गुरुवार, 28 जनवरी 2010

निगोड़े पुलिस से दूर भगोड़े

चोर-पुलिस का संबंध एक खेल की तरह ही है, जब बाजी जिसके हाथ लगा वह 'मीरÓ होता है। जैसे, बच्चे अपने दोस्तों के संग चोर-पुलिस का खेल खेलते हैं। उसी तरह अपराधी भी पुलिस को चकमा देते हैं और भाग खड़े होते हैं। हद तो तब होती है जब न्यायालय ताकीद करती है और पुलिस कुछ भी करने में खुद को असमर्थ मानती है। नतीजा, हजारों का संख्या में कैदियों जेल की चारदीवारी से दूर होते हैं। कागजों में उन्हें भगोड़ा घोषित किया जाता है और चंडीगढ़ इकाई के राजद महासचिव जोगिन्दर सिंह सरीखे भगोड़े सरेआम घूमते हैं।
देश भर में अपनी धाक जमाने वाले दिल्ली पुलिस के अधिकारी करीब 13 हजार भगोड़े अपराधियों की तलाश करने में नाकाम साबित हुए हैं। इनमें करीब 5 हजार अपराधी संगीन वारदातों को अंजाम देने के बाद पुलिस की पहुंच से बाहर हैं। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि 13521 अपराधी पुलिस की चंगुल से बाहर हैं। इनमें से 4777 अपराधी हैं ऐसे हैं जो हत्या, बलात्कार, नारकोटिक्स जैसे संगीन अपराधों में शामिल रहे हैं। काफी हाथ-पांव मारने के बावजूद इन अपराधियों को पकड़ा नहीं जा सकता है, लिहाजा अदालत ने इन सभी को भगोड़ा घोषित कर दिया है।
न्यायमूर्ति ए।के. सिकरी और न्यायमूर्ति अजीत भरियोक की खंडपीठ ने भारी संख्या में फरार चल रहे अपराधियों पर चिंता जताते हुए दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट मांगी थी।रिपोर्ट में खंडपीठ ने पाया कि विभिन्न कारणों की वजह से 1061 अपराधियों के नाम इस सूची से हटा दिए गए हैं। खंडपीठ हत्या और लूटपाट के एक मामले पर सुनवाई कर रही है। इस मामले का आरोपी जमानत मिलने के बाद से फरार है और पिछले 10 वर्षों से उसकी कोई खोज खबर नहीं है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि ऐसा प्रतीत होता कि इन अपराधियों को खोजने के लिए दिल्ली पुलिस ने अधिक मशक्कत नहीं की है।
दिल्ली से सटे उत्तरप्रदेश में भी पुलिस की गिरफ्त से पन्द्रह हजार से अधिक आरोपी फरार हैं, जिन्हें भगोड़ा घोषित किया जा चुका है। उत्तरप्रदेश के भगोड़ों की मुश्किल यह है कि वह जब भी दिल्ली की ओर रूख करते हैं दिल्ली पुलिस उन्हें धर दबोचती है। इसलिए वह अपने प्रदेश से बिहार, नेपाल की ओर चले जाते हैं। बिहार में भी आज से करीब पांच वर्ष पूर्व भगोड़ों की संख्या बारह हजार के करीब थी, लेकिन हाल के वर्षों में न्यायालय की ताकीद और प्रशासन की सक्रियता ने उसमें काफी कमी लाई है।
सच तो यह भी है कि भारत में क्रूरता अक्सर खुलेआम नहीं होती। इसकी योजना इस तरह से बनाई जाती है कि ऊपर से ऐसा लगे कि सब कुछ अपने तरीके से हो रहा है और कानून बिना भेदभाव अपना काम कर रहा है। ठीक वैसे ही जैसे अपनी बहू के खिलाफ जहर पाले कोई सास दिन भर पूजा करती हुई नजर आती है और जब परिवार के बाकी लोग देख न रहे हों तो बहू पर अप्रत्यक्ष छुरियां चलाती रहती है। जब इस तरह का कोई (सरकारी) अभियान चलता है तो कभी भी लिखित निर्देश नहीं दिए जाते, न ही फोन पर कोई बात की जाती है। ये निर्देश आमने-सामने की मुलाकात के दौरान दिए जाते हैं जिसका कोई गवाह नहीं होता। ये स्थिति खुले तौर पर तानाशाही वाले शासन से कहीं बदतर होती है...
