गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

ऐसी थी हर्ट की लेह विकास यात्रा


विनोद बंसल


यूं तो गैर सरकारी संगठन हर्ट (हिंदू इमर्जेंसी एड एण्ड रिलीफ़ टीम)द्वारा अनेक प्रकार की राहत सामग्री लेह लद्दाख के बाढ पीडितों कीसहायतार्थ पहले से ही भेज कर उसका वितरण किया जा रहा था किन्तु फ़िर भीराहत कार्यों को नजदीक से स्वयं निरीक्षण करने तथा आगामी योजनार्थ हर्टके एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मण्ड्ल ने वहां जाने का निर्णय लिया।दुनिया के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक लेह में गत 6 अगस्त को आई भीषणबाढ की चपेट में मारे गए 200 से अधिक लोगों के परिजनों व अन्य पीडितों कीसहायतार्थ विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की प्रेरणा से बने हर्ट का एक सातसदस्यीय उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंण्डल गत मास लेह पंहुचा जिसमें मैं भीसामिल था। लद्दाख के लेह शहर और उसके आस पास के क्षेत्रों में हुई प्रकतिकी ताण्डव लीला का अध्ययन करने हमारा दल वहां से सायं 2-30 बजे रवानाहुआ। जब हमने मानेट्रेडिंग व चोगलमसर के साथ ढलान पर स्थित जिला मुख्यालयके क्षेत्र को देखा तो बिना किसी से पूछे, स्वतः आभास हो गया कि बाढ काप्रकोप यहां कितना गंभीर था। मकानों, दुकानों व अन्य भवनों के खण्डहर वकीचड से भरे हुए घर चीख-चीख कर अपनी व्यथा सुना रहे थे। चारों तरफ़ विनाशकी ताण्डव लीला दिखाई दे रही थी। दूर दूर तक टूटे-फ़ूटे भवन व उखडे हुएपेड ही दिखाई दे रहे थे। लेह शहर, जो दुनिया की छत के नाम से जाना जाताहै उसके नागरिक अपनी छत की बाट जोह रहे थे।अनेक प्रभावित क्षेत्रों को देखते हुए हम लोग ऊंची पहाडी पर स्थित कालीमाता के मंदिर के दर्शन करने पहुंचे और उसके बाद क्षेत्र की कुशल क्षेमहेतु पवित्र सिंधु घाट पर पूजा अर्चना की। सूर्यास्त की किरणें सिंधु जलपर पड़ने से उसकी स्वर्णिंम छवि मानो कह रही थी कि भारत का यह मस्तिस्कपुन: स्वर्ण मुकुट की तरह चमकेगा।दूसरे दिन प्रातः 9-30 बजे हमारा दल हर्ट के अस्थाई कार्यालय, राहतसामग्री के भण्डार ग्रह व राहत शिविरों के साथ जिले के विविध गावों काअध्ययन करने तथा प्रभावित परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मिलने हेतु रवानाहुआ। सबसे पहले राहत सामग्री भंडार ग्रह में पहुंच हम सभी ने वहां रखेसामान को इस तरह पैक किया कि प्रत्येक पीडित परिवार को समान रूप से उसकावितरण सुनिश्चित हो सके। इस सामग्री को हमने एक टाटा 407 गाडी में भरा औरवहां से चल दिए।विश्व हिंदू परिषद के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री व हर्ट के ट्रष्टीस्वामी विज्ञानानन्द जी महाराज के नेतृत्व में हमारे दल में चेन्नई सेआईं प्रसिद्ध शिक्षाविद व विश्व हिंदू विधा केन्द्र की महामंत्री डाश्रीमती गिरिजा शेषाद्री, दिल्ली के यूरोलोजिस्ट डा शिल्पी तिवारी, समाजसेवी श्री संजीव साहनी व उनकी धर्म पत्नी श्रीमती संगीता साहनी तो देश कीराजधानी से ही हमारे साथ थे किन्तु बेंगलौर से पधारे एक और समाज सेवकश्री एम बी पद्मनाभ राव तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पहले ऐसे स्वयंसेवक जो बौध भिछु से प्रचारक बने श्री वांचुक भी हमारे मार्ग दर्शन वसामग्री के उचित वितरण के लिये हमारे साथ हो लिए।अब हम लेह से लगभग 70 किमी दूर स्थित गांव ससपोशे के लिए राहत सामग्री केट्रक के साथ रवाना हुए। मार्ग में जहां एक ओर लेह बस अड्डा, रेडियोस्टेशन, जिला अस्पताल, भारत संचार निगम लिमिटेड का कार्यालय की स्थितिअपने दु:ख की दारुण व्यथा सुना रहे थे तो दूसरी ओर जब हमने वायु सेनाकेंद्र, व अन्य सुरक्षा संस्थान, बौद्ध स्तूप, मठ, मंदिर व गुरुद्वारेदेखे तो लगा कि मानो प्रक्रति के प्रकोप ने इन्हें छूआ तक नहीं।मैग्नेटिक हिल, वास्गो व निम्मू गांव होते हुए पहाडों व नदियों के किनारेकिनारे हम ससपोशे पंहुचे। संतोष की बात यह थी कि रास्ते की पूरी सडकदिल्ली की किसी भी रोड से अच्छी थी। शायद आपदा के तुरंत बाद इसे बनायागया होगा।ससपोशे रोड के अंतिम छोर पर स्थित था जिसके बाद आगे कोई मार्ग न था। हमनेग्राम प्रधान के सहयोग से राहत सामग्री को पीडितों में वितरित किया। हमेंदेख, ग्राम चौपाल पर देखते ही देखते अनेक नर-नारी, बच्चे, बूढे व जबानइकट्ठे हो गए। नन्हे मुन्ने स्कूली बच्चों को देख हमारे दल के सदस्यों नेउन्हें अपनी गोदी में बिठा लिया। इतने में दो महिलाएं हम सबके लिये एकट्रे में लद्दाखी चाय व विस्कुट ले आईं। गांव की आर्थिक स्थिति को देखहमारा चाय पीने का मन तो नहीं किया किन्तु उनके नम्र आग्रह को हम नकारनहीं पाए। सामग्री के वितरण के पश्चात हमें गांव के सरपंच व अन्य लोगोंने वहां बाढ से हुई तबाही का मंजर दिखाया। कई मकान ऐसे थे जिनके कमरेऊंचे पहाडों से अर्ध रात्रि को आई बाढ के मलबे से भरे पडे थे। कई मकानटूटे थे तो कुछ में दरारें पडीं थीं। विद्यालय भवन का एक हिस्सा का भीइस बाढ के साथ बह गया था। अनेक विद्यार्थी टेन्टों के बने अस्थाई कक्षोंमें पढ रहे थे। पूरे व विद्यालय परिसर को देखने के बाद हम प्रधानाचार्यके कार्यालय में पहुंचे। उनसे बात कर हमें इस बात का बडा संतोष हुआ किभारत के एक छोर पर स्थित इस छोटे से गांव में अध्ययन कर रहे मात्र 30विद्यार्थियों के लिए एक ऐसा उच्च प्राथमिक विद्यालय था जिसके पास नसिर्फ़ पक्का भवन था बल्कि गांव में विधुत की आपूर्ति न होने के बावजूदअपना कम्प्यूटर व टी वी सेट के साथ अवाध विधुत सप्लाई हेतु इन्वर्टर वसोलर सिस्टम भी था। प्रधानाचार्या श्रीमती प्रसेरिंग डोलमा ने बाढ कीविभीषिका व अब तक हुए राहत कार्यों की जानकारी हमें दी। भारतीय सेना केएक सैनिक की पत्नी द्वारा किया आथित्य सत्कार हमें अंदर तक छू गया।हालांकि वह अपने 6 मास के बच्चे के साथ अकेली थी फ़िर भी उसने हम सबको नकेवल अच्छी तरह से सुसज्जित अपने घर में बिठाया बल्कि लद्दाखी चाय वलद्दाखी रोटी भी अति प्रेम से खिलाई। घर की बैठक, भण्डार ग्रह, रसोई वशौचालय की बनाबट हम सब के लिए आकर्षण के केन्द्र थे।लौटते हुए भारतीय सेना द्वारा संचालित गुरुद्वारा पाथर साहिब में हमनेमत्था टेका। गुरुद्वारे से बाहर चंद्रमा का ब्रहद आकार व सुंदरता, धरतीसे उसकी नजदीकी के कारण अनुपमेय थी। थोडी ही दूरी पर चल कर भारतीय सेनाके बहादुर जवानों की स्मृति में बनाए गये संग्रहालय – हाल औफ़ फ़ेम कोदेखा। वहीं पहाडों के बीच लहराता भारतीय तिरंगा देश की गौरव गाथा को गारहा था।

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