सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

चतुर्थ कूष्मांडा


सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।


मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है। अपनी मंद, हल्की हंसीद्वारा अंड अर्थात ब्रह्मïांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडादेवी के नाम से अभिहित किया गया है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा कोकुम्हड़ कहते है। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है।इस कारण से भी मां कूष्मांडा कहलाती है।नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जातीहै। इस दिन साधक का मन अदाहत चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसेअत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान मेंरखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।जब सृष्टिï का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य सेब्रह्मïांड की रचना की थी। अत: ये ही सृष्टिï की आदि-स्वरूपा, आदिशक्तिहैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने कीक्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भीसूर्य के समान ही दैदीप्यान और भास्वर हैं।इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मïांड कीसभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है।मां की आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टïभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं।इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश,चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्घियों और निधियों को देने वालीजपमाला है। इनका वाहन सिंह है।मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक विनष्टï हो जातेहैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्घि होती है। मांकूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं यदि मनुष्यसच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पदकी प्राति हो सकती है।विधि-विधान से मां के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढऩे पर भक्त साधकको उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दु:ख स्वरूप संसार उसकेलिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। मां की उपासना मनुष्य को सहज भाव सेभवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।मां कूष्मांडा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्तकरके उसे सुख, समृद्घि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अत: अपनी लौकिक,पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।

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