गुरुवार, 16 जुलाई 2009

संगीनों के साये में आवाम


यही पखवाड़ा था जब कोसी नदी की बाढ़ ने गत वर्ष बिहार में भारी तबाही मचाई। कोसी को बिहार का शोक भी कहा जाता है। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि कोसी नदी के पानी का अगर उचित प्रबंधन किया जाए तो इससे बिहार के बड़े भूभाग को सिंचाई की सुविधा मिल सकती और नेपाल में पनबिजली उत्पादन बढ़ सकता है। 1954 में भारत और नेपाल के बीच कोसी नदी के पानी के इस्तेमाल और प्रबंधन पर एक संधि भी हुई। लेकिन उसपर समुचित अमल नहीं हो पाया। नतीजा एक बार फिर कोहराम का अंदेशा...

नेपाल द्वारा हाल ही में कोसी नदी में बड़े पैमाने पर पानी छोड़े जाने से बिहार के हजारों लोगों को बीते वर्ष जैसी विनाशकारी बाढ़ का डर सताने लगा है। मधेपुरा, पूर्णिया, सहरसा और अररिया जिलों में लोगों में घबराहट को देखते हुए राज्य सरकार ने कोसी बांध से जुड़े अभियंताओं को सतर्क रहने और स्थिति पर नजर बनाए रखने को कहा है। दूसरी ओर नेपाल के कुसहा और मधुबन इलाके में कोसी नदी के नवनिर्मित पूर्वी तटबंध पर गंभीर संकट मंडराने लगा है। कहा गया कि नदी में पानी का डिस्चार्ज एक लाख 90 हजार क्यूसेक के आसपास पहुंचने के बाद तटबंध पर धारा का दबाव काफी बढ़ गया। बताया जाता है कि स्पर पर दबाव का मतलब साफ है कि नदी का अगला निशाना तटबंध ही होगा। लेकिन दो लाख क्यूसेक से कम में जब यह हाल है, तो आगे क्या होगा ? इस बात की सहज कल्पना की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि कोसी में कभी-कभी पानी का डिस्चार्ज 8-9 लाख क्यूसेक तक पहुंच जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर अविलंब युद्ध स्तर पर तटबंध को अपरदन से नहीं बचाया गया, तो पिछले साल की तरह एक बार फिर नदी तटबंध को तोड़ देगी। वहीं, सूचना यह भी है कि पानी के दबाव के कारण भीमनगर स्थित कोशी बराज का एक गेट (फाटक) बह गया है। फिलहाल 56 में से 29 गेट को खोलकर रखा गया है। लेकिन डाउन स्ट्रीम में पानी के दबाव को देखते हुए और गेट खोलने की जरूरत है। पता नहीं, बांकी गेटों को क्यों नहीं खोला जा रहा ।

सुपौल में तैनात एक अभियंता के अनुसार, 'सभी अभियंताओं से जरूरी उपकरणों के साथ तैयार रहने और बांध की सुरक्षा की खातिर हर स्थिति का सामना करने को कहा गया है।Ó दरअसल, भारी बारिश की वजह से नेपाल ने 1।64 क्यूसेक पानी कोसी नदी में छोड़ चुका है। कहा जा रहा है कि इस वर्ष यह रिकार्ड स्तर पर छोड़ा गया पानी है। जैसे ही यह खबर कानों-कानों होते हुए बहुसंख्यक तक पहुंची लोगों के मन में कई प्रकार की शंकाए उत्पन्न होने लगी। लोगों को किसी भी प्रकार से घबराने की बात नहीं करते हुए बिहार के जल संसाधन मंत्री बृजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि कोसी बांध सुरक्षित है और घबराने की जरूरत नहीं है। कोसी नदी में ज्यादा पानी छोड़े जाने से बांध को कोई खतरा नहीं है। यह सब महज अफवाह है। गौरतलब है कि कोशी को बिहार का शोक माना जाता है। हर साल बाढ़ और नेपाल के बांध टूटने से आने वाली बाढ़ से लाखों लोग अभिशप्त हैं। बीते वर्ष 18 अगस्त में आई बाढ़ की वजह से बिहार में 30 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे।

