सोमवार, 3 जनवरी 2011

कालजयी रचनाओं की दुर्दशा

मैथिली साहित्य काफी समृद्ध रही है। पर आज मैथिली की बहुमूल्य कालजयी रचनायें पटना के मैथिली अकादमी में कबाड़ बन रही हैं। लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों-शिक्षाविदों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर और गौरवशाली इतिहास को करोड़ो लोगों तक पहुंचाकर काफी ख्याति अर्जित की है। वह अब मलिन पड़ने लगा है।
दरअसल साहित्य अकादमी एवं विद्यापति पुरस्कार से सम्मानित-मार्कण्डेय प्रवासी का ‘अगस्त्यायनी’, आरसी प्रसाद का ‘सूर्यमुखी’ (काव्य संग्रह), प्रो. तंत्रनाथ झा का ‘कृष्णचरित’ (महाकाव्य), सुधांशु शेखर चौधारी की ‘ई बतहा संसार’ (गद्य), लिली रे की ‘मरीचिका’, प्रो. उमानाथ झा की ‘अतीत’ (कथा), प्रो. हरिमोहन झा की जीवन यात्रा और डा. सुभद्रा झा की ‘नातिक पत्राक उत्तार’ (गद्य) समेत दर्जनों चर्चित पुस्तके मैथिली अकादमी के ‘बाथरूम’ और ‘स्टोर’ में पड़ी हैं, जिन्हें दीमक चाट रहे हैं। यह अकादमी की संवेदनहीनता को दर्शाता है।
इस अकादमी के कार्यालय में साहित्यकारों की रचनाओं की पड़ताल करने पर कुछ कर्मचारियों ने सिर्फ इतना कहा-’बिक्री की व्यवस्था नहीं होने से लाखों की प्रकाशित प्रसिद्ध रचनाएं गोदाम में पड़ी हैं…’। पर दफ्तर के कई कोनों में झांकने पर माजरा कुछ और ही नजर आया।
ऐसे मौके पर यदि संबंधित रचनाओं के रचयिता मौजूद होते तो उनके दिलों पर क्या गुजरती? इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। राज्य सरकार की उपेक्षा से तबाही के कगार पर जा पहुंची मैथिली अकादमी सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पैसे-पैसे को मोहताज हो चुके कर्मचारियों के पास काम नहीं है और इन्हें साल में सात-आठ माह का ही वेतन मिल पाता है।
‘बिन माझी की किश्ती’ बन चुकी मैथिली अकादमी की स्थापना 1976 में हुई थी। इसे 29 वर्षों से एक अपना भवन तक नसीब नहीं हुआ। अकादमी किराए के मकान में चल रही है। यहां दो वर्षों से अध्यक्ष व निदेशक का पद रिक्त है। सरकार से सृजित कुल 21 पदों पर सिर्फ 13 कर्मचारी कार्यरत हैं।
अनुवाद और प्रकाशन, लोक मंच व लोक संगीत, अनुसंधान और आयोजन मैथिली अकादमी की चार शाखाएं हैं। कोष की किल्लत की वजह से दो महत्वपूर्ण शाखाएं बंद हैं। मैथिली अकादमी में वर्षों से अनुसंधान नहीं हुआ है। समृद्ध अतीत को संजोने वाली मैथिली अकादमी की प्रकाशन सूची में कुल 177 पुस्तके दर्ज हैं।
महाकवि विद्यापति से लेकर मैथिली के तमाम उम्दा रचनाकारों की कृतियां तथा बंगला और अन्य भाषाओं के अनुवाद भी अकादमी के प्रकाशन सूची में दर्ज हैं। यहां से प्रकाशित करीब एक दर्जन किताबों को साहित्य अकादमी समेत कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘अवार्ड’ मिल चुके हैं

--- सादर साभार - भारतीय पक्ष

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