मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

मुश्किल में बीमारी

भ्रष्टाचार जैसी महामारी कोई नई बिमारी नहीं है और ना ही मात्र बिहार में इसने जड़ जमाया हुआ है बल्कि ये बिमारी कमोबेश हरेक राज्य में है। लेकिन आश्चर्य तो इस बात को लेकर है कि जब सरकारी महकमा ही शराब माफिया बन जाए तो क्या किया जाए।
दरअसल, बिहार में देशी-विदेशी शराबों की दूकान धड़ल्ले से खुल रहे हैं जिनमें कुछ वैध हैं तो बहुत सारे अवैध। सच कहा जाए तो अवैध शराब की दुकानों की बाढ़, बिहार को बर्बाद कर देने वाले कोशी नदी के बाढ़ से ज्यादा भयावह और विस्तृत है। शहर के साथ साथ गाँव भी इसके चपेट में आ रहे हैं और वहां भी देशी दारु की भरमार है, जिसमें कुछ मिलावटी और जहरीली भी हैं और वो दिन दूर नहीं जब ऐसे शराब से ढेरो लोगों की जान जाने की खबर भी सुखिऱ्यों में स्थान लेकर सभी के सामने आए।
आंकड़े बताते हैं कि लगभग 5000 दारु की दुकानें लायसेंसी हैं लेकिन जो बिना लायसेंसे के सरकारी महकमें के माफियाओं के रहमो-करम पर खुली हुई हैं उनके तादाद का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि ये दुकानें भी किसी और चीज की दुकानों में खुली हुई हैं या फिर लोग अपने घर को ही ऐसी शराबों का दूकान बनाकर बेच रहे हैं।
इस भयावहता का दूसरा पहलू यह है कि ऐसे अपराध के नियंत्रण के लिए बने उत्पाद और मद्य निषेध विभाग अब नियंत्रण के बदले मदिरा के प्रति लोगो की रूचि बढ़ा कर ज्यादा से ज्यादा राजस्व कमाने के लिए आतुर दिखाई दे रहा है और इस गैर-कानूनी व्यवसाय से करोड़ो की उगाही की जा रही है। इसके रोकथाम के सन्दर्भ में विभागीय मंत्री जमशेद अशरफ स्वयं भी काफी दुखी और निरीह दिखाई देते हैं क्योंकि उनका कहना है की बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार जी भी इस अवैद्य व्यापार के लिए अपरोक्ष रूप से जिम्मेवार हैं क्योंकि उनकी शह पर आज नौकरशाही भी मंत्रालय को मात दे रही है और मंत्रालय कुछ भी चाह कर नहीं कर पा रहा है। मुख्यमंत्री जी के आदत में है की वो अपने राजनितिक सहयोगियों (मंत्री एवं विधायक) से राय लेने और विश्वास करने से ज्यादा नौकरशाहों और सरकारी महकमें के अधिकारिओं पर विश्वास करने लगे हैं और यही कारण है की नौकरशाही और सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार अपना खुला खेल खेल रहा है और जनता त्राहि त्राहि कर रही है।
बिहार में भ्रष्टाचार का यह नया रूप देख कर कोई भी सन्न रह जाए और सांप सूंघ जाए क्योंकि आज तक मंत्री, विधायकों और सांसदों के द्वारा भरष्टाचार में लिप्तता देखी जाती थी लेकिन बिहार में इसका अलग रूप देखने को मिला की मंत्रालय अशक्त है और नौकरशाही सशक्त और इसको प्रश्रय दिया जा रहा है मुख्यमंत्री के द्वारा। विभागीय मंत्री अशरफ जी का अपना अलग ही रोना है, वो कहते हैं की बिहार में शराब का ढाई हजार करोड़ रुपये का मार्केट है, जिसमे सिर्फ आठ या नौ करोड़ रूपया हे सरकार को मिल पाता है और बाकी सब अवैद्य शराब के धंधे के कारोबारी और घूसखोरों के पेट में चला जाता है।
जाहिरतौर पर यह बयान एकदम से चौकाने वाला है क्योंकि कहाँ ढाई हजार करोड़ रूपया और कहा आठ या नौ करोड़ रूपया। अगर विश्लेषण करके देखा जाए तो लगभग आठ या नौ करोड़ रूपया ही वैद्य शराब व्यवसाय से आना और लगभग दो या ढाई हजार करोड़ रूपया अवैद्य शराब के व्यवसाय के माध्यम से आना और सरकारी महकमें, नौकरशाहों, घूसखोरों, दलालों, अवैद्य व्यापारिओं के पेट में चला जाना बहुत ही आश्चर्य और दुर्भाग्य की बात है। परन्तु ये चिंता का विषय भी है क्योंकि ऊपर के आंकड़ों से ये अंदाजा लगाया जा सकता है की बिहार में धड़ल्ले से नकली और मिलावटी शराब का कारोबार चल रहा है और कई करोड़ लोग ऐसी शराब जैसे जहर को पीकर धीरे धीरे मौत के करीब अपने आपको ले जा रहे हैं।

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