पिछले वर्ष जब कुसहा में तटबंध टूटा था, तो 30 से ज्यादा गेट बंद थे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर आपात स्थितियों में भी भीमनगर बराज के सभी गेट क्यों नहीं खोले जाते? कहीं सरकार और अधिकारी किसी कड़वा सच को छिपाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह बराज अपनी सारी शक्ति खो चुका है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारी समझ रहे हैं कि अगर सभी गेटों को खोला गया तो बराज ध्वस्त हो सकता है ? अगर यह सच है और इसे छिपाने की कोशिश की जा रही है, तो जनता के प्रति इससे बड़ा विश्वासघात और कुछ नहीं हो सकता है। वैसे भी भीमनगर बराज का निर्धारित कार्यकाल वर्ष 1988 में पूरा हो चुका है। कुसहा हादसे के बाद बराज के सशक्तिकरण या पुननिर्माण पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ? किन्हीं के पास आज इस सवाल का जवाब नहीं है। काबिलेगौर है कि गत वर्ष भारत और नेपाल ने नदी के पानी के प्रबंधन और भविष्य में बाढ़ जैसी आपदाओं से बचने के लिए कई उपाय करने का फैसला किया था। नई दिल्ली में भारत के तत्कालीन जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज और नेपाल के जल संसाधन मंत्री विष्णु पौडेल ने एक बैठक में इस बारे में अहम बातचीत की थी और 1954 की संधि पर ठीक तरीके से अमल करना तय हुआ था। मगर एक वर्ष बाद भी स्थिति जस की तस है।

दरअसल, बिहार के उत्तर में मूसलाधार बारिश की वजह से कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक और बागमती जैसी प्रमुख नदियां ऊफान पर हैं, जिससे कई क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है। बाढ़ के खतरे को देखते हुए बाढ़ संभावित सभी इलाकों के जिलाधिकारियों को चौकस रहने का आदेश दिया गया है। नेपाल और बिहार के सीमावर्ती इलाकों में दो दिनों से हो रही लगातार बारिश से नदियों के जलस्तर में वृद्धि देखी जा रही है। बीरपुर बैराज के सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर एम। एफ. हमीद के अनुसार, 'बैराज के ऊपर कोसी में 1,88,951 क्यूसेक पानी है जबकि बहाव के समय पानी 1,86,951 क्यूसेक है। कोसी नदी के कैनाल में 3,000 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। पानी के बहाव के कारण बैराज में दबाव बना हुआ है।Ó इतना ही नहीं, बढ़ते जलस्तर के कारण मधेपुरा और अररिया की कई छोटी नदियां ऊफान पर हैं। वाल्मीकिनगर में गंडक बैराज का जलस्तर 1. 71 लाख क्यूसेक बना हुआ है। लखीसराय जिला में किउल तथा हरूहर नदी में जलस्तर बढ़ जाने के कारण पिपरिया प्रखंड का जिला मुख्यालय से सड़क संपर्क भंग हो गया है। इसके साथ ही नेपाल में हो रही भारी बारिश के बाद कटिहार जिला के कुरसेला रेल ब्रिज पर कोसी का जलस्तर 24. 85 मीटर है, जो खतरे के निशान से नीचे है। हालांकि इसमें बढ़ोतरी के संकेत हैं। केन्द्रीय जल आयोग के एक अधिकारी के मुताबिक नेपाल से पानी छोड़े जाने के बाद बागमती नदी का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर गया है, वहीं गंडक नदी के जलस्तर में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार जलस्तर में बढ़ोतरी को देखते हुए जल संसाधन विभाग के इंजीनियरों को संवेदनशील तटबंधों पर नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं।

सच तो यह है कि कोसी, कोसी है कोई हंसी-ठ_ा नहीं ! पहले भी इसके साथ काफी मजाक किया जा चुका है। भ्रष्टाचार के कारण इसका तल गादों से भर चुका है। दशकों की लूट के कारण तटबंध भी मेड़ में परिणत हो चुके हैं। कोशी का फूंफकार तो पिछले वर्ष दुनिया देख ही चुकी है। अगर समय रहते नहीं चेता गया तो नदी डंसने के लिए मजबूर होगी।

1 टिप्पणी:

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

bhai, subhash jee, patrakarita kee pahlee ethic hai apne se jyada auron kee chinta. aap ne iska nirbhan nahin kiya hai, to kosi ke pratee aapkee chinta swang bhar hai.