सोमवार, 30 नवंबर 2009

ठिठुरते ठाकरे

महाराष्ट्र की राजनीति में ढलान पर पहुंच चुके बाल ठाकरे की छटपटाहट अब सामने आने लगी है। किसी की सोच से भी परे होगा कि ठाकरे परिवार का कोई सदस्य शिवसेना छोड़कर धुर विरोधी कांग्रेस में शामिल हो सकता है। लेकिन ऐसा हो रहा है। बाल ठाकरे की बहू स्मिता ठाकरे ने भगवा कैंप छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने का फैसला कर लिया है।
हालिया घटनाक्रम में बाल ठाकरे की बहू स्मिता ठाकरे ने कहा , ' मैं सोनिया गांधी और राहुल गांधी की बड़ी प्रशंसक बन गई हूं और चाहती हूं कि देश के लिए जो अच्छा काम वे कर रहे हैं , मैं उसका हिस्सा बनूं।Ó स्मिता के इस चौंकाने वाले फैसले के पीछे दो कारण हैं। पहला , स्मिता ठाकरे को लगता है कि शिवसेना अपनी संकुचित नीतियों के जरिए महाराष्ट्र के लोगों का अहित कर रही है। दूसरा , परिवार के भीतर वह खुद को अलग - थलग महसूस कर रही हैं। उनका कहना है कि मैं यह घुटन अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती और इसलिए कांग्रेस में शामिल होने का फैसला किया है। कांग्रेस के पास राष्ट्रीय और वैश्विक सोच है और मैं इस पार्टी की विचारधारा से सहमत हूं। Óसच तो यही है कि अभी स्मिता ने आरोप लगाया कि उन्हें राज्यसभा में भेजने का वादा किया गया था लेकिन यह पूरा नहीं हुआ और पेशे से पत्रकार भरत कुमार राउत को राज्यसभा में भेजा गया। इतना ही नहीं, विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन यह भी नहीं निभाया गया। और तो और सामना के लिए लिखे उनके लेख को , अखबार के संपादक बाल ठाकरे ने अस्वीकार कर दिया , जबकि उनका एक लेख पहले ही सामना में छप चुका था। बकौल स्मिता, 'मुझे संदेश मिल गया था कि अब यहां मेरी कोई जगह नहीं है और मैंने वह आर्टिकल वहीं पर फाड़ कर फेंके दिया। मेरे लिए शिवसेना से अलग होना आसान नहीं है लेकिन अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा है।Ó स्मिता का कहना है कि वह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं और पार्टी में औपचारिक रूप से शामिल होना बस एक औपचारिकता रह गई है। इस सिलसिले में वह जल्दी ही सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात कर सकती हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए ठाकरे परिवार के किसी सदस्य का पार्टी में शामिल होना , बड़ा अचीवमेंट होगा। ऐसा कहा जा रहा है कि स्मिता ठाकरे को पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
दरअसल, शिवसेना - भाजपा शासन के दौरान स्मिता ठाकरे अहम पावर सेंटर थीं और आला अधिकारियों से लेकर व्यापार से जुड़े लोग उनके आगे - पीछे घूमते रहते थे। उस समय यह कहा जाता था कि स्मिता अपने ससुर बाल ठाकरे के सबसे करीब हैं। उन्होंने बाल ठाकरे के दूसरे करीबी लोगों पर खुद को हाशिये पर भेजने का आरोप लगाया है। स्मिता बाल ठाकरे के बड़े बेटे जयदेव की पत्नी हैं। स्मिता कहती हैं कि मुझे गर्व है कि मैं मराठी हूं और घर पर मराठी में ही बात करती हूं लेकिन मैं यह भी चाहती हूं कि समय के साथ मराठी भी बदलें। आज के जमाने में अंग्रेजी को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। चीन के लोग भी यह बात जानते हैं। मैं चाहती हूं कि मराठी सिर्फ पी । एल . देशपांडे का साहित्य न पढ़ें बल्कि प्रेमचंद और दूसरी भाषाओं के साहित्यकारों को भी पढ़ें। त्वरित टिप्पणी करते हुए उद्धव ठाकरे के बारे में स्मिता ने कहा कि मुझे लगता है कि बालासाहब ने उन्हें बहुत जल्दी , बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। यह जिम्मेदारी देने से पहले उन्हें राजनीति में और ट्रेनिंग देनी चाहिए थी।Ó
सच तो यही है कि बीते दिनों विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद उन्होंने शिवसेना के मुखपत्र सामना में मराठी मानुस को जमकर खरी-खोटी सुनाई। बाला साहब ने उन्हें गद्दार तक कह डाला और फिर सचिन तेंदुलकर उनके निशाने पर आ गए। यही नहीं अब बाल ठाकरे के समर्थकों ने भी इसी राह पर चलते हुए एक टी।वी.चैनल के कार्यालय पर हमला कर दिया। सचिन ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें मराठी होने पर गर्व है,लेकिन वे पहले भारतीय हैं और मुंबई हर भारतवासी की है सचिन के इस बयान पर मुंबईवासियों को शायद ही कोई एतराज हो मगर बाल ठाकरे को यह मराठी अस्मिता के खिलाफ लगता है। दरअसल, महाराष्ट्र की राजनीति में क्षेत्रवाद और भाषावाद के बल पर ठाकरे ने जो मुकाम हासिल किया था वह धीरे-धीरे दरकने लगा है। बाला साहब की आभा अब मंद पडने लगी है। भतीजे राज ठाकरे से अलग होने के बाद एक-एक करके कई कद्दावर नेता उनका दामन छोडते जा रहे हैं। बेटे उद्धव से जिस करिश्माई प्रदर्शन की उन्हें उम्मीद थी,वह भी पूरी नहीं हुई है। इसलिए कभी वह भावनात्मक हो जाते हैं तो कभी उग्र रूप धारण करने का प्रयास करते हैं। बाला साहब ने 1950 में 'फ्री प्रेस जनरल से काटरूनिस्ट के तौर पर अपने कैरियर की शुरूआत की। उनके काटरून 'संडे टाइम्स ऑफ इंडियाÓ में भी जगह पाते रहे, 1960 के दौर में ठाकरे ने काटरून वीकली 'मार्मिकÓ का प्रकाशन किया, जिसके माध्यम से सही मायने में उन्होंने क्षेत्रवाद की राजनीति में कदम रखा। बाला साहब अपने काटरूनों के जरिये गैरमराठी खासकर गुजराती और दक्षिण भारतीयों पर प्रहार करते रहे। 19 जून, 1966 को शिवसेना के अस्तित्व में आने के बाद प्रहार के उनके तरीके में बदलाव आया। महाराष्ट्र में हिंसक राजनीति की शुरूआत यहीं से मानी जा सकती है। बाला साहब के तौर-तरीकों की वजह से देश में उनकी छवि भले ही हिटलर की बनी,लेकिन महाराष्ट्र में उन्हें एक ऐसे शेर के रूप में देखा जाने लगा जिसकी दहाड में बडे-बडों को हिलाने का माद्दा था। 1995 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन का सत्ता में आना साफ तौर पर इस बात का सुबूत था कि महाराष्ट्र की जनता को उनसे कोई गिला-शिकवा नहीं है। स्थानीय लोगों को तवज्जो देने का जो मुद्दा उन्होंने उठाया उस पर वे हमेशा कायम रहे। उन्होंने मराठियों को नौकरियों में प्राथमिकता देने की वकालत की,इसके लिए हिंसक प्रदर्शन किए। बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने और हिंदुओं से आत्मघाती दस्ते तैयार करने की बातें करके ठाकरे ने शिवसेना की पहचान पूर्णत: हिंदूवादी संगठन के रूप में बनाई,लेकिन बाद के दौर में उनकी कार्रवाइयों का दायरा इतना विस्तृत हो गया कि लोगों को इस संगठन और बाला साहब के व्यक्तित्व को पचाने में असहजता होने लगी। वेलेंटाइन-डे के विरोध से लेकर हर छोटी बात पर बखेडा खडा करने की शिवसैनिकों की आदत से खासकर युवा वोट बैंक छिटककर ठाकरे से दूर चला गया और रही सही कसर परिवारिक कलह ने पूरी कर दी। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच की तनातनी ने पार्टी को तो कमजोर किया ही,ठाकरे के विरोधियों को भी उन पर कटाक्ष करने के कई अवसर प्रदान किए। राज ठाकरे ने जब शिवसेना से निष्क्रिय लोगों को निकाले जाने की मांग और 'सामनाÓ के संपादक संजय राउत की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की तो पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने उनका भरपूर समर्थन किया। राणे को भी कभी शशिवसेना से निष्कासन का दर्द झेलना पडा था। 2005 में राज और उद्धव ठाकरे के बीच विवाद चरम पर पहुंच चुका था और 2006 आते-आते सुलह की सारी संभावनाएं भी शिथिल पड र्गई।नतीजतन, 9 मार्च, 2006 को राज ठाकरे ने 'महाराष्ट्र नवनिर्माण सेनाÓ के रूप में नई पार्टी का गठन किया। पार्टी गठन के वक्त राज ठाकरे के पास न तो नए मुद्दे थे और न ही नई विचारधारा। उन्होंने केवल उन्हीं रास्तों पर आगे बढम्ने में भलाई समझी जो उन्हें चाचा यानी बाल ठाकरे ने दिखाए थे। राज ने एक तरह से शिवसेना के शुरूआती दिनों को फिर से पुनजीर्वित किया। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने मराठी हितों की बात उठाई, जिसको खासा समर्थन भी मिला। कुल मिलाकर कहा जाए तो विधानसभा चुनावों में शिवसेना को नुकसान पहुंचाने में राज ठाकरे बहुत बडम हाथ रहा। आज की स्थिति में अगर देखें तो राज ठाकरे का नाम और कद बाल ठाकरे की तुलना में ज्यादा बडा हो गया है। उन्होंने चाचा द्वारा फैंके गये मराठी मानुस के कार्ड का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल करके राज्य में अपने लिए अच्छी खासी जमीन तैयार कर ली है। यह उनके बढते कद का ही असर है कि अमिताभ बच्चन सरीखे कलाकार भी उनसे माफी मांगने में नहीं हिचकिचाते। ं
कुछ वक्त पहले एक टीवी कार्यक्रम में अमिताभ ने राज से माफी मांगी थी। निर्माता निर्देशक करण जौहर तो बाकायदा राज ठाकरे के दरबार में हाजिरी लगाकर उनसे माफी मांगकर आए थे। उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने 'मुंबईÓ को 'बॉम्बेÓ कह दिया था। राज को कट्टर मराठियों के साथ-साथ युवा वर्ग का भी समर्थन प्राप्त है। जेट एयरवेज मामले से इसकी तस्दीक हो चुकी है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया है,जो युवाओं को नागवार गुजरे। संभव है कि आने वाले वेलेंटाइन-डे पर वे प्यार करने वालों की शिवसेना से हिफाजत का कोई नया शिगूफा छेडे। राज ठाकरे के बहुत थोडे अंतराल में इतनी प्रसिद्धि हासिल करने के पीछे राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और एनसीपी का भी बहुत बडा हाथ है। दोनों दल अच्छी तरह जानते हैं कि भतीजे को प्रोत्साहन देकर चाचा को कमजोर बनाया जा सकता है।

