सोमवार, 20 सितंबर 2010
अपनों के निशाने पर गडकरी-भागवत
शनिवार, 11 सितंबर 2010
मचेगा बिहार में घमासान
बहरहाल, चुनाव आयोग के तयशुदा कार्यक्रम के तहत पहले चरण में 21 अक्टूबर को मतदान होगा। पहले चरण में 47 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। जबकि दूसरे चरण का मतदान 25 अक्टूबर को होगा और दूसरे चरण में 47 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। 28 अक्टूबर को तीसरे चरण का मतदान होगा जिसमें 48 सीटों, 1 नवंबर को 42, नौ नवंबर को 35 सीटों के लिए तथा 20 नवंबर को 26 सीटों के लिए मतदान होगा। कुल 243 सीटों के लिए मतदान के बाद 24 नवंबर को मतगणना की जाएगी।
दिल्ली में जैसे ही बिहार के लिए चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा की गई, पटना में चुनावी चाल तैयार किए जाने लगे। कुल 243 सीटों वाले बिहार विधानसभा का चुनाव छह चरणों तक खींचे जाने का अनुमान न तो नेताओं को था और न ही सूबे के नौकरशाहों को। नेता छह चरणों में चुनावों की घोषणा का तो इस्तेकबाल कर रहे हैं, लेकिन दशहरा, दिवाली और बिहार का सबसे पावन पर्व छठ के बीच चुनाव की घोषणा को वे गलत करार दे रहे हैं। चुनावों के बरक्स आयोग की घोषणा के साथ ही विभिन्न दलों के नेताओं ने छठ के ठीक पहले पांचवें चरण के चुनाव की तारीख में तब्दीली करने की मांग कर दी है।
सूर्य की उपासना का पर्व छठ नहाय खाय, खरना और सूर्य को एक दिन शाम को और दूसरे दिन सूर्योदय के समय अघ्र्य के साथ तीन दिनों में संपन्न होता है। काबिलेगौर है कि व्रत की तैयारी हफ्ते भर पहले से चलती है इस बीच माना जा रहा है कि विभिन्न दलों के प्रत्याशी चुनाव प्रचार नहीं करने के स्थिति में रहेंगे। जदयू अध्यक्ष शरद यादव का कहना है कि चुनाव आयोग को छठ के ठीक पहले पांचवें चरण के चुनाव की तारीख बदलनी चाहिए। बिहार में छठ पर्व की महत्ता को देखते हुए 9 नवंबर को पांचवें चरण का चुनाव कराना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं।Ó 5 नवंबर को दिवाली के छह दिनों के बाद छठ का पर्व होने के कारण तारीख आती है 11 नवंबर। माना जा रहा है कि व्रत का त्योहार तीन दिनों तक चलने का स्पष्ट असर चुनाव प्रचार पर पड़ेगा। ज्यादातर प्रत्याशियों को इस बात की भी चिंता सता रही है कि चुनावों के बीच आने वाले पर्व के कारण वोटरों तक अपनी बात असरदार तरीके से कैसे पहुंचाई जाए! राजद, लोजपा, भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं ने अलग-अलग बातचीत में स्वीकार किया कि कुछ चुनाव की कुछ तारीखों पर आयोग से बातचीत कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जाएगी। औसतन हर चरण में 40 सीटों पर चुनाव की तैयारी आयोग ने की है।
गौरतलब है कि एस.वाई. कुरैशी के मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा। चुनाव आयोग राज्य का पहले ही दौरा कर चुका है और वहां चुनाव की तैयारियों खासकर फोटो पहचान पत्र और मतदाता सूची के संशोधन कार्यो का जायजा ले चुका है। चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए चुनाव आयोग ने पिछले दिनों केंद्रीय गृह सचिव जी.के. पिल्लई के साथ सुरक्षा इंतजामों पर चर्चा की थी। पिछली बार यानी वर्ष 2005 में बिहार विधानसभा के चुनाव चार चरणों में कराए गए थे, जबकि 2000 के विधानसभा चुनाव तीन चरणों में हुए थे। 2005 में राज्य में दो बार विधानसभा चुनाव हुए थे। पहली बार फरवरी में मतदान हुआ था और किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। राज्य में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू भाजपा गठबंधन पिछले पंद्रह वर्षो से सत्ता में काबिज लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राजद को जबर्दस्त शिकस्त देते हुए सत्तारूढ़ हुआ था। आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ जदयू भाजपा गठबंधन का मुख्य मुकाबला लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली राजद लोजपा गठबंधन से होगा। लंबे समय से सत्ता से बहार रही कांग्रेस भी इस बार पूरे दमखम से चुनाव मैदान में होगी। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी कांग्रेस ने राज्य की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा की है। उधर, वामपंथी पार्टियां माकपा, भाकपा और माकपा माले मिलकर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही हैं। इन दलों के बीच अगले सप्ताह सीटों का तालमेल होने की उम्मीद है।
नीतीश कुमार ने मांग की है कि लोग चुनाव की प्रक्रिया में भयमुक्त होकर भाग लें तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न हो सके इसके लिए शत-प्रतिशत मतदान केंद्रों पर केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती की जाए।गौर करने योग्य यह भी है कि अभी भी बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं भाजपा के बीच जो रस्साकशी चल रही है, उसकी जड़ में मुस्लिम वोटों की राजनीति है। जहां एक ओर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विवादास्पद विज्ञापन एक रणनीति का हिस्सा था, तो वहीं नीतीश कुमार का बाढ़ पीडि़तों के लिए मोदी द्वारा दी गई 5 करोड़ की राशि लौटाना। बिहार में महादलित का कार्ड चलने के बाद नीतीश अब मुस्लिमों को अपने पाले में खींचना चाहते हैं और यह तभी संभव है जब वह भाजपा के कट्टरपंथी चेहरे पर आघात कर आक्रामक रुख अपनाएं। आजकल वह यही कर रहे हैं। बिहार में दलितों और मुस्लिमों के वोटों की संख्या एक-तिहाई के करीब बैठती है। बिहार में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 39 है। नीतीश की निगाह इसी एक-तिहाई वोट बैंक को हासिल करने की है। बिहार में एक पुरानी कहावत है- यहां लोग वोट डालने नहीं जाते बल्कि जाति के लिए वोट डालते हैं। और इसी के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती है। बेशक, इन पांच सालों में विकास कार्य के बल पर नीतिश ने एक नई सोच बनाई है। कुर्मी वोट हालांकि बहुत अधिक नहीं हैं, फिर भी जितने हैं नीतीश के साथ हैं। राज्य में अगड़े वोट बंटे हुए हैं। इस तरह नीतीश इस बार बहुत सोच समझ कर अपनी चाल चल रहे हैं। वह एक नया सामाजिक समीकरण बनाना और उसके बल पर सत्ता में पहुंचना चाहते हैं। बहुत हद तक मुस्लिमों का भरोसा भी एक बड़ा कारण होगा। 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसने 20.46 फीसदी वोटों के साथ 88 सीटों पर जीत हासिल की थी।
यदि वह इस बार अकेले दम पर सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं तो उन्हें 243 सीटों में से 122 सीटों को जीतना होगा। उत्तर-पूर्वी बिहार के कई इलाकों में नीतीश को भाजपा की दरकार हो सकती है। पूर्णिया, किशनगंज, बेतिया, कटिहार, भागलपुर आदि कई जगहों पर एंटी मुस्लिम फीलिंग ने भाजपा को अपने पैर जमाने में मदद की है। यह ऐसे इलाके हैं जहां भाजपा के साथ रहते नीतीश को मुस्लिम वोट मिलना नामुमकिन है। बिहार में मुस्लिमों के वोट पाने के लिए नीतीश को भाजपा का दामन छोडऩा होगा। बिहार में करीब 60 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होते हैं। इसी को ध्?यान में रख नीतीश कह रहे हैं कि यदि बिहार में गठबंधन को बचाना है तो भाजपा को नरेंद्र मोदी और वरूण गांधी को बिहार विधानसभा चुनाव से दूर रखना होगा। लेकिन इन इलाकों में यही दो नेता भाजपा के खेवनहार भी बन सकते हैं। गठबंधन पर फैसले को लेकर आज भाजपा के नेता बैठक कर रहे हैं।
नीतीश के इस नये समीकरण को गढऩे की राह में मायावती एक बड़ा रोड़ा बन सकती हैं। बसपा ने बीते विधानसभा चुनाव में 4.17 फीसदी वोटों के साथ 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। बसपा कितनी सीटें जीतती है, इससे अधिक वह कितनी सीटों पर वोट काटती है, यह बात देखने वाली होगी। राज्सभा के सदस्?य डाक्?टर एजाज अली, जो कि फिलहाल जदयू से निष्?कासित हैं, ने बताया कि बीते लोकसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गठबंधन को मुस्लिमों के वोट नहीं मिले थे। राज्?य में मुस्लिम वोटों की संख्?या 16 फीसदी के करीब है। वह कहते हैं कि राज्?य में मुस्लिम वोट एकतरफा पड़ता है। हालांकि बीते चुनाव में यह लालू और पासवान में बंट गया था।
वहीं, कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार है। पार्टी महासचिव राहुल गांधी के दौरों को लेकर खासी उत्साहित है। सूबे के हरके हिस्से से राहुल गांधी के कार्यक्रम की मांग हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष महबूब अली कैसर ने भी आलाकमान से मांग की है कि राहुल गांधी के ज्यादा से ज्यादा दौरे प्रदेश में हों। प्रदेश अध्यक्ष ने इस बाबत खुद राहुल से भी संपर्क साधा है। इस बीच कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान में कुछ निजी एजेंसियों का भी सहयोग लेने का मन बनाया है और कुछ एजेंसियों को यह जिम्मेदारी दे दी गई है।
हर कोई लुभाने की कोशिश करेगा मुस्लिम को
एशियन डवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा कराए गए इस सर्वे के मुताबिक बिहार में मुस्लिमों की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करती है।हालांकि नीतीश कुमार ने राज्य में मुस्लिमों के शैक्षिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए तालीमी मरकज और हुनर का प्रोग्राम आदि कार्यक्रम चलाए और कब्रिस्तान की घेराबंदी के लिए विशेष फंड की व्यवस्था की। बिहार में यह मामला दंगे भड़कने का सबसे बड़ा कारण बनता रहा है। बिहार के मुस्लिमों में माइग्रेशन एक बड़ी समस्या बना हुआ है। ग्रामीण इलाकों में प्रति 100 मुस्लिम परिवारों में 63 इस समस्या से जूझ रहे हैं। सर्वे में एक और अहम बात यह सामने आई है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मुस्लिमों के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों का भी उन्हें लाभ नहीं मिल पाता। बिहार का मुस्लिम समाज 43 जातियों में बंटा हुआ है। सर्वे में मुस्लिमों को सबसे गरीब समुदाय बताया गया है।सर्वे के मुताबिक 49.5 फीसदी ग्रामीण मुस्लिम परिवार और 44.8 फीसदी शहरी मुस्लिम परिवार गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। 28.04 फीसदी ग्रामीण मुस्लिमों के पास जमीन नहीं है।
बुधवार, 8 सितंबर 2010
हिन्दू धर्म जीवन पद्धति है
हिन्दू धर्म विश्व में सर्वाधिक शालीन, भद्र, सभ्य और ' वसुधैव कुटुम्बकम् Ó की भावना प्रसारित करने वाली जीवन पद्धति है जो किसी संप्रदाय या पंथ से व्याख्यायित नहीं हो सकती। इस जीवन पद्धति के आधुनिक उद्गाता महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, शाहू जी महाराज, लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक, श्री अरविंद, महात्मा गांधी, डॉ. हेडगेवार, वीर सावरकर प्रभृति जननायक हुए। उन्होंने उस समय हिन्दू समाज की दुर्बलताओं, असंगठन और पाखण्ड पर चोट की। तेजस्वी-ओजस्वी वीर एवं पराक्रमी हिन्दू को खड़ा करने की कोशिश की। उन महापुरुषों को आज के नेताओं से छोटा या कम बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता। महात्मा गांधी ने दुनिया में एक आदर्श हिन्दू का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि आज सारी दुनिया भारत को महात्मा गांधी के देश के नाम से जानती है। डॉ. हेडगेवार ने भारत के हज़ारों साल के इतिहास में पहली बार क्रांतिधर्मा समाज परिवर्तन की ऐसी प्रचारक परम्परा प्रारम्भ की जिसने देश के मूल चरित्र और स्वभाव की रक्षा हेतु अभूतपूर्व सैन्य भावयुक्त नागरिक शक्ति खड़ी कर दी। इनमें से किसी भी महानायक ने नकारात्मक पद्धति को नहीं चुना। सकारात्मक विचार ही
उनकी शक्ति का आधार रहा। स्वामी दयानंद सरस्वती ने पाखंड खंडनी पताका के माध्यम से हिन्दू समाज को शिथिलता से मुक्त किया और ईसाई पादरियों के पापमय, झूठे प्रचार के आघातों से हिन्दू समाज को बचाते हुए शुद्धि आंदोलन की नींव डाली। जिसके परिणामस्वरूप हिन्दू समाज की रक्षा हो पाई। स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ ने विश्वभर में हिन्दू धर्म के श्रेष्ठतम स्वरूप का परिचय देते हुए ईसाई और मुस्लिम आक्रमणों के कारण हतबल दिख रहे हिन्दू समाज में नूतन प्राण का संचार करते हुए समाज का सामूहिक मनोबल बढ़ाया।
कोई भी इस सच से इनकार नहीं कर सकता कि हिन्दू धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है। वैसे इसे मानने वाले हर जगह हैं।
हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है, 'हिंसायाम दूयते या सा हिन्दुÓ अर्थात् जो अपने मन, वचन, कर्म से हिंसा से दूर रहे वह हिन्दू है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरों को कष्ट दे वह हिंसा है। सच तो यही है कि हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है, और न ही कोई 'पोपÓ। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं, और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फिऱ भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, हैं इन सब में विश्वास धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं), और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनों कर्म भोग सकता है, और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
हिन्दू विचारों को प्रवाहित करने वाले वेद हैं, उपनिषद् हैं, स्मृतियां हैं, षड्-दर्शन हैं, गीता, रामायण और महाभारत हैं, कल्पित नीति कथाओं और कहानियों पर आधारित पुराण हैं । ये सभी ग्रन्थ हिन्दुत्व के उद्विकास एवं उसके विभिन्न पहलुओं के दर्शन कराते हैं । इनकी तुलना विभिन्न स्थलों से निकलकर सद्ज्ञान के महासागर की ओर जाने वाली नदियों से की जा सकती है । किन्तु ये नदियाँ प्रदूषित भी हैं । उदाहरण के लिए झूठ पर आधारित वर्ण व्यवस्था को सही ठहराने और प्राचीन स्वरूप देने के लिए ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में कुछ अंश जोड़ा गया । ऊँच-नीच की भावना पैदा करने के लिए अनेक श्लोक गढ़कर मनुस्मृति के मूल स्वरूप को नष्ट कर दिया गया । पुराणों में इतनी अधिक काल्पनिक कथाएँ जोड़ी गयीं कि वे पाखण्ड एवं अंधविश्वास के आपूर्तिकर्ता बन गये । आलोचनाओं में न उलझकर किसी भी ग्रन्थ के अप्रासंगिक अंश को अलग करने पर ही हिन्दुत्व का मूल तत्त्व प्रकट होता है । मोटे तौर पर कहा जाए तो सामान्य हिन्दू का मन किसी एक ग्रन्थ से बँधा हुआ नहीं है । जैसे ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है किन्तु वहां जीवन्त संसदीय लोकतन्त्र है और अधिकांश लोकतान्त्रिक प्रक्रिया परम्पराओं पर आधारित है; उसी प्रकार सच्चे हिन्दुत्व का वास हिन्दुओं के मन, उनके संस्कार और उनकी महान् परम्पराओं में है ।
आज हम लोग उसी परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए एकत्रित हुए हैं। पूरे विश्व को एक नया संदेश देना चाहते हैं। पिछले कुछ समय से कई देशों में शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। कई संस्थाओं का अस्तित्व ही इसी पर है। उन लोगों को हम यह बताना चाहते हैं कि शाकाहार को हिंदू सनातन काल से पोषित करते आ रहे हैं। किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक है, क्योंकि शाकाहार का गुणज्ञान किया जाता है। शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है। इसीकारण यह तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के आजकल लगभग 30 प्रतिशत हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे भी गोमांस कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है।
इन तमाम बातों को कहने के पीछे हमारा मुख्य अभिप्राय केवल और केवल एक ही था। आज जो लोग हिंदुओं के विषय में कई प्रकार के दुष्प्रचार कर रहे हैं, भ्रामक जानकारी देने की असफल कोशिश कर रहे हैं, उनको यह बताना चाहते हैं कि हिंदू समाज अनादिकाल से ही अखिल विश्व के लिए सोचता आया है। आज भी वह केवल अपने लिए ही नहीं, सबके लिए सोच रहा है। पूरे विश्व का कल्याण कैसे हो, यही हमारी कोशिश रहती है।
कितने दिन टिकेंगे मुण्डा ?
