शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

बढेगा नीतीश का यश, लालू की गृहदशा रहेगी खराब

वर्ष 2012 बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि में कोई बदलाव के संकेत नहीं दे रहा है। ज्योतिष की नजर से देखें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यश यात्रा जारी रहेगी। वे पूरे वर्ष ऊर्जावान बने रहेंगे और सफलता हासिल करते रहेंगे। वहीं बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान की ग्रह दशा ठीक उलट है। लालू प्रसाद यादव इस वर्ष राहू की दशा से बाहर नहीं निकलेंगे और उनकी परेशानियां दूर नहीं हो पाएंगी। रामविलास पासवान की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती है और वे विरोधियों के बढ़ते प्रभाव से परेशान रहेंगे।

नीतीश कुमार की राशि वृश्चिक है और कुंडली में शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा। इसके बावजूद उनकी यश और कीर्ति पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ने वाला है। वर्ष की शुरूआत में उदर विकार और मानसिक अशांति के दौर से गुजरने की आशंका है। राशि का मालिक मंगल जून महीने तक कर्म भाव में रहेगा जिससे मुख्यमंत्री अपने सभी कार्यो को सफलता पूर्वक अंजाम देते रहेंगे।

विरोधी उनपर कुछ दबाव बनाने की कोशिश करेंगे लेकिन नीतीश कुमार राज्य के विकास मार्ग पर बढ़ते रहेंगे। हालांकि उन्हें अपने विश्वासपात्रों से सतर्क रहने की जरूरत होगी। वर्ष के अंत तक मुख्यमंत्री को ऊर्जा के क्षेत्र में सफलता मिल सकती है। कुंडली में शनि 12वें घर में और व्यय भाव में होने की वजह से उन्हें राज्य के विकास में धन की कमी भी महसूस हो सकती है। इस वर्ष के उनके खर्च बढ़ेंगे। शनि धन भाव को भी देख रहा है इस लिए केन्द्र से उनकी धन की लड़ाई जारी रहेगी।

लालू प्रसाद यादव मेष राशि के हैं। पूरे वर्ष वे राहू की विपरीत ग्रह दशाओं से परेशान रहेंगे। इस वजह से वे आर्थिक और मानसिक तौर पर परेशान रहेंगे। उनके घर में मांगलिक कार्य हो सकते हैं। संतान पक्ष से दायित्वों में कमी आयेगी। जीवन साथी से मतभेद होंगे और स्वास्थ्य के प्रति चिंता बरकरार रहेगी। पूरे वर्ष वे राजनीतिक रूप से सबल होने का प्रयास करते रहेंगे पर कोई खास सफलता मिलने की संभावना नहीं है।

इस क्रम में सहयोगियों से भी उनके मतभेद हो सकते हैं। उनके लिए उचित होगा कि अपने सलाहकारों का सम्मान करते रहें। वर्ष के अंत में राजनीतिक सफलता मिलने के आसार हैं इसके लिए उन्हें जन-मानस के बीच में बने रहने की जरूरत होगी। वाणी पर संयम भी सफलता की राह दिखा सकती है।

रामविलास पासवान तुला राशि के हैं। राशि का स्वामी शुक्र संतान भाव में है जिससे उन्हें पूरे वर्ष संतान से खुशी मिलेगी। शनि की साढ़ेसाती का पूर्ण प्रभाव होने के कारण राजनीतिक जीवन संकट में रहेगा। उनके विरोधियों का प्रभाव बढ़ेगा जो मानसिक परेशानी का कारण बनेगा। अप्रैल महीने में शुक्र अष्टम भाव में होगा और केतु के साथ रहेगा। यह योग उनके राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

