सोमवार, 17 अगस्त 2009

आसान नहीं कांग्रेस-राकांपा के लिए

लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन से उत्साहित कांग्रेस के हाथों इस बार राकांपा प्रमुख शरद पवार को महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर कड़ी सौदेबाजी का सामना करना पड़ेगा। इस बार कांग्रेस का पलड़ा काफी भारी रहेगा क्योंकि लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है जबकि तगड़ा झटका खाने वाली राकांपा भाजपा अ©र शिवसेना से भी पीछे रहते हुए चैथे स्थान पर रही। महाराष्ट्र से एक केन्द्रीय मंत्री ने अपना नाम उजागर नहीं करने के आग्रह पर कहा कि हमारी रणनीति गठबंधन को तोड़ने की नहीं बल्कि पवार को यह अहसास दिलाने की है कि वह बदली परिस्थिति के अनुरूप आचरण करें। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष माणिराव ठाकरे ने भी कुछ दिन पहले एक बयान में लोकसभा चुनाव के बाद नई वास्तविकताअ¨ं का हवाला देते हुए कहा था कि गठबंधन सहयोगियों को सीटों के बंटवारे पर बात करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस 166 अ©र राकांपा 122 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। राकांपा ने अधिकतर सीटें चीनी पट्टी कहलाने वाले पश्चिमी महाराष्ट्र में लड़ी थीं, जो उसका गढ़ माना जाता है। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने दर्शाया कि वहां उसका आधार खिसका है। इस साल लोकसभा चुनाव के लिए सीटों की सौदेबाजी में पवार 2004 की बनिस्बत एक सीट अधिक पाने में सफल रहे थे। उनकी पार्टी को 48 में 22 सीट चुनाव लड़ने के लिए दी गई थीं।
महाराष्ट्र के मतदाताओं पर निर्भर करता है कि वे अपने प्रदेश को किस तरह की राजनैतिक पार्टी या पार्टियों के समूह को सत्ता सौंपेंगे। वैसे माहौल कांग्रेस के पक्ष में ही है। उसे पुनः सत्ता में आने की स्थिति बनी हुई है। महाराष्ट्र प्रदेश उद्योग, कृषि, व्यवसाय और विभिन्न सेवाओं का का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहांॅ के मतदाताओं की सोच उत्तर और दक्षिण भारत के मतदाताओं की तुलना में कुछ न्यारी ही रहती है। महानगरी मुंबई पर उद्योग और व्यवसाय के प्रभाव के चलते फिल्मी उद्योग जगत का एक ऐसा असर है जहांॅ से राजनैतिक दलों को प्राणवायु मिलने की अपेक्षाएं बनी रहती है। फिल्म-जगत के मतदाताओं की सूचियों में जहांॅ दक्षिण भारत, बंगाल, पंजाब, गुजरात-राजस्थान,और उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे राज्यों के मतदाताओं की संख्या अधिक है, वहंीं महाराष्ट्र की सामाजिकता और संस्कृति के परंपरागत मतदाताओं की भी संख्या कम नहीं है। इन्हीं सब मुद्दों के चलते महाराष्ट्र और विशेषकर मुंबई के मतदाताओं का मन टटोलने में राजनैतिक दलों ने अपने-अपने रथ मैदान में उतार दिए हैं। यह प्रदेश जहांॅ कभी-कभी शिवसेना जैसी हिंदूवादी पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस जैसी कांग्रेस से विलग हुई पार्टी के प्रभाव में रहा है वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भी यहांॅ दबदबा रहता आया है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो यह प्रदेश कांग्रेस पार्टी के ही निमंत्रण में रहता आया है। बीच बीच में राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक हलचलों, धु्रवीकरण और भाजपा के बढ़ते प्रभाव के कारण जरूर शिवसेना-भाजपा गठबंधन पार्टी सत्ता में बनी रही किंतु राज ठाकरे के शिवसेना से विद्रोह कर देने के बाद नवगठित एम।एन.एस.(मनसे) पार्टी के वजूद में आने से इस पार्टी को काफी धक्का लगा और वह अपने जनाधार को शनैः शनैः खोती चली गई। ऐसा ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ घटित हुआ। इस वर्ष लोकसभा के चुनाव में इस पार्टी ने निर्वाचन पूर्व अपने तेवर बरकरार रखने का पांसा फेंका था, किंतु चुनाव परिणामों ने इस दल को आइना दिखा दिया।
देश के राजनैतिक परिदृश्य के मद्देनज़र और महाराष्ट्र में चल रही राजनैतिक सरगर्मियों के आधार पर यह अब माना जाने लगा है कि महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी फिर से आत्म गौरव के साथ सत्ता पर काबिज हो जायगी। महाराष्ट्र में पिछले कुछ दौर में जो कुछ घटित हुआ उससे भी महाराष्ट्र के लिए यह उपयुक्त ही होगा कि वहांॅ कांग्रेस ही सत्ता में आये। ताज होटल, ओबेराय होटल और सी।एस.टी. के 26/11 के हादसों के दौरान जिस तरह केंद्र और राज्य सरकार की नींव हिलती दिख रही थी उस दौर में यू.पी.ए. सरकार में अगुआई कर रही कांग्रेस पार्टी ने जिस बुलंदी और व्यूह रचना के साथ अपनी पार्टी की साख जमाये रखी वह सराहनीय माना गया। केंद्रीय गृह मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री को पदच्युत कर कांग्रेस पार्टी ने बड़ी ही दूरदर्शिता का काम किया और विपक्ष के विघटनकारी इरादों को नाकामयाब कर दिया। 26/11 के हादसों के दौरान जिस तरह केंद्र और राज्य सरकार की नींव हिलती दिख रही थी उस दौर में यू.पी.