रविवार, 2 जनवरी 2011

सरकार और परिवार दोनों को प्याज की रूलाई

महंगाई को लेकर चिंता प्रकट करने में केंद्र सरकार ने कभी कोताही नहीं की। कांग्रेस महाधिवेशन में प्रधानमंत्री ने कहा कि महंगाई मार्च से कम होने लगेगी। अगले ही दिन प्याज ने तगड़ा झटका दिया। खुले बाजारों में दाम 70-75 रुपए किलो तक पहुंच गए। गृहिणियों का बजट गड़बड़ा गया। गरीबों की दाल पहले ही ऊंची कीमतों की भेंट चढ़ चुकी है। अब वे प्याज से रोटी खाने की हालत में भी नहीं रह गए। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने फौरन संबंधित मंत्रालयों को चि_ी लिखी। हुक्म दिया कि प्याज की कीमतें नीचे लाई जाएं। सवाल यह है कि कीमतों के अचानक छलांग लगाने तक सरकार सोती क्यों रही?
एक ओर केंद्र और राज्य सरकार प्याज की आसमान छूती कीमतों से आम लोगों को राहत दिलाने का दावा कर रही हैं तो वहीं उनकी नाक के नीचे ही मदर डेरी, केंद्रीय भंडार और नैफेड के बूथों पर प्याज होलसेल से कहीं अधिक कीमतों पर बेचा जा रहा है। इन बूथों पर जो प्याज बेचा जा रहा है उसकी क्वॉलिटी भी अच्छी नहीं है। इसके बावजूद राज्य सरकार इस ओर कतई ध्यान नहीं दे रही है। शनिवार को आजादपुर होलसेल सब्जी मंडी में प्याज की होलसेल कीमतें 10 से 32 रुपये प्रति किलो रहीं। केवल 25 टन प्याज ऐसा था जोकि 37.50 रुपये प्रति किलो में बिका। आजादपुर मंडी में होलसेल में प्याज बेचने वाले कुछ व्यापारियों का कहना है कि दिल्ली सरकार ने इन तीनों संस्थानों को सस्ती दरों पर प्याज उपलब्ध कराने का काम किया है। सरकार सीधे तौर पर प्याज बूथों पर नहीं बेच रही है। मगर, प्याज के नाम पर असली खेल यह हो रहा है कि मदर डेरी, नैफेड और केंद्रीय भंडार के बूथों पर जो प्याज 40 रुपये प्रति किलो में बेचा जा रहा है वही प्याज मंडियों से 20 से 25 रुपये प्रति किलो में खरीदा जा रहा है, जबकि मंडी से बूथों तक प्याज के पहुंचने में एक से दो रुपये प्रति किलो का ही खर्चा आता है। सूत्रों का कहना है कि जब होलसेल में प्याज की कीमतें इतनी कम हो गई हैं तो फिर बूथों पर महंगी दरों से प्याज क्यों बेचा जा रहा है?
सूत्रों का कहना है कि इससे तो यही लग रहा है कि सरकार प्याज के नाम पर आम आदमियों को चूना लगवाने में इन संस्थानों की मदद कर रही है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से बूथों पर बिक रही प्याज की गुणवत्ता और कीमत की कोई निगरानी नहीं की जा रही है। सूत्रों का यह भी कहना है कि बूथों के लिए होलसेल मंडियों से खरीदे जाने वाले प्याज की भी मॉनिटरिंग होनी चाहिए, क्योंