सोमवार, 16 दिसंबर 2013

हम देश को बंटने नहीं देंगे



रांची की जेल से जमानत पर रिहा हुए राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव ने बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि हम देश को बंटने नहीं देंगे। सत्ता में आने की कोशिश कर रही सांप्रदायिक ताकतों को हम सत्ता से दूर रखेंगे। रांची के बिरसा मुंडा जेल से लालू यादव जमानत पर रिहा हो गए। रिहा होने के बाद लालू यादव ने कहा कि हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था। ऐसा नहीं है कि आज हमारा बेल हुआ है, इसलिए मैं ऐसा कह रहा हूं बल्कि शुरू से ही मुझे और मेरे परिवार को न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा था।
चारा घोटाला मामले में 5 साल की सजा मिलने के बाद वो यहां बंद थे। गौरतलब है कि 30 सितंबर को विशेष सीबीआई अदालत ने लालू को दोषी करार दिया था। लालू को चारा घोटाले के चार दूसरे मामलों में पहले ही जमानत मिल चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने 13 दिसंबर को लालू प्रसाद को चारा घोटाला मामले में राहत देते हुए जमानत पर छोड़ने का आदेश दिया था। अदालत ने हालांकि छह वर्षो तक उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है। चारा घोटाला के इस मामले के 44 आरोपियों में से 37 को पहले ही जमानत मिल चुकी है और छह अन्य की अर्जी निचली अदालत में विचाराधीन है।  लालू प्रसाद को रांची स्थित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की अदालत ने चारा घोटाला मामले में पांच वर्ष कैद की सजा सुनाई है। उन पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी किया गया है। निचली अदालत ने उनके अलावा बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और 42 अन्य को चाइबासा कोषागार से 37.7 करोड़ रुपये की अवैध निकासी के मामले में सजा दी है। यह मामला अविभाजित बिहार का है और निकासी मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में की गई थी।
तमाम विवाद और आरोप के बीच आरजेडी प्रमुख लालू यादव इस देश का वो चेहरा भी हैं जो सालों पुरानी व्यवस्था को कुचलकर आगे बढ़ता है। जो हमारे देश के ताकतवर सिस्टम को आंखें दिखाकर आगे बढ़ा। गोपालगंज के बेहद ही गरीब परिवार में पैदा हुए लालू सिर्फ अपने दम पर बिहार के मुख्यमंत्री बने और बाद में देश के रेल मंत्री भी बने।
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव राजनीति में एक ऐसा नाम जिसे कुछ सियासत का मसखरा कहते हैं। लेकिन बहुत बड़ा तबका ऐसा भी है जो उन्हें गरीबों का नेता मानता है। भोली सूरत, आंखों में दुश्मनों को धूल चटाने की जजबा, जुबान ऐसी कि विरोधी कि बोलती बंद हो जाए। लेकिन अब हो सकता है कि बिहार ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति से भी एक बड़ा चेहरा शायद हमेशा के लिए पर्दे के पीछे चला जाए।
गोपालगंज जिले के फुलवरियां गांव में 11 जून 1948 को पैदा हुए लालू ने राजनीति की शुरुआत पटना के बीएन कॉलेज से की थी। तब लालू 1970 में पटना यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन के महासचिव चुने गए थे। इसके बाद छात्र आंदोलन के दौरान लालू की सियासत में दिलचस्पी और बढ़ती गई। माहौल को भांपने में माहिर लालू ने राम मनोहर लोहिया और इमरजेंसी के नायक जय प्रकाश नारायण का समर्थक बनकर पिछड़ी जातियों में अपनी छवि बनानी शुरू कर दी। नतीजा ये कि महज 29 साल की उम्र में 1977 में वो पहली बार संसद पहुंच गए। अपनी जन सभाओं में लालू 1974 की संपुर्ण क्रांति का नारा दोहराते रहे। लोगों को सपने दिखाते रहे। जनता की नब्ज पकड़ते हुए लालू ने 90 के दशक में मंडल कमीशन की लहर पर सवार होकर बिहार की सत्ता पर कब्जा कर लिया।
सुरेंद्र किशोर (पत्रकार) का कहना है कि बिहार में लालू यादव को जितना समर्थन मिला था शायद उतना समर्थन राजनीति में अभी तक किसी को नही मिला होगा ना मिलेगा। राजनीतिक विशलेष्क शैवाल गुप्ता ने बताया कि लालू को उस वक्त अति पिछड़े और बाकी लोगों का काफी वोट मिला था।
लेकिन सत्ता में रहते हुए लालू अपने मकसद से भटक गए। पहले से ही पिछड़ा बिहार अब और बर्बाद होने लगा। घोटाले, अपराध लालू की सरकार का दूसरा नाम बन गए। 1997 में लालू यादव पर चारा घोटाले का आरोप लगा। साल 2000 में आय से ज्यादा संपत्ति का आरोप लगा। इन आरोपों के बीच जब लालू ने जेल जाते वक्त सत्ता राबड़ी को सौंपी तो भी कई सवाल उठे। लेकिन लालू ने कभी उसकी परवाह नहीं की। राज्य में विकास पर ब्रेक लगा और तरक्की सिर्फ लूट, हत्या के मामलों में अपहरण उद्योग की हुई। नतीजा ये कि 2005 में बिहार की जनता ने लालू को सत्ता से बाहर कर दिया। हालांकि इस बीच 2004 से 2009 तक लालू ने रेल मंत्रालय की कमान संभाली। विदेश तक में नाम कमाया। लेकिन अब उनका करिश्मा फीका पड़ता जा रहा है।

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