शनिवार, 8 नवंबर 2014

उमीदों की आंधी या कुछ और ?

उम्मीदों की आंधी का पांच महीने बाद भी जस का जस होना इस बात का प्रमाण है कि बाकी तमाम नेताओं और पार्टियों ने अपने आपको जन आक्रोश के भंवर में कितना बुरी तरह फंसाया हुआ है। 


राजनीति में फिलहाल सार्थक विकल्प नहीं हंै। भाजपा अपनी सफलता के साथ लगातार कांग्रेस की तरह होती जा रही है। हरियाणा में थोक भाव से भाजपा ने कांग्रेस के नेताओं का आयात किया। मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात तो करते हैं पर क्या उन्हें पता है कि बीते कुछ समय से वे भाजपा का ही कांग्रेसीकरण करते जा रहे हैं। जाति-समुदाय का गणित जारी है। डेरा से किया गया भाजपा का "सच्चा सौदा" भी किसी वैकल्पिक राजनीति की नींव नहीं रखता। इसलिए, राजनीति का संकट आज पहले से कहीं ज्यादा गहरा है। राज्यों के विधानसभा चुनावों में जनता ने फिर बदलाव के लिए वोट दिया है। इस बदलाव की आकांक्षा के पीछे लोगों में कांग्रेस से निराशा की भूमिका अधिक रही या फिर मोदी का आकर्षण अधिक था इस पर बहस की जा सकती है। पर इस पर कोई बहस नहीं है कि लोग अब भ्रष्टाचार और संकीर्ण राजनीति से ऊब चुके हैं और उन्हें जिस तरफ भी कोई बेहतर विकल्प मिलता है वे उस तरफ चल देते हैं। इसलिए राजनेताओं के लिए ये चुनाव एक सबक हंै। क्या हैं इस चुनाव के निहितार्थ, 
महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में भाजपा का सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आना बताता है कि लोकसभा चुनाव के करीब पांच महीने बाद भी मतदाताओं के बीच नरेंद्र मोदी का प्रभाव कमोबेश बरकरार है। हालांकि अति आत्मविश्वास के साथ शिवसेना से पच्चीस साल पुराना गठबंधन तोड़ नरेंद्र मोदी की रैलियों के सहारे महाराष्ट्र में अपने बूते सरकार बनाने का भाजपा का सपना जिस तरह टूटा है, वह देखने लायक है। पर यह नतीजा उससे भी अधिक उन उद्धव ठाकरे के अहंकार और महत्वाकांक्षा के धूल-धूसरित होने का उदाहरण है, जिन्होंने भाजपा से अलग होने के बाद इस चुनाव को महाराष्ट्र की एकता और अस्मिता का भावुक मुद्दा बना डाला था। बल्कि इसके साथ मनसे के पराभव को भी जोड़ लें, तो यह ठाकरे बंधुओं के लिए चेतावनी है कि खुले चुनाव में क्षेत्रवाद की आक्रामक राजनीति उनका नुकसान ही करेगी। एनसीपी ने हालांकि भाजपा को बाहर से समर्थन देने का ऐलान कर स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस से अलग होने का फैसला उसने यों ही नहीं लिया था, पर चुनावी नतीजे बताते हैं कि उस गठजोड़ के खिलाफ महाराष्ट्र में वैसी सत्ता-विरोधी लहर भी नहीं थी, जैसी बताई जा रही थी। नरेंद्र मोदी के सघन प्रचार के बावजूद कांग्रेस और एनसीपी आखिर अस्सी से अधिक सीटें ले ही आई हैं। अलबत्ता हरियाणा में शानदार जीत जरूर भाजपा की विराट उपलब्धि है। जिस राज्य में भाजपा ने सहयोगियों के बगैर चुनाव नहीं लड़ा हो, और साथ लड़ते हुए भी जिसका प्रदर्शन बहुत उत्साहनजक नहीं रहा हो, वहां अकेले दम पर सभी सीटों पर चुनाव लड़कर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें जीतकर आना कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है। बेशक हरियाणा में कांग्रेस की पराजय के पीछे उसकी खराब छवि और सत्ता-विरोधी लहर जिम्मेदार है, लेकिन मोदी और भाजपा के पक्ष में बने माहौल का प्रमाण यही है कि मुख्यमंत्री का चेहरा सामने न रखकर भी पार्टी ने यहां शानदार जीत हासिल कर ली है। इनेलो प्रमुख का जमानत पर बाहर आकर चुनावी रैली करना भी काम नहीं आया। हरियाणा का चुनावी नतीजा उन वंशवादी स्थानीय पार्टियों के लिए चेतावनी है, जो अपने भ्रष्टाचरण पर पर्दा डालने के लिए जातिवाद और क्षेत्रवाद का सहारा लेने सेे भी गुरेज नहीं करतीं। हरियाणा के मतदाताओं ने इस तरह की राजनीति को नकार कर बदलाव के पक्ष में वोट दिया है। लिहाजा उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए भाजपा को भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी प्रशासन पर जोर देना होगा।
दरअसल जनता में नरेंद्र मोदी ने उम्मीदों की सुनामी, आंधी पैदा की हुई है। महाराष्ट्र और हरियाणा में भी लोगों ने नरेंद्र मोदी को देख कर वोट डाला है। लोग उम्मीद में अंधे हैं, भावनाओं में बहे हुए हैं इसलिए उन्होंने अपने इलाके में नरेंद्र मोदी-अमित शाह के खड़े किए गए खंभे को भी वोट डाला है। यह बात महाराष्ट्र के संदर्भ में बहुत सटीक है। इसलिए कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे इलाकों में भाजपा का कोई मतलब नहीं रहा है। प्रदेश की 288 सीटों में से भाजपा ने डेढ़ सौ सीटों पर कभी चुनाव ही नहीं लड़ा। उसके पास सभी सीटों के लिए अपने उम्मीदवार तक नहीं थे। कोई पचास उम्मीदवार दूसरी पार्टियों से तोड़ कर अमित शाह ने मैदान में उतरवाए। कई जगह भाजपा का संगठन, आरएसएस की मशीनरी कागजी रही है। इस सबके बावजूद यदि भाजपा महाराष्ट्र में जीत का रिकार्ड बनाती है तो वह उतनी ही चमत्कारित बात होगी जितनी उत्तरप्रदेश में 73 सांसदों का जीतना था।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मनमोहन सिंह ने चुप रह कर कांग्रेस का भट्ठा बैठाया। उनकी वजह से यह मैसेज गया कि सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसी तरह पृथ्वीराज चव्हाण ने मुंबई में भी बैठ कर मैसेज दिया कि सरकार काम नहीं कर रही है। बाद में जब चव्हाण ने मुंह खोला, अपनी चुप्पी तोड़ी तो ऐसी बात कही, जिससे कांग्रेस का भट्ठा बैठा। उन्होंने कहा कि कार्रवाई करते तो कांग्रेस खत्म होती। विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि आदर्श घोटाले में कांग्रेस के कई नेताओं के नाम थे। इस तरह उन्होंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी। अपनी छवि पर भी दाग लगाया और पूरी कांग्रेस व एनसीपी को बदनाम किया। महाराष्ट्र कांग्रेस और एनसीपी के नेता मान रहे हैं कि मतदान से ऐन पहले दिया गया चव्हाण का बयान कांग्रेस की ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ। अब वे खुद अपने चुनाव क्षेत्र में हारते दिख रहे हैं। कांग्रेस के ही नेता मान रहे हैं कि वे तीसरे नंबर पर हैं। वहां मुकाबला निर्दलीय विलासराव उंधालकर बनाम भाजपा का है। जिस तरह मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते कांग्रेस लोकसभा में 44 सीटों पर सिमटी है, वैसे ही पृथ्वीराज चव्हाण के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस दहाई में पहुंचने के लिए संघर्ष कर रही है। कांग्रेस में जितने वाले संभावित नेताओं को उंगलियों पर गिना जा रहा है।
हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की जीत बड़ी है, जीत का ढोल भी बड़ा है। इस ढोल की पोल यह कहकर खोली जा सकती है कि महाराष्ट्र में बहुकोणीय मुकाबले के कारण भाजपा की जीत बड़ी लग रही है वरना वोट के बंटवारे के हिसाब से देखें तो जीत बड़ी नहीं है। यह भी कह सकते हैं कि दोनों राज्यों में लोकसभा चुनाव के परिणामों ने खुद को दोहराया भर है। लेकिन यह छोटी बात नहीं है। अपना मानना है कि जैसे देश में मनमोहन सरकार के खिलाफ नफरत, गुस्से में लोग पके हुए थे वैसे ही महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस के लगातार निकम्मे-भ्रष्ट राज से भी जनता गुस्से में सालों से अंदर-अंदर खदबदा रही थी। यह गुस्सा नरेंद्र मोदी के चलते उम्मीदों की आंधी में बदला। मतलब गुस्सा था इसलिए मोदी से उम्मीद जगी। जनता गुस्से से पहले अंधी हुई और फिर नरेंद्र मोदी को ले कर जज्बे में बही।
इस जज्बे, आंधी में नरेंद्र मोदी, अमित शाह की हिंदुत्व अंतरधारा याकि अंडरकरंट अंतरनिहित है। आंधी हिंदू वोटों के धुव्रीकरण की भी है। यह छत्रपति शिवाजी के सपनों को दिल्ली में साकार कराने की अमित शाह की ललकार के चलते है। ध्यान रहे अमित शाह ने हर सभा में शिवसेना को इसी बात पर काटा कि वे शिवाजी (उद्धव ठाकरे) को महाराष्ट्र में बांधते हैं और हम उन्हें दिल्ली, पूरे भारत का मानते हैं। मतलब राजनैतिक पंडित यह जो कह रहे हैं कि मोदी से उम्मीद विकास के वायदे पर बनी। हिंदू अंडरकरंट नहीं है और इन चुनावों में आदित्यनाथ ने प्रचार नहीं किया, लव जेहाद को मुद्दा नहीं बनाया गया। यानी उपचुनावों की हार से सबक सीखते हुए नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने अपने को बदला है और अपनी रणनीति भी बदली है।
एक ऎसे वक्त में जब राज्य ही राजनीति का केंद्र है, लोकसभा चुनावों की बढ़त को विधानसभा चुनावों में बनाए रखना अपने आप में महत्वपूर्ण है। गठबंधन टूटने के बावजूद बढ़त बरकरार रही, यह भी रेखांकित किए जाने योग्य है। लेकिन असल सवाल यह नहीं कि भाजपा की जीत कितनी बड़ी या कांग्रेस की हार कितनी गहरी है। असल सवाल यह है कि हरियाणा और महाराष्ट्र के जनादेश से क्या बदला? जाहिर है चंडीगढ़ और मुंबई में ही नहीं, दिल्ली में भी सत्ता का समीकरण बदलेगा। सिर्फ तात्कालिक रूप से ही नहीं बल्कि दीर्घकाल में भी। राज्यों का चुनावी मानचित्र पुनर्परिभाषित होगा। लेकिन, क्या राज और नीति का रिश्ता बदलेगा? राजनीति का व्याकरण बदलेगा? इस बदलाव से जो नया घट रहा है, वह क्या विकल्प की दिशा में ले जाएगा?
तात्कालिक तौर पर शक्ति-संतुलन में बदलाव सुनिश्चित है। इस बीच सत्ताधारी गठबंधन उपचुनावों की हार के झटकों से उबरते हुए मजबूत हुआ है। गठबंधन के भीतर भाजपा ने वर्चस्व कायम किया। गठबंधन में शामिल कोई भी दल चुनाव, संसद या फिर सरकार में भाजपा की मुखालफत करने का साहस नहीं कर सकता। शिवसेना का कद घटा है। हजकां खत्म हुई है। 
हरियाणा में विधानसभा चुनाव में आए नतीजों को देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पार्टी की हार स्वीकार कर ली है। हरियाणा के कांग्रेस की करारी हार के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यपाल कप्तान सिंह सौलंकी को सौंपा। इससे पूर्व हुड्डा ने रोहतक में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि देश में प्रजातंत्र है और वह जनादेश का सम्मान करते हैं. उन्होंने कहा कि राज्य की जनता ने उन्हें दस वर्ष सेवा करने का मौका दिया उसके लिए वह आभार व्यक्त करते हैं। उनकी सरकार ने राज्य में अभूतपूर्व विकास कार्य किए हैं और जो कार्य चल रहे हैं उन्हें उम्मीद है कि उन्हें राज्य में बनने वाली भारतीय जनता पार्टी की अगली सरकार जारी रखेगी। उन्होंने भाजपा को उसकी जीत पर शुभकामनाएं भी दीं और चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गए। उधर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के राजधानी के पंत मार्ग स्थित बंगले में स्नाता पसरा हुआ है। हालांकि आमतौर पर यहां पर भी चहल-पहल रहती है। दरअसल यह बंगला उनके सांसद पुत्र को आवंटित है। हरियाणा के 90 सीटों में से अभी तक मिले 81 नतीजों में भाजपा को 47, इनेलो को 19, कांग्रेस को 15 सीटें, हजकां को दो और अन्य को 7 सीटें मिली हैं।
भाजपा ने एनडीए की बैसाखियों को छोड़कर राष्ट्रीय फैलाव की तैयारी शुरू की। एनडीए के अंदर भाजपा सब कुछ होती जा रही है। हरियाणा में भाजपा की जीत एक स्थायी सरकार की ओर ले जा रही है जिससे लोगों में उम्मीदें जगना लाजमी है लेकिन जब हम भाजपा के घोषणापत्र पर नजर डालते हैं तो उनकी नीयत और गंभीरता पर शंका होती है। लोकसभा चुनावों में भाजपा कॉरपोरेट खेती को बढ़ावा देने की बात करती है तो हरियाणा विधान सभा चुनावों में ठीक इसके उलट वादा कर देती है। उधर कांग्रेस में बेताल फिर से अपनी डाल पर जा बैठा है, उपचुनावों से जो भी थोड़ी बहुत राहत मिली थी वह क्षणभंगुर साबित हुई।
तात्कालिक बदलावों के चक्कर में यह ना भूल जायें कि इन चुनाव परिणामों के कुछ दूरगामी असर भी होने वाले हैं। इन दोनों राज्यों में राजनीतिक मुकाबले का स्वरूप बहुत गहराई तक बदल सकता है। हरियाणा में मामला त्रिकोणीय दिखा। इनेलो और कांग्रेस की स्थिति सामने है। इनेलो परिवार जेल में है और इस लिहाज से वह प्रदेश में भाजपा की दयादृष्टि पर आश्रित नजर आ रहा है। कांग्रेस अपना सामाजिक आधार खो रही है और उसे अपने को विपक्ष के रूप में बचाये रखना मुश्किल हो गया है। महाराष्ट्र में मामला बहुकोणीय रहा। भाजपा ने दांव चतुराई से खेला और वहां शिवसेना की चुनौती कम हो गई। लेकिन राकांपा सफल रही, उसने कांग्रेस को उसकी हैसियत बताने की सोची थी और बता दिया। वह क्षेत्रीय पार्टी के रूप में रहेगी। कांग्रेस अब महाराष्ट्र में सिमट गई है।
कांग्रेस पार्टी ने दोनों राज्यों में हार मान ली है। लेकिन हैरानी की बात है कि कांग्रेस के नेता अपने हिसाब में भी दोनों राज्यों में बहुत खराब प्रदर्शन की बात कर रहे हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस नेताओं का अंदाजा है कि खुद पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण अपनी कराड दक्षिण की सीट से चुनाव हार सकते हैं। पार्टी ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और अगर वे खुद हार रहे हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टी की क्या दशा होगी! कांग्रेस के प्रदेश नेताओं का कहना है कि गिने-चुने नेता ही जीतेंगे। तभी पार्टी के नेता हुसैन दलवई ने मतदान खत्म होने के तुरंत बाद मान लिया कि कांग्रेस हार रही है। पार्टी के नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस की अब तक की सबसे बुरी हार होगी। और इसके लिए चव्हाण को जिम्मेदार ठहरा कर कांग्रेस आलाकमान से उनकी शिकायत भी शुरू हो गई है।
यहीं हाल हरियाणा में है। कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष कैप्टेन अजय यादव ने हार मान ली है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी। लेकिन साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ निजी खुन्नस भी जाहिर कर दी। उन्होंने कहा कि क्षेत्रवाद का मुद्दा भी हावी रहा, इसलिए ज्यादातर क्षेत्रों में कांग्रेस को वोट नहीं मिले। उन्होंने पहले भी आरोप लगाया था कि हुड्डा ने सिर्फ रोहतक और आसपास के इलाकों में विकास किया है। नतीजे आने से पहले ही हरियाणा में हुड्डा विरोधी नेता एकजुट हो गए हैं और उनकी शिकायत लेकर कांग्रेस आलाकमान के पास पहुंच गए हैं।

मिथिला बिना विकास नहि


 मिथिलाक विकास के लेल सभ मैथिल के एकजुट होए पड़त। बिना एक भएने मिथिलाक विकास संभव नहिं अछि। नीतीष कुमार कतेक जगह बाजि चुकलाह, विकासक लेल। मिथिला कें के देश के अन्य राज्य... इलाका के संग मुख्यधारा सं जोड़य पड़त। विकास के लेल इंफ्रास्ट्रक्चर पर विशेष खर्च करय पड़त। एकरा लेल सकारात्मक सोच आओर दृढ़ इच्छाशक्ति के जरूरत अछि। नीतीषक सोचक निहितार्थ की छन्हि ?

