शनिवार, 8 अगस्त 2009

बदलते मापदण्ड

अगर किसी ने मुझे गदहा कहा
तो मुझे खुद पे गर्व होगा
आखिर किसी ने मेरे
सीधेपन और सहिष्णुता की पहचान की तो की।

किसी को कुत्ता कहना
उसकी वफादारी को सही आंकना है
अब तो मानव
कुत्ता कहलाने के भी काबिल नहीं रहा
वह तो खिलानेवाले को ही
काटने दौड़ता है सबसे पहले।

साँप
दूध और डंडा में
अंतर नहीं समझता है
जो भी सामने आए
उसी पर दंश छोड़ता है
इसीलिए इसकी तुलना
आदमी से की जाने लगी है।

सबसे बड़ा अपमान मुझे
आदमी कहलाना लगता है
जो अंदर और बाहर
जहर ही जह रखता है
सियार, चील और घडिय़ाल
की बिसात ही क्या
यह गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलता है।

- विपिन बादल

1 टिप्पणी:

Arun ने कहा…

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