शनिवार, 28 नवंबर 2009

जो उजड़ेंगे, कहां जाएंगे

विस्थापित किसानों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार की ओर से कई कदम उठाए जाने की बात हो रही है। सरकार का कहना है कि 7 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा चुका है, मगर कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। राज्य में विभिन्न परियोजनाओं के लिए 30,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना है, अब तक विभिन्न परियोजनाओं के लिए 7 हजार एकड़ जमीन का किया जा चुका है।
नई औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण की वजह से विस्थापित होने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए पश्चिम बंगाल सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं नजर आ रही है, जबकि जमीन पर अधिकार को लेकर इस राज्य में कई हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं। सच तो यह भी है कि परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण पर हिंसक विरोध तक झेल चुकी पश्चिम बंगाल सरकार अब विस्थापित किसानों के जख्मों पर पैकेज का मरहम लगा रही है। विस्थापित किसानों के पुनर्वास के लिए अब राज्य सरकार की ओर से बेहतर कदम उठाए जा रहे हैं। विस्थापित किसानों को जेएसडब्ल्यू बंगाल स्टील और भूषण स्टील की ओर से मुफ्त में शेयर देने की घोषणा के बाद अब मुफ्त में जमीन देने की बात की जा रही है।सूत्रों के मुताबिक, कंपनी के इस तरह के पुनर्वास पैकेज को पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआईडीसी) को सौंप दिया गया है। इसके तहत अधिग्रहण से प्रभावित लोगों को मुआवजा के अलावा जमीन भी दी जाएगी।
कहा जा रहा है कि प्रदेश सरकार को विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं के लिए 30,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करना है। इसमें से 7,000 एकड़ जमीन का आवंटन किया जा चुका है और शेष जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया के अलग-अलग चरणों में है, लेकिन इससे प्रभावित होने वाले लोगों के लिए कोई ठोस व्यवस्था किया जाना फिलहाल बाकी है। प्रदेश सरकार में वणिज्य एवं उद्योग मंत्री निरुपम सेन और जमीन एवं भूमि सुधार मंत्री अब्दुर रज्जाक मुल्ला का कहना है कि आंकड़ों को इक_ा किया जाना अभी बाकी है। बकौल सेन, 'हम केवल महत्वपूर्ण एवं बड़ी परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण कर रहे हैं। ज्यादातर कंपनियों ने जमीन की सीधी खरीदारी की है।Ó मुल्ला का कहना है कि जिला कलेक्टरों से आंकड़े एकत्र करने होंगे। प्रस्तावित परियोजनाओं में लोहे और इस्पात की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। वहीं, पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम के सूत्रों का कहना है कि जमीन खोने वालों की पूरी जानकारी तभी मिल पाएगी जब परियोजनाएं आवंटित कर दी जाएंगी।
दरअसल, यह पैकेज भूषण स्टील के प्रस्तावित बीस लाख टन के स्टील प्लांट और 1,000 मेगावाट क्षमता वाले बिजली संयंत्र के लिए सौंपा गया है। गौरतलब है कि यह परियोजना कोलकाता से 260 किलोमीटर की दूरी पर आसनसोल के पास सालनपुर औद्योगिक क्षेत्र में बनाया जाना है। चालू परियोजनाओं के विस्तार के अलावा 1,09,550 करोड़ रुपये निवेश की 10 अन्य इस्पात परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इनकी सामूहिक उत्पादन क्षमता 2।8 करोड़ टन की होगी, जिनके लिए 23,590 एकड़ जमीन अधिग्रहण की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा कई विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) भी प्रस्तावित हैं। वर्ष 2006 से लेकर अब तक 14 सेज को सैद्धांतिक और अन्य 14 सेजों को औपचारिक मंजूरी मिल चुकी है। हालांकि इनमें बहु-उत्पाद वाले सेज की संख्या केवल 3 है, जिनके लिए 8,000 एकड़ जमीन की जरूरत होगी। लेकिन इतनी सारी जमीन का अधिग्रहण कोई आसान काम नहीं है। कम-से-कम पश्चिम बंगाल में तो ऐसा कतई नहीं है।
जानकारों का कहना है कि इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा प्रदेश में वाम गठबंधन सरकार की सबसे प्रसिद्ध भूमि सुधार योजना की वजह से पैदा हुई है। इसके कारण राज्य में औसत जमीन स्वामित्व का दायरा एक एकड़ से भी कम रह गया है। यही वजह है कि सिंगुर में 997 एकड़ जमीन अधिग्रहण के चलते करीब 13,000 लोगों ने जमीन गंवाई थी। इसके अलावा राजनीतिक दलों की ओर से समर्थन लेकर नक्सलियों ने भी इस मसले को उलझा रखा है।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

एक नया महासागर

पृथ्वी पर बन रहा है एक और नया महासागर। नए युग का आगाज और एक कालखंड का अंत। नतीजन, इथोपिया और इरिट्रेया के बड़े हिस्से अफ्रीका से अलग हो जाएंगे। कोई तो है जो इस संसार के तमाम प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। पुराने चीजों के जगह पर नए का निर्माण होता है और फिर नई ईबारत लिखी जाती है। अभी तक पृथ्वी पर सात महासागर ही हैं लेकिन आने वाले समय में एक और इजाफा होगा। अफ्रीका में यह नवनिर्माण प्रारंभ हो चुका है। थल जल में परिवर्तन होगा। नव सृजन होगा। थलचर विनाश होंगे और जलचर अस्तित्व में आएंगे।
अफ्रीकी भूपटल पर आई दरार कहीं-कहीं तो आठ मीटर तक चौड़ी है सैटेलाइट के आँकड़े बता रहे हैं कि हाल के दशकों में भूपटल पर आई सबसे बड़ी दरार धीरे-धीरे अफ्रीका के एक नए महासागर में तब्दील हो सकती है। भूवैज्ञानिक कह रहे हैं कि पिछले साल आई यह दरार स्वाभाविक रुप से लाल सागर की ओर बढ़ रही है। यह भी गौर करने योग्य है कि अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नए कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से दावा किया है कि लाल ग्रह नाम से जाने जाने वाले मंगल ग्रह के एक तिहाई हिस्से पर कभी महासागर हुआ करता था। उत्तरी इलिनॉयस विश्वविद्यालय और लूनर एण्ड प्लैनेटरी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने मंगल पर दर्जनों घाटियों का पता लगाने में सफलता हासिल की है। इस खोज में यह पाया गया है कि पहले से ज्ञात घाटियों की तुलना में इन घाटियों की संख्या दो गुने से ज्यादा है। विश्वविद्यालय के भूविज्ञान के प्रोफेसर वी लुओ ने कहा कि यह सभी निष्कर्ष घाटियों के नेटवर्क से प्राप्त नतीजों से निकाले गए हैं। उन्होंने कहा कि वहां और अधिक घाटियों की मौजूदगी यह दर्शाती है कि प्राचीन मंगल ग्रह पर वर्षा होती थी, वहीं उसके वैश्विक परिदृश्य को देखने से यह पता चलता है कि वहां के उत्तरी भाग में कभी विशालकाय महासागर हुआ करता था। खोज के अनुसार मंगल पर घाटियों के अस्तित्व से ऐसा लगता है कि यह धरती की नदियों से मेल खाता है और इससे यह साबित होता है कि कभी वहां जीवन हुआ करता था। उल्लेखनीय है कि जर्नल ऑफ जीयोग्राफिकल रीसर्च के प्लेनेट रिपोर्ट के अनुसार इससे पहले वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाते हुए कहा था कि मंगल पर प्राचीन काल में एक समुद्र हुआ करता था।
बहरहाल, वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि यह महासागर में तब्दील हुई तो इथोपिया और इरिट्रेया के बड़े हिस्से को अफ्ऱीका से अलग कर देगी। हालांकि इस प्रक्रिया में कुछ ज़्यादा समय लग सकता है। जैसा कि वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं, कोई दस लाख वर्ष। साठ किलोमीटर लंबी ये दरार पिछले सितंबर में आए एक भूकंप के बाद आई थी। वैज्ञानिकों के आकलनों में कहा गया है कि दरार अप्रत्याशित गति से बढ़ रही है।
जैसा कि दरार से दिखाई देता है, भूगर्भ से निकला पिघला हुआ लावा एक महासागर का आधार बनाने के लिए धीरे-धीरे ठोस रुप ले रहा है। ऑक्सफर्ड़ यूनिवर्सिटी के डॉक्टर टिम राइट का कहना है कि यदि दरार इसी तरह बढ़ती रही तो अफ्रीका का एक हिस्सा कोई दस लाख वर्षों में महाद्वीप से अलग हो जाएगा। इस प्रक्रिया में एक नया महासागर जन्म ले लेगा। यह दरार लाल सागर से जा मिलेगी और महासागर बहकर आ जाएगा। काबिलेगौर है कि डॉक्टर राइट ब्रिटेन और इथोपिया की उस टीम के सदस्य भी हैं जो इस दरार का अध्ययन कर रही है। यह टीम संवेदनशील भूगर्भीय उपकरणों के अलावा सैटेलाइट के चित्रों और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, के अंतरिक्ष यान एन्वीसेट के आँकड़ों का उपयोग कर रही है।
कहा जा रहा है कि यदि इसी प्रकार प्रकृति में नए सृजन होते रहे, तो किसी प्रकार की अनहोनी से भी मनाही नहीं की जा सकती है। धरती का तापमान शायद हमारे कारण बढ़ रहा है, शायद नहीं! इस संबंध में कुछ भी सिद्ध नहीं किया जा सका है। जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय समिति आई.पी.सी.सी.की मानें तो अधिकांश वैज्ञानिकों के अनुसार मानवीय गतिविधियाँ ही धरती को और गर्म कर रही हैं, हालाँकि इसका खंडन करने वाले कई वैज्ञानिक तथ्य भी मौजूद हैं। कारण जो भी हो, इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि मनुष्य ने प्रकृति का न सिफऱ् दोहन किया है, बल्कि उसको नुकसान भी पहुँचाया है। कम से कम इस बारे में प्रयासों की आवश्यकता तो अवश्य है।

