शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

दांपत्य जीवन में क्यों आतें हैं वो


दुनिया की सबसे अनूठी, सबसे कीमती और सबसे रोमांचक अनुभूति है प्रेम! प्रेम जब भी जन्मता है, अनायास जन्मता है। यह न वक्त का ख्याल करता है, न परिवेश का! यह न जाति देखता है न धर्म, और न ही किसी और बंधन को मानता है। तमाम बंदिशों को तोड़कर नए बंधन का सृजन करता है। तभी तो प्रेम हरेक की बूते की बात नहीं है। इसी बूते को हासिल करने के फिराक में कई लोग भीड़ से कुछ अलग करने की चाह रखते हैं। यह अलग ही उन्हें वाकई औरों से अलग कर देता है। अलगाव के कारण कई अनिमंत्रित, अपेक्षित प्रसंग भी जुड़ते चले जाते हैं जिसका इल्म इनसान को विलंब से होता है।

माना कि प्रेम अंधा होता है, लेकिन यह तार-तार भी नहीं होता। उसकी अभिव्यक्ति के माधुर्य में सरसता भी घुली होती है। जिसे कई लोगों ने नहीं समझा। साफ है कि जब पति-पत्नी के संबंधों के बीच में तीसरे का आगाज होता है और स्थितियां नियंत्रण के बाहर जाने लगती है, तो प्रतिशोध की स्थिति आने से पहले पत्नी-पति को उसके अधिकार से वंचित करती है। अधिकार ग्रहण और दमन के कई अनपेक्षित प्रसंग आते जाते हैं।

पति-पत्नी का संबंध बहुत ही नाजुक माना जाता है। एक सुखी गृहस्थ जीवन के लिए यह अत्यन्त ही आवश्यक है कि पति-पत्नी एक दूसरे पर विश्वास करें और एक दूसरे के प्रति ईमानदार रहें। बहुत से परिवारों में पति-पत्नी के बीच कलह का कारण पति-पत्नी और 'वोÓ का मसला भी होता है। सबसे पहले इस कारण को जानना आवश्यक है कि पति-पत्नी के बीच में वो का आगमन क्यों होता है? अनेक मनौवैज्ञानिकों का मानना है कि पति-पत्नी के बीच में मधुर संबंध न होना, सेक्स संबंध की अपूर्णता तथा आपसी सदभावना की कमी के कारण ही पति या पत्नी के बीच में 'वोÓ का आगमन होता है। बात-बात पर पति का पत्नी पर शक करना या पत्नी का पति पर शक करना उचित नहीं होता। अगर किसी प्रकार का कोई मतान्तर है तो उसे आपस में बैठकर हल कर लेना पति और पत्नी दोनों के हक में अच्छा होता है। छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे के प्रति शंका उत्पन्न करना एवं मतान्तर को बढ़ाते रहना 'वोÓ के मार्ग को प्रशस्त करता है।

कई मामलों में ऐसा होता भी है , जब कोई स्त्री दूसरे आदमी के लिए और पुरुष , दूसरी औरत के लिए अपना घर-परिवार और सुख-सुविधा सबकुछ छोड़ देते है। आखिर क्यों ? आखिर इस विवाहेतर-प्रेम में उसे क्या मिल रहा है , जो कोई अपना सबकुछ छोडऩे पर उतारू हो जाता है ? यह जानने के लिए हमें यह देखना होगा कि हमारे यहां शादियां कैसे होती हैं। पारंपरिक शादियों में पति-पत्नी एक-दूसरे से जो पाते हैं , उसमें पाने का सुख तो होता है लेकिन विजय का गर्व नहीं। पति-पत्नी दोनों जानते हैं कि उनके बीच रिश्ते का जो पुल है , वह जाति , खानदान , हैसियत , कुंडली , दहेज़ , बिजऩेस , खूबसूरती आदि कितने ही खंभों पर खड़ा है। दुल्हन को शादी के सात फेरे लेते हुए यह पता होता है (और जीवन भर याद रहता है) कि अगर उसके पिता ने मुंहमांगा दहेज़ नहीं दिया होता तो यह बारात किसी और लड़की के घर गई होती। दूल्हे को भी यह पता रहता है कि वह अगर इतनी अच्छी नौकरी में नहीं होता या उसका बिजऩेस न होता तो आज यह खूबसूरत लड़की किसी और लड़के के गले में वरमाला डाल रही होती। इसीलिए पारंपरिक शादी में अक्सर रोमांच का अभाव रहता है। मियां-बीवी दोनों जानते हैं कि उन्हें एक-दूसरे से क्या , कितना और क्यों पाना है। उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं रहता कि उन्हें एक-दूसरे से जो मिल रहा है , उसी में संतुष्ट रहें। ज़्यादातर लोग ऐसी ही नीरस जि़ंदगी जी रहे हैं।

