शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

ना...ना... नरेगा

राष्ट्रीय रोजगार योजना यानी नरेगा के तहत हर महीने साढ़े तीन हजार करोड़ से कुछ ज्यादा और साल भर में 44 हजार करोड़ का प्रवधान किया गया । लेकिन पहले सौ दिन में 12 हजार करोड़ रुपये नरेगा में देकर सरकार ने क्या किया, इसका कोइ लेखा-जोखा नहीं है । 2008 में भी मनमोहन सिंह ने ही लालकिले पर झंडा फहराया था और 2009 में भी । किसानो को लेकर दर्द दोनो मौकों पर उभारा था । लेकिन इस एक साल में देश भर में तीन करोड़ से ज्यादा किसान मजदूर हो गये । संयोग से आजादी के बाद मजदूरों में तब्दील होने का किसानो का यह सिलसिला सबसे तेजी से उभरा है। लाल किले से अपने संबोधन में मनमोहन सिंह ने जिस तरह से नरेगा पर ज़ोर दिया उससे यह तो पता चलता ही है कि केन्द्र की मंशा वास्तव में गरीबों तक पहुँचने की है पर इसमें सबसे बड़ा पेंच जो हमेशा से ही फंसा है वह यह कि केन्द्र को इसके लिए आखऱि में राज्य सरकारों पर ही इसके लिए निर्भर होना है क्योंकि केन्द्र केवल पैसे का आवंटन ही कर सकता है और इसके उपयोग के बारे में राज्यों से कह सकता है । अब कुछ राज्यों ने इस योजना से अभूतपूर्व प्रगति की है वहीं कुछ राज्यों ने इसमें बहुत उदासीनता दिखाई है। इसके अंतर्गत किए जा सकने वाले कामों में अब बहुत से अन्य कार्यों को भी जोड़ा जा रहा है जिससे इस कार्य की स्वीकार्यता और भी हो जायेगी। इस योजना ने जहाँ ज़रूरत मंदों को बहुत सहारा दिया वहीं इसमें से भ्रष्टाचार की भी ऐसी गंदगी निकली कि देखने वाले भी शर्मिंदा हो गए। सारे देश में क्या हो रहा है कहा नहीं जा सकता पर हमारे सीतापुर जनपद में जिला सहकारी बैंक के कुछ कर्मियों ने जिस तरह से बन्दर बाँट कर इस कार्यक्रम की धज्जियाँ उड़ा दीं वह सारी योजना पर ही पानी फेरने जैसा है। एक चपरासी के खाते में 14 लाख रूपये और कुल अनुमानित 70 लाख का घोटाला वह भी केवल एक ही शाखा में आँखें खोलने वाला है। बात बात पर सी बी आई जांच मांगने वाले किसी भी नेता को इसमें ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि इसकी जांच भी सही तरह से की जाए जिससे आगे आने वाले समय में कोई ज़रूरतमंदों का पैसा इतनी आसानी से ना खा जाए ? पर कहीं न कहीं नेताओं के संरक्षण के कारण ही सरकारी कर्मचारी इतने निरंकुश होते जा रहे हैं कि वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। राज्य सरकार एक ओर केन्द्र से धन की मांग करती रहती है और दूसरी ओर पैसे के दुरूपयोग को रोकने में कोई इच्छा शक्ति का प्रदर्शन भी नहीं कर पाती है। आज समय की मांग है कि इन सभी मामलों पर गंभीरता से विचार किया जाए कहीं ऐसा न हो कि जनता ही सामने आ जाए और जैसा कि इस बार के चुनावों में अपराधियों को मुंह की खानी पड़ी है तो आगे चलकर नेताओं को भी मुंह की खानी पड़े।
देश का अन्नदाता किसान बेहद खस्ता हालत में है और महंगाई चरम पर होने से जनता बेहाल है। सरकार ने अपने कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग का लाभ तो दे दिया लेकिन बढ़ती महंगाई के दौर में वह भी कम पड़ता दिखाई दे रहा है। निजी कर्मचारियों और मजदूरों की तो बात ही छोड़ दीजिए। वह तो किसी तरह जीवन काट रहे हैं।
याद कीजिए, यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला सप्ताह। जब सबकुछ 100 दिन में करने की बात हुई। पंचवर्षीय योजनाओं के देश में 100 दिन की योजना बनी। हरेक मंत्रालय के लिए, वह भी प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर। तब किसी ने यह नहीं पूछा कि गरीबी कब दूर होगी? महंगाई कब खत्म होगी? भ्रष्टïाचार से कब छुटकारा मिलेगा? पीने के लिए जल लोगों को कब मुहैया होगा? बिजली कब आएगी? सब को रोजगार कब मिलेगी? आदि...आदि।