जून महीना रामविलास पासवान को कुछ शांति देगा लेकिन जुलाई में मंगल व्यय घर में होगा जिससे उन्हें धन की कमी हो सकती है। उन्हें नए सहयोगियों से भी कुछ खास सफलता नहीं मिलेगी। अक्टूबर महीने से उनकी व्यवस्था बढ़ सकती है। यात्रा एवं प्रवास के योग रहेंगे। मांगलिक कार्यो में हिस्सा लेने से राविलास पासवान का मन प्रसन्न होगा और पारिवारिक दायित्व बढ़ेगा।

साभार : दैनिक भास्कर

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

खाद्य सुरक्षा पर भाकपा का हल्ला बोल

जब सरकारी नीतियों के परिणामस्वरूप देश की जनता महंगाई और खाद्यान्न को लेकर त्राहि-त्राहि कर रही है तो विपक्षी दल जनहित के मुद्दे पर आगे आती है। इसी सोच के तहत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 15 दिसंबर को अब खाद्य सुरक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। भाकपा के महासचिव ए.बी. वर्धन का कहना है कि गत दिनों पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में हमने इसे मनाने का निर्णय किया है।
इस कार्यक्रम के सिलसिले में भाकपा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सर्वव्यापी बनाने, केवल लक्षित गु्रपों को सब्सिडी पर खाद्यान्न मुहैया कराने की व्यवस्था को समाप्त करने और कैश ट्रांसफर पर रोक लगाने की मांग के साथ देश भर में रैलियां निकालेगी। इस दरम्यान प्रदर्शन और जनसभाओं का आयोजन भी किया जाएगा। पार्टी महासचिव ए.बी. बर्धन का कहना है कि कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल की राह में रोड़े अटकाने के प्रयास जारी हैं। वर्तमान में यूपीए सरकार कहती कुछ है, करती कुछ है। उसकी कथनी और करनी में एकरूपता कम देखने को मिल रही है। केवल इतना ही नहीं, सरकार गरीबी की अवधारणा को तोडऩे-मोडऩे का प्रयास भी कर रही है। उसने गरीबों के बीच भी बंटवारा कर दिया है-बीपीएल और एपीएल। साथ ही, सरकार सब्सिडी वाली अनिवार्य सामग्रियों की सप्लाई को सुनिश्चित करने के बजाय सीधे कैश ट्रांसफर लाने की योजना बना रही है।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर, यह सच है कि अन्ना हजारे आंदोलन ने इस आंदोलन को फोकस में ला दिया है। हमारी पार्टी को भी इस बात का श्रेय जाता है कि उसने 21 अक्टूबर को कारगर एवं मजबूत लोकपाल बिल लाने की मांग करते हुए राष्ट्रव्यापी भूख हड़ताल आयोजित की। राष्ट्रीय कायज़्कारिणी ने अपने इस दृष्टिकोण को दोहराया और सरकार से मांग की कि वह संसद की शीतकालीन सत्र में मजबूत लोकपाल बिल पारित कराये। मीटिंग में इस बात की चेतावनी दी गयी कि यदि चालू सत्र में मजबूत लोकपाल बिल नहीं लाया जाता तो देशव्यापी आंदोलन तेज किया जायेगा। दोहरे अंकों तक पहुंच चुकी और जनता के जीवन को दुश्वार बनाने वाली पेट्रोल की कीमतों में लगातार वृद्धि का विरोध करते हुए बर्धन ने कहा कि सरकार को आम जनता के हित में ईंधन की कीमतों के विनियमन और विनियंत्रण को वापस लेना चाहिए।
दरअसल, राजनीतिक रूप से सरकार भटकाव की शिकार है। ऐसे बहुत से मसले लटके पड़े हैं जिन पर सरकार फैसले लेने में नाकामयाब रही है। बर्धन ने इसके बड़े उदाहरण के रूप में तेलगांना मुद्दे का उल्लेख किया और कहा कि किसी को नहीं पता सरकार जिस सलाह-मशविरे की दुहाई दे रही है वह किस स्टेज में है। तेलंगाना एक गंभीर समस्या है। पूरा आंध्र प्रदेश एक महीने से अधिक समय तक ठप्प रहा। एक और उदाहरण उन्होंने मणिपुर में जारी आर्थिक नाकेबंदी का दिया जो 100 दिनों से अधिक समय से जारी है और राज्य की जीवन-रेखा, राष्ट्रीय राजमार्ग पर नाकेबंदी खत्म कराने की लिए कुछ भी नहीं कर रही। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हम युद्ध जैसी स्थिति में हैं कि जरूरी सामान लोगों तक नहीं पहुंच रहा और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है? नागाओं के साथ ऐसी क्या वार्ताएं हो रही हैं जो 20 साल से चल रही है और जो रहस्यों से घिरी हैं। मल्डी ब्रांड खुदरा व्यवसाय में एफडीआई की इजाजत देने के यूपीए-दो सरकार के फैसले की निंदा करते हुएऋ सरकार के पेंशन फंड रेगुलेटरी और डेवलपमेंट अथारिटी बिल लागू करने के हाल के फैसलों का विरोध करते हुए केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा अनुसूचित जाति सब-प्लान और अनुसूचित जनजाति सब-प्लान पर योजना आयोग के दिशा निर्देश के अनुरूप अमल में न लाये जाने पर पार्टी काफी चिंतित है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्न समस्या का सबसे अधिक सामना विकासशील देश कर रहे हैं। सवा अरब आबादी वाले भारत जैसे देश में, जहां सरकारी आकलनों के अनुसार 32 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, अत्यंत शोचनीय है। एफएओ के अनुसार भारत में 2009 में 23 करोड़ 10 लाख लोग चरम भूखमरी का सामना कर रहे थे। आज भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। देश में खाद्यान्न का उत्पादन बड़े स्तर पर होने के बावजूद बहुत बड़ी आबादी भूखमरी का संकट झेल रही है। तेजी से आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत का विश्व भूखमरी सूचकांक में 88 देशों में 66वां स्थान है। भारत से बेहतर भूखमरी से पीड़ित अफ्रीकी देशों नाइजीरिया, कांगों, बेनिन, चाड, सूडान आदि देश हैं। राज्य स्तर पर तो और भी व्यापक असमानता देखने को मिलती है। झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और राजस्थान आदि में भूख एवं कुपोषण से पीड़ित लोगों की संख्या अन्य भागों से अधिक है। आबादी बढऩे एवं खाद्यान्न की स्थिर पैदावार के कारण देश में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत घटती जा रही। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट अनुसार भारत में प्रतिदिन 5000 बच्चो कुपोषण के शिकार होते जा रहे हैं। जन वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को मिलने वाला अनाज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा है। कृषि क्षेत्र लगातार सरकारी उपेक्षा का शिकार हो रहा है। आज देश की अथज़्व्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी मात्र 14 फीसदी है और इस पर 55 फीसदी कामगारों की आजीविका चलती है।
घरेलू आर्थिक स्थिति बहुत गंभीर है। मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र में मात्र 1.4 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गयी है। शायद पिछले कुछ दशकों की यह सबसे नीची वृद्धि दर है। वे दिन लग गये जब हमारे वितमंत्री 8.5 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की वृद्धि दर की बात करते थे। अब वे ज्यादा-से-ज्यादा 7 प्रतिशत की उम्मीद कर सकते हैं। यह सच है कि खाद्य उत्पादन बेहतर है। इसकी वजह प्रकृति की मेहरबानी है। प्रकृति ने अच्छी बरसात की सौगात दी। जहां तक निर्यात का संबंध है उसमें विभिन्न कारणों से कमी आ रही है। पश्चिम के देशों में बाजार की कमी है और वह मंदी से बुरी तरह महीना-दर-महीना, साल- दर- साल बढ़ती महंगाई ने देश के आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है और सरकार को कोई फ्रिक ही नहीं। संसद के शीतकालीन सत्र ने सवज़्सम्मति से प्रस्ताव पारित कर सरकार को निर्देश दिया था कि महंगाई को रोके। पर उसके बाद के महीनों में सरकार के आचरण से पता चलता है कि जनता के लिए जानलेवा बनी निरंतर बढ़ती महंगाई से सरकार को जैसे कोई देश वास्तव में गंभीर संकट में है क्योंकि अर्थव्यवस्था की सभी आधारभूत चीजें, चाहे वह सही या गलत किसी ढंग से देश पर थोपी गयी हों, कमजोर हो रही हैं।

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

अपने-अपने थप्पड़

दरबार में सन्नाटा पसरा हुआ। हर कोई एक-दूसरे का मुंह निहार रहा है। बोलने की हिम्मत नहीं हो रही। आखिर क्या और कैसे बोला जाए? हर कोई महारानी के आने की प्रतीक्षा में...
तभी दरबारियों की जैसे तंद्रा टूटती है। पिछले दरवाजे से महारानी आकर कुर्सी पर बैठ जाती है और उनके पीछे-पीछे दबे पांव चलकर आ रहे प्रधानमंत्री जी भी मौन मुद्रा में हैं। प्रधानमंत्री जी हर ओर निगाहें डालते हैं और चश्मे के ऊपर से मराठी क्षत्रप को तलाशते हैं। कहीं नजर नहीं आते। तब एक संतरी से बुलावा भेजा जाता है।
कुछ ही देर में मुंह लटकाए, मुरझाए से, लाल गाल के संग शेर-ए-मराठा दाखिल होते हैं। हर कोई उनकी गाल को तिरछी नजरों से देख रहा है। उसमें कुछ संवेदना के संग तो कुछ शरारत भरी नजरों से। पर दिक्कत यह कि जब सामे महारानी हों तो शोक भी नहीं प्रगट कर सकते, उनकी तौहीन हो जाएगी। शोक भी प्रगट करने का अधिकार तो पहले मल्लिका-ए-दरबार का ही होता है न... वहीं कुछेक दरबारी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान भी तैर रही थी। हालांकि वह अपनी ओर से छिपाने का भरसक कोशिश कर रहा था।
महारानी की मंशा जानकर वजीर-ए-आजम ने मराठा छत्रप से मुखातिब होते हुए पहले उन्हें एक अदना-सा आदमी द्वारा तमाचा रसीदे जाने पर दुख और संवेदना प्रकट किया। लगे हाथ यह भी पूछा कि कहें तो आपकी सुरक्षा की खातिर एसपीजी की टुकड़ी लगा दूं? एसपीजी के सामने किसी की क्या मजाल जो मेरे- आप तक बिना पूछे घुस जाए? आप कहें तो सही? दरबार आपकी सुरक्षा और सम्मान का पूरा ख्याल रखेगी। उसी के लिए तो आज महारानी भी हमलोगों के सामने है।
मराठा छत्रप ने कहा, आपने जो सम्मान दिया है और जो भावनाएं व्यक्त की है, उसके लिए हम शुक्रगुजार हैं। महरानी का तो हम पर कई ऋण पहले से ही है। जो होना था हो गया। अब कर ही क्या सकते हैं।
तभी दरबारियों में फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। कुछ आपस में बतिया रहे थे। बचपन में थप्पड़ किसी को सुधारने के लिए और बड़े होकर किसी को थप्पड़ लगाना विरोध का प्रतीक है। कम से कम मराठा क्षत्रप के मामले में तो यही लगता है। बड़े शेर बनते थे। महारानी को भी कई बार नीचा दिखाने का प्रपंच रचा था। जो काम महारानी ने दिया था, उस पर ध्यान देते नहीं और विदेश दौरे-क्रिकेट पर ज्यादा जोर था। एक अदना सा इंसान ने ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ लगाया कि किसी को मुंह दिखाने का साहस नहीं जुटा रहे थे। बनते थे शेर, चूहा बनकर दुबक गए अपनी बेटी के घर। वह तो प्रधानमंत्री ही थे जो फोन करके ढांढस बंधाया। और कोई होता तो पूछता भी नहीं...
तभी दूसरे दरबारी ने कहा यह तो विरोधियों की साजिश है। विरोधी भगवाइयों ने ही बयानबाजी कर-करके लोगों को उकसा दिया है। उकसाने में तो उन्हें महारत हासिल है। राजकाज कुछ दिन क्या चला लिया, समझते हैं कि राजकाज के हर दांव-पेंच उन्हें पता है।
उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले एक दरबारी ने महारानी और प्रधानमंत्री की ओर मुंह करके बोलना श्ुारू किया। उसने कहा, महारानी यह विरोधियों की साजिश का परिणाम है। महंगाई तो आज बढ़ी नहीं है। यह हमारी सरकार की विफलता भी नहीं है। यह तो वैश्विक समस्या है। लेकिन भगवाई बार-बार हमारी भोली-भाली जनता को उकसा रहे हैं। दो दिन पहले ही तो एक भगवाई ने
कहा था कि अगर सरकार का यही रवैया रहा तो हम तो नाउम्मीद होंगे ही, देश की जनता भी पूरी तरह नाउम्मीद हो जाएगी। सरकार महंगाई पर कुछ नहीं करेगी। यदि ऐसा होता है तो लोगों का गुस्सा कहीं न कहीं फूटेगा। बड़ी चिंता आम आदमी की स्थिति को लेकर है जो इसे अब ज्यादा बर्दाश्त नहीं करेगा। और हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि महंगाई इस देश में हिंसा का कारण बन जाए। अब प्रधानमंत्री जी ही तय करें क्या कोई इस प्रकार की बात सरेआम कहता है क्या?
तभी दूसरे दरबारी ने कहा, महारानी इतना ही नहीं, कुछ लोग तो इसे युवराज वाली घटना से भी जोड़ रहे हैं।
युवराज वाली घटना? हर दरबारी का दिमाग सन्न रह गया। इसमें युवराज कहां से आ गए? युवराज को लेकर यदि कहीं तीन-पांच हो भी गया तो महारानी के सामने क्यों कहा जाए। मगर तभी महारानी ने कहा, बोलो दरबारी क्या चर्चा हो रही है अवाम में...
जी महारानी, यदि आप बुरा न मानें तो कहूं?
बोलो...
जी...कुछ ही दिन हुए हैं जब युवराज देश के सबसे बड़े प्रदेश के दौरे पर थे। रैली होनी थी। आपकी दुआ से सब व्यवस्था चाक-चौक चौबंद थी। मगर... विरोधियों ने युवराज के दौरे में खलल डालने की कोशिश की। सो, हमारे ही दो वरिष्ठ दरबारियों ने जिन्हें आपने ने कुछ महकमों का दायित्व भी दिया हुआ है, एक आम आदमी पर लात-घूंसा बरसाने लगा।
अचानक प्रधानमंत्री बीच में कूद पड़े। हाथ जोड़कर बड़े विनम्र भाव से बोले, महारानी इस घटना की पूरी तस्दीक मैंने कराई। युवराज की कोई गलती नहीं थी। दोनों दरबारियों को कारण-बताओ नोटिस भी जारी किया हुआ है। बस, कुछ ही देर में उसका जबाव भी आता होगा।
लेकिन, महारानी को लगा जैसे किसी दरबारी की घटना में युवराज का नाम घसीटकर उनके गाल पर भी थप्पड़ लगाया गया है। महारानी मन ही मन सोचने लगी। चूंकि थप्पड़ एक आदमी की तरफ से आया है और इसकी लाइव टेलिकास्ट तमाम संचार माध्यमों पर अगले ही पल हो गई, लिहाजा अदना-सा इंसान से दरबारियों की बयानबाजी हो रही है। वह सोच रही थी यह मराठा छत्रप पर नहीं बल्कि आम आदमी की ओर से 'उनकी पावरÓ पर लगाया गया है। महरानी को गुन-धुन की मुद्रा में देखकर प्रधानमंत्री ने फौरन दरबार की कार्रवाई को अगले आदेश तक के लिए बर्खाश्त कर दिया। पर हर दरबारी यही सोचने लगा कि कहीं युवराज का नाम ले-कर उन्होंने महारानी को ही तो थप्पड़ नहीं लगा दिया।