अपन पौराणिक आ ऐतिहासिक आख्यान मे जाहि मिथिलाक वर्णन कएल गेल अछि, ओ आइयो नजरि आबि सकैत अछि। भले ही किछु बरखक लेल मिथिलाक गौरवमयी परंपरा कें नजरि लागि गेल छल, राजनीतिक उपेक्षा सं क्षेत्र त्राहि-त्राहि कय रहल छल, मुदा आब विकास पुरूषक नाम सं विख्यात भ रहल मुख्यमंत्री नीतिश कुमार सेहो मानि रहल छथि जे जाधरि मिथिलाक विकास नहि भ सकत, बिहारक विकास संभव नहि। इ गप्प ओ एक बेर, नहि कतेको बेर कतेक ठाम बजने छथि।
पिछला महिना एक बेर फेर जहन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दरभंगा अयोलाह त कहलनि जे मिथिलाक कला आ संस्कृ तिक  बिनु देशक पिहानी अपूर्ण अछि। एहि क्षेत्रमे मिथिला बेसी समृद्ध अछि। एहि ठाम कतेको प्रकाण्ड विद्वान भेला जे समाज आ राष्ट्रकेँ नव बात देखौलनि आइ चारू भर देशमे मिथिलाक गूञ्ज अछि। जहिना देशक विकास बिहारक प्रगतिकेँ बिनु सम्भव नञि अछि तहिना मिथिलाक विकासक बिनु देशक प्रगति असम्भव अछि। मुख्यमंत्री कहलनि जे मिथिला कला आ संस्कृतिके ँ विकासक लेल सरकार प्रतिबद्ध अछि। मिथिला पेण्टिंगकेँ विकसित करबाक लेल मधुबनी जिलाक सौराठमे डिम्ड यूनिवर्सिटी खुजि रहल अछि। एहि ठामक सीकी कलाकेँ सेहो मान्यता भेटऽ जा रहल अछि। प्रदेशक विकासपर बजैत ओ कहलनि जे आइ जतबा परिवर्तन देखबामे आबि रहल अछि से राज्यमे उपलब्ध सीमित संसाधनक बलपर भेल अछि। जँ केन्द्र सरकारक ध्यान पड़ै तँ राज्यक चेहरा आरो चमकि जाएत। श्री कु मार कहलनि जे भारतक विकास दर विकसित प्रदेशक भरोसे अछि एहि चलते ई दर उपर-नीचा होइत रहैत अछि। एकरा स्थिर करबाक लेल विकासशील राज्य सभकेँ विशेष दर्जा प्रदान करब आवश्यक अछि। बिहारक साढ़े दस करोड़ जनता देश भरिमे बोझ बनि कऽ नञि रहऽ चाहैत अछि। हम सभ विकासमे सहभागी होबए चाहै छी। एखन बिहारक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.9 प्रतिशत अछि। देशक आबादीक आठ प्रतिशत जनसंख्या राज्यमे अछि। हम चाहैत छी जे देशक जीडीपीमे हमर सहभागिता दस प्रतिशत होबए। एहि लेल विशेष राज्यक दर्जा हमर माङ अछि। ई जाबत धरि पूर्ण नञि होएत तँ एहि लेल आवाज उठबैत रहब।
नीतीश कुमार दरभंगा आयल छलाह पूर्व विधान पार्षद आ मिथिलाक राजनीतिक धुरी बनि चुकल संजय झा कें ऐच्छिक कोष सं राज दरभंगा मे बनल जानकी भवन के उदघाटन करबाक लेल। एहि समारोह मे जहन मुख्यमंत्री एहन गप्प बजलाह, त हुनक कबीना मंत्री विजय कुमार चैधरी कहलनि जे पञ्चवर्षीय योजना (2007-12) मे देशक पैघ राज्यक विकास गतिमे सभसँ तेज बिहार गति रहल एहि लेल पछिला दिन उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी पुरस्कार सेहो ग्रहण केलनि। ई हमर विकासक प्रति प्रतिबद्धताक प्रमाण अछि। दरभंगा नगर विधायक संजय सरावगी मिथिलाक कला आ संस्कृतिक विकास लेल भऽ रहल काजक चर्चा करैत कहलनि जे पर्यटन आ कला विभागक संग एक गोट स्वायत विकास परिषद बने जे मिथिलाक विलुप्त होइत धरोहरिकेँ चिन्ता करए। पूर्व विधान पार्षद संजय झा बजलाह जे मिथिलाक विकास लेल मुख्यमंत्री हड़िदम चिन्तित रहैत छथि। चाहे रेलमंत्रीक रूपमे हो आ कि भूतल परिवहन मंत्रीक भूमिकामे। हिनक कार्यकालमे एहि क्षेत्रमे विकासक काज बेसी भेल। मिथिला धार्मिक सम्भाव आदर्श चित्र अछि। एही एकताक संग राज्यक विकास सेहो सम्भव होएत। अपन अध्यक्षीय भाषण मे पूर्व विधान पार्षद संजय झा कहलनि जे नीतीश जीक शासनकाल मे दू फाँकमे बँटल मिथिला आवागमनक दृष्टिसँ एक भेल।
इ त भेल एक समारोह गप्पक। जदि किछु पुरनका गप्प पर नजरि दौड़ाबी त ज्ञात होयत जे नीतीश कुमार अपन पहिल शासनकालक अपेक्षा दोसर शासनकाल मे मिथिलाक प्रति कनी बेसी सचेष्ट छथि। ओ अपन चुनावी यात्रा बेनीपटटी सं शुरू करैत छथि त सौराठ मे मिथिला पेंटिंग आ झंझारपुर क्षेत्र मे मखाना उद्योगक लेल जोर लगाबैत छथि। ओना इ कहल जा रहल अछि जे एकर पाछां हुनक आगू राजनीतिक सोच छन्हि। कहल त इहो जा रहल अछि जे नीतीश मिथिला मे जदयू के जनाधार बढएबाक लेल बेस कोशिश कय रहल छथि आ एकर जिम्मेदारी एक तरहें संजय झा के कान्हा पर छन्हि।