ए. सरकार में अगुआई कर रही कांग्रेस पार्टी ने जिस बुलंदी और व्यूह रचना के साथ अपनी पार्टी की साख जमाये रखी वह सराहनीय माना गया। केंद्रीय गृह मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री को पदच्युत कर कांग्रेस पार्टी ने बड़ी ही दूरदर्शिता का काम किया और विपक्ष के विघटनकारी इरादों को नाकामयाब कर दिया। 26/11 की घटना के परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव एक ऐसा इम्तहान है जिसमें उसे सफलता पूर्वक उत्तीर्ण होना ही है। दूसरा मुद्दा महाराष्ट्र में राज ठाकरे द्वारा फैलाये गये प्रदेशी और गैर प्रदेश नागरिकों के मुद्दे के रायते को भी राजनैतिक आधार पर ही समेटना जरूरी होगा इसके लिए मात्र कांग्रेस के अलावा किसी अन्य दल के पास कोई मंत्र नहीं हो सकता। कांग्रेस पार्टी को इतना भर करना होगा कि सही उम्मीदवारों को सही सीट से टिकिट दे दे और जो कुछ भी पार्टी में अंतद्र्वद्व है उसे निर्वाचन के समय में भुला दें।
हालांकि सियासी हलकों में चर्चा है कि कांग्रेस महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वहां शरद पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से चुनाव पूर्व गठबंधन करेगी। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के अनुसार, दोनों पार्टियां चुनाव पूर्व गठबंधन करेंगी। गठबंधन के बारे में घोषणा जल्द ही किए जाने की सम्भावना है। कांग्रेस राज्य में रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया से भी गठबंधन की उम्मीद कर रही है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि साम्प्रदायिक ताकतें सत्ता में न आ सकें। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव अक्टूबर माह में कराए जाने की सम्भावना है। सच तो यह भी है कि कांग्रेस में यह धारणा बनी है कि लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में सत्रह सीट पाने के साथ वह राज्य की नंबर एक पार्टी के रूप में स्थापित हुई है जबकि प्रदेश में अपने को नंबर एक पार्टी का दावा करने वाली राकांपा चैथे स्थान पर लुढ़क गई है। प्रदेश कांग्रेस के नेताअ¨ं का कहना है कि इस बार विधानसभा चुनाव में राकांपा के साथ सीटों का बंटवारा करने में नई वास्तविकता को ध्यान में रखे रहना होगा। उधर कांग्रेस के इन बदले तेवरों से विचलित हुए बिना राकांपा प्रमुख पवार ने भी दबाव बनाए रखने के लिए कह दिया है कि कांग्रेस अगर साथ छोड़ना चाहती है तो उन्हें भी अकेला चलने में कोई झिझक नहीं होगी। इसके साथ ही पवार ने हालांकि यह भी कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस से गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरना चाहती है अ©र कांग्रेस आलाकमान का भी यही विचार है। केन्द्रीय मंत्री विलासराव देशमुख इस बार अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का रुख अपनाने के सबसे बड़े पैरोकार हैं। 9 साल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे देशमुख का तर्क है कि दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ें अ©र चुनाव बाद दोनों फिर साथ आ सकते हैं। पवार के प्रतिद्वन्द्वी कहे जाने वाले कांग्रेस के एक अन्य केन्द्रीय स्तरीय नेता का हालांकि विचार है कि कांग्रेस को अगर राज्य की सत्ता में बने रहना है तो उसे राकांपा से चुनावी गठबंधन बनाए रखना चाहिए।
काबिलेगौर है कि कुछ दिन पूर्व ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अ©र राज्यसभा के उपसभापति के। रहमान खान ने कहा था कि पार्टी हाईकमान महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव से पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से गठबंधन करने पर दल तथा राज्य के हितों पर विचार मंथन करने के बाद ही फैसला लेगा। महाराष्ट्र विधानसभा के महत्वपूर्ण चुनावों की तैयारियों का जायजा लेने के लिए रक्षा मंत्री एके एंटनी की अगुवाई में गठित पांच सदस्यीय समिति में शामिल खान का कहना था कि राकांपा से गठबंधन का फैसला लेना इस समिति के अधिकार क्षेत्र में शामिल नहीं है। लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन से राज्य में कार्यकर्ताअ¨ं का मनोबल ऊंचा हुआ है। अति आत्मविश्वास की कोई गुंजाइश नहीं है। गठबंधन के मुद्दे पर कार्यकर्ताअ¨ं को पार्टी हाईकमान पर पूरा भरोसा है। तालमेल को लेकर पार्टी अ©र राज्य के हितों को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय लिया जाएगा।
ऐसे में निश्चित ही लोकसभा निर्वाचन की व्यूह रचना के अनुरूप महाराष्ट्र में विविधवर्णी और विविध संस्कृतियों वाले मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में कांग्रेस पार्टी सौ प्रतिशत कामयाबी की ओर बढ़ रही है। महाराष्ट्र में वि।स. निर्वाचन के बादल छाने लगे हैं और कांग्रेस के साथ ही विभिन्न राजनैतिक दल भी अपने धुंघयाते चूल्हों से फूंक लगा रहे हैं ताकि अपनी रोटियां सेक सकें।

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