीनता के कारण आपको मंत्री पद से हटा भी दिया जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब तो आपकी हर देश-विदेश की यात्राओं पर सरकार और जनता दोनों की नजर होनी चाहिए। देश के खजाने से आप कितना खाते हैं, कितना गिराते हैं और कितना बर्बाद करते हैं? सभी भारतीयों की संवेदनशीलता के मद्देनजर उनका बयान स्वीकारने योग्य नहीं है। भारत में प्रतिदिन हजारों लोग इकोनाॅमी क्लास में सफर करते हैं। इकोनाॅमी क्लास का अर्थ सस्ती क्लास से होता है। अब जब भी आप जहां जाएं, कोई मतलब नहीं, लेकिन आपके यह कहने से कि अगली बार जब आप केरल जाएंगे तो ‘मवेशी श्रेणी’ में ही जाएंगे, केरल की जनता की प्रतिष्ठा का भी हनन हुुआ है।
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सुशिल देव
वरिष्ठ पत्रकार
9810307519
बुधवार, 16 सितंबर 2009
जंगल राज
प्रजातंत्र हो जाने के बाद यहां जंगल मे भी राज चलाना काफ़ी कठिन हो गया है।उपर से राजनीति भी जोरों पर है।अभी हाल ही मे आम चुनाव हुए थे जिसमे शेर की पार्टी ने हाथी के दल को पटखनी दी और पुर्ण बहुमत लेकर सत्तासीन हुई.लम्बे-चौडे वादे किये गये.भेडों-बकडों के समुह को यह कहकर वोट मांगा गया कि शेर अब उसका शिकार नही करेंगे.मछलियों से वादा किया गया कि मगरमच्छों से उनकी रक्षा की जायेगी.छोटे-छोटे जानवरों को विश्वास दिलाय गया कि सस्ते दरों पर उन्हे चारा उपलब्ध कराये जायेंगे.किसी भी पशु-पक्षी को बेरोजगार नही रहने दिया जायेगा और सारे फ़ैसले जानवरों के हितों को ध्यान मे रखकर लिया जायेगा.हाथी के दल ने भी कुछ मिलते-जुलते वादे ही किये थे लेकिन अंततः पशुमत शेर की पार्टी के पक्ष मे रहा.हाथी को विपक्ष का नेता चुना गया और शेर की सरकार बनी.सियारों को प्रमुख मन्त्रालय दिये गये----क्योंकि चुनाव के दौरान उन्ही की ब्युहरचना और लिखे गये भाषण काम आये थे.
आमसभा मे हाथी ने चमचों को मंत्रालय दिये जाने पर सरकार की आलोचना की और यह भी आरोप लगाया कि जिन क्षेत्रों मे शेर की पार्टी को सीटें नही मिली उन क्षेत्रों से किसी को भी मंत्री नही बनाया गया।इस पर शेर शांत रहा और यह कहते हुए हंस दिया कि जब हाथी का शासन था तो वे सत्ता पाकर उनमत्त हो गये थे और बेरहमी से छोटे जानवरों को कुचल दिया था.इस पर विपक्ष मे बैठे जानवरों ने शोर मचाना चालू कर दिया.शेर भी आखिर शेर था, वह अपना मूल स्वभाव कैसे भूल सकता है.वह भी गुर्राने लगा. तभी एक मंत्री आकर शेर के कानों मे फ़ुसफ़ुसाया "महोदय ,मिडियावाले देख रहे हैं.यहां जो कुछ भी होता है उसमे मसाला लगाकर टेलीविजन के जरिये छोटे जानवरों को दिखाये जाते हैं. राजनीति यही कहता है कि सबके सामने सबको बोलने दो लेकिन अकेले मे जो विरोध करे उसकी जुबान काट लो.भरी सभा मे विरोध हो तो हंस्कर टाल दो और रात के अंधेरे मे विरोधी को पांव तले कुचल दो".शेर को थोडी बहुत राजनीति की बातें समझ मे आ रही थी.आखिर उसकी पुलिस-कुत्तों की फ़ौज, उसके जेब मे है और काली बिल्ली न्यायालय चलाती है.अकेले दम पर वह हजारो जानवरों को अपना शिकार बना सकता है.तभी विपक्ष से एक जानवर खडा हुआ और बोलने लगा "आप सभी जानवरों को सस्ते दर पर चारा कहां से देंगे जबकि आपके मंत्री खुद चार खा जाते हैं?". दुसरा बोला "जानवरों को बेवकूफ़ बनाकर पचासो साल से आप राज करते रहे,इतने दिनो मे आप ने क्या किया?".एक एक कर सभी जानवर बोलते रहे और शेर शांत भाव से सुनता रहा.फ़िर सभा क विसर्जन कर दिया गया.सायंकाल मिडियावालों को शेर ने अपने आवास पर बुलाकर बहुत अच्छा भोज दिया.उन्हे बकरे की मीट और मुर्गे की टांग पडोसी गयी.रात मे टीवी पर विपक्ष मे बैठे जानवरों के दुर्व्यवहार की खिल्ली उडायी गयी. सरकार की दूरदृष्टि की प्रशंसा की गयी.शेर की ईमानदारी और सहनशीलता की सराहना हुई.
रात के बारह बज चुके थे।काम करते करते शेर थक चुका था.वह बहुत भूखा था.मिडियावालों के साथ यह कहते हुए वह खाना नही खाय था कि उसने मांसाहार छोड दिया है.दिन के सर्वदलीय भोज मे पनीर की सब्जी जो उसे पसन्द नही है,यह बहान बनाकर नही खाया था कि आज उसे उपवास है.राजनीति का मतलब यह नही होत कि राज करनेवाला भूखा रहे और बांकी सभी मौज करें.उसे सियारों की यह राजनीति पसंद नही आयी.तभी एक सियार शेर के पास आया और भोजन-गृह मे पधारने का अनुरोध किया.सभी जानवर अपने-अपने घरों मे चले गये.शेर का भोजन-गृह जो कि एक अंधेरी गुफ़ा की तरह था-मे शेर प्रवेश कर गया.गुफ़ा मे घुसते ही स्वादिष्ट खाने का गंध उसकी नाक तक पहुंचने लगा.डरी हुई कई छोटी-छोटी निरीह आंखे अंधेरी गुफ़ा मे भी चमक रही थी.शेर मुस्कुराने लगा---अब उसे राजनीति अच्छा लगने लगा था.
- अरविन्द झा
बिलासपुर
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
‘दुर्गा सप्तषती रत्नाकर’ का लोकार्पण
दरभंगा
सोमवार, 14 सितंबर 2009
हिन्दी बनाम हिंगलिश
शनिवार, 12 सितंबर 2009
साहब की सोच
बिलासपुर
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
भाषाई उहापोह
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
स्वाइन फ्लू : खतरा टला नहीं
कोई भी बीमारी महामारी तभी बनती है जब लोगों को बीमारी की वजह और उससे बचाव के तरीकों का ज्ञान न हो। कुछ ऐसा ही स्वाइन फ्लू के साथ भी है। अधिकांशतः लोग, जिसमें पढे लिखे लोग भी शामिल हैं, य्ाही जानते हैं कि य्ाह बीमारी सुअर से फैलती हैं। भारत के दूरस्थ गांवों में तो शाय्ाद डाक्टरों को भी इसके लक्षणों और बचाव के तरीकों के बारे में सटीक पता न हो। कुछेक अगर य्ाह जानते भी हों कि बीमारी के लक्षण क्य्ाा हैं तो भी उन्हें इसके सही इलाज और बचाव बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में अगर इस बीमारी ने भारत में महामारी का रूप ले लिय्ाा है तो इसमें किसी को कोई आश्चयर््ा नहीं होना चाहिए। पहले भारतीय्ा स्वास्थ विभाग न तो इस रोग को गंभीरता से ले रहा था और न ही लोगों को इससे बचाने के लिए कोई मुहिम ही छेडी थी। पर जब इससे ग्रसित रिदा शेख ने इस बीमारी से जूझ्ाते हुए दम तोड दिय्ाा तब भारतीय्ा स्वास्थ्य्ा विभाग जागा और इससे गंभीरता से निबटने का दावा कर रहा है लेकिन अब भी दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में भी इससे निबटने के पुख्ता इंतजामों की कमी तमाम सरकारी दावों की पोल खोलती है। इस बीच भारत में इसके रोगिय्ाों की संख्य्ाा दिनों दिन बढती ही जा रही है और साथ ही इससे होने वाली मौतों की भी।
कैसे फैला
