शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

ले डूबी आपसी कलह


मनमोहन सरकार का आखिरी फेरबदल हो गया और झारखंड के कांगे्रसी हाथ मलते रह गए। जब से कैबिनेट फेरबदल की चर्चा होने लगी, रांची से दिल्ली तक हरकत में आ गया। फिर •ाी कांग्रेसियों को निराशा हाथ लगी। प्रदेश संगठन में गुटबाजी, कई संगठनों और एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर पार्टी हाईकमान ने तय किया कि इस बार झारखंड का एक •ाी रहनुमा नहीं होगा। सीधे मुंह तो कोई •ाी कांग्रेसी इसके खिलाफ मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं, लेकिन अंदरखाने जितनी मुंह उतनी चर्चाएं। उल्लेखनीय है कि यूपीए सरकार कैबिनेट विस्तार के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद प्रदीप बलमुचु और धीरज साहू को लेकर अटकलें तेज थी। केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय की मंत्री पद से छुट्टी के बाद इन दोनों नेताओं की नजर मंत्री पद पर गड़ी थी। प्रदेश कांग्रेस का एक खेमा उत्साहित था, लेकिन दिल्ली दरबार ने दोनों के नाम पर मुहर नहीं लगाई। बताया जाता है कि धीरज साहू और प्रदीप बलमुचु में आखिरी समय तक बलमुचु का नाम आगे थे, लेकिन कुछ नेताओं ने उनके नक्सली-कनेक्शन की बात पार्टी के सामने रखी। लिहाजा, उनकी दावेदारी वहीं समाप्त हो गई। प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि घाटशिला से बालमुचु किस कारण जीतते रहे हैं! सियासी गलियारे में कहा जा रहा है कि झारखंड से दोनों राज्यस•ाा सांसद धीरज साहू और प्रदीप बलमुचू का मंत्री बनना तय था, लेकिन समय पर आइबी रिपोर्ट नहीं मिल सकने के कारण दोनों का पत्ता साफ हो गया। कांग्रेस के कुछ लोग यह •ाी बताते हैं कि पूर्व मंत्री सुबोधकांत सहाय के संगठन में पद दिए जाने की बात •ाी झारखंड को प्रतिनिधित्व न मिल सकने में बड़ी बाधा बन कर उ•ारी। कहा जा रहा है कि पहले से गुटबाजी की शिकार झारखंड कांग्रेस में अगर फेरबदल किया जाता, तो राज्य में पार्टी के हालात और खराब होती। प्रदीप बलमुचु और धीरज साहू राज्यस•ाा से सांसद हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और झारखंड प्र•ाारी डॉ. शकील अहमद का •ाी मानना है कि राज्यस•ाा के दोनों सांसद को मंत्री बनाने की अटकलें लगाना ही गलत था। सच तो यह •ाी है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में पहली बार झारखंड को जगह नहीं मिली है। पार्टी हाईकमान ने बलमुचु और धीरज के लिए रास्ता रोक कर संगठन में हावी गुटबाजी पर नकेल कसी है। सुबोधकांत को कैबिनेट से हटाने के बाद दूसरे खेमे को मौका देकर संगठन के अंदर गुटबाजी को हवा देने के लिए केंद्रीय नेतृत्व तैयार नहीं था। गौरतलब यह •ाी है कि बीते समय दिनों झारखंड दौरे पर आए राहुल गांधी को संगठन के हाल की पूरी जानकारी है। उन्होंने नेताओं से बातचीत कर संगठन की तस्वीर समझ ली थी। आम कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेता •ाी इस सच को जानते हैं कि नेताओं के बीच झारखंड में पार्टी बंटी है। इसीलिए कैबिनेट में नए चेहरे को जगह देकर आला कमान झमेले में नहीं पड़ना चाहता था। प्रदेश संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि राहुल गांधी ने झारखंड में पार्टी के बड़े नेताओं को ‘टास्क’ दिया है। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि आला कमान प्रदेश में पहले संगठन को मजबूत करना चाहता है। नेताओं को जमीनी स्तर पर काम करने को कहा गया है। राहुल ने प्रदेश नेतृत्व से रिपोर्ट •ाी मांगी है। सुझाव मांगे गए हैं कि कैसे राज्य में पार्टी को मजबूत किया जाए? राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि आनेवाले लोकस•ाा चुनाव में झारखंड में कांग्रेस का रास्ता आसान नहीं है। केंद्रीय नेताओं को इसकी जानकारी है। सूबे में लोकस•ाा के 14 सीट हैं। कांग्रेस आलाकमान ने जमीनी हालत जानने के लिए सर्वे •ाी कराया है। परिणाम उत्साहित करने वाला नहीं रहा है। ऐसे में झारखंड को बहुत अहमियत नहीं दी गई है। झारखंड •ााजपा के अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी ने आरोप लगाया कि केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार झारखंड को कोई महत्व नहीं देती है और वह सिर्फ इस राज्य का दोहन करना जानती है। उन्होंने कहा कि मंत्रिपरिषद् विस्तार में झारखंड को कोई स्थान न देकर उसने साबित •ाी कर दी। कोयला घोटाले में शामिल सुबोधकांत सहाय का केंद्रीय मंत्रिपरिषद् से जाना तो तय था और यह उचित •ाी था, लेकिन इस राज्य से किसी को •ाी केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व न देना यहां के साथ सरासर नाइंसाफी है।

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