ओना संगहि इहो गप्प उठैत अछि जे बिहारक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मिथिला मे आयोजित प्रायः प्रत्येक सभा मे बेर-बेर कहैत रहलाह अछि जे ‘मिथिलाक विकासक बिना बिहार विकास संभव नहि।’ जदि हृदय सँ मुख्यमंत्री के एहि गप्प के स्वीकार करैत छी त प्रश्न इहो ठाढ होइत अछि जे मिथिलाक मातृभाषा मैथिली के प्राथमिक स्तर सँ अध्ययन अध्यापनक आदेश मे बिलंब किऐक ? अन्य विषयक प्राथमिक स्तर पर मैथिली शिक्षकक नियुक्तिक प्रावधान किऐक नहि ? उच्च शिक्षा मे मैथिलीक अध्यापनक व्यवस्था रहितहुँ प्राथमिक स्तर पर मैथिलीक अध्यापन प्रावधान नहि रहला सँ महाविद्यालय आ विश्वविद्यालय स्तर पर मैथिलीक छात्र-छात्रा सभक संख्या सोचनीय अछि। एहि दुरंगी नीति के की अर्थ ? ओना राज्य सरकार विद्यापति पर्व समारोह के राजकीय पर्व समारोह आ जानकी नवमी के दिन सार्वजनिक अवकाशक घोषणा कऽ एहि क्षेत्रक लोकनिक मुँह बन्न करबाक प्रयास अवश्य कयलक अछि। मुदा एहि सँ मातृभाषा मैथिलीक विकास कतय धरि संभव भऽ सकत ? मिथिलाक विकासक लेल ओकरा जमीनी लीडरशिप चाही। एहन एहन ग्रुप बनए जे ग्रुप मिथिलाक सुदूर देहात मे घुमि लोक सभ क’ जागृत करए, जेकर भाषा मात्र मैथिली छैक। ओ जे बजैत अछि सैह मैथिली छैक। मैथिलीक संग कतेक षड़यंत्र भ’ रहल छैक। कनेक टेढ़ बाजू त’ मैथिली ,बज्जिका , अंगिका मुंगेरिया आ आर कतेक भाषा मे परिणत भ’ जायत छैक। मुदा से गलत छैक। कोनो भाषा शुद्ध सभठाम नहि बाजल जायत छैक। जे हिंदी इलहाबादक छैक से कतौ दोसर ठामक छैक की ? जतेक प्रान्त ओतेक तरहक हिंदी। बनारस ,पटना ,कोलकोता ,भोपाल ,चंडीगढ़ ,दिल्ली आ दक्षिण भारत कतौक हिंदी मानक नहि मुदा ओ सभ हिंदी छैक। हर भाषा मे वैह गप छैक मुदा मैथिली संग सौतेला जका व्यबहार। एकर मूल कारण जे ग्रासरूट पर हम सभ मैथिल के एखन तक जागृत नहि कयल। सहरसा,पुरनिया आ कटिहार जिलाक सुदूर देहात मे जाइत छलौ त’ देखियैक मैथिली छोरि कोनो भाषा केकरो नहि बाजल होयक। पुछला पर उत्तर भेटय जे हमरा सभक मातृभाषा हिंदी अछि। ईहो गप मैथिली मे बजैत छल। एक बेर सहरसा जिलाक एकटा कालेज टीचर स गपक काल कहलनि जे हुनकर मातृभाषा हिंदी छनि।
मिथिलाक गाथा कतओक शताब्दी धरि पसरल अछि । ई कहल गेल अछि जे गौतम बुद्ध आ वर्धमान महावीर दुनू गोटे मिथिला मे रहल छलाह । ई प्रथम सहस्त्राब्दिक दौरान भारतीय इतिहासक केंद्र छल आ विभिन्न साहित्यिक आ धर्मग्रंथ संबंधी काज मे अपन योगदान देलक । मैथिली मिथिला मे बाजय जायवला भाषा थिक । भाषाविद मैथिली कें पूर्वी भारतीय भाषा मानलनि अछि आ एहि तरहें ई हिन्दी सँ भिन्न अछि । मैथिली कें पहिने हिन्दी आ बंगला दुनूक उप-भाषा मानल जाइत छल । वस्तुतरू मैथिली आब भारतीय भाषा बनि चुकल अछि । मिथिलाक सभ सँ महत्वपूर्ण संदर्भ हिन्दू ग्रंथ रामायण मे अछि, जतए एहि भूमिक राजकुमारी सीता कें रामक पत्नी कहल गेल अछि । राजा जनक सीताक पिता छलाह, जे मिथिला पर जनकपुर सँ शासन केलनि । प्राचीन समय मे मिथिलाक अन्य प्रसिद्ध राजा भानुमठ, सतघुमन्य, सुचि, उर्जनामा, सतध्वज, कृत, अनजान, अरिस्नामी, श्रुतयू, सुपाश्यु, सुटयशु, श्रृनजय, शौरमाबि, एनेना, भीमरथ, सत्यरथ, उपांगु, उपगुप्त, स्वागत, स्नानंद, शुसुरथ, जय-विजय, क्रितु, सनी, विथ हस्या, द्ववाति, बहुलाश्व आदि भेलाह ।
’मिथिला, एहि क्षेत्र मे सृजित हिन्दू कलाक एक प्रकारक नाम सेहो थिक । ई विशेष कऽ वियाह सँ पूर्व महिला द्वारा घर के सजेबाक लेल घरक देबार आ सतह पर धार्मिक, ज्यामितीय आ चिहनांकित आकृति सँ शुरु भेल आ एहि क्षेत्र सँ बाहर एकरा नहि जानल जाइत छल । जहन एहि कलाक लेल कागजक शुरुआत भेल तँ महिला लोकनि अपन कलाकृति कें बेचय लगलीह आ कलाक विषय वस्तु कें लोकप्रिय आ स्थानीय देवताक संगहि प्रतिदिनक घटनाक चित्रांकन धरि विस्तृत केलीह । गंगा देवी संभवतरू सब सँ प्रसिद्ध मिथिलाक कलाकार छथि । ओ परंपरागत धार्मिक मिथिला चित्रांकन, लोकप्रिय देवताक चित्रांकन, रामायण आ अपन जिनगीक घटना सँ दृश्यक चित्रांकन कयलनि खेती एहि क्षेत्रक मुख्य आर्थिक कार्यकलाप थिक । मुख्य फसल धान, गहूम, दालि, मकई, मुँग, उडद, राहड़ि आदि आ जूट (एकर उत्पादन मे कमी आयल अछि) अछि । आई- काल्हि देशक आन भागक तुलना मे खेती नीक नहि रहबाक कारणें, ई सब सँ अधिक पिछड़ल क्षेत्र भऽ गेल अछि । बाढि हर वर्ष फसलक पैघ भाग कें नाश कऽ दैत अछि । उद्योगक अनुपस्थिति, कमजोर शैक्षिक अवसंरचना आ राजनीतिक अपराधीकरणक कारणें अधिकांश युवक कें शिक्षा आ आमदनीक लेल स्थान परिवर्तन करय पड़ैत छनि । एहि परिवर्तनक उज्जवल पक्ष इ आछे जे ओ लोकनि भारतक प्रमुख क्षेत्र और स्थान मे महत्वपूर्ण भऽ गेलाह अछि । मिथिला पेंटिग आब बाजार मे हिस्सेदारी प्राप्त कयलक अछि । आब सरकार सेहो राष्ट्रीय धरोहरक रूप मे एकरा सहायता दऽ रहल अछि ।।