लेकिन कुछ खुशकिस्मत होते हैं जिनकी लाइफ में अचानक कोई खास आ जाता है जैसा कि दोस्त की प्रेमिका के साथ हुआ। यह तीसरा वह सबकुछ देता है जो पति को अपनी पत्नी से या पत्नी को अपने पति से नहीं मिल रहा है। ऐसी ही स्थिति में बीज पड़ता है निषिद्ध प्रेम का - प्रेम जो समाज की नजऱों में गुनाह है। लेकिन इस प्रेम का नशा ही कुछ और है क्योंकि इसमें जीत का एहसास है। इस प्रेम संबंध में हमें तीसरे से जो मिलता है , वह साते फेरे के रिश्ते की वजह से नहीं , किसी सामाजिक समझौते के कारण नहीं , किसी दैहिक ज़रूरत के चलते नहीं , वह मिलता है क्योंकि उस तीसरे में हममें कुछ खास पाया। इस प्रेम में एक उपलब्धि है क्योंकि उस तीसरे ने लाखों लोगों में हमें चुना है।

कहा जा सकता हैकि शायद ऐसा वहीं होता है जहां पति-पत्नी में नहीं पटती हो यानी दोनों में प्यार न हो। सवाल यह उठ सकता है कि क्या ऐसे कपल्स की जि़ंदगी में भी कोई वो आ सकता है जहां दोनों में पूरा प्यार और विश्वास हो ? क्यों होता है ऐसा ? क्योंकि संसार में कोई भी परफेक्ट नहीं होता। लव मैरिज में भी दो व्यक्ति एक-दूसरे को इसलिए नहीं अपनाते कि दोनों दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्त्री-पुरुष हैं। दोनों एक-दूसरे को इसलिए चुनते हैं क्योंकि जीवन के किसी मोड़ पर दोनों ने एक-दूसरे को अपने अनुकूल पाया। लेकिन दुनिया में एक-दो या सौ-दो सौ लोग नहीं बल्कि करोड़ों लोग हैं। ऐसा बिल्कुल मुमकिन है कि आज कोई लड़की आपको बहुत अच्छी लगी और आपने उससे शादी कर ली लेकिन साल , दो साल बाद कोई और लड़की मिली जिसमें कुछ और खासियतें हैं जो आपकी खुद की चुनी पत्नी में नहीं , और आपको वह भी अच्छी लगने लगे। यही हाल किसी लड़की का भी हो सकता है जिसने किसी लड़के को खुद चुना हो लेकिन कुछ सालों बाद कोई और लड़का उसे अच्छा लगने लगे क्योंकि उसमें कुछ और खूबियां हों। कहने का मतलब यह कि पारंपरिक शादी हो या लव मैरिज , जि़ंदगी में किसी तीसरे के आने के चांसेज़ हर जगह हैं। कहीं बात बढ़ती है , कहीं दबकर रह जाती है क्योंकि प्रेमी या प्रेमिका के लिए परिवार तोडऩा बहुत कम लोग चाहेंगे। ऐसे में ज़्यादातर रिश्ते गुपचुप ही चलते हैं। कुछ हिम्मतवाले समाज की परवाह किए बिना आगे भी बढ़ जाते हैं।

फ्र ायड ने कहा था कि सेक्स रचनात्मकता की प्रेरणा है। उसकी बात सिद्धांत रूप में सही है या नहीं, यह मनोशास्त्रियों का विषय है लेकिन व्यावहारिक जीवन में दुनिया के कई साहित्यकारों का जीवन इस अवधारणा को सच साबित करता है। तभी तो उन्हें पत्नी के अलावा एक या अनेक प्रेमिकाओं की जरूरत महसूस होती है।

