मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

सरकार मानती अपराध है रूकावट

बिहार सरकार पूरी तन्मया के संग प्रदेश से अपराध को समाप्त करना चाहती है। इसके लिए अपराध निरोधी अभियान को सफल बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, साथ ही बिहार विशेष अदालत विधेयक, 2009 को राष्टï्रपति से मंजृूरी के लिए भेजा जा चुका है। माना जा रहा है कि बिहार में अपराधमुक्त समाज का निर्माण करने की दिशा में किए गए राज्य सरकार के प्रयासों के नतीजे अब सामने आने लगे हैं। गृह विभाग के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। इसी का नतीजा है कि 2004 में जहां फिरौती के लिए अपहरण के 411 मामले दर्ज हुए वहां 2005 में यह मामले घटकर 251 रह गए गए। इसके बाद से हर साल फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं में निरन्तर कमी आती गई। वर्ष 2006 में 194, 2007 में 89, 2008 में 66 और इस साल मई माह तक केवल 30 मामले सामने आए।
इसी तरह गंभीर अपराध की अन्य घटनाओं में भी स्पष्ट रूप से कमी आई है। वर्ष 2004 में हत्या की 3861 घटनाएं हुई जो कम होकर 2005 में 3423, 2006 में 3225, 2007 में 2963 और 2008 में 3029 रह गई। 1 इस वर्ष मई माह तक हत्या की मात्र 1236 घटनाएं ही हुई हैं। डकैती की घटनाओं में भी निरन्तर कमी आई है। वर्ष 2004 में डकैती की 1297, 2005 में 1191, 2006 में 967, 2007 में 646 और 2008 में 640 घटनाएं हुई जबकि इस वर्ष मई माह तक डकैती की केवल 280 घटनाएं सामने आई हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2004 में लूट की 2909, 2005 में 2379, 2006 में 2138 और 2007 में 1729 घटनाएं हुईं जो इस वर्ष मई तक 704 रह गई। सड़क डकैती की घटनाओं में भी उल्लेखनीय कमी आई है। इन सरकारी आंकड़ों के तुलनात्मक विश्लेषण से पता चला है कि राज्य में डकैती, लूट और फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं समेत अन्य मामलों में प्रभावी सफलता मिली है। फिरौती के लिए अपहरण के कई मामलों की तहकीकात से यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि इनमें कई मामले विवाह के लिए युवतियों को भगाने से जुड़े थे।
बताया जाता है कि बिहार में आपराधिक घटनाओं में कमी लाने के लिए चलाए गए 'अपराध निरोधी अभियानÓ के तहत इस वर्ष सितम्बर तक पुलिस ने 81,470 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें 2,541 नक्सली शामिल हैं। राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक नीलमणि के अनुसार, 'जनवरी 2009 से लेकर सितम्बर तक 81,470 लोगों को राज्य में 'अपराध निरोधी अभियानÓ के तहत गिरफ्तार किया गया। इस अवधि में 35 बार पुलिस और अपराधियों के बीच मुठभेड़ हुई। राज्य के विभिन्न जिलों से पुलिस ने इस वर्ष पिछले महीने तक 1,730 अवैध हथियार भी बरामद किए हैं। इसके अलावा पुलिस ने अभियान के तहत 18,064 डेटोनेटर तथा 3,678 किलोग्राम विस्फोटक बरामद करने में सफलता पाई। इस वर्ष अब तक 66 मिनी गन कारखानों का भी भंडाफोड़ किया गया, जिनमें बडी़ मात्रा में हथियार बनाने के सामान बरामद हुआ।Ó
गौर करने योग्य है कि गत मार्च में ही बिहार विधान मंडल ने बिहार विशेष अदालत विधेयक, 2009 पास करके राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेज दिया था। उस पर अभी तक केंद्र की सहमति नहीं मिल पाई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह लगता है कि यदि राज्य सरकार में विभिन्न छोटे-बड़े पदों पर बैठे अफसरों व कर्मचारियों के बीच के भ्रष्ट तत्वों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान हो जाए तो सरकारी धन का अधिकांश जनता के काम में ही लगेगा। अभी स्थिति वैसी नहीं है। विकास बजट का आकार काफी बढ़ गया है, इसलिए बिचौलियों द्वारा लूट के बावजूद विकासात्मक काम पूरे राज्य में दिखाई पड़ रहे हैं। कड़े कानून के अभाव में नीतीश कुमार अपने ही भ्रष्ट अफसरों, कर्मचारियों व दूसरे तत्वों के सामने लाचार हैं। नीतीश कुमार मानते हैं कि बिहार विशेष अदालत विधेयक 2009 पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकेगा। दरअसल, नब्बे के दशक में पटना के हाई कोर्ट ने कई बार यह कहा कि बिहार में जंगल राज है। एक बार तो हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि जंगल के भी कुछ नियम होते हैं, यहां तो वह भी नहीं है। अदालत पूरे राज्य को लेकर अब ऐसी टिप्पणियां नहीं कर रही है। बिहार राजनीतिक संरक्षण प्राप्त माफियाओं के अपराध से वर्षो तक पीडि़त रहा था। नीतीश सरकार ने त्वरित अदालतों के जरिए वर्षो से लंबित आपराधिक मामलों की सुनवाई करवा कर करीब 38 हजार छोटे बड़े अपराधियों को सजा दिलवा दी। इससे आतंक का माहौल समाप्त हो गया है।
बिहार में हाल के वर्षो में जिन 38 हजार अपराधियों को निचली अदालतों ने सजा दी है उनमें आम अपराधियों के साथ साथ जातीय व सांप्रदायिक दंगे और नक्सली हिंसा के आरोपित भी शामिल हैं। यह अकारण नहीं है कि गत चार साल में बिहार में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। साथ ही नक्सली हिंसा भी घटी है, पर आम अपराध, जातीय व सांप्रदायिक दंगों और नक्सली हिंसा पर स्थायी तौर पर काबू तभी पाया जा सकेगा जब राज्य की गरीबी दूर हो।
दरअसल, राज्य सरकार की प्राथमिकता सूची में अपराध मुक्त समाज का निर्माण सबसे ऊपर है। उसके अथक प्रयासों का ही यह परिणाम है कि लोग बेखौफ़ होकर सपरिवार अपने घरों से निकलकर आवश्यकतानुसार अपना काम कर रहे हैं। कहीं भी अब भय का माहौल नहीं रह गया है। राज्य सरकार की अपराधों पर नियंत्रण करने की पहल का ही नतीजा है कि अब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के तेवर भी बदल गए हैं। दुर्दात या नये अपराधियों, सभी के खिलाफ़ बिना भेदभाव के सख्त कार्रवाई की जा रही है।

कोई टिप्पणी नहीं: