बुधवार, 9 दिसंबर 2009

एम्स बना ब्रांड तो कहां जाएंगे आम

अपने चुनावी वादों से लेकर यूपीए सरकार के मंत्री-प्रधानमंत्री सहित कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी कहती नहीं थकतीं कि कांग्रेस सदा से आम आदमी के साथ हैं। लेकिन सरकार की मंशा कुछ और ही बयां करती है। महंगाई ने तो आम आदमी की चूलेें हिलाकर रख दी हैं, फिर भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। अब हालिया घटनाक्रम में प्रधानमंत्री डा। मनमोहन सिंह की ईच्छा पर केंद्र सरकार अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) को ब्रांड बनाने पर काम कर रही है। अव्वल तो यह कि तत्संबंधी 'ब्रांडÓ बनाने का मंत्र देने वाली वेलियाथन कमेटी की रिपोर्ट पर एम्स की कार्यकारिणी समिति में चर्चा भी हो चुकी है। हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद की अध्यक्षता में गत दिनों संपन्न हुई बैठक में शासी निकाय के अधिकत्तर सदस्यों ने रिपोर्ट पढऩे का समय मांगा है। लेकिन इतना तय है कि एम्स एक ब्रांड के रूप में स्थापित होने जा रहा है।
दरअसल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पिछले शासनकाल में खुद की गठित इस वेलियाथन समिति की अनुशंसाओं को जल्द से जल्द लागू कराना चाहते हैं। कुछ दिन पूर्व प्रधानमंत्री कार्यालय से स्वास्थ्य मंत्री को संबंधित पत्र भी भेजा जा चुका है। कहा जा रहा है कि पिछले महीने ही यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई, जिसकी सिफारिशें लागू होने पर एम्स के क्रिया कलापों में आमूलचूल परिर्वन की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एम्स में संसाधनों के प्रयोग, शिक्षकों का पलायन रोकने व उनका विकास करने सहित इसके आधुनिकीकरण के कई तरीके सुझाए गए हैं। सिफारिशों के लागू होने की स्थिति में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का एम्स पर पकड़ ढीली होगी और वे सीधे एम्स के अध्यक्ष नहीं रह सकेंगे। गौर करने योग्य तथ्य यह भी हकि यूपीए के पिछले कार्यकाल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एम्स के तत्कालीन निदेशक डा। पी. वेणुगोपाल व तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. अंबुमणि रामदास में झगड़े की इंतिहा के बीच इस कमेटी का गठन किया था। इसका अध्यक्ष केरल के श्री चित्रा तिरूनल इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व अध्यक्ष डा. एम.एस. वेलियाथन बनाए गए थे। अन्य सदस्यों में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव एम.के. भान, पूर्व स्वास्थ्य सचिव पी.के. होता और स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक डा. आर.के. श्रीवास्तव शामिल थे। एम्स की कार्यकारिणी समिति में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुषमा स्वराज भी शामिल हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि वेलियाथन कमेटी की सिफारिशों को यदि पूरी तरह मान लिया जाता है तो एम्स में आम आदमी का दाखिला मुश्किल हो जाएगा। आधुनिक संसाधन और डॉक्टरों को बेहतर सुविधा आदि मुहैया कराने के नाम पर ईलाज महंगे हो जाएंगे। हालंाकि, देखा यह भी गया है कि अधिसंख्य लोग मामूली सर्दी-जुकाम-बुखार होने पर भी एम्स चले जाते हैं, विशेषकर हिंदी प्रदेशों के लोग। जबकि एम्स की परिकल्पना और अवधारणा यह नहीं है।
बहरहाल, केंद्रीय सरकार लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर जल्द ही घोषित 6 अन्य एम्स स्थापना की बात कर रही है। तभी तो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की तर्ज पर देश में बनाए जाने वाले छह संस्थानों के निर्माण कार्यों को समय पर पूरा करने के लिए सरकार ने 10 करोड़ रुपए की इनामी राशि घोषित की है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस संदर्भ में घोषणा की है कि दो साल की अवधि में इन संस्थानों का निर्माण कार्य पूरा करने वाले ठेकेदार को 10 करोड़ रुपए की राशि नकद दी जाएगी। वैसे ढाई साल की अवधि में निर्माण पूरा न करने वाले को जुर्माना देना होगा और उसका ठेका रद्द किया जा सकता है। प्रस्तावित छह नए एम्स संस्थानों के टेंडर का कार्य गत 2 नवंबर से शुरू हो चुका है। पटना, रायपुर, भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर और ऋषिकेश में एम्स जैसे छह संस्थान बनाए जा रहे हैं, जिससे उन राज्यों में एम्स जैसी बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सके और वहां के रोगियों को दिल्ली भागना न पड़े। इससे दिल्ली में एम्स और सफदरजंग में रोगियों के बोझ को कम किया जा सकेगा। केंद्रीय मंत्री गुलाब नबी आजाद का कहना है कि निर्माण ठेके की शर्त के अनुसार, निर्माण कार्य ढाई साल में पूरा न कर पाने वाले ठेकेदार का ठेका रद्द कर दिया जाएगा और उस ठेकेदार पर जुर्माना भी किया जाएगा। एम्स अनुसंधान कार्यों और रेफरल अस्पताल के रूप में बनाया गया था, लेकिन दिल्ली के बाहर से बड़ी संख्या में रोगियों के आने के कारण इसकी अनुसंधान गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं।
बहरहाल, एम्स के वरिष्ठ शिक्षकों के संगठन प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह वेलियनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने की योजना बनाकर संस्थान के व्यवसायीकरण का प्रयास कर रही है। फोरम ने कहा है कि यह संस्थान जनता को स्वास्य सुविधा मुहैया कराने और देश में मेडिकल शिक्षा तथा स्वास्य संबंधी अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था और वेलियनाथन समिति की सिफारिशें एम्स के इस मूल चरित्र को ही बदल कर रख देंगी। एम्स का गठन संसद ने कानून बनाकर किया था और इसके मूल चरित्र में किसी भी तरह का परिवर्तन करने का अधिकार केवल संसद को ही है न कि किसी समिति को। ज्ञातव्य है कि प्रो। एम एस वेलियाथन की अध्यक्षता वाली एक सदस्यीय समिति ने एम्स के संचालन में पारदर्शिता लाने तथा उसकी आय के स्रोतों को बढ़ाने के लिए कुछ सिफारिशें की थी जिन पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। फोरम के प्रतिनिधियों ने यूनी(एजेंसी) से कहा कि एम्स को वित्तीय स्वायत्ता से ज्यादा आवश्यकता शैक्षिक स्वायत्ता की है क्योंकि इतिहास गवाह है कि सरकारी सहायता प्राप्त संगठन अधिक लोकतांत्रिक होते हैं। फोरम ने जनता तक स्वास्य सुविधाएं पहुंचाने को सरकार की जिम्मेदारी बताते हुये कहा कि देश के कोने.कोने से लोग यहां इलाज के लिए आते हैं1 इन सिफारिशों के लागू होने से उनके लिए यहां इलाज कराना नामुमकिन हो जाएगा साथ ही गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए मुफ्त बिस्तरों की संख्या भी कम हो जाएगी। भारतीय उद्योग जगत को परामर्श देने के लिए मेडिकल शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के बारे में फोरम ने कहा कि इससे शिक्षक अपना ज्यादा समय परामर्श देने में ही लगाएंगे न.न. कि पढ़ाने में। उसने कहा कि एम्स की परामर्शदाता समिति में नैसकाम और अंतरिक्ष विभाग के प्रतिनिधियों को शामिल करने की जो सिफारिश की गई है उससे इसकी शैक्षिक स्वायत्तता पर खतरा उत्पन्न होगा।

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