स्वाइन फ्लू को मैक्सिकन फ्लू, हाॅग फ्लू, य्ाा पिग फ्लू के नाम से भी जाना जाता है। भारत के लिए भले ही य्ाह रोग नय्ाा और अचंभित करने वाला हो पर पश्चिमी देशों के लोग इससे भली भांति परिचित हैं। पर इसके खतरे से वह भी अनजान ही थे क्य्ाोंकि सुअर से य्ाह वाय्ारस किसी व्य्ात्ति€ में होना काॅमन नहीं है। दरअसल इंसान के खून में ऐसी एंटीबाॅडीज पाए जाते हैं जो इसके वाय्ारस को पनपने नहीं देते। फिर अचानक क्य्ाोंकर इंसानी खून में इसके वाय्ारस पनपने लगे, इसपर रिसर्च जारी है।
अबतक य्ाह माना जाता था कि सुअर का मास पकाने के साथ ही स्वाइन फ्लू के वाय्ारस नष्ट हो जाते हैं। पर इंसानों में इसके लक्षण पाए जाने के बाद इस अवधारणा को दरकिनार कर दिय्ाा गय्ाा है। य्ाह रोग उन लोगों में पहले फैलता है जो सुअर पालते हैं और सुअर के साथ काम करते हैं। फिर य्ाह रोग संपर्क में आने पर एक व्य्ात्ति€ से दूसरे में आसानी से फैल जाता है। सुखद य्ाह है कि अब तक भारत के सुअर में इसके वाय्ारस नहीं पनपे हैं। भारत में अब तक जितने भी संक्रमित व्य्ात्ति€ मिले हैं वह य्ाह संक्रमण विदेशों से लेकर आए हैं।
प्रकार
20 वीं शताब्दी में स्वाएन फ्लू को पहचाना गय्ाा। 1918 में फ्लू पेनडेमिक के नाम से पहचाना जाने वाला य्ाह रोग ही 2009 में स्वाइन फ्लू के नाम से पहचाना जाता है। एच1एन1, एच1एन2, एच3एन1, एच3एन2, एच2एन3, आदि इसके मुख्य्ा प्रकार हैं जो सुअर में पाय्ाा जाता है। इसके अलावा एच5एन1 कई पक्षिय्ाों में भी पाय्ाा जाता है। अभी लोगों में जो वाय्ारस फैल रहा है वह ए टाइप का वाय्ारस है जो एच1एन1 का ही एक प्रकार का है।
रोग के लक्षण
इसके लक्षण भी सामान्य्ा फ्लू की तरह ही होते हैं जैसे तीप ज्वर, सर्दी, गले की खराश, शरीर में ऐंङ्गन, सरदर्द आदि। ध्य्ाान रखने वाली बात य्ाह है कि स्वाइन फ्लू भी आम फ्लू की तरह ही फैलता है और फ्लू के फैलने का लिए य्ाह मौसम सबसे उत्तम है। य्ाानी बारिश और गर्मी के इस संक्रमण काल में य्ाह और भी तेजी से पनप सकता है। दुखद य्ाह है कि अब तक इससे बचाव के लिए न तो कोई दवा बनी है और न ही कोई वैक्सीन, इसलिए समझ्ादारी इसी में हैं कि इससे खुद को बचाय्ाा जाए।
कैसे बचें
µप्रय्ाास करें कि इसके रोगिय्ाों से दूर रहें। अगर फिर भी आपको य्ाह रोग हो जाता है तो दूसरों को इससे बचाएं।
µअगर आपके आसपास रोग के फैलने की संभावना हो तो अपना नाक और मुंह अच्छी तरह से ढककर रखें खासकर खांसते और छींकते समय्ा। एक बार इस्तेमाल करने के बाद रूमाल फेंक दें।
µ खांसने और छींकने के बाद अपने हाथों को साबुन से धोए
µआखों, मुंह और नाक को छूने से बचे अन्य्ाथा इसके वाय्ारस आसानी से आपके शरीर पर कब्जा जमा लेंगे।
µबीमार लोगों से दूर रहने का प्रय्ाास करें।
µरोगी व्य्ात्ति€ अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाए और जब तक वह पूरी तरह से ङ्खीक नहीं हो जाता तब तक आफिस, स्कूल य्ाा किसी भी भीड भाड वाले स्थानों पर न जाएं।