यूपीए सरकार और विशेषकर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का पूरा जोर ग्रामीण विकास पर था। सो, मंत्रालय भी मिला राजस्थान के कद्दावर कांग्रेसी नेता सीपी जोशी को। लेकिन आज उनके मंत्रालय की स्थिति क्या है? बहुप्रचारित नरेगा योजना अपने लक्ष्य से कोसों दूर है। वर्ष में 100 दिन रोजगार मुहैया कराने का सरकारी वाद केवल सरकारी फाइलों में मानो दम तोड़ रहा है। हाल-बेहाल है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी के संसदीय क्षेत्र भीलवाड़ा में जब देश का पहला सोशल ऑडिट हुआ तो पता चला कि सरपंचों ने फर्जी कंपनियां बनाकर अपने सगे-संबंधियों को करोड़ों रुपए के ठेके दे दिए हैं। धीरे-धीरे राज्य के दूसरे जिले से भी ऐसी शिकायतें आने लगीं, तब राजस्थान के सुदूर गांवों में रहने वाले हजारों मजदूर और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जयपुर आकर धरना-प्रदर्शन किया ताकि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को यह पता चल सके कि उनके चहेते मंत्री सीपी जोशी की अनदेखी से उनके अपने ही प्रदेश में 'नरेगाÓ महज एक मजाक बन कर रह गई है। अव्वल तो यह कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली और राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में भी नरेगा के कामों में बड़े पैमाने पर धांधलियों की खबरें आए दिन सुर्खियों में आती रही हैं। सवाल तो यह उठ खड़ा हुआ है कि आखिर पार्टी को आक्रामक अगुलवाई देने की मशक्कत में लगे राहुल गांधी का हस्तक्षेप इस ओर क्यों नहीं हो रहा है? योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के मुताबिक, अभी तक किसी भी राज्य ने सभी पंजीकृत ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार नहीं दिया है। नरेगा कानून के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार देना ही देना है। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।
आंकड़ोंं के आधार पर बात की जाए तो फरवरी, 2006 में 200 जिलों में लांच की गई नरेगा का वर्ष 2007-2008 में और 130 जिलों में विस्तार किया गया और अब यह कार्यक्रम देश के 600 से अधिक जिलों में लागू है। ग्रामीण विकास मंत्रालय का आंकड़ा बताता है कि देश भर में नरेगा के तहत 2008-09 में करीब 4.49 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला। वर्ष 2007-08 में पंजीकृत परिवारों में से सिर्फ 10.62 फीसदी को ही 100 दिन का रोजगार मिला। जबकि वर्ष 2006-07 में यह प्रतिशत 10.29 ही था। योजना आयोग ने भी मान लिया है कि जिस रोजगार गारंटी स्कीम को वह अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिनाती आई है, असल में वह चरमरा रही है और देश के आधे हिस्से में यह नाकामी के कगार पर है। दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार स्कीम कही जाने वाली योजना में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की दिलचस्पी और भूमिका को भी खासा प्रचारित किया जाता रहा है। लेकिन अब इस स्कीम की जमीनी हकीकत सरकार के शीर्ष स्तर पर पहुंच चुकी है। बकौल, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, यह योजना देश के आधे हिस्से में विफल हो चुकी है और इसका लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा। बाकी जगहों पर भी स्थिति अच्छी नहीं।Ó यह योजना बिहार, उत्तरप्रदेश , पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, गुजरात और महाराष्ट्र में बुरी तरह नाकाम रही है। इन राज्यों से लोक सभा में तकरीब 250 सांसद चुनकर आते हैं, जो एक तरह से आधे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह उन लोगों को रोजगार मुहैया कराने में नाकाम रही है, जिन्हें रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत है। मोंटेक सिंह अहूलवालिया ने योजना की नाकामी के पीछे भ्रष्टाचार और धांधली का भी जिक्र किया है। कई जगहों से बजट में लिकेज, लालफीताशाही और हेराफेरी की शिकायतें मिली हैं।
और प्रदेशों की बात ही क्या, जब केंद्रीय मंत्री के अपने ही प्रदेश में जहां उनकी पार्टी ही सत्तासीन है, वहां के आलम पर गौर फरमा कर देखा जाए तो राजस्थान में नरेगा के भ्रष्टाचार का जैसे जैसे खुलासा हो रहा है सरकार उससे बचने के तरीके विकसित कर रही है। नरेगा के भ्रष्टाचार को जिस सामाजिक मूल्यांकन के तहत पकड़ा जा रहा था सरकार ने उसी सामाजिक मूल्यांकन (सोशल आडिट) पर सरकारी पहरा बैठा दिया है. अब सामाजिक कार्यकर्ताओं की जगह सरकारी अधिकारी नरेगा का सामाजिक मूल्यांकन करेंगे। चाहे काम करने वालों की संख्या हो या फिर सरकार की ओर से सर्वाधिक पैसे देने की बात रही हो। महिला मजदूरों की संख्या भी राजस्थान में ही सबसे अधिक रही है। तो फिर भ्रष्टाचार में कहाँ पीछे रह सकती है। राजस्थान में आरम्भ से ही नरेगा विवादों के साये में चली आ रही है। पूर्व की भाजपा सरकार ने इसके नाम के साथ राजस्थान नाम जोडकर विवादों की शुरूआत कर दी थी।
