सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

अमर का नया ठौर

सपा से निकाले गए अमर सिंह को लेकर कई राजनीतिक दलों के दरवाजे खोले गए थे। राकांपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस की भी चर्चा थी, लेकिन फौरी तौर पर 'लोकमंचÓ की घोषणा कर कयासों पर विराम लगाया।
कल तक जो पार्टी के हरेक निर्णय के सूत्रधार होते थे, उन्हें अब कोई पहचानता तक नहीं। लेकिन राजनीतिक जुगाड़बाजी के महारथी अमर सिंह को लेकर दूसरे राजनीतिक दलों ने अपने पत्ते खुले रख छोड़े हैं। सियासी हलकों में ऐसी खबरें आ रही हैं कि शरद पवार की राकांपा की ओर उनका झुकाव बढ़ा है। वहीं, भाजपा और बसपा के मित्रों ने भी संपर्क साधा। लेकिन, अमर सिंह ने किसी और के घर में जाने के बजाय अपना ही नया ठौर बना लिया, 'लोकमंचÓ के नाम से। अपने विश्वासी विधायकों और सांसद जयाप्रदा के माध्यम से सपा पर लगातार दबाव की राजनीति भी कर रहे हैं।
नई दिल्ली में कुछ समय पूर्व जब अमर सिंह की मुलाकात भाजपा के वरिष्ठ नेता अरूण जेटली से हुई तो जबरदस्त चर्चा हुई कि अमर सिंह भाजपा के साथ होकर उत्तरप्रदेश में पार्टी की नैय्या पार लगाएंगे। लेकिन, अमर सिंह ने तुरंत कह दिया कि यह मुलाकात दोस्ताना थी, इसके राजनीतिक निहितार्थ नहीं निकाले जाएं। कांग्रेस के रणनीतिकार भी अमर सिंह के संपर्क में है। उसके अपने कारण भी हैं। परमाणु करार मुद्दे पर संसद में जिस प्रकार से अमर सिंह ने कांग्रेस का किला सुरक्षित कराया, उसके कई कायल हैं।
बात सपा की कि जाए तो वहां का माहौल अभी भी अमर सिंह के विपरीत ही है। बेशक, जया बच्चन, संजय दत्त सरीखें लोग उनके समर्थन में हों, मगर ये लोग सपा के निर्णय को प्रभावित करने का दमखम नहीं रखते। नवनियुक्त सपा महासचिव मोहन सिंह के तेवर अभी तल्ख हैं। उन्होंने तो अमर सिंह से राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा तक मांग लिया।
सच में, कितने बुरे दिन है अमर सिंह के। समाजवादी पार्टी के पदों से इस्तीफा क्या दिया, अब उनके ही दल के नेता उनका नाम भी लेने के बजाय 'कोईÓ कह कर बोलने लगे हैं। कल तक समाजवादी पार्टी में अमर सिंह का डंका जोर-शोर बजा करता था, साथ ही दूसरे दलों के नेता भी उनका लोहा मानते नजर आते थे। लेकिन, अब अमर सिंह समाजवादी पार्टी के लिए 'कोईÓ से अधिक नहीं रह गए हैं, अगर सपा के महासचिव डॉ। रामगोपाल यादव की बात को मानें, तो ऐसा ही लगता है। इसके अलावे राजनीतिक प्रेक्षक और आम जनता भी अब कहने लगी है कि अमर सिंह के हाथ पार्टी की कुछेक निर्णय क्या हाथ लगी वे सपा को अपनी ही जागीर समझने लगे थे। कुछ घर तो डायन भी छोड़ती है कि लेकिन अपने ठाकुर को यह समझ में नहीं आया और लगे सपा मुखिया मुलायम सिंह के परिवार से उलझने? भला आजम खाँ और रामगोपाल में अंतर तो हर कोई समझता है। नहीं समझने की कीमत आखिरकार चुकानी ही पड़ी न...।
काबिलेगौर है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने स्वीकार किया कि पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र देने वाले अमर सिंह तथा एक अन्य महासचिव व उनके भाई रामगोपाल यादव के बीच कुछ विवाद रहा और यही अमर सिंह के इस्तीफे का कारण भी बना।
इसके दूसरे पहलू की बात करें तो यह भी विचार करना होगा कि जब अमर सिंह स्वयं कह रहे हैं कि वे 'फिटÓ नहीं हैं, तब अविश्वास का कोई कारण नहीं। हां, यह जरूर पूछा जाएगा कि वे किस रूप में फिट नहीं हैं। शारीरिक, मानसिक, राजनीतिक, व्यावसायिक या फिर समाजवादी पार्टी व मुलायम यादव के आस-पास रोज पैदा हो रहे नए समीकरण में 'विसर्गÓ। सभी जानते हैं कि अमर सिंह राजनीति से अधिक अपने व्यावसायिक हित को ज्यादा तरजीह देते रहे हैं। दूसरे शब्दों में वे राजनीति करते हैं, अपना व्यावसायिक हित साधने के लिए। सन् 2006 के उन दिनों को याद करें जब अमर सिंह की एक सीडी को लेकर पूरे देश में हंगामा बरपा था। भारतीय राजनीति, पत्रकारिता, सामाजिक सरोकार, उद्योग, न्यायिक प्रणाली पर उस सीडी में की गई टिप्पणियों में वर्तमान सरोकारों का एक अकल्पनीय खाका खींचा गया है। मूल्य, आदर्श, सिद्धांत, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, समर्पण आदि उक्त सीडी की बातचीत में नग्न और सिर्फ नग्न किए गए थे। अमर सिंह की बातचीत चाहे मुलायम यादव से हो या फिर उद्योगपति अनिल अंबानी, बिपाशा बसु, जयाप्रदा, पत्रकार प्रभु चावला सहित कोलकाता के व्यवसायी और कुछ अन्य लोगों के साथ हो, सभी में देश के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और दलाली की बेशर्म मौजूदगी थी। गनीमत है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उस सीडी का प्रसार रोक दिया गया, अन्यथा वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था से पूरे देश का विश्वास उठ जाता। सभी जानते हैं कि मुलायम व समाजवादी आंदोलन पर ग्रहण लगा तो अमर के कारण।

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