इससे पूर्व के घटनाक्रम में झारखण्ड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 7 सितंबर को झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। पार्टी के विधायक दल के नेता चुने गए अर्जुन मुंडा ने राज्यपाल एम.ओ.एच. फारूक से मिलकर उन्हें 45 विधायकों के समर्थन की चि_ी दी। झामुमो, आजसू, जनता दल (युनाइटेड) के नेता और दो निर्दलीय विधायक भी उनके साथ थे। गौरतलब है कि बीते 30 मई को शिबू सोरेन के इस्तीफा देने के बाद से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। इससे पहले, पूर्व मुख्यमंत्री मुंडा को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया। पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष रघुबर दास ने इसकी औपचारिक घोषणा की।
कहा यह जा रहा है कि इस तमाम कवायद को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी काफी चौकस थे। इस दफा वह किसी भी प्रकार की चूक नहीं चाहते थे और इसके लिए सख्त हिदायत प्रदेश के नेताओं को दे रखी थी। झारखंड भाजपा अध्यक्ष रघुवर दास से फ़ोन पर बातचीत की और इसके बाद पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाने का दावा पेश किया। हालांकि, झारमंड मुक्ति मोर्चा ने चार सितंबर को संकेत दिया था कि कोई भी पार्टी अगर सरकार बनाने की दिशा में पहल करती है तो वह बिना शर्त समर्थन देगी। इसके बाद मुंडा ने 6 सितंबर की रात 45 विधायकों की हस्ताक्षरयुक्त सूची राष्ट्रीय नेतृत्व को भेजी। उन्होंने हरी झंडी के लिए वरिष्ठ नेताओं अनंत कुमार, राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू से संपर्क किया। दास ने अपने कदम से पार्टी नेतृत्व को कुछ परेशान कर दिया और उन्होंने तीन घंटे देर से पहुंच कर विधायक दल के नेता पद से इस्तीफ़ा दिया। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, देर से संकेत मिलता है कि भाजपा का एक वर्ग सरकार बनाने के प्रति उत्सुक नहीं है, लेकिन पार्टी के निर्देश का पालन किया जाना चाहिए।
सियासी हलकों में कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस की ओर से कोई अड़ंगा नहीं लगाया जाता है तो अर्जुन मुण्डा 10 सितंबर से पहले शपथ ग्रहण कर लेंगे। झारखंड में भाजपा व झामुमो सहयोग से सरकार बनाने के दावा पेश किये जाने के बाद प्रदेश की राजनीति में नयी हलचल पैदा कर दी है। इस पर दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की एक बैठक हुई जिसमें करीब एक घंटे तक झारखंड की राजनीतिक हालात पर चर्चा की गयी। माना जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने राज्य के घटनाक्रम और संप्रग के समक्ष उपलब्ध विकल्पों के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अवगत करा दिया है. इस बैठक में वित्त ंत्री प्रणव मुखर्जी, रक्षा मंत्री एके एंटनी और कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली उपस्थित थे. गौरतलब है कि झामुमो के साथ सत्ता के रास्ते जुदा करने के तीन माह बाद भाजपा ने एकबार फिऱ शिबू सोरेन की पार्टी के साथ मिलकर झारखंड में नयी सरकार बनाने का दावा किया, जिससे कांग्रेसी रणनीतिकारों को काफी ठेस पहुंची है।
राज्य में पिछली राजग सरकार उस वक्त बिखर गयी थी जब राजग में शामिल हुए घटक झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने सीएम पद को लेकर फजीहत पैदा कर दी थी। उस वक्त यह फार्मूला निकाला गया था मुख्यमंत्री पद भाजपा के पास रहेगा और झामुमो तथा आजसू सरकार को समर्थन करेंगे. लेकिन उस वक्त हालात ऐसे हो गये थे कि कोई भी फार्मूला सफल नहीं हुआ और केन्द्र ने 1 जून 2010 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इस घटनाक्रम के बाद भी राज्य में अर्जुन मुण्डा सक्रिय रहे और सरकार बनाने की दिशा में काम करते रहे। सरकार बनाने की दिशा में पहली दफा तब बड़ी कामयाबी मिली जब दो दिन पहले आजसू और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा दोनों ही दलों ने अर्जुन मुण्डा को अपने समर्थन का पत्र सौंप दिया। इसके बाद भाजपा के विधायक दल की एक बैठक हुई जिसमें अर्जुन मुण्डा को सर्वसम्मति से दोबारा विधायक दल का नेता चुन लिया गया। इसके बाद 7 सितंबर को ही मुण्डा ने राज्यपाल फारुखी से मुलाकात करके सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया और 45 विधायकों के समर्थन की चि_ी सौंप दी।
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
क्या सत्ता की दलाल हैं सोनिया गांधी ?