काबिलेगौर है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केन्द्र में ग्रामीण विकास मंत्री बने। उसके बाद से प्रदेश में नरेगा विवादों का दूसरा नाम बन गया। डां सी पी जोशी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र भीलबाडा से सामाजिक मूल्यांकन की शुरुआत कराई। 11 चुनी हुई ग्राम पंचायतों में 2000 स्वयंसेवकों ने 10 दिन तक सामाजिक मूल्यांकन किया। इस दौरान 11 ग्राम पंचायतों में लगभग 20 लाख का प्रत्येक ग्राम पंचायत में घोटाला सामने आया। इसके बाद तो प्रदेश भर में भूचाल आ गया। सभी जगह से सामाजिक मूल्यांकन कराये जाने की माँग उठने लगी। आनन फानन में सरकार ने और 16 जिलो की 16 ऐसी ग्राम पंचायतों में सामाजिक मूल्यांकन कराने की घोषणा कर दी, जिनमें सर्वाधिक राशि खर्च की गई थी। दूसरी ओर प्रदेश भर में सरपंच लामबंद होने लग गये। उदयपुर में तो बाकायदा 500 सरपंचों ने बैठक कर सरकार पर दबाब बनाया। पंचायतीराज के चुनावों का बहाना कर सरकार ने उस समय तो सामाजिक मूल्यांकन को रोक देने की बात कर दी। उधर सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाब चलते पूरी तरह रोक न लगाकर कुछ सुधार करने की बात कही। लवरर,धौलपुर,जैसलमेर,बाडमेंर,हनुमानगढ,पाली,प्रतापगढ,राजसमंद,सिरोही और बाँसवाडा में ये अधिकारी एक एक ग्राम पंचायत का सामाजिक मूल्यांकन करेगें. इन अधिकारियों को वित्तीय,तकनीकी और पूर्णता और उपयोगिता प्रमाण पत्रों सहित अन्य सभी प्रकार की जाँच करने का अधिकार दिया गया है. इसके साथ ही ये संबधित ग्राम पंचायतों की शिकायतों का भी परीक्षण करेगें।
सच तो यह भी है कि जिस राष्ट्रीय ग्रामीण रोजग़ार योजना यानी नरेगा ने कांग्रेस को देश की बागडोर लगातार दूसरी बार थमा दी, उसी नरेगा की असफलता ने झारखंड का सिंहासन कांग्रेस के हाथ से छीन लिया। झारखंड में मिली पटखनी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी की पेशानी पर सलवटें पड़ चुकी हैं। इस असफल कार्यान्वयन और चुनावी हार के जि़म्मेदार माने जा रहे हैं सी पी जोशी। यह इन्हीं का कमाल है कि देश भर में कांग्रेस का ब्रांड बनी नरेगा का झारखंड में कोई वज़ूद ही नहीं है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और स्वानामधन्य मंत्री सी पी जोशी की घोर लापरवाही, राज्य सरकार की अनदेखी, सरकारी पदाधिकारियों, ठेकेदारों और बिचौलियों के गठजोड़ के कारण झारखंड में दजऱ्नों श्रमिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पूरे राज्य में हलचल मच गई, लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय सोता रहा। जिस नरेगा के ज़रिए कई राज्यों में मज़दूरों को दो व़क्तकी रोटी मिलने लगी, वही नरेगा झारखंड में लूट-खसोट का ज़रिया बन गई। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि इस अंधेरगर्दी की ख़बर विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सबको थी और है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन ने भी टिप्पणी की थी कि नरेगा बिचौलियों के चंगुल में है। झारखंड के तत्कालीन राज्यपाल के एस नारायणन ने भी नरेगा के संबंध में कई सवाल खड़े किए। जि़ला कलेक्टरों को फटकार भी लगाई। पर सब कुछ सरकारी नक्कारखानों में गुम हो गया। इतने बड़े सबक के बाद भी मंत्री सी पी जोशी संभलने को तैयार नहीं। राहुल गांधी के दुलरुआ सी पी जोशी, राहुल के चहेते और सबसे महत्वाकांक्षी मंत्रालय केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायत के मंत्री हैं। मई 09 में जब यूपीए दोबारा सत्ता में क़ाबिज़ हुई तो कांग्रेस को नई दिशा और दशा देने की मुहिम में जुटे राहुल बाबा ने केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायत मंत्रालय की जि़म्मेदारी सी पी जोशी को सौंप दी। पहली बार कैबिनेट मंत्री बने सी पी जोशी को मिली इस बेहद महत्वपूर्ण भूमिका से हर कोई चौंक गया। पर चूंकि यह फैसला राहुल गांधी का था, इसीलिए पार्टी में किसी ने चूं-चपड़ नहीं की।

1 टिप्पणी:

Rajesh R. Singh ने कहा…

सुभाष चन्द्र जी आपका लेख काफी खोजपरक है कृपया अपना ईमेल आई डी ब्लॉग पर रखे जिससे आपसे सीधे संपर्क किया जा सके