राजस्थान में भी भगोड़ों की संख्या काफी अधिक है। कई मामलों में न्यायालय ने भगोड़े अपराधियों की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दिया तो कुछेक पकड़ में आए। हरियाणा -पंजाब में तो अपराधी सरेआम पुलिस को चिढ़ाते हैं। राष्ट्रीय जनता दल की चंडीगढ़ इकाई के महासचिव जोगिंदर सिंह उर्फ पहलवान एक आपराधिक मामले में वांछित हैं। उनकी गिरफ्तारी न होने के कारण अदालत दो साल पहले उन्हें भगोड़ा घोषित कर चुकी है। अपने रूटीन के दस्तावेजों में पुलिस राजद नेता को गिरफ्तार करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। यह बात दीगर है कि राजद नेता पुलिस के सामने भाषण देते हैं। पुतला फूंकते हैं और प्रदर्शन करते हैं। पुलिस जोगिंदर की गिरफ्तारी के प्रति कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुछ समय पूर्व भी मनीमाजरा थाने में जोगिंदर सिंह को शांति भंग की आशंका में गिरफ्तार करने के बाद तुरंत जमानत दे दी गई। अगर पुलिस चाहती तो उस संगीन मामले में भी जोगिंदर को गिरफ्तार कर सकती थी। गांव धनास निवासी सिमरजीत सिंह के मकान पर मुख्य आरोपी जोगिंदर और उसके साथी जबरन कब्जा करने के लिए बवाल कर रहे थे। इस दौरान पुलिस पहुंच गई और घटनास्थल से जोगिंदर के साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन मुख्य आरोपी जोगिंदर सिंह को आज तक नहीं गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने कोर्ट में चालान पेश किया तो अदालत ने जोगिंदर को गिरफ्तार न करने पर फटकार लगाई। तब से जोगिंदर भगोड़ा घोषित हैं। इतना ही नहीं, भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तारी से बचते फिर रहे झारखंड के दो पूर्व मंत्रियों- एनोस एक्का और हरिनारायण राय को झारखंड की अदालत ने भगोड़ा अपराधी घोषित कर दिया है। इन दोनों की गिरफ्तारी से संबंधित नोटिस उनके घरों के बाहर चिपका दिए गए हैं। विजिलेंस डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने बताया कि अगर दोनों पूर्व मंत्रियों ने सरेंडर नहीं किया तो उनके पैतृक घरों सहित उनकी संपत्ति की कुर्की की जाएगी। राज्य सतर्कता विभाग ने एक्का के पास 3।73 करोड़ रुपये और राय के पास 1.16 करोड़ रुपये कीमत की संपत्ति पाए जाने के बाद दोनों के खिलाफ भ्रष्टाचार और अनधिकृत तरीके से संपत्ति अर्जित करने का मामला दर्ज किया है।
ये तो राजनीतिक अपराधियों की बात, जो देश के अंदर हैं। देश के बाहर भी सैकड़ों वांछित हैं। माफिया सरगना अबू सलेम और उसकी प्रेमिका मोनिका बेदी अब कानून के शिकंजे में हैं। लेकिन भारत को आज भी इनके जैसे 132 खूंखार भगोड़े अपराधियों व आतंकवादियों की तलाश है। भारत ने यह सूची इंटरनेशनल पुलिस ऑरगेनाइजेशन (इंटरपोल) को सौंप रखी है। इनमें से दाऊद इब्राहीम समेत लगभग दो दर्जन शातिर अपराधी तो पाकिस्तान और लगभग इतने ही बांग्लादेश में हैं। पाकिस्तान समेत अरब देशों में 32 माफिया सरगना छिपे हैं, जबकि भारत की आज की स्थिति में विश्व के सिर्फ 17 देशों के साथ ही प्रत्यर्पण संधि हो पाई है।
हालांकि प्रत्यर्पण संधि होने भर से ही अपराधियों को वापस लाना आसान नहीं है। लेकिन इतना जरूर है कि इससे उन्हें वापस लाने का रास्ता खुल जाता है। विश्व में आतंकवाद के लगातार पांव पसारते रहने से आज ज्यादातर देश इस कोशिश में हैं कि उनकी ज्यादा से ज्यादा देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि हो। लेकिन यह भी जानने लायक है कि अभी तक विश्व में एक भी देश ऐसा नहीं है, जिसकी सभी देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि हो। जिन 17 देशों के साथ हमारी प्रत्यर्पण संधि है, उनमें नेपाल, बेल्जियम, कनाडा, नीदरलैंड, इंग्लैंड, भूटान, हांगकांग, जर्मनी, रूस , उजबेकिस्तान, टर्की, सयुंक्त अरब अमीरात, मंगोलिया, ट्यूनिशिया और स्पेन शामिल हैं। अमेरिका और स्विट्जरलैंड के साथ अभी अस्थायी संधि है। इनके साथ ही दक्षिण पूर्व के पड़ोसी देशों, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड समेत कुल आठ देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि के बजाय प्रत्यर्पण व्यवस्था है। खास बात यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ इस संधि का मामला अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंच पाया है।

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