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

नया दौर


बीनती हूँ तुमसे अपने सपने

लेकर उन्हें आकाश में भरती हूँ उड़ान

उन्मुक्त स्वतंत्र

तुम्हारी ढेर साराी प्रेम हिदायतों के साथ

जहाँ सितारों को हथेलियों में भरकर

उनसे लिखती हूँ बादलों पर

एक श्वेत कविता

''तुम मेरे संवदेना पुरूष होÓÓ

टटोलती हूँ इन शब्दों को अपने भीतर

प्रचंड वेग से घुमड़ती रक्त शिराओं

के संग अवशेष बन चुकी

उन ख्वाहिशों में जो जाहिर करती

हैं आइनें का पीलापन

पीलापन शनै:शनै: छाने

लगता सम्पूर्ण वजूद पर,

तब जैसे जिन्दगी ढल जाती है

एक मुजस्समे में,

कभी-कभी

वह पीलापन समेट लेते हो तुम

अपने दामन में, डाल देते हो उन्हें

मुझसे बहुत दूर ब्रह्माण्ड के

दूसरे छोर पर, फिर देते हो

मुझे एक नयी लालिमा

नयी किरन

नया दौर।



(यह कविता डा. वाजदा खान की है। मैंने पढ़ी, मुझे काफी अच्छी लगी सो, अपने ब्लॉग पर आपके लिए भी लगा दिया। )

