सोमवार, 28 जनवरी 2013

झारखंड के धरतीपुत्र : सुनील महतो


सुनील दा बहुत याद आते हैं। उनके जैसा सांसद कभी कोई था, न आगे कोई होगा। वे जीवट पुरुष थे। वे झारखंडी माटी के मानुष थे। यह किसी एक व्यक्ति की नहीं, पूरे जमशेदपुर और कोयलांचल दर्द है। आज जब हर नेता ‘जनप्रतिनिधि’ ही बनकर रहना चाहता है, सुनील दा ‘जनसेवक’ बनकर लोगों के बीच थे। उनका शहादत कोयलांचल को खलता है। गम्हरिया रो रहा है, बाघुड़िया भी अशांत है। झामुमो को आज तक उनकी भरपाई नहीं हो पाई है। करीब डेढ़ दशक तक जनसेवा की। सांसद के रूप में महज ढाई वर्षों के दौरान ही उन्होंने इतने काम कर दिए कि उनके कार्य को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। वे गांव और ग्रामीणों के बीच जीते थे। हम बात कर रहे हैं सुनील महतो की। जिन्होंने अपने जीवन में पूरे क्षेत्र को अपना घर माना। हर परिवार को अपना परिवार। वे पहले उतने याद नहीं आते थे, लेकिन अब अधिक याद आते हैं। यह मानवीय प्रवृत्ति ही है कि अच्छे लोगों का भान उनके रहते कम और गुजर जाने के बाद अधिक होता है। गम्हरिया है जार-जार जमशेदपुर से सटा इलाका है गम्हरिया। जहां सुनील महतो का जन्म हुआ था। जहां आज भी उनकी मां रहती हैं। जहां उनके शिक्षक रहते हैं। जहां के लोगों के जेहन में आज भी यादें ताजा है सुनील महतो की। वह सुनील, जो उम्मीद की किरण थे। क्षेत्रीय सांसद नहीं थे, तो क्या हुआ? हर लोगों की भरसक मदद किया करते थे। मां खांदो देवी आज भी उसी घर में रहती हैं, जो उनका पैतृक निवास है। कई जगह घर की निर्माण कार्य आज भी अधूरा है, उसे दिखाते हुए मां कहती हैं कि सुनील के जाने के बाद भला कौन इसे बनाएगा? वह तो एक मां का नहीं, पूरे गांव का बेटा था। बचपन में काफी नटखट था, लेकिन पढ़ाई और सामाजिक सरोकार में उतना ही आगे। एक भी दिन याद नहीं, जब उसने स्कूल जाने से मना किया हो? यूं तो उसके पिता जी टिसको में काम करते थे, लेकिन जब भी वे गांव में खेत पर जाते सुनील उनके साथ जाता और दूसरे लोगों का हाथ बंटाता था। मां बताती हैं कि सुनील ने प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण पाठशाला से ही ली, उसके बाद कैम्पिस हाईस्कूल, बिष्टुपुर से मैट्रिक पास किया। को-आॅपरेटिव कॉलेज से इंटर किया और एल.एल.बी. यहीं से किया। सुनील दा का जीवन बीमा करने वाले जीवन कुमार गांगुली बताते हैं कि हमारे ससुर को मकान खरीदना था। कुछ आर्थिक संकट था। जैसे ही उन्होंने सुनील दा से मुलाकात की और अपनी समस्याएं बताई, फौरन सहायता मिल गई। गांगुली बताते हैं कि सुनील दा न तो जात-पात देखते थे और न ही क्षेत्रीयता। उनके दर पर आने वाला, हर इंसान एक जैसा था। आंदोलन करके सैकड़ों लोगों को उन्होंने कई फैक्ट्रियों में नौकरी दिलार्इं। आज गम्हरिया के लोग उनकी बेहद कमी महसूस कर रहे हैं। सुनील महतो के बचपन के साथी असीम मुखर्जी बताते हैं कि उनका साथ तो स्कूल का ही है। सुनील बचपन से ही नेतृत्व गुण से लैस था। पढ़ाई-लिखाई के साथ उसमें शुरू से ही सामाजिक चेतना थी। किसी भी सहायता करने में उसे बेहद खुशी होती थी। अपनी जरूरत को ताक पर रखकर भी वह लोगों की मदद किया करता था। उस जैसा इंसान इस गम्हरिया में ही क्या, पूरे प्रदेश में मिलना मुश्किल है। मुखर्जी कहते हैं कि बेशक, यह सुनील का संसदीय क्षेत्र नहीं था, लेकिन जब भी गांव के लोग उससे मिलने जमशेदपुर या रांची जाते थे, तुरंत वह उनकी मदद किया करता था। बाघुड़िया में हुई थी