कई हैरतअंगेज वाकये चौंकातें हैं जब सुनने में आता है कि बड़े और परिपक्व बच्चों की माताओं तक से शादी करने के लिए जवान कुंवारे तैयार खड़े हैं। अब इस तरह की खबरों में कोई भी अनहोनी बातें नहीं रह गई। विवाहोत्तर संबंध भी अब खूब फल-फूल रहे हैं। यही गति रही तो यकीनन कुछ वर्षों में ही समाज पूर्ण रूप से बदल चुका होगा। वैवाहिक संस्थाएं खत्म हों न हों लेकिन उसका स्वरूप परिवर्तित होगा। इन परिवर्तन के विरोध में कहने वाले तमाम लेखकों को अगर टटोल कर पूछा जाये जो वे स्वयं अपनी जवानी में किसी न किसी नारी से मित्रता और संबंध बनाने के लिए उतावले रहे होंगे। उनमें से कइयों को मौका नहीं मिला होगा तो कई ने छुपकर अचानक मिले अवसरों का लाभ अवश्य उठाया होगा। चूंकि, पहले घर से बाहर स्त्री का निकलना संभव नहीं था। कई परिवार परामर्शदाता मान रहे हैं कि एक ऐसे अविश्वास के चलते शादियां टूटने के आंकड़े बढ़ रहे हैं जो है भी और नहीं भी, इसे वर्चुअल इनफिडेलिटी कहते हैं। पसंद का अलग होना, एक दूसरे को समय न देना और सैक्स संतुष्टि न होना जैसी चीजें इस अलगाव के कारण माने जा रहे हैं। यानी शादी के बाद पति और पत्नी एक सांझा जिंदगी जीने के बजाय अलग-अलग जिंदगी या सेकेंड लाइफ बिता रहे हैं और इसकी जिम्मेदारी एक दूसरे पर थोप रहे हैं। काउंसलर मानते हैं कि ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। एक केस ऐसा आया है, जिसमें एक पत्नी ने कहा कि उसके पति ने इंटरनेट पर जाकर एक अन्य महिला की छवि के साथ पत्नी का रिश्ता कायम कर लिया है और यह उसके साथ बेईमानी है। जबकि उसके पति के अपने तर्क हैं। पति का कहना है कि वह उस महिला से कभी न तो मिला है और न वह मिलने की ही कोई योजना बना रहा है। उसकी यह सेकेंड लाइफ बिल्कुल उसी तरह है जैसे उसकी पत्नी टीवी देखते हुए खो जाती है और उसे भूल जाती है। उधर, पत्नी का तर्क है कि यह वर्चुअल मैरिज ही सही, लेकिन वह महिला और उसका पति एक दूसरे के लिए वास्तविक धन खर्च कर रहे हैं। पति और पत्नी के बीच आने वाली तीसरी महिला का कहना है कि हम दोनों के बीच गहरा विश्वास है और दोनों एक-दूसरे से हर बात साझा करते हैं। पति के नजरिए से देखें, तो वह अपनी पत्नी को नजरअंदाज कर जिन महिलाओं के साथ रिश्ता बना रहा है वे उसकी कल्पनाओं में न्यूड डांसर्स और उत्तेजक महिलाएं हो सकती हैं जबकि उसकी पत्नी नहीं। पत्नी का तर्क यह भी है कि उसके पति का रात दिन इन्हीं महिलाओं की छवियों के साथ मशगूल रहना आदत नहीं बल्कि उसकी जिंदगी है।

असल में मनुष्य प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र है। वह अपने संबंधों में कभी भी बंधा हुआ नहीं रहना चाहता। परिवर्तन उसका नैसर्गिक स्वभाव है और नयापन उसकी चाहत। हकीकत है कि इस शारीरिक भूख, जिसे मृगतृष्णा कहकर हंसी में उड़ा दिया जाता है, को समाप्त कर दिया जाये तो जीवन नीरस हो जायेगा। वैसे तो यह संभव नहीं लेकिन अगर ऐसा हो भी गया तो न तो कोई संबंध रहेगा, न ही कोई बंधन और न ही कोई परिवार और समाज। यह नैसर्गिक चाहत और इसी छटपटाहट के कारण मनुष्य स्वयं की बनाई पारंपरिक व्यवस्थाओं के विरोध में अनैतिक व सामाजिक विद्रोह करता रहा है। आज कई परिवार के अंदर झांक कर देखें तो जो टूट नहीं चुके हैं वे टूटने की कगार पर हैं या फिर घुटन इतनी है कि लोग उससे निकलना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि सभी परिवार से विमुख हैं, कइयों में भावनाएं हैं, जिस कारण से वे दु:खी होते हुए भी साथ रहना पसंद करते हैं। अन्यथा कइयों के साथ मुश्किल इस बात की है कि उनके पास रास्ते नहीं है। नयी मंजिल नहीं है। शारीरिक और मानसिक शक्ति नहीं है। और जिस दिन जिस किसी को भी यह प्राप्त होती जा रही है वह परिवार के बंधन से टूटकर भाग रहा है। इस सत्य को हमें स्वीकार करना होगा।

2 टिप्‍पणियां:

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही उम्दा लेखन ............एक बेहद खुब्सूरती से समाजिक समस्या पर लिखा गया यह लेख .....अतिसुन्दर