सोमवार, 17 अगस्त 2009

पतियों का 'शिमला घोषणापत्र'

संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ने भले ही पत्नियों को तारण का अधिकारी बताया हेा और आजाद हिन्दुस्तान में महिलाओं के संरक्षण हेतु तमाम कानूनी कवायदें हो रही हों। लेकिन बेचारे पतियों की हाल जानने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। दहेत प्रताडऩा कानून सहित तमाम छेड़छाड़ कानून किसी न किसी रूप में महिलाओं का ही पक्ष लेते हैं। जबकि कई बार मामला इसके उलट भी रहता है। लेकिन....
इतिहास की बिसात पर वर्तमान की नींव रखी जाती है और उसी नींव पर भविष्य की इमारत खड़ा करने के ख्वाब संजोए जाते रहे हैं। सो, आज के आधुनिक प्रताडि़त पतियों ने हाल ही में 'शिमला घोषणापत्रÓ जारी किया है। कहने-सुनने-पढऩे में भले ही अजीब लगे लेकिन पति-पत्नी का संबंध हिंदुस्तान-पाकिस्तान के मानिंद रहे हैं। पति-पत्नी की नोंक-झोंक दिनचर्या में शुमार होते रहे हैं। जब पानी सिर के ऊपर हो जाता है तो बगावत का बिगूल फूंका जाता है। और तो कोई चारा भी नहीं होता...
तभी तो कुछ पत्नियों के सताए पतियों ने प्रण लिया है कि अब वे किसी भी पुरुष को प्रताडि़त नहीं होने देंगे। सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन के बैनर तले एकजुट हुए प्रताडि़त पतियों ने 'शिमला घोषणापत्रÓ जारी किया है। मांग की है कि पत्नी द्वारा पति की प्रताडऩा रोकने के लिए अलग से पुरुष कल्याण मंत्रालय खोला जाए। उल्लेखनीय है कि पत्नी द्वारा कानून की धाराओं का दुरुपयोग कर जो जुल्म पति और उसके परिजनों के साथ किए जाते हैं, उससे कई हंसते-खेलते परिवार खत्म हो गए हैं। पतियों के साथ हो रहे अन्याय पर चर्चा के लिए शिमला में देशभर से लोग जुटे थे। दो दिन की चर्चा के बाद यह घोषणा पत्र जारी किया गया है। इसमें मांग की गई है कि पत्नियों द्वारा दहेज उत्पीडऩ के नाम पर मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताडि़त करने और घरेलू हिंसा के मामलों के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों को जमानती बनाया जाए। इसके लिए एक राष्ट्रस्तरीय कमेटी का गठन भी किया जाए। क्योंकि पतियों और उनके परिवार के खिलाफ दहेज प्रताडऩा के 98 फीसदी मामले झूठे पाए गए हैं। घोषणा पत्र में महिलाओं की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन की भी मांग की गई है।
हाय रे पतियों की आजादी? भारतीय समाज को पुरूष प्रधान कहा जाता रहा है और नारी शक्ति की पूजा होती रही है। लेकिन वास्तविकता के धरातल पर... आधुनिकता के चादर में अंदर तक समाए हमारे समाज की वास्तविकता क्या है? कहां जा रहे हैं हम? इन्हीं सवालों के जबाव पतियों के नजरिए से ढूंढने के लिए स्वतंत्रता दिवस पर फाउंडेशन द्वारा आयोजित सेव इंडियन फेमिली के दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन में संस्था के 21 राज्यों से करीब 150 प्रतिनिधियों ने दो दिन चर्चा की। कानून की किन धाराओं का लाभ उठा कर पत्नियां पतियों को प्रताडि़त करती हैं उन पर भी चर्चा हुई। वक्ताओं ने बताया कि राष्ट्रीय अपराध अन्वेषण ब्यूरो के 2006 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 100 में से आत्महत्या करने वाले 63 पुरुषों में से 45 फीसदी शादीशुदा होते हैं। जबकि 100 में से 37 महिलाएं आत्महत्या करती हैं। इनमें से मात्र 25 फीसदी ही शादीशुदा होती हैं। महिलाएं आत्महत्या करें तो उसे दहेज प्रताडऩा व घरेलू हिंसा कहा जाता है, लेकिन जब पुरुष आत्महत्या करे तो कारण तनाव व अन्य बताए जाते हैं।
बहरहाल, सवाल अपनी जगह मुंह बाए खड़ा है कि क्या पतियों का 'शिमला घोषणापत्रÓ अपने वजूद को हासिल कर सकेगा अथवा हिंदुस्तान-पाकिस्तान की तरह कई और समझौते करने होंगे और मामला चलता रहेगा। यह तय कौन करेगा?

1 टिप्पणी:

राहुल सि‍द्धार्थ ने कहा…

इतनी जल्दी पुरूष समाज हार मान जाएगी विश्वास नहीं होता.......सदियों से बहुत जुल्म ढ़ाए है6 हमने.........