गप्प त इहो अछि जे मिथिलाक विकास लेल जनप्रतिनिधि आ अधिकारीक सक्रियता आ इच्छा एक बेर फेर सवालक दायरा मे आबि गेल अछि। कहल जा रहल अछि जे मिथिलाक जनप्रतिनिधि लग क्षेत्रक विकास लेल कोनो योजना नहि अछि। एहि क्षेत्र मे पदस्थापित अधिकारी सेहो विकास लेल कोनो ब्लू प्रिंट तखन धरि तैयार नहि करैत छथि जखन धरि हुनका एकर निर्देश नहि भेटैत अछि। कुल मिला कए मिथिला क विकास क गप त बहुत होइत अछि मुदा योजना तकबा काल सब अगल बगल झंकैत भेट जाएत। जहन सहरसा मे अपन विकास यात्रा क चारिम चरण क दोसर दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मत्स्यगंधा झील क निरीक्षण करबा लेल पहुंचलाह। झीलक स्थिति देख मुख्यमंत्री सबस पहिने जनप्रतिनिधि स झील क विकास लेल गप केलथि। जनप्रतिनिधि झील क इतिहास छोडि भविष्य लेल किछु नहि कहि सकलाह। मुख्यमंत्री झीलक विकास लेल पदाधिकारी स योजना क संदर्भ मे जानकारी चाहलथि। पदाधिकारी लग कोनो योजना तैयार नहि छल। मुख्यमंत्री क्षेत्रक विकास पर एहि उदासीनता स स्तब्ध भ गेलाह। ओ तत्काल अधिकारी कए झील क सफाई आ सौंदर्यीकरण क निर्देश देलथि संगहि झीलक विकास लेल एकटा वृहत योजना तैयार करबाक आदेश देलथि। स्थानीय लोक क कहब अछि जे मुख्यमंत्रीक आदेशक बादो अगर स्थानीय जनप्रतिनिधि या अधिकारी एहि झील विकास लेल प्रयास करथि त खुशी होएत। ओना स्थानीय लोक इ सवाल सेहो करैत छथि जे आइ देश मे पंचायत राजक गप भ रहल अछि मुदा बिहार मे प्रमंडल स्तर पर योजना तखन तैयार भ रहल अछि जखन राज्यक मुखिया आदेश या निर्देशदैत छथि। स्थानीय जनप्रतिनिधि आ अधिकारी कहिया धरि मुख्यमंत्रीक आदेश आ निर्देश क बाद विकस लेल कार्ययोजना तैयार करतथि। आखिर मुख्यमंत्री तक कहिया पहुंचत मिथिलाक विकासक कोनो योजना।
ध्यान मे इहो रखबाक चाही जे मिथिलाक जनप्रतिनिधिक चुप्पी क बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र स यथाशीघ्र दरभंगा आ पूर्णिया स हवाई सेवा शुरू करबाक मांग कयने छलाह। मुख्यमंत्री एहि संबंध मे नागरिक उड्डयन मंत्री अजीत सिंह स गप केलथि अछि। मुख्यमंत्री अजीत सिंह स अनुरोध केलथि अछि जे ‘गया मे इंटरनेशनल फ्लाइट क नियमित संचालन कैल जाए, जखन कि पूर्णिया आ दरभंगा स घरेलू उड़ान आरंभ कैल जाए। हालांकि मुख्यमंत्री साफ केलथि जे एहि प्रकारक रोक संबंधी कोनो जानकारी राज्य सरकार लग नहि अछि आ दरभंगा आ पूर्णिया मे पटनाक एयरपोर्ट चालू रहबाक बावजूद पैघ विमान उतरत।
आखिर मिथिलाक विकास कोना भ सकत ? यदि मुद्दा पर लोक सभ सं गप्प कएल गेल, त सभ लोकनि के कहनाय छलन्हि जे मिथिलाक विकास के राह मे सभ सं बड़का बाधा बाढ़ि अछि। साल भर मे विकासक जतेक काज होएत अछि बाढ़ि सभटा के अपना संग बहा के ले जाएत अछि। एकरा लेल बड़का- बड़का बांध बनयबाक जरूरत अछि। बिना बाढ़िक समस्या के स्थायी समाधान कएने विकासक बात सोचनाय नीक नहिं होएत। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र जीक कहनाय छलन्हि जे कोसी नदी विवाद के हल निकालय लेल नेपाल के संग समझदारी विकसित करय पड़त। जरूरत पड़ला पर भारत के एहि मुद्दा के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सेहो उठयबाक चाही। एहि मामला के बेसि दिन तक टालल नहिं जा सकैत अछि. लोक के गुस्सा फुटत त फेर सरकार के लेल मुश्किल भे सकैत अछि। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान के कहब छन्हि जे लोक के मिथिलाक... बिहारक विकास के लेल सभ के एकजुट होए पड़त। खैनी...तम्बाकू खाय के पड़य रहय वाला प्रवृति के त्यागे पड़त। बाहरी दिल्ली के सांसद महाबल मिश्रा जी कहलाह जे लोक के फुस्सि बाजय के आदत छोड़य पड़तन्हि. ओ अपन मैथिली मे शपथ लेबय के जिक्र सेहो कएलाह। हुनकर कहनाय छलन्हि जे विकास के लेल शिक्षा ... पढ़ाई लिखाई पर जोर देबय के जरूरत अछि। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. डी. एन. झा सोशल ऑडिटिंग पर जोर दैत छथि आ हुनक कहब छन्हि जे आगां के बात करय सं पहिने हमरा ई देखय पड़त जे आजादी के एतेक दिन भेलाह के बादो हम एतेक किएक पिछड़ल छी। हमरा ई ध्यान राखय पड़त जे पिछला 60 साल मे कतेक विकास भेल आ विकास नहिं भेल त एकरा लेल के जिम्मेदार छथि। लेखिका मृदुला सिन्हा जीक कहब छन्हि जे गुजरात के एकटा छोट छिन गाम मे जे विकास भेल अछि ओ हमर शहर मे नहिं अछि। विकास के लेल काज करय के जरूरत अछि।
नीतीश कुमार कहैत छथि  जे मिथिलाक विकास बिना बिहाकर विकास नहि, त सवाल उठैत अछि, जो आखिर विकास कोना होएत ? किछु लोकक नजरि मे एकर समाधान अलग मिथिला राज्यक रूप मे अछि ? एहि लय एक मैथिलकेर भ्रम स्थिति छन्हि। मिथिला राज्य के माँग जल्दी सभक समझमें सहीमें नहि अबैत छैक, एहि मर्म के हमहुँ बहुत देरी सऽ बुझलहुँ। जेना एखनहु कतेको युवा जाहिमें विशेषरूपसँ अपन पैर पर ठाड्ह आत्मविश्वास सऽ भरल लोक मिथिला राज्यक माँगके विरोध करैत अछि। ओहि युवा के संसार में कतहु राखि देबैक तऽ फिट भऽ जायत ओ अपन मैथिलत्वके जोतिके खाइत अछि मुदा मिथिलाक अस्मिता लेल ओकरामें कोनो खास सोच नहि छैक। जस्टीफिकेशन लाख उपलब्ध करा देत, लेकिन कहियो इहो सोचैत जे आखिर हमरा में कोन माटि-पानिक शक्ति प्रवेश केलक जेकर कमाइ हम खा रहल छी, से सभटा बिसैर उलटे पढौनाइ चालू करत आ छोटकृ -पैघ सभटा बिसैर बस बुद्धि बघारब शुरु कय देत! देखलियैक नऽ जखन बिहार गीत बनेलक तऽ २००-२५० वर्षक ध्यान रहलैक आ लाखों-करोडों वर्षक इतिहासके धनी मिथिलाके दरकिनार कय देलक बिहार सरकार! नेपाल में देख लियौक जे मधेस चाही मुदा मिथिलाक पहचान लेल कोनो विचार नहि! बस ढूइस लडयवाला बलजोरी थोपयवाला कहानी सभ गढल जा रहल अछि। मैथिलकेँ विकास के चिन्ता छन्हि आ विकास लेल कि हेबाक चाही, कि भेल तेकर सभक कोनो लेखा-जोखा नहि छन्हि। कियो कोनो दलील तऽ कियो कोनो! किनको ई कहाँ जे वास्तवमें मंथन करी कि हम कि छलहुँ कि छी आ अहिना रहत तऽ कि होयब। पहचान बनैत छैक विशिष्टता सँ, अहाँके समस्त विशिष्टताके तऽ दाउ पर लगा देलक, घर सऽ बैला देलक, खेत जे उर्वर छल तेकरा बाउल सऽ भैर देलक३. बरु पहिले प्रकृतिक अपनहि रूप छलैक जे नदी सभ खुजल छलैक तऽ आइ जेना नहि कि टाका कमाइ लेल चमचा-लोभी ठीकेदार द्वारा बान्ह कटबाय बस भसियाबैत-बलुआबैत रहत! कहाँ गेल मिल सभ? पेपर, सुगर, राइस-फ्लोर-आयल मिल? माछ-मखान-पान खाली किताबे में रहि गेल? पाकिस्तानी मीठा पान खूब प्रसिद्ध अछि, लेकिन मिथिला के कथी भेटैत अछि हिन्दुस्तानके हर कोण में, बताउ तऽ? चैका-बर्तन साफ करनिहार? मजदूरी करैत रैयत में बसनिहार? सारा देश लेल सोचैत अपन घर के लोकविहीन रखनिहार? दोसरक खेतमें काज करब मुदा अपन गाममें निकम्मापनी देखेनिहार? ऊफ! मिथिलाके एहेन दुर्दशा लेल आखिर हम सभ किऐक नहि आत्ममंथन करी? देख लियौक जे स्वतंत्र भारतमें राज्य निर्माणके बुनियाद कि रहलैक? मिथिलाक दुर्भाग्य जे १८१६ के सुगौली समझौता सऽ दू दिस बँटि गेल आ तहिये सऽ मिथिला अपन कोनो अस्मिता नहि कायम राखि सकल? तऽ अंग्रेज या ताहि समयक राजाके कमजोरी सऽ मिथिला कि आइ दू सौ वर्ष तक कनिते रहय? हाँ! बाहरी आ भितरी दुनू दुष्ट तेहेन जोगार लगा देलक जे मैथिल आपसे में लडैत रहय आ बहरीके शासनमें पडल रहय! जी! पहिले जमीन्दारी दऽ के, फेर आरक्छण दऽ के, फेर जातीयताके दंगा पसारि, फेर मिथिलाके पैघ तवकामें सनक पसारि जे तोहर भाषा मैथिली नहि मगही थिकौक३. आ अनेको भ्रान्ति पसारिके आपसमें ततेक टुकडा बनौने अछि जे घर सम्हारैत-सम्हारैत अहाँके करोडों डिबिया तेल जरि जायत! न राधा के नौ मन घी हेतैन आ ने राधा नचती!कतेक अफसोस जताउ! नेतो सभ केहेन तऽ कनाह कुकूर समान! बुझू जे कोनो विधान नहि, मुँहें पाछू कानून! मन भेल बहि गेलौं, मन भेल कहि गेलौं! मने पर सभटा! मिथिला के दिन सही में लदल बुझैछ! जखनहि घरवारी के चिन्ता खतम तखनहि अनवारी घर के लूटत! कृष्ण के संग तऽ अर्जुन के छलन्हि जे बूडित्व प्रवेश करिते गीताक पाठ पढेलापर घरहि के दुश्मन सभके लेल पुनरू गांडीव उठाय हर बल सँ पाण्डव राज कायम कैल गेल, मुदा मिथिलाक अर्जुन सभ आपसे में भिडल छथि। कृष्णे केर क्लास लगाबैत छथि। गांडीव उठायब तऽ दूर, उल्टे कृष्णेके खेहारैत छथि। कृष्णो सोचैत छथि जे आखिर हस्तिनापुर तऽ थिकैक नहि, मिथिला थिकैक, एतय तऽ सभ पाहुन कहिके फाडयके मालिक बनल अछि३. हारि के बेचारे ओहो साइड लागि जाइत छथि। सियाजी गेली आ नवकी सिया सभ पर भूलवश दहेजक चाप चढि गेल। जनकजी जे केला सैह हमहुँ करब सोचि किछु सम्पन्न वर्ग शुरु केला आ धीरे-धीरे ई समाजके हर वर्ग के कैन्सर जकाँ जकैड लेलक! बेचारी आजुक मैथिलानी न घर के न घाटके! धोबीके कुकूर! लाज लगैत अछि मुदा लिखय पडत! जे बाहर गेली से बाहरे, मे घर पर छथि ओ घरे! तखन लैंगिक विभेद के अन्त कोना हेतैक मिथिलामें? एकीसम शदीमें विकास तखनहि संभव जखन जीवनरूपी पहिया समान अधिकार के बुनियाद पर चलत। अहु तरहें हम सभ पिछडल छी, सुधार लेल कोनो खास मजबूत प्रयास केम्हरौ सऽ नहि होइछ। कि कहू!
