मंगलवार, 4 जनवरी 2011

शिक्षा पर जोर

विधाकय फंड को समाप्त कर एक नई इबारत लिखने वाले नीतिश सरकार अब शिक्षा पर खासा जोर दे रही है। बिहार के समाज को सुसंस्कृत और शिक्षित बनाए विकास के मनमाफिक उँचाईयों को नहीं हासिल किया जा सकता है, यह मुख्यमंत्री नीतिश सरकार बेहतर तरीके से जानते हैं। नतीजन, कैबिनेट से उन्होंने सूबे में एक हजार नए हाईस्कूल खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी दिला दी।
दरअसल, बिहार सरकार ने अब नौवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत साइकिल खरीदने के लिए दी जाने वाली 2,000 रुपए की राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये करने का निर्णय लिया है। इसके अलावा सरकार ने एक हजार हाई स्कूल भी खोलने का फैसला किया है। राज्य के मानव संसाधन विभाग (शिक्षा) मंत्री पी. के. शाही का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ विभाग के आला अधिकारियों की बैठक में नौवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत साइकिल खरीदने के लिए दी जाने वाली 2,000 रुपए की राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये करने का निर्णय लिया गया है और नौवीं से 12 वीं तक की छात्राओं को भी वर्दी के लिए दी जाने वाली राशि 700 रुपए से बढाकर 1,000 रुपए करने का निर्णय लिया गया है। इतना ही नहीं, एक हजार हाई स्कूल खोलने का भी निर्णय लिया है। अब, राज्य में आगे होने वाली सभी शिक्षकों की नियुक्ति 'टीचर एलिजिबिलिटी टेस्टÓ (टीईटी) के आधार पर होगी। सरकार की ओर से यह निर्णय लिया गया है कि राज्य में सभी तरह की छात्रवृत्तियों का वितरण, सभी प्रकार के विद्यालयों का संचालन और सभी विभागों के छात्रावास का संचालन मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा किया जायेगा। गरीब बच्चों के लिये प्रमंडलीय मुख्यालयों में बाल भवन खोले जायेंगे। प्रत्येक वर्ष माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को मुख्यमंत्री मेघा पुरस्कार दिया जायेगा। राज्य स्तरीय माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्र-छात्राओं को मुख्यमंत्री मेधा पुरस्कार के तहत 25 हजार रुपये तथा पहले नौ बच्चों को 15 हजार रुपये दिये जायेंगे। जिलों में सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्र-छात्राओं को दस हजार रुपये दिये जायेंगे।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार के निर्णय पहली बार किए गए हों। इससे पहले भी शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जा चुके हैं। कुछ समय पूर्व ही तय किया गया था कि हर सरकारी हाई स्कूल में अब इंटर स्तर तक की पढ़ाई होगी। इसके लिए सारी सुविधाएँ मुहैया की जायेंगी। साथ ही अनुमंडल स्तर पर 39 नए सरकारी कॉलेज खोले जायेंगें। पहल का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। आँकड़ों के आधार पर वास्तविक स्थिति को समझा जा सकता है। बिहार की वर्तमान जनसंख्या 9-10 करोड़ के बीच है। जानकार कहते हैं की इस आबादी का तकऱीबन पंद्रह से बीस फीसदी हिस्सा प्रवासी हो गया है। यानी सात से आठ करोड़ बिहार राज्य के भौगोलिक सीमा रहते है। हाई स्कूल में पढने लायक छात्र-छात्राएं कम से कम पचीस से पचास लाख के करीब लेकिन सरकारी हाई स्कूलों की संख्या मात्र 1662।
वर्तमान का स्याह सच तो यह भी है कि कॉलेज शिक्षा और कॉलेजों की बात की जाय तो लगता है की किसी साजिश के तहत अब तक ज्ञान पर पारंपरिक सामंती एकाधिकार और शैक्षणिक पिछडेपन के पीछे निहित स्वार्थ की व्यवस्था को जारी रखा गया है। 39 अनुमंडलों में कोई कॉलेज नहीं। बताया जाता है कि शिक्षा को बरबाद करने की साजिश और उसको अमली जामा आठवें दशक में पहनाया गया। बेशक, नीतिश सरकार ने इस ओर संख्यात्मक पहल की है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान कौन रखेगा? सवाल सबसे बड़ा यह भी है। नए खोले जाने वाले हाई स्कूलों में क्या पढ़ाई का जिम्मा शिक्षा मित्रों के भरोसे रहेगा? वो शिक्षा मित्र जिन्हें 5000 मासिक दरमाहे पर रखा गया है। और जिन पर पंचायत पर हावी सामंती और माफिया टाइप के लोगों का दबदबा बना रहता है।

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