मार-कुटाई के संग सियासी राग

राम...राम इतवारी लाल जी, कहां से आ रहा हैं? मौसम सर्द होने को बेताब है और आपके चेहरे पर पसीना? सबकुछ ठीक-ठाक हैं न...
हां, भई, कुछ ठीक भी कह सकते हैं। और नहीं भी। अभी-अभी नागपुर से लौटा हूं।
नागपुर? संतरा लेने गए थे क्या?
अरे, भई आप भी न... संतरा तो अपनी दिल्ली में भी सस्ती हो गई है। तो भला उसके लिए नागपुर क्यों जाऊं। मैं तो गया था वसंतराव देशपांडे हॉल में टीम अन्ना को सुनने। वहां की खबरें जानने। शीतलकालीन सत्र भी आने को है न... सो, मन में जिज्ञासा हुई कि टीम अन्ना की हरकत को देखूं। मगर, क्या बताएं? हरकत में तो वहां के लोग दिखे।
जो वसंतराव देशपांडे हॉल अब किसी बड़े राजनेता के भाषणवाजी में नहीं भरता, वह टीम अन्ना के महारथी अरविंद केजरीवाल के कारण भर गया। एकदम ठूंस-ठूंस कर लोग भरे थे। फिर भी जिन्हें जगह न मिली वो हॉल के बाहर बड़े-बड़े स्क्रीनों पर केजरीवाल को देख-सुन रहे थे। अरे बाप, काफी दिनों बाद यह हॉल इतना भरा था। स्थानीय लोगों को भी यह भान नहीं था कि आखिरी दफा कब इतनी हुजूम यहां जुटी थी।
सच। दिल्ली में तो चर्चा है कि वहां भाजपा-कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जूतम-पैजार तक हो गई?
हां भई। ऐसी ही नौबत थी। मगर, तिल को ताड़ कैसे बनाया जाता है, यह तो दिल्ली दरबार की खासियत रही है। जनता से सरोकार नहीं और बेमतलब का बखेड़ा। दरअसल, केजरीवाल का भाषण खत्म हुआ वैसे ही बाहर खड़े दस-पन्द्रह लोगों ने काले झंडे लहराने शुरु कर दिये। जो बाहर खड़े होकर भाषण सुन रहे थे उन्होंने काले झंडे दिखाने वालो को मारना-पीटना शुरु कर दिया। बस, दिल्ली में बैठे लोग चिल्लाने लगे कि कांग्रेसी और भाजपाई में जूतम-पैजार हो गई।
सच तो यह है कि नागपुर के इस हॉल में दोनों दल की डायरेक्ट एंट्री नहीं थी इस कार्यक्रम में। कार्यक्रम तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने किया था। मुख्य आयोजक की भूमिका में नागपुर के बिजनेसमैन अजय सांघी थे। प्रत्यक्ष तौर पर जिनका कोई ताल्लकुत राजनीति में अभी तक नहीं है। आने वाले दिन में कौन सा बिजनैसमेन किस पार्टी का दामन थाम ले, ये तो अभी कह नहीं सकता न...
ये बात तो हर कोई जानता है न कि कांग्रेस के एक पूर्व मुख्यमंत्री आजकल टीम अन्ना के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला था। लगता है कि अचानक उन्हें कुछ घूंटी पिलाई गई है, इसीलिए तो वह खुलकर बोल नहीं पाते। मगर राजनेता बोलने से जाए तो जाए, लेकिन राजनीति करने से न जाए... ये बात तो हर कोई जानता ही है। दरअसल, जंतर-मंतर से टीम अन्ना का जो स्वरूप अस्तित्व में आया वह रामलीला मैदान