दरअसल, सोनिया गांधी के चौथी बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने के मौके पर एएफपी ने जो खबर जारी की है उसकी हेडिंग लगाता है कि ''इंडियन पॉवर ब्रोकर सोनिया गांधी विन्स प्लेस इन हिस्ट्री बुक्स।ÓÓ खबर के इन्ट्रो में ही एजेंसी लिखती है कि इटली की पैदाइश सोनिया गांधी सत्ता की दलाली को मजबूत करते हुए सोनिया गांधी रिकार्ड चौथी बार अध्यक्ष बन गयी हैं। (Italian-born Sonia Gandhi was elected Friday for a record fourth term as president of India's ruling Congress party, cementing her role as the power broker of the country's politics.)
अपने देश में पॉवर ब्रोकर शब्द राजनीति में किन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसे बताने की जरूरत नहीं है। खुद अमर सिंह भी अपने आप को पॉवर ब्रोकर (सत्ता के दलाल) कहलाना शायद ही पसंद करें, फिर यहां तो सोनिया गांधी सवाल है। वह जो लाखों कांग्रेसियों के लिए देवी की मूर्ति हैं। जिनके आवास 'दस जनपथÓ की देहरी तक पहुंचने को भी कांग्रेंसी किसी तीर्थ स्थान की मानिंद मानते हैं। हालांकि खबर में एक और अतिवादिता की गयी है। सोनिया गांधी को भले ही कांग्रेस के इतिहास में रिकार्ड दर्ज करनेवाला बताया गया है लेकिन खबर के आखिरी पैरे में एजंसी लिखती है कि ''वे इन दिनों राजनीति में अपने 40 वर्षीय बेटे राहुल गांधी के लिए रास्ता तैयार कर रही हैं ताकि 77 वर्षीय मनमोहन सिंह को हटाकर उन्हें अगला नेता बनाया जा सके।ÓÓ (She now is widely thought to be preparing the way for her son Rahul, y®, to become the country's ne&t leader, replacing -year-old Singh.)
आश्चर्य तो इस बात को लेकर भी है कि भाजपा जब लगतार चौथी बार सोनिया गांधी के अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी को लेकर सवाल खड़े करती हैं तो कई सारे कांग्रेसी विरोध में खड़े हो उठते हैं, लेकिन जब एक विदेशी समाचार एजेंसी इस प्रकार के आपत्तिजनक बातें सोनिया गांधी के बारे में लिखती है तो चूं तक नहंी किया जाता है। आखिर क्यों? क्योंकि वह एक विदेशी समाचार एजेंसी हैं? भाजपा के इस बयान पर कि सोनिया गांधी अध्यक्ष पद खुद ही किसी गैर नेहरू गांधी परिवार के व्यक्ति को आफर कर दें, कांग्रेस ने हंगामा खड़ा कर दिया था। अब एएफपी द्वारा सोनिया गांधी को सत्ता का दलाल बताये जाने पर कांग्रेस के प्रवक्ता क्या कहेंगे? क्या वाकई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हटाने के लिए सोनिया राहुल को तैयार कर रही है? हैरत है कि कांग्रेसी और उनका मीडिया प्रभाग कानों में रुई देकर सोया पड़ा है?
कहीं इसके पीछे कोई विदेशी ताकत तो नहीं है? जो एक साथ तीन लोगों पर वार कर रही है। सोचता हूं कौन हैं वो चेहरे, कौन हैं वो हाथ जो सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, मनमोहन सिंह को हमारे सामने किये हुए हैं। पर सब कुछ कितने सही मैनेज किया हुआ है। ये न विस्मयकारी है न रहस्यपूर्ण। खुले आम नंगई है।