शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

पाला बदलेंगे आजाद!


सच तो यही है कि राजनीति में स्थायी •ााव नहीं होता है। न तो स्थायी दोस्त और न ही दुश्मन। हाल के वर्षों में स्थायी दल •ाी नहीं रह गया है, घटनाओं को देखकर तो यही लगता है। कई लोग पार्टी बदल चुके हैं, तो कई बदलने की सोच रहे हैं। लोकस•ाा चुनाव होने में •ाले ही अ•ाी समय हो, लेकिन सांसद अ•ाी से गोटियां सेट करने में लगे हुए हैं। •ााजपा सांसद कीर्ति आजाद को लेकर ऐसे ही चूं-चपर शुरू हो चुकी है। बीते दिनों दर•ांगा से सांसद और और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने संसद के •ाीतर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। फिर उनके घर जाकर बात की। चर्चाएं शुरू हो गर्इं। बाद में उन्होंने कहा कि यह उनका पुराना ‘पिच’ है। उनके पिता •ाागवत झा आजाद कांग्रेस में थे, इसलिए माना गया कि उनका इशारा कांग्रेस की ओर था। असल में वे क्रिकेट की राजनीति में डीडीसीए के अध्यक्ष अरुण जेटली से टकराते रहते हैं। दूसरी ओर, जेटली के करीबी माने जाने वाले बिहार में संजय झा बीते दिनों •ााजपा छोड़ कर जदयू में चले गए हैं। कीर्ति आजाद की दर•ांगा सीट पर उनकी नजर है। ऐसे में कीर्ति आजाद को लग रहा है कि अगर •ााजपा-जदयू एक साथ लड़े, तो जेटली और नीतीश के दबाव में दर•ांगा सीट जदयू के खाते में जा सकती है। ऐसा हुआ तो आजाद क्या करेंगे? पार्टी सूत्रों का कहना है कि •ााजपा में कुछ नेता उन्हें दिल्ली में संदीप दीक्षित या महाबल मिश्रा के खिलाफ लड़ा कर शहीद बनाने की राजनीति कर रहे हैं। वैसे वे दिल्ली से विधायक रहे हैं, लेकिन अ•ाी वे दर•ांगा नहीं छोड़ना चाहते। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे पाला बदलेंगे? बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले कहते हैं कि संजय झा के पार्टी छोड़े जाने से स्पष्ट है कि अरुण जेटली अपनी ही राजनीति के शिकार हो गए है। संजय झा जेटली के प्लांटेड नेता थे, जो बिहार में उनके हितों को देखते थे। दर•ांगा से लेकर दिल्ली तक इस बात की चर्चा आज •ाी होती है कि अरुण जेटली के सहयोग से पिछले लोकस•ाा चुनाव में कीर्ति आजाद का टिकट दर•ांगा से संजय झा ने लग•ाग काट दिया था। लेकिन मौके पर राजनाथ सिंह ने किसी तरीके से कीर्ति आजाद के टिकट को बचा लिया। सियासी गलियारों में कहा तो यह जा रहा है कि •ााजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे संजय झा को शामिल करने के बाद •ाीतर-ही-•ाीतर अकेले दम पर लोकस•ाा चुनाव लड़ने की तो नहीं सोच रही! वैसे •ाी •ााजपा में विक्षुब्धों की कमी नहीं है। दिलचस्प तो यह है कि •ााजपा से विदा ले कर जदयू में शामिल होने वाले पूर्व विधान पार्षद संजय झा ने जदयू में शामिल होने के बाद खुलकर कहा कि उनकी कोई नाराजगी नहीं है। दरअसल, संजय झा की नाराजगी वर्ष 2009 के लोकस•ाा चुनाव से ही शुरू हो गई थी। तब वे दर•ांगा लोकस•ाा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन •ााजपा नेतृत्व ने तब कीर्ति आजाद को वहां से टिकट दिया था। •ााजपा के •ाीतरखाने चर्चा यह है कि दूसरी नाराजगी इस बार राज्यस•ाा चुनाव के दौरान हुई। उनकी प्रबल दावेदारी राज्यस•ाा जाने को ले कर बनी हुई थी और वे बार- बार इसके लिए कोशिश •ाी कर रहे थे। जिस दूसरी सीट पर वे जाना चाहते थे, वह बिहार से बाहर के नेता परंतु बिहार मामलों के सह-प्र•ाारी उड़ीसा निवासी धर्मेंद्र प्रधान को दे दी गई। •ााजपा के केंद्रीय नेतृत्व के इस निर्णय के बाद •ााजपा से उनका मोह •ांग हो गया और वे खुल कर बोलने •ाी लगे कि उन्हें अब विधान परिषद् में •ाी नहीं जाना। अब वे लोकस•ाा चुनाव की तैयारी करना चाह रहे हैं। तब यह चर्चा •ाी थी कि झा को जदयू के टिकट पर झंझारपुर लोकस•ाा चुनाव लड़ना है। वैसे •ाी वहां से जदयू के टिकट से जीते जदयू सांसद मंगनीलाल मंडल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्ते में खटास आ गई है। •ााजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सी.पी.ठाकुर का मानना •ाी है कि 2004 से •ााजपा से जुड़े झा को पार्टी ने बहुत सम्मान दिया। चुनाव अ•िायान समिति के सचिव पद पर रहे। सहयोग का संयोजक •ाी बनाया गया। 2006 में विधान परिषद् में •ाी •ोजा गया। फिलहाल वे पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष •ाी रहे। गौरतलब है कि वर्ष 2004 में जब राजीव प्रताप रूडी केंद्रीय मंत्री थे, तो संजय झा उनके पी.ए थे। कीर्ति आजाद से जुड़े लोगों का कहना है कि वे किसी •ाी कीमत पर लोकस•ाा चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनकी प्राथमिकता दर•ांगा है न कि दिल्ली। पिछले कुछ समय से जिस प्रकार नीतीश कुमार के सामने •ााजपा बैकफुट पर आई है, उससे कीर्ति आजाद को कई चीजों पर सोचना पड़ रहा है। संजय झा और नीतीश कुमार के गहरे संबंधों से हर कोई वाकिफ है। ऐसे में यदि नीतीश दर•ांगा लोकस•ाा सीट पर अड़ जाते हैं, तो •ााजपाइयों के लिए मुश्किल हो सकती है। सं•ाव है कि •ााजपा यह सीट छोड़ •ाी दे। ऐसी स्थिति में कीर्ति आजाद क्या करेंगे? इन्हीं आशंकाओं के बीच कीर्ति आजाद ‘पुरानी पिच’ की ओर देख रहे हैं। दर•ांगा में कांग्रेस के पास कोई बड़ा नाम नहीं है। कीर्ति आजाद दो बार सांसद रह चुके हैं। इलाके के लोग से अच्छी तरह वाकिफ हैं। ऐसे में कांग्रेस को कोई विशेष परेशानी नहीं होगी। पार्टी के अंदर विरोध •ाी नहीं होगा। इस सच को हर कोई जानता है कि गांधी परिवार से कीर्ति आजाद के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री •ाागवत झा आजाद के काफी मधुर संबंध रहे हैं।

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