में अपने विराट स्वरूप का अक्स दिखा दिया। केवल सत्ताधीशों को ही नहीं, बल्कि पूरी संसदीय व्यवस्था के नुमांइदें को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। सियासी गलियारों में हाय-तौबा मचनी शुरू हो गई। यह अनायास थोड़े ही था कि जो प्रधानमंत्री 18 अगस्त को संसद में अन्ना हजारे के आंदोलन को देश के लिये खतरनाक बता रहे थे, वही प्रधानमंत्री 28 अगस्त को पलट गए और समूची संसद ने अन्ना से अनशन तोडऩे की प्रार्थना की। बस...टीम अन्ना के हौंसले इस कदर बुलंद हो गए कि उन्हें लगना लगा...हम ही हैं रक्षक। नए भारत के निर्माता। इस सोच को भोंपू ने भी आमजनता तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोग-बाग टीम अन्ना को तारणहार मानने लगे। और जब इंसान भगवान के रूप में आ जाता है तो साथ में वह अहंकारी भी हो जाता है। अहंकार दुराचार का मार्ग खोलता है। शक्ति उसका संवर्धन करती है।
अरे, इतवारी लाल जी, आप तो दर्शन बताने लगे?
काहे का दर्शन... देश के सामने आज कुछ ऐसी ही परिस्थिति है। यह परिस्थितियां देश के सामने कुछ नये सवाल खड़ा करती हैं। जनलोकपाल को लेकर आम जनता के मन में यह बात घर कर बैठी है कि इसके आने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और भ्रष्टाचार खत्म होते ही महंगाई छू-मंतर हो जाएगी। तभी तो आम आदमी टीम अन्ना में अपना अक्स देख रहा है।
अब चूंकि छह प्रदेशों में चुनावी बिगुल बजने भर का देर है। महंगाई और भ्रष्टाचार के कारण राष्ट्रीय स्तर पर भी रूक-रूक कर मध्यावधि चुनाव की संभावना तलाशी जा रही है। इस हालात में चुनावी राजनीति की धुरी जनलोकपाल के सवाल पर टीम टीम है। कांग्रेस को इसमें राजनीतिक घाटा तो भाजपा को राजनीतिक लाभ नजर आ रहा है। जनलोकपाल आंदोलन से पहले सरकार इतनी दागदार नहीं लग रही थी और भाजपा की सड़क पर हर राजनीतिक पहल बे-सिर पैर की कवायद लग रही थी। देश का आम आदमी, जिसकी अहमियत केवल चुनावों तक जैसे सीमित हो चुकी लगती है, उसे कांग्रेस को लेकर यह मत था कि यह भ्रष्ट है। मगर भाजपा के जरिये रास्त्ता निकलेगा ऐसा भी किसी ने सोचा नहीं था। लेकिन अन्ना आंदोलन ने झटके में एक नयी बिसात बिछा दी।
इसी बिसात की एक चाल तो नागपुर में दिखी। वरना क्यों कोई काले झण्डा दिखाता और क्यों नाहक मार-कुटाई होती। भोंपू को तो मसाला चाहिए। सो, कह दिया गया कि जिसने काले झण्डे दिखाए वह कांग्रेसी और जिसने मार-कुटाई की वह भाजपाई। एक तरफ कांग्रेस की झपटमार दिग्विजयी राजनीति ने भाजपा और संघ में जान ला दी तो दूसरी तरफ भाजपा की चुनावी राजनीति ने सरकार की जनवरोधी नीतियों से हटकर कांग्रेस की सियासी राजनीति को केन्द्र में ला दिया।