गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

‘मलाला’ होने का मतलब


आखिर चरमपंथी किसी मलाला को क्यों मार देना चाहते हैं? क्या सिर्फ इसलिए, क्योंकि वह चुनौती देती है और दुनिया उसकी बात सुनने लगती है। मलाला की दशा उस मलालाई जैसी न हो, जो 18 साल की उम्र में ब्रिटिश फौजों से लड़ते हुए शहीद हो गई थी। इससे ज्यादा मलाला के लिए और क्या दुआ हो सकती है? पाकिस्तान और विशेषकर वहां की अलगाववादी शक्तियों के आगे पूरा ‘सिस्टम’ बेबस नजर आता है। उन परिस्थितियों में एक लड़की ने आवाज बुलंद की, उम्मीद जगाई। लोगों के लिए एक नई ‘आशा’ बनी मलाला यूसुफजई से तालिबानी खुश नहीं थे, क्योंकि वह लोगों को ‘हक-ओ-हुकूक’ के लिए जगा रही थी। लिहाजा, बीते दिनों पाकिस्तान की बेटी मानवाधिकार कार्यकर्ता और लड़कियों में शिक्षा की अलख जगाने वाली 14 साल की मलाला यूसुफजई पर तालिबान ने गोली दागी। अब कहा जाता है कि यह गोली मलाला के साथ ही ‘इसलाम’ के बुनियादी उसूलों पर •ाी चली है। उल्लेखनीय है कि इसलाम लड़कियों को शिक्षा हासिल करने का अधिकार देता है, जिसे रोकना किसी •ाी सूरत में जायज नहीं है। कौन है मलाला? पाकिस्तान की स्वात घाटी में बच्चों के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला युसुफजई का जन्म 1998 में मिंगोरा में हुआ था। उन्हें बच्चों के अधिकारों के कार्यकर्ता होने के लिए जाना जाता है। मलाला ने महज 11 वर्ष में ही तालिबानी गिरोह से लोहा ले लिया था। 2009 में लड़कियों के लिए शिक्षा अ•िायान की शुरुआत की। मलाला पहली बार सुर्खियों में वर्ष 2009 में आईं, जब 11 साल की उम्र में उन्होंने तालिबान के साए में जिंदगी के बारे में ‘गुल मकाई’ नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू किया। मलाला के अनुसार, तालिबान के आने से पहले स्वात घाटी एकदम खुशहाल ती, लेकिन तालिबान ने आकर वहां लड़कियों के करीब 400 स्कूल बंद कर दिए। उस दौर में मलाला ने डायरी में लिखा, ‘तालिबान लड़कियों के चेहरे पर तेजाब फेंक सकते हैं या उनका अपहरण कर सकते हैं। इसलिए उस वक्त हम कुछ लड़कियां वर्दी की जगह सादे कपड़ों में स्कूल जाती थीं, ताकि लगे कि हम छात्र नहीं हैं। अपनी किताबें हम शॉल में छुपा लेते थे।’ और फिर कुछ दिन बाद मलाला ने लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था, इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा, लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा, जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’ सच तो यह भी है कि मलाला का कामकाज तालिबानी कट्टरपंथियों की आंखों में चु•ा रहा था। 9 अक्टूबर को उसे उग्रवादियों ने गोली मार दी। अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाला समूह ‘किड्स राइट फाउंडेशन’ ने ‘अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार’ के लिए चयनित प्रत्याशियों में मलाला का नाम भी शामिल किया था। वह पाकिस्तान से पहली लड़की है, जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। मलाला की दास्तान दिखाती है कि उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी में तालिबान के जाने के बाद भी, एक 14 वर्षीय लड़की की जिंदगी कितने खौफ, दर्द और कठिनाईयों से •ारी है! नाम का भी है प्रभाव मलाला युसुफजई स्वात घाटी के बहुसंख्यक युसुफजई कबीले से ताल्लुक रखती है। स्वात घाटी के जिस मिंगोरा में मलाला का जन्म हुआ, वह मिंगोरा तालिबान का गढ़ रहा है। उसके पिता मिंगोरा में एक निजी स्कूल संचालित करते हैं। जब मलाला का जन्म हुआ, तो उसके पिता ने मलाला का नाम पश्तो की मशहूर लोक गायक और लड़ाका ‘मलालाई’ के नाम पर रखा जो 1880 में ब्रिटिश फौज से मैवन्द की लड़ाई की ऐसी बहादुर सिपाही थी, जिसने 18 साल की उम्र में अफगान झंडा उठाकर ब्रिटिश हुक्मरानों के खिलाफ हल्ला बोल दिया था। मैवन्द की इस लड़ाई में मलालाई शहीद हुर्इं, लेकिन पूरा पख्तून समाज आज •ाी उस मलालाई को अपना प्यार देता है। मलाला का नाम भी अगर पख्तून नौजवान मलालाई से मिलता जुलता है, तो उसका काम भी मलालाई से कहीं कमतर नहीं है! मिल रहा है अपार समर्थन मलाला के पक्ष में जिस तरह से पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा उठ खड़ा हुआ है, उससे पता चलता है कि वे तालिबान के उस इसलाम से लोग कितना आजिज आ चुके हैं, जो कहीं से भी इसलाम का हिस्सा नहीं है, लेकिन वह हिंसा के बल पर उसे जबरदस्ती लोगों पर थोपना चाहते हैं। अच्छी बात यह है कि पाकिस्तान के 50 से ज्यादा मौलवियों ने तालिबान की गैर-इसलामी हरकतों के खिलाफ फतवा जारी करके जारी अपनी जिम्मेदारी का सबूत दिया है। उलेमा मान चुके हैं कि हमला सरासर गैर-इसलामी है। सवाल यह है कि जब खुद मुसलमान इसलाम की तौहीन करें, तो उसका विरोध शिद्दत के साथ क्यों नहीं होता? मलाला पर गोली इसलिए चली, क्योंकि वह इसलाम के बुनियादी उसूल, शिक्षा ग्रहण करने के लिए लड़कियों को जागरूक कर रही थी। यह बात तालिबान को मंजूर नहीं थी। लड़ाई की पुरातन परंपरा है यहां करीब 610 वर्गमील में फैली स्वात घाटी को पाकिस्तान का सिंगापुर भी कहा जाता है। अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया के नक्शे पर मौजूद स्वात घाटी में निवास करनेवाले कबीले पिछले करीब दो हजार साल से लड़ रहे हैं। हिन्दुकुश पहाड़ी के एक हिस्से में बसे गांधार प्रदेश के इस इलाके के परंपरा और इतिहास दोनों में सिर्फ लड़ाई ही है। मौर्य और अशोक के शासनकाल के बाद स्वात घाटी में कुछ समय के लिए बौद्ध धर्म का व्यापक प्र•ााव जरूर हुआ, लेकिन इसकी मूल ‘लड़ाका’ संस्कृति से इसे कभी मुक्ति नहीं मिल सकी। एक हजार इस्वी में मुसलमानों के आक्रमण के बाद तो यहां जंग का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जो आज तालिबान के रूप में जारी है। कई जानकार कहते हैं कि हो सकता है अमेरिका की खुफिया एजंसी सीआईए ने जब अफगानिस्तान में रूस को परास्त करने के लिए योजना बनाई हो, तो जान बूझकर इस इलाके में ही तालिबान लड़ाकों को तैयार करने का जिम्मा सौंपा हो। पाकिस्तान के हुक्मरान और अमेरिका दोनों ही आज के इस नार्थ वेस्ट फ्रंटियर इलाके के लड़ाका स्व•ााव से •ाली भीति परिचित रहे होंगे। शायद इसीलिए बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में जिस तालिबान लड़ाकों को तैयार किया गया, वे इसी नार्थ वेस्ट फ्रंटियर से आते हैं, जिसमें वह स्वात घाटी भी हैं, जहां की मलाला युसुफजई को तालिबान चरमपंथियों द्वारा गोली मारकर मारने की कोशिश की गई। उठ रहे हैं सवाल वरिष्ठ पत्रकार वुसतुल्लाह खान के अनुसार, ख़्वाह-मख़्वाह कोई किसी बच्चे या बच्ची पर कैसे हमला कर सकता है? यकीकन कोई न कोई वजह जरूर होगी, और वजह भी कोई ऐसी वैसी नहीं, बल्कि बहुत ही ठोस। •ाला ऐसे कैसे हो सकता है? ़तो फिर मलाला यकीनन अमरीका की जासूस है या रही होगी! मोमिन (मुसलमान) कभी बिना सबूत बात नहीं करता। क्या आपने तालिबान के प्रवक्ता का यह बयान नहीं पढ़ा कि मलाला ने एक बार कहा था कि वह ओबामा को पसंद करती है। इससे बड़ा भी कोई सबूत चाहिए मलाला के अमरीकी एजेंट होने का? वुसतुल्लाह ने अपने एक लेख में लिखा है कि कौन कहता है कि 14 साल की बच्ची मासूम होती है। अगर 14 साल का लड़का माता पिता की खुशी और अपनी मर्जी से धर्म को पूरा पूरा समझ कर बुराई को मिटाने के लिए बिना जोर जबरदस्ती आत्मघाती जैकेट पहनने का स्वतंत्र फैसला कर सकता है, तो मलाला कैसे अभी तक बच्ची है? क्या बच्चियां इस तरह चटर पटर मुंहफट होती हैं? बच्ची है, तो खिलौनों और गुड़ियों की जिÞद क्यों नहीं करती? बस जहरीले पाठ्यक्रम की किताबों, कॉपी, पेन्सिल की बात क्यों करती है? क्या मलाला की उम्र की बच्ची गला फाड़-फाड़ के जोर-जबर और बुनियादी स्वतंत्रता जैसे पेचीदा विषयों पर अपनी राय देती है या कभी इस सेमीनार में, तो कभी उस कार्यक्रम में या कभी धमाकों की जगह जाकर मोमिनों पर कीचड़ उछाल कर गैरों की तारीफें और तमगे वसूल करती फिरती है? 14 वर्षीय शाहीन कुफ्र के किले पर हमला करे तो गलत और गुमराह 14 वर्षीय मलाला अपने विचारों और •ााषणों के जरिए बारूद से मोमीनों पर रात में छापे मारे तो हीरो। वाह जी वाह!

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