गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

भ्रष्टं...भ्रष्टं....भ्रष्टं....

जन्म से लेकर मृत्यु और मृत्यु पश्चात के कर्मकाण्डों के लिए भी भारत में सुविधा शुल्क देना पड़ता है। मृत्यु या जन्म प्रमाणपत्र लेना हो, या फिर भीड़ भरी ट्रेन में सीट, हमें यह करना होता है। नहीं किया, तो काम नहीं होगा। नतीजन, करीब 1 ट्रीलियन डालर का भुगतान सुविधा शुल्क के रूप में करते हैं जबकि यहां एक अरब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जबरदस्त असमानता। भ्रष्टïाचार आज शिष्टïाचार की संज्ञा में समाहित होता दिख रहा है। हर जगह, हर स्तर पर यह व्याप्त है। जो लोग किसी कारणवश इसके पकड़ में आ गए, वह भ्रष्टाचारी नहीं तो शेष शिष्टïाचारी। कई रिपोर्टेां से बात को बल मिलता रहा है कि भारत में दिन दूनी, रात चौगुनी की गति से भ्रष्टाचार का फैलाव होता जा रहा है। हाल ही में, जिस प्रकार से राष्टï्रमंडल खेलों में भ्रष्टïाचार की खबरें ने लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने पर विवश कर दिया, वह अनायास नहीं था। इस देश में तो यह सदियों से चला आ रहा है।
यकीन मानिए, भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत पुराना है। भारत की आजादी के पूर्व अंग्रंजों ने सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत के सम्पन्न लोगों को सुविधास्वरूप धन देना प्रारंभ किया। राजे रजवाड़े और साहूकारों को धन देकर उनसे वे सब प्राप्त कर लेते थे जो उन्हे चाहिए था। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते हैं। यह भ्रष्टाचार वहीं से प्रारम्भ हुआ और तब से आज तक लगातार चलते हुए फल फूल रहा है। रईसों की जगह अब नेता और नौकरशाहों ने ले रखी है। तो उनके साथ के कारिन्दें भी भला क्यों पीछे रहें?
बाबरनामा में उल्लेख है कि कैसे मु_ी भर बाहरी हमलावर भारत की सड़कों से गुजरते थे। सड़क के दोनों ओर लाखों की संख्या में खड़े लोग मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने कहा है कि यह मूकदर्शक बनी भीड़, अगर हमलावरों पर टूट पड़ती, तो भारत के हालात भिन्न होते। इसी तरह पलासी की लड़ाई में एक तरफ़ लाखों की सेना, दूसरी तरफ़ अंगरेजों के साथ मु_ी भर सिपाही, पर भारतीय हार गये। एक तरफ़ 50,000 भारतीयों की फ़ौज, दूसरी ओर अंगरेजों के 3000 सिपाही. पर अंगरेज जीते. भारत फिऱ गुलाम हआ. जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर ग्यारहवीं शताब्दी में आक्रमण किया, तो क्या हालात थे? खिलजी की सौ से भी कम सिपाहियों की फ़ौज ने नालंदा के दस हजार से अधिक भिक्षुओं को भागने पर मजबूर कर दिया। नालंदा का विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालय वर्षों तक सुलगता रहा। तब भी कोई प्रतिकार नहीं हुआ और आज भी नहीं हो रहा।
नतीजन, हर तीन में से एक भारतीय भ्रष्टïाचार में लिप्त है। यह कोई हवा-हवाई बात नहीं है, बल्कि केंद्रीय सतर्कता आयोग के पूर्व आयुक्त प्रत्युष सिन्हा ने भी कही है। बकौल प्रत्यूष सिन्हा, 'मेरे कार्यकाल का सबसे खराब पहलू यह निरीक्षण करना रहा है कि सुविधाओं के बढने के साथ भ्रष्टाचार में कैसे बढोतरी हो रही है? मैं जब छोटा था और उन दिनों अगर कोई आदमी भ्रष्ट पाया जाता था तो इसे सामाजिक कलंक माना जाता था। लेकिन समाज ने भ्रष्टाचार की बीमारी को सामाजिक स्वीकार्यता दे दी है। आज बमुश्किल 20 प्रतिशत लोग ही ऐसे होंगे जो अपनी अंतरात्मा की शक्ति के बल पर ईमानदारी से जिंदगी जी रहे हैं। आधुनिक भारत में धनवान को ही सम्मानजनक माना जाता है। लेकिन कोई यह प्रश्न नहीं उठाता कि उसने इतना धन कैसे कमाया है।Ó