हत्या सुनील कुमार महतो जमशेदपुर से झामुमो सांसद थे। जमशेदपुर के पास 4 मार्च, होली के मौके पर घाटशिला के किशनपुर गांव में एक फुटबॉल टूनार्मेंट का आयोजन किया गया था। सुनील महतो को इस प्रतियोगिता में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। इसी बीच संदिग्ध माओवादियों का एक दस्ता आया और उन्होंने अंधाधुंध गोलियां चलाईं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, महिलाओं के साथ कुछ लोग स्टेज पर चढ़े और सुनील महतो से मदद की गुहार करने लगे। जब सुनील उनसे बात करने लगे, तो अचानक इन सभी ने हथियार निकाल कर गोलियां चलानी शुरू कर दी। हमले में महतो के दो अंगरक्षक और पार्टी के नगर अध्यक्ष प्रभाकर महतो की भी मौत हो गई। जैसे ही यह खबर इलाके में फैली चहुंओर सन्नाटा पसर गया। लोगों ने स्वत: ही दुकानें-प्रतिष्ठान आदि बंद रखें। लाखों की संख्या में लोग सड़क पर उतर आए। उनके समर्थक सड़कों पर उतर आए और उन्होंने सरायकेला-खरसावां जिले में कुछ स्थानों पर जाम लगा दिया था। हर कोई अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए बेताब था। पूरे संसदीय क्षेत्र में मातम छा गया था। गम्हरिया में उनके पैतृक घर और उनके निवास स्थल पर लोगों का हुजुम उमड़ पड़ा। पूरे राजकीय सम्मान के साथ गम्हरिया में उन्हें मुखाग्नि दी गई। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने सुनील महतो की हत्या की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सांसद सुनील महतो की हत्या की निंदा की। अपनी सांत्वना संदेश में कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी ने सुनील महतो की पत्नी सुमन महतो को बड़ा ही मार्मिक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपना हवाला दिया था। भरसक सांत्वना और ढांढस बंधाया था। आज भी प्रत्येक वर्ष उनके जन्म दिवस 11 जनवरी और शहादत दिवस 4 मार्च को लोग श्रद्धांजलि देने गम्हरिया उनकी समाधि स्थल पर पहुंचते हैं। नहीं बदली बाघुड़िया की तस्वीर चार मार्च 2013 को देश भर में चर्चित माने जाने वाले सांसद सुनील महतो हत्याकांड का छह साल पूरा हो जाएगा। चार मार्च 2007 को घटना के बाद पूरी सरकार उठकर बाघुड़िया आई थी। कई घोषणाएं भी हुई थी। बाघुड़िया की तकदीर और तस्वीर बदलने की बातें कही गई थी, परंतु छह साल होने को हैं, फिर भी ऐसा कुछ जमीन पर नहीं हुआ। आज भी बाघुड़ियावासी अपने गांव पर लगे कलंक का टीका नहीं मिटा पाए हैं। गांव का विकास, ग्रामीणों की तरक्की एवं मुख्यधारा से जोड़ने की बात तो दूर, शहीद स्थल पर लोकप्रिय सांसद सुनील महतो का सीमेंट का एक स्मारक स्थल बनाकर झामुमो के वरीय नेता अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। सच तो यही है कि बाघुड़ियावासी प्रत्येक वर्ष ‘शहादत दिवस’ के दिन स्मारक स्थल की साफ-सफाई कर गोबर से लीपते हैं। फूल चढ़ाते हैं और अगरबत्ती जला कर नमन करते हैं। ग्रामीणों को यह दु:ख आज भी साल रहा है कि उन लोगों को कभी किसी ने उन्हें निर्दोष नहीं समझा। सभी ने शक की निगाहों से देखा। गांव पर जो कलंक लगा, वह अभी तक मिट नहीं पाया। कारण अभी भी स्पष्ट नहीं यूं तो इस हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराई जा रही है और सरकारी मशीनरी लगी हुई है। हालांकि, सवाल फिर भी उठता है कि क्या सांसद सुनील महतो की हत्या माओवादी आतंकवाद का ही नतीजा है या फिर यह घटना किसी गहरे षडयंत्र का दुष्परिणाम है? कुछ लोगों का यह मानना है कि सुनील महतो माफिया तत्वों की साजिश का शिकार बन गए। कहा तो यह भी जा रहा है कि सुनील महतो न सिर्फ माओवादियों, बल्कि माफिया तत्वों के निशाने पर भी थे। कई लोगों का कहना है कि सुनील महतो को झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन का भावी राजनीतिक उत्तराधिकारी भी माना जा रहा था। कई ठेकेदार महतो से नाराज थे। खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हो सकता है कि इस घटना को माओवादी घटना साबित करने के लिए माफिया तत्वों ने छोटे स्तर के माओवादी छापामारों की मदद ली होगी। जहां सुनील महतो का माओवाद विरोधी तेवर जगजाहिर था, वहीं स्थानीय माओवादियों को उनके वफादार ठेकेदारों से रंगदारी टैक्स वसूलने में परेशानी होती थी। हत्या के चंद रोज बाद ही सीपीआई-माओइस्ट ने इस हत्याकांड में अपनी भूमिका से इंकार कर दिया था। संगठन के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता जीतन मरांडी ने कहा था कि सांसद की हत्या में हमारा हाथ नहीं है। हम ऐसी घटना की निंदा करते हैं। हालांकि, इस प्रकार की कोई सूचना या धमकी कभी उन्हें मिली नहीं थी। उनकी पत्नी और जमशेदपुर की पूर्व सांसद सुमन महतो बताती हैं, ‘मैं उनका पूरा कार्यालय देखती थी। जो भी पत्र आते थे, फोन कॉल्स आते थे, अमूमन मैं ही रिसीव करती थी। मुझे ऐसा एक भी वाक्या याद नहीं है कि किसी ने उनको धमकी दी हो। उन्होंने भी कभी किसी से अपनी रंजिश या दुश्मनी की बात नहीं बताई थी। वह तो हमेशा जनता के बीच में रहते थे। भला, ऐसे इंसान से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है...’ अधूरे कार्यों को पूरा करने निकली हैं अर्धांगिनी ‘अर्धांगिनी’शब्द को यथार्थ के धरातल पर उतार रही हैं सुनील दा की पत्नी सुमन महतो। जब सुनील दा की हत्या की गई, उस समय संसदीय कार्यकाल का करीब डेढ़ वर्ष समय शेष था। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, जो कि सुनील दा को पुत्रवत और सुमन महतो को पुत्रवधू मानते हैं, उन्होंने झामुमो की टिकट पर जमशेदपुर लोकसभा उपचुनाव में उतारा और वह जीत गर्इं। संसदीय क्षेत्र में ‘भाभी’ और ‘दीदी’ के नाम से प्रचलित सुमन महतो भी अपने पति के अधूरे कार्यों को पूरा करने जमशेदपुर से दिल्ली तक पहुंची। यूं तो एक संसदीय क्षेत्र, जो भौगोलिक दृष्टि से दुरुह हो, उसके लिए डेढ़ वर्षों का कार्यकाल अधिक नहीं होता, उसमें जितना हो सका, उन्होंने काम किया। वह भी जहां भी गई, लोगों ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया। सुमन महतो स्वयं कहती हैं, ‘क्षेत्र के लोगों ने जो मुझे स्नेह और सहयोग मिला, उसको मैं कभी नहीं भुला सकती। आज, जब मैं सांसद नहीं हूं, फिर भी कहीं जाती हूं, तो लोगों से वही प्यार और इज्जत मिलता है, जो पहले मिला करता था। मुझे क्षेत्र के लोगों पर पूरा भरोसा है।’ गुरुजी और प्रदेश के उमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का क्या रुख है, वे कहती हैं, ‘बाबा की तो बात ही मत कीजिए। आज भी मुझे बहू ही मानते हैं। यदि कुछ दिनों तक उनसे बात नहीं हो, तो तुरंत उलाहना मिल जाता है! हेमंत तो देवर था, है और रहेगा। उपमुख्यमंत्री होने के कारण उसकी अपनी व्यस्तता है, लेकिन जब भी समय मिलता है कुशलक्षेम पूछ लेता है। मुझे और क्या चाहिए! जब किसी का ससुराल ऐसा हो, तो भला उसे किस बात की दिक्कत होगी!’

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