बुधवार, 6 नवंबर 2013

छठ पर गरमाई सियासत


छठ के अवसर पर राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ी है। छठ के नाम पर राजनीतिक आयोजनों की संख्या में भी इजाफा होता जा रहा है। पूर्वांचल के लोगों कि बढ़ती ताकत का ही नतीजा है कि पूरब के प्रमुख सांस्कृतिक पर्व छठ में शरीक होने के लिए नेताओं की होड़ लगी रहती है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पूर्वांचल का लोकपर्व ‘छठ’ धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। दिल्ली में सत्ता की दावेदार कांग्रेस और भाजपा में पूर्वांचल के प्रवासियों को अपने पक्ष में करने की होड़ शुरू हो गई है। दिल्ली में बड़ी संख्या में रह रहे पूर्वांचल के मतदाताओें को भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव से पहले लुभाने के प्रयास में जुटी हुई है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के प्रभारी बनाए गए नितिन गडकरी कहते हैं कि पूर्वांचल के लोगों को बराबर के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे। मैं आपको आश्वासन देता हूं कि दिल्ली में भाजपा के सत्ता में आने पर छठ पूजा को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाएगा। गडकरी ने कहा कि यहां रहने वाले पूर्वांचल के अधिकतर लोग मजदूर, रिक्शा चालक और इस तरह के मेहनत के काम करने में लगे हैं। भाजपा के दिल्ली की सत्ता में आने पर यहां रह रहे 40 लाख गरीब लोगों को नि:शुल्क स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत मेडिकल लाभ दिए जाएंगे। दिल्ली के गरीबों में अधिकतर पूर्वांचल यानी बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग हैं। पूर्वांचल के गरीब लोगों को उन्होंने आश्वासन दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में भाजपा की सरकार बनने पर सरकार कम लागत वाले 10 लाख मकान बनवाएगी और उनमें से अधिकतर पूर्वांचल के लोगों को दिए जाएंगे। वहीं, कांग्रेस में पूर्वांचल का चेहरा कहे जाने वाले पश्चिमी दिल्ली के सांसद महाबल मिश्रा दिल्ली विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। वे लंबे समय से दिल्ली की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। क्षेत्र में विशेषकर पूर्वांचल के लोगों में इनकी बेहतर छवि है। जब उनसे पूछा गया कि क्या आप मानते हैं कि प्रवासी दिल्ली पर बोझ हैं? उन्होंने कहा कि ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है। दरअसल, दिल्ली के उत्थान में प्रवासी लोगों का अहम रोल है। प्रवासी दिल्ली के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक उत्थान में काफी मदद दे रहे हैं। महाबल मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस भी प्रवासियों की उन्नति में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। छठ पर्व पर सरकारी छुंट्टी घोषित की गई और 40 छठ घाटों पर सरकार तमाम व्यवस्था कराती है। भोजपुरी-मैथिली अकादमी का गठन भी किया गया है। प्रवासी मजदूरों के लिए दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी देश भर में सबसे ज्यादा तय की गई है। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राजनीति के लिए जगह दी नहीं जाती, बनाई जाती है। चूंकि 1990 से पहले दिल्ली में प्रवासियों की संख्या काफी कम थी। पहले दिल्ली में रहने वाले प्रवासी रुपये कमा गांव भेज देते थे। धीरे-धीरे समय बदला और बाहर से आए लोग यहां बसने लगे। वे अपनी कमाई यहीं खर्च करने लगे। इससे दिल्ली का आर्थिक ढांचा मजबूत होने लगा। बावजूद इसके 1993 में कांग्रेस ने संगम विहार, जनकपुरी और यमुनापार की एक सीट पर पूर्वांचल प्रत्याशी को उतारा। वर्ष 1997 में मुझे पार्षद का टिकट दिया गया। 1998 में भी कांग्रेस ने भरोसा कर मुझ जैसे प्रवासी को विधानसभा में उतारा। वर्तमान में दिल्ली में पूर्वांचल के सात प्रतिनिधि हैं। हालांकि, जनसंख्या के अनुपात में प्रवासियों को अधिक टिकट दिए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। उल्लेखनीय है कि परिसीमन के बाद दिल्ली की दो तिहाई विधानसभा सीटें और नगर निगम की सीटें ऐसी बन गई हैं जहां पूर्वांचल के प्रवासी 20 फीसद से 60 फीसद तक हैं। परिसीमन से पहले बाहरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली में प्रवासियों का असर था लेकिन परिसीमन के बाद लोकसभा की सातों सीटों, विधान सभा की 70 में से 50 सीटें और नगर निगम के 272 में से करीब दो वार्ड ऐसे बन गए हैं, जहां प्रवासियों के वोट निर्णायक हैं। पूर्वांचल के प्रवासियों के साथ उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ के प्रवासी भी जुड़ कर ज्यादा प्रभावी हो जाते हैं। प्रवासियों के बूते पहले विधायक और निगम पार्षद चुनाव जीतते रहे, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में बिहार मूल के महाबल मिश्र ने पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से जीत हासिल करके दिल्ली के रणनीतिकारों की नींद उड़ा दी। अब तो माहौल प्रवासियों के अनुकूल पहले से ज्यादा हो गया है। सच तो यह भी है कि पूर्वांचल, खासकर बिहार का लोक पर्व छठ अब बिहार से भी ज्यादा धूमधाम से दिल्ली में मनाया जाता है। छठ के मुख्य पर्व में दोनों दिन यमुना के घाटों पर तिल रखने की भी जगह नहीं रहती है। दिल्ली और आसपास के उपनगरों में हर नदी-नालों पर छठ करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है। सालों से प्रवासियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसी के चलते दिल्ली सरकार ने बिजली, पानी, साफ-सफाई का इंतजाम शुरू करवाया। विभिन्न स्वयंसेवी संगठन और राजनीतिक दल भी अपने स्तर पर घाटों की साफ-सफाई करते हैं। 2001 में दिल्ली सरकार ने छठ के दिन एच्छिक अवकाश घोषित करके दिल्ली के प्रवासियों को मान्यता दी। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद तो रहने वाली पंजाब की हैं, लेकिन दिग्गज गांधीवादी नेता पंडित उमाशंकर दीक्षित की बहू होने के चलते वे अपने को पूरब का प्रवासी बताती रही हैं। उनके पुत्र संदीप दीक्षित ऐसे इलाके (पूर्वी दिल्ली) से लगातार दो बार सांसद बन गए जो प्रवासी और ब्राह्मण बहुल सीट मानी जाती है। शीला दीक्षित से पहले भी प्रवासी कांग्रेस के ही साथ थे बल्कि 1993 में विधानसभा चुनाव में कई इलाकों में उन्होंने जनता दल को वोट किया था और तब जनता दल के नेता रामवीर सिंह विधूड़ी की उनमें जो अच्छी पैठ बनी वह अब तक बनी हुई है। पूर्व सांसद सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर को भी इस वर्ग का समर्थन मिलता रहा है। भाजपा नेता शुरू से इनसे अछूत जैसा व्यवहार करते रहे। 1993 के विधानसभा चुनाव में मदन लाल खुराना ने मेवाराम आर्य आदि की सलाह पर पहली बार इस वर्ग के लोगों में पैठ बनाई जिसका परिणाम हुआ कि भाजपा सत्ता में आई लेकिन मूलत: वैश्य व पंजाबी नेतृत्व वाली भाजपा प्रवासियों को ढंग से जोड़ नहीं पाई। दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे मांगेराम गर्ग या डॉ. हर्षवर्धन की कोशिशों का भी ज्यादा लाभ नहीं हुआ। इस बार प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल और भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी डॉ. हर्षवर्धन ने इसे मुख्य एजंडा बनाया है। उन्होंने बिहार में कई नेताओं को इस अभियान में सहयोगी बनाया है। दरअसल, चुनाव आते ही राजनीतिक दल दिल्ली में रहने वाले पूर्वांचल, यानी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश, के मतदाताओं को लुभाने में लग जाते हैं। पिछले कुछ सालों में जिस तरह से दिल्ली की तस्वीर बदली है, उसमें पूर्वांचल के लोग वोट बैंक के रूप में एक मजबूत ताकत बन कर उभरे हैं। दिल्ली में मतदाताओं की संख्या करीब 1.10 करोड़ है। इसमें से करीब 35 लाख मतदाता पूर्वांचल के हैं। विशाल वोट बैंक की वजह से ही पूर्वांचली-दिल्ली की राजनीतिक तस्वीर बनाने और बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं। वैसे तो पूर्वांचली लोगों की उपस्थिति दिल्ली के कोने-कोने में है, लेकिन सात में से चार लोकसभा और दो दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों पर वे निर्णायक भूमिका में होते हैं। दिल्ली की पूर्वी, उत्तर-पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में पूर्वांचली मतदाताओं की संख्या 20 से 25 फीसदी के करीब है। बाकी तीनों सीटों पर पूर्वांचली मतदाताओं की तादाद करीब 10 फीसदी है। पूर्वांचल के लोगों कि बढ़ती ताकत का ही नतीजा है कि पूरब के प्रमुख सांस्कृतिक पर्व छठ में शरीक होने के लिए नेताओं की होड़ लगी रहती है। गौर करने योग्य यह भी है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के सीएम इन वेटिंग विजय कुमार मल्होत्रा ने पूर्वांचलियों को रिझाने के लिए सूर्य को अर्घ्य दिया था। दूसरी ओर दिल्ली की मुख्यमंत्री और अपने को पूर्वांचल की बेटी कहने वाली शीला दीक्षित भी छठ घाटों का निरीक्षण करती नजर आई थीं। पूर्वांचली मतदाताओं को लुभाने की इसी कवायद का नतीजा है कि बिहार जागरण मंच की ओर से पूर्वी दिल्ली में यमुना के तट पर कराए जाने वाली छठ पूजा के आयोजन में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, ए के वालिया, मदन लाल खुराना, महाबल मिश्रा, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेता-अभिनेता पहुंचते रहे हैं। बिहार जागरण मंच के अध्यक्ष दिनेश प्रताप सिंह भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि छठ के माध्यम से राजनीतिक लाभ उठाने का भरसक प्रयास होता रहा है। इस बार छठ पूजा के दौरान भाजपा दिल्ली में रहने वाले पूर्वांचली लोगों को खुश करने के लिए एक नई कोशिश करने वाली है। दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में बने छठ पूजा के घाटों पर भाजपा के कार्यकर्ता अपना बैनर लिए लोगों की मदद करते और चाय पिलाते नजर आएंगे। प्रदेश भाजपा ने तय किया है कि इस बार पार्टी सभी छठ घाटों पर अपने बैनर तले छठ व्रतियों की सुविधा के लिए टेंट और कैंप लगाएगी। भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि शीला सरकार पुरबियों को फुसलाने के लिए घोषणाएं तो कर देती हैं, लेकिन उन घोषणाओं पर अमल नहीं किया जाता। न तो छठ घाटों की सफाई का ख्याल रखा जाता है और न ही छठ पूजा के लिए नदी-तालाब में साफ पानी की कोई व्यवस्था की जाती है।

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