काबिलेगौर है कि ग्लोबल फाइनेन्शियल इन्टीग्रिटी (जीएफआई) की रिपोर्ट कहती है कि बाहर भेजे जाने वाले धन में से ज्यादातर भारत में ही कमाया गया धन था जिसे अवैध तरीके से बाहर भेजा गया। जीएफआई की अर्थशास्त्री कार्ली कर्सियो ने भारत से अवैध वित्तीय प्रवाह और गरीबी, भ्रष्टाचार व अपराध से इसके संबंध पर जारी हुई इस रिपोर्ट के विषय में एक ब्लॉग पर कहा है, 'भारत में मानवता के खिलाफ इस भ्रष्टाचार को चुनौती देने के लिए हाल ही में किए गए प्रयासों को हिंसा का सामना करना पड़ा है। भारत के वित्तीय रूप से विकास करने और बेहतर बुनियादी सुविधाओं के चलते ऐसा माना जाता है कि इसके साथ सभी भारतीय नागरिकों के रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और लोगों की आय में अंतर कम होता है जबकि वास्तविकता यह है कि समय के साथ भारतीयों की आय में असमानता बढ़ी है।Ó
सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी (सीआईपी) की शोध शाखा का कहना है कि भारत में भ्रष्टाचार के बढऩे और अवैध कारोबार के चलते वित्तीय प्रवाह देश से बाहर की ओर हो रहा है। रिपोर्ट कहती है कि पिछले 8 वर्ष में भारत से भ्रष्टïाचार का 125 अरब डॉलर धन विदेशों में जमा किया गया है। साथ ही इसमें कहा गया है कि लभभग सभी विकासशील देशों की तरह भारत में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। भ्रष्ट राजनेता और भ्रष्ट कारपोरेट अधिकारी राजनीतिक और निजी क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए भारतीयों की मदद के लिए इस्तेमाल होने वाली इस राशि को अवैध तरीके से बाहर भेज देते हैं।
भारत में यह प्रचलन हो गया है कि किसी भी काम के लिए हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है। यह स्पीड मनी होता है और यदि आप सुविधा शुल्क नहीं देंगे तो आप कोई भी काम नहीं करा सकते। देश की लचर कानून ब्यवस्था का नौकरशाह व राजनीतिज्ञ भरपूर लाभ उठाते हैं लेकिन आम आदमी को कोई भी काम कराने के लिए सुविधा शुल्क का सहारा लेना पड़ता है। मृत्यु या जन्म प्रमाणपत्र लेना हो, या फिर भीड़ भरी ट्रेन में सीट, हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार अपना काम कराने के लिए लोग लगभग 1 ट्रीलियन डालर का भुगतान करते हैं जबकि यहां एक अरब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां तो जीने के लिए भी लोगों को सुविधा शुल्क देने की आवश्यकता पड़ रही है। जब भ्रष्टाचार ऊंचे स्थानों पर होता है और उसमें रक्षा व उड़ानों से संबंधित सौदे होते हैं तो उसके कुछ और ही मायने होते हैं।
क्या कहेंगे आप? और क्या सोचेगी आपकी आने वाली पीढ़ी? आगामी पीढ़ी को इस संक्र ामक बीमारी से सरकार ही छुटकारा दिला सकती है, जिसमें आमजन की भागीदारी हो। आईटी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इन्फोसिस के गैर कार्यकारी चेयरमैन और संरक्षक नारायणमूर्ति का कहना है कि भारत सरकार को भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। उनका कहना है कि कि ई-प्रशासन से जवाबदेही में सुधार हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी परियोजनाओं के आंकड़ों को इंटरनेट पर डाला जाना चाहिए। इससे न केवल भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है, बल्कि देश में जवाबदेही के स्तर में भी सुधार हो सकता है। मूर्ति के अनुसार, 'हमें ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो भ्रष्ट लोगों से सख्ती से निपट सके। चीन में भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को मौत की सजा तक दी जाती है।Ó

कोई टिप्पणी नहीं: