शनिवार, 23 जनवरी 2010

देवदारू

लंबी कतारों वाले पेड़ से
पूछना है
तुम कब से खड़े हो?
तुम इतने जवान हो
हरे-भरे
कि लगता ही नहीं
तुम मेरे दादा के जमाने से
खड़े हो
पत्तियों के तिकोने मुख
कितने ताजे लगते हैं
छाल खरोंचने पर
ताजा दूध छलक आता है
देवदारू
तुमने वे राजा लोग देखे थे
उनके बर्बर कारिंदे
आजादी के नारे लगाते वे
जवान शहीद हो गए।
तो देवदारू तुम जरूर देखोगे
क्रान्ति
और वे मामूली लोग
स्वयं अपना निर्णय करेंगे
तुम खड़े हो देवदारू
भविष्य की प्रतीक्षा में
इसलिए व्यर्थ नहीं लगते।

2 टिप्‍पणियां:

chhattishgarh_neelam ने कहा…

accha hai. tanhai se jada acchi kavita hai

Shubham Jain ने कहा…

achchi rachna...

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