सोमवार, 17 जनवरी 2011

तुम्हारे शहर में

- विपिन बादल
रहता हँू सहमा-सहमा, तुम्हारे शहर में।
चलता हँू संभल-संभल, तुम्हारे शहर में।।

लूटपाट और छीना-झपटी, सौंदर्य उस नगर का।
रोज शीलभंग होता कितने, तुम्हारे शहर में।।

चोर मस्त, कोतवाल पस्त, शासन पूरा भ्रष्टï है।
जंगल का कानून चलता, तुम्हारे शहर में।।

जिस प्रवासी ने रूप निखारा, उसी पर ईल्जाम है।
ईनाम में है हाथ कटता, तुम्हारे शहर में।।

किसानों के खेत बिके, कंक्रीट का जाल बिछा है।
यमुना की है धार खोई , तुम्हारे शहर में।।

सड़क बना समर भूमि, खून से लाल है।
ब्लूलाइन से सब डरा है, तुम्हारे शहर में।।

2 टिप्‍पणियां:

sagar ने कहा…

aapne kam sabdo me shero me hone wali amanvia kamo bhuta ache dang se parstute kiya hai.

बेनामी ने कहा…

kafi achhi gazal hai