य्ाह रोग पश्चिमी देशों जैसे य्ाूनाइटेड स्टेट, य्ाूरोप, मैक्सिको, कनाडा, दक्षिण अमेरिका और एशिय्ाा के कुछ देश (चीन, ताइवान, और जापान) के सुअरों में आम है। भारत इस लिहाज से सुरक्षित रहता अगर य्ाह रोग विदेश से लौटने वाले अपने साथ न लाते तो। भारत में पहले जो भी व्य्ात्ति€ पाजिटिव पाए गए हैं वह सभी विदेशों से लौटे थे। पर धीरेµधीरे उनके वाय्ारस य्ाहां के अन्य्ा लोगों में भी पनपने लगे। भारत में पहले स्वाएन फ्लू का केस केरल में मिला। एक 54 वर्षीय्ा डाक्टर और उसका 24 वर्षीय्ा पुत्र्ा जब ब्रिटेन से भारत लौटे तो अपने साथ स्वाइन फ्लू के वाय्ारस लेकर आए। इसी तरह दुबई से आने वाली एक महिला में भी स्वाइन फ्लू के वाय्ारस पाए गए हैं। आश्चयर््ा तब हुआ जब गुडगांव की एक 12 और एक 7 वर्षीय्ा बच्ची में भी इसके वाय्ारस पाए गए। कहना गलत न होगा कि इसके वाय्ारस किसी भी उम्र के लोगों में हो सकता है। अब तक इसके रोगी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, कोच्चि, गुडगांव, पुणे, हैदराबाद जैसे शहरों में पहचाने गए हैं। य्ाह वही शहर है जहां विदेशी जहाज ज्य्ाादा आते हैं। इनमें सबसे ज्य्ाादा केस पुणे में सामने आएं हैं।
अगर केन्द्रिय्ा स्वास्थ्य्ा विभाग के आकडों पर गौर करें तो अब तक भारत में इसके रोगिय्ाों की संख्य्ाा सैकडों में पहुंच चुकी है। जिस तेजी से य्ाह स्कूलों और कालेजों में फैल रहा है उसे देखकर तो य्ाही लगता है कि अगर जल्द ही इस पर काबू न पाय्ाा गय्ाा तो भारत के लिए इस महामारी से निबटना काफी मुश्किल होगा क्य्ाोंकि आजकल भारत की जैसी जलवाय्ाु है उसमें फ्लू के फैलने की संभावना दोगुनी हो जाती। उसपर भारत की विशाल जनसंख्य्ाा भी सोन पे सुहागे का काम करेगी। हालांकि इस बीमारी के वाय्ारस अब भी भारत में नहीं पनपे रहें हैं पर एक व्य्ात्ति€ से दूसरे में बडी ही तेजी से पनप रहे हैं। भले ही य्ाह रोग विदेशी धरती से आय्ाा है पर अगर य्ाह लगातार य्ाूं ही पनपता रहा तो भारत के लिए य्ाह भीषड महामारी का रूप अख्तिय्ाार कर सकती है। इसलिए इससे घबराने की बजाय्ा, जरूरत है जरा सी सावधानी बरतने की य्ाानी इस गंभीर बीमारी से डरने की बजाय्ा इससे बचने के उपाय्ा करना ज्य्ाादा लाजमी है क्य्ाोंकि इलाज से बचाव बेहतर है।
- नीलम शुक्ल देवांगन
बुधवार, 9 सितंबर 2009
ईशारा
bilaspur
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
वेदना
सोमवार, 7 सितंबर 2009
चांद
तभी उसकी मां चिल्लाती हुई आई और उसके बालों को पकडकर खीचने लगी।"उधर तेरा बाप बीमार है,घर मे खाने को कुछ भी नही है और इधर तु साहेब लोगों की कविता सुन रही है."फ़िर उसने खिडकी से झांकते हुए पुनम की चांद को देखा और कहने लगी"देखो तो आज ये चांद कितन बदसुरत लग रहा है,इसका रंग गर्म तवे की तरह लाल है."
- अरविन्द झा
बिलासपुर
09752475481