तखन एक बेर जोर लगाउ, एक बेर मिलियौ सभ एक ठाम आ देखियौक जे परिवर्तन कोना नहि होइत छैक! अगिला बेर जे दिल्लीमें मिथिला राज्य लेल धरना हेतैक ताहिमें अपन-अपन लगरपन (असगरे पहाड तोडयवाला अहं) के परित्याग कय तेना समन्वय करियौक जे समूचा ब्रह्माण्डमें मिथिला के विदेह सभ जागि गेलौक से सूचना जाय!


उद्देश्य किछु आ परिणाम उल्टा

बिहार बनल कारण आधुनिकताके वयार आ बुद्ध सऽ जुडल लोकप्रियता के मोल संग अलग-अलग संस्कृतिके एक संग जोडि रखबाक प्रेरणा तत्त्व हावी छल। लेकिन बड पैघ परिवार बनला सऽ विकास तऽ दूर लोक-संस्कृतिके संरक्षण तक नहि कैल जा सकल। अन्य राज्यक तुलना बिहार अति पिछड़ल राज्य बनल रहल। बादमें उड़ीस टूटल, फेर झारखंड टूटि गेल आ अपन मौलिकताक संरक्षण लेल पूरजोर प्रयासमें लागल अछि। अंग्रेजे द्वारा बनायल गेल मूल राज्य बंगाल सऽ निकलल बिहार, बिहार सऽ निकल उड़ीसा आ झारखंडय आ आब जे बिहार बचल अछि ताहिमें तीन अलग-अलग संस्कृति मिथिला, मगध आ भोजपुर संयुक्त रूपमें अछि। लेकिन तिनू के विकास गति बिहार-बिहारी के नाम तर धँसल अछि। बुद्धक विहार क्षेत्र सऽ बनल बिहार जाहि परिकल्पना पर बनायल गेल आखिर एतेक पिछड़ल किऐक रहल, मंथन योग्य विषय बुझैछ। कहबी छैक जे ढेर जोगी मठ उजाड़! कहीं बिहारक हाल यैह कारण सऽ तऽ एहेन नहि बनि गेल? आइयो केन्द्रमें बिहारक मूर्ति द्वारा मुख्य कार्यक जिम्मेवारी वहन कैल जाइछ, लेकिन अग्र पंक्तिमें कियो बिना चमचागिरीके प्रवेश नहि पाबि सकैत अछि। कतबो शक्तिशाली नेता हो लेकिन राष्ट्रीय नेताक छवि पाबयवाला बिहारी नेता के? किछु-किछु रहल ललित बाबुमें तऽ आब किछु-किछु देखाय पड़ैछ नितीश कुमारमें दृ लेकिन मूल संस्कार के रक्षा करय लेल हिनकहु सभमें दमवाली बात देखय लेल नहि भेटैछ। इतिहास गवाह छैक जे यदि अपन मूल डीह आ मूल संस्कृतिके कोनो परिवार त्याग केलक तऽ संसारक भीडमें कतय हेरा गेल से कियो नहि बुझि सकल। उदाहरण लऽ लियऽ! गामक फल्लाँ बाबु कलेक्टर बनलाह आ शहरे रहि गेला, एगो बेटा अहमदाबाद, दोसर जहानाबाद आ तेसर मुर्शिदाबाद! बेटी सेहो लखनउके नबाबे संग! तिनकर सभक संतान होशंगाबाद, जम्मू आ मथुरा-वृन्दावन! अपन सहोदरके कि हालत सेहो दोसर के पता नहि। बिखैर गेला पूरा परिवार! छैथ कतहु, हमरा कि पता! बिहार बनि गेल बिखरल परिवार समान कारण ढकोसला विकास के नाम पर सेहो आब जखन एक प्रखर पुत्र नितीश अपन लगन सऽ किछु कार्य करबाक पैंतरा करैत छथि तखन, अवश्य बिहारी एक सम्मानजनक पहचान बनि गेल अछि। लेकिन समेटल परिवार, विकासशील परिवार के ई लक्षण कदापि नहि जे फल्लाँ बाबु कलेक्टर साहेबक परिवारके कहलहुँ। भगवती घरमें बादूड़ घरवास करैत छन्हि एखन!
मिथिला राज्य यदि आजुक बिहारके अस्मिताक विरुद्ध अछि तऽ विकास लेल कि सोचलहुँ? ओ जे पेपर मिल आ सुगल मिल सभ छल तेकरा पुनर्स्थापित करबाक लेल कि प्रगति अछि? साक्षरताके दर बढाबय लेल आ शिक्षाक नीक प्रसार लेल अनिवार्य मातृभाषामें शिक्षा पद्धति अनुरूप मैथिली संग दुर्व्यवहार कहिया रूकत? सामरिक रूपमें मिथिलाक अधिकांश भूमिके बाढमुक्त करबाक लेल नदीके जोड़बाक परियोजना, नहर निर्माण, झील संवरण, एहि सभपर कोनो योजना एखन धरि कार्यान्वयन किऐक नहि भेल? मिथिलाक विशेष कृषि उत्पाद जेना पान, मखान, माछ दृ एकर व्यवसायीकरण-वैज्ञानिकीकरण कहिया होयत? कोनो अनुसंधानो भेल एहि सभ तरफ? सरकार या सरकारके नुमाईंदाकेर कोनो ध्यान अछि एहि तरफ? एतेक रास पोखैर छैक, एतेक रास भूमि छैक, एहेन मीठ मोडरेट क्लाइमेट छैक३. तऽ ध्यान केकर जेतैक एहि सभ के समुचित संवरण-संवर्धन दिस? शिक्षाक केन्द्र रहल मिथिला, आइ मैथिलकेँ कोटा आ बेंगलुरु के संग पुद्दुचेरी जाय के बाध्यता किऐक? सरकारी रोजगार नहि उपलब्ध रहलाके कारण, सभ रोजगारोन्मुख बनैत उच्च स्तरीय पढाइ सऽ विमूख अपन भूमिके बंजर छोडि पलायन करय लेल बाध्य, समाधान लेल सोच कि? उलटे यशगान जे अच्छा है, चाँदपर भी बिहारी जाकर रोजगार कर सकता है कहि फूला देनाय आ एम्हर कंबल ओढि घी पिबय लेल बस मंत्री, ठीकेदार, दलाल, आदि बेहाल? एहेन भरुवागिरी सोच बिहारमें किया? आ तखन यदि मिथिला राज्य लेल माँग अलग होयत तऽ अपने में चैत-चैत खेलाइत जाँघपर थाप मारयके प्रवृत्ति कियैक?