बुधवार, 18 नवंबर 2009

आतंकियों की भर्ती अमेरिका में

आमतौर पर कहा जाता है कि आतंकी संगठनों का फैलाव मुस्लिम देशों में होता है और केंद्र भी। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका ने आतंकी संगठनों को सफाया करने का ठान लिया है। अफगानिस्तान में अल-कायदा के नाम पर अमेरिकी सैनिकों ने जो तांडव दिखाया, वह जगजाहिर है। अल-कायदा सहित तालिबान का केंद्र अफगानिस्तान और पाकिस्तान माना जाता रहा है। यही से इन संगठनों को पालन-पोषण और संचालन किया जाता रहा है। मगर हाल के दिनों में संकेत मिलने लगे हैं कि तालिबान और अल कायदा दक्षिण और मध्य एशिया के साथ-साथ अब यूरोपीय देशों जैसे जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और तो और अमेरिका से भी भर्ती कर रहे हैं। भर्ती किए गए सदस्यों को आतंकवाद के प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान भेजा जा रहा है।
अमेरिकी एजेंसी अल कायदा और तालिबान के निशाने पर आए नए देश अपने नागरिकों को इन संगठनों में जाने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं। जर्मन खुफिया सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि जनवरी से कम से कम 30 जर्मन नागरिक आतंकवाद का प्रशिक्षण लेने के लिए पाकिस्तान जा चुके हैं। सूत्रों के अनुसार, जर्मनी में जर्मन तालिबान नामक एक समूह का अस्तित्व में आना भी खतरे का संकेत है। कुछ दिनों पूर्व जर्मन अधिकारियों ने बताया कि इस साल के शुरू में हैम्बर्ग से दस सदस्यों का एक समूह पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ। इसका नेतृत्व सीरियाई मूल का एक जर्मन नागरिक कर रहा था। इस समूह में जातीय तुर्क और जर्मनी के ऐसे मूल निवासी शामिल थे जिन्होंने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था। एक सदस्य अफगान मूल का भी था।
अन्य यूरोपीय देश भी अपने नागरिकों को अर्धसैनिक प्रशिक्षण लेने के लिए पाकिस्तान जाने से रोक रहे हैं। अगस्त में पाकिस्तानी अधिकारियों ने उत्तर वजीरिस्तान जा रहे 12 विदेशियों को गिरफ्तार किया था जिनमें चार स्वीडिश नागरिक थे। इसी प्रकार कहा जा रहा है कि बेल्जियम और फ्रांस के कुछ नागरिकों को भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण दिया गया। एक खुफिया रिपोर्ट में डच खुफिया एजेंसी ने हाल ही में कहा था कि अल कायदा की हमले करने की क्षमता में पिछले कुछ वर्षों में इसलिए अधिक वृद्धि हुई है कि इसने अन्य उग्रवादी समूहों के साथ गठजोड़ किया है। एजेंसी के अनुसार, अब इन समूहों के जेहादियों का एजेंडा अंतरराष्ट्रीय हो रहा है और पश्चिम में खतरा बढ़ा है। अमेरिका में भी अधिकारियों ने कांग्रेस की बैठकों और खुफिया रिपोर्टों में अल कायदा तथा तालिबान द्वारा अमेरिकी नागरिकों की भर्ती किए जाने को लेकर चिंता जताई है। इस साल अमेरिका में अधिकारियों ने मिनियापोलिस से लेकर न्यूयार्क तक ऐसे कई लोगों को गिरफ्तार किया जिनकी तालिबान या अल कायदा ने भर्ती की थी और आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया था। गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अल कायदा ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का पतन मुस्लिम जगत के हाथों होगा। 11 सितंबर के आतंकवादी हमले की आठवीं बरसी पर जारी 106 मिनट के नए वीडियो में यह चेतावनी दी गई है। आतंकवादी संगठन की वेबसाइट पर जारी किए गए इस अरबी भाषा के वीडियो में अमेरिका को यह चेतावनी दी गई। कूटनीतिक दृष्टिï से अलकायदा के इस अभियान को काफी संजीदगी के संग देखा जा रहा है। मुस्लिम देशों के लोगों को अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय देश में आना-जाना मुश्किल होता है, लेकिन अपने नागरिकों को कोई भी देश उस प्रकार के शक की निगाहों के साथ नहीं देखता है। सो, अलकायदा ने अपना फैलाव यूरोप व अमेरिका की ओर किया।
इधर, अल कायदा के वांछित कमांडर अबु याह्या अल लिबी ने चीन के खिलाफ जिहाद छेडऩे का आह्वान किया है क्योंकि वह मुस्लिम बहुल शिनजियांग क्षेत्र का दमन कर रहा है। अल लिबी ने उयघुर निवासियों से चीन के शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेडऩे का आह्वान किया और मुस्लिमों से उयघुरों की मदद करने का अनुरोध किया। ऐसा पहली बार हुआ है जब अल कायदा ने अपनी संगीनें चीन पर तान दी हैं और उसके नेताओं को धमकी दी है कि उनका हश्र भी वैसा ही होगा जैसा अफगानिस्तान में रूस का हुआ था। लिबी ने वेबसाइट पर डाली गई वीडियो रिकार्डिंग में कहा,' यह आज के मुस्लिमों का फर्ज है कि वे पूर्वी तुर्कीस्तान में अपने भाइयों के साथ खड़े हों और जब तक वे जिहाद के लिए गंभीर रूप से तैयार नहीं होंगे, तब तक इस प्रभाव से बचा नहीं जा सकेगा।Ó

सोमवार, 9 नवंबर 2009

चुप्पी तोड़ो नहीं तो डूब मरो

देश की सबसे पुरानी सियासी दल होने का गर्व पाले कांग्रेसियों की चुप्पी आम जनमानस के लिए समझ से परे है। कभी भाषा, क्षेत्र और जाति के नाम पर तमाम अलगाववादी संगठनों के उत्पात पर कांग्रेस की चुप्पी, शायद उत्पात का समर्थन कर रही है। वरना पिछले कुछ वर्ष से जिस प्रकार से भाषा और प्रदेश के नाम पर राज ठाकरे के गुण्डों ने उत्पात मचा रखा है, उस पर सत्तारूढ कांग्रेसी कुछ कार्रवाई जरूर करते। लेकिन नहीं की? आखिर क्यों? जबाव कांग्रेसी ही देंगे।
जिस जनता के बूते कांग्रेस-एनसीपी सत्ता के द्वार तक पहुंची है और महाराष्टï्र अपने विकास पर इठला रही है, उसमें मराठियों की योगदान कितनी है और गैर-मराठियों की कितनी- यह मराठी और कांग्रेसी से बेहतर कौन जान सकता है।
हालिया घटनाक्रम में जिस प्रकार से समाजवादी विधायक अबू आजमी को राष्टï्रभाषा हिंदी में शपथ लेने पर मनसे विधायक राज कदम ने थप्पड़ जड़ा, वह सीधे तौर पर संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के गाल पर तमाचा है। राष्टï्रभाषा का यह अपमान? शायद मराठी मानुष के नाम पर उदंडता करने वाले क्षुद्र मानसिकता के लोग ही कर सकते हैं। राष्टï्रवाद के समर्थक नहीं।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की दबंगई की गवाह आज महाराष्ट्र विधानसभा भी बनी। विधायकों के शपथ ग्रहण के दौरान हिंदी में शपथ लेने पर एमएनएस विधायक हाथापाई पर उतर आए। एमएनएस के एक विधायक, राम कदम ने हिंदी में शपथ ले रहे समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी को थप्पड जड़ दिया। महाराष्ट्र विधानसभा में आज विधायकों का शपथ ग्रहण चल रहा था। एसपी के विधायक अबू आजमी ने जैसे ही हिंदी में शपथ लेना शुरू किया, एमएनएस विधायकों ने हंगामा शुरू कर दिया। गैलरी में बैठे एमएनएस समर्थकों ने भी विधानसभा में पर्चे फेंके और नारेबाजी करने लगे। इस बीच सपा विधायक अबू आजमी की तरफ बढ़ गए और हाथपाई पर उतर आए। एक विधायक राम कदम ने अबू आजमी को थप्पड़ जड़ दिया। इसी बीच दूसरी पार्टियों के विधायक बीच-बचाव के लिए आ गए और उन्होंने अबू आजमी को एमएनएस के विधायकों से अलग किया। अबू आजमी ने इस मामले में राज ठाकरे की गिरफ्तारी की मांग की है। उधर, एसपी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी इस घटना की निंदा की है और एमएनएस को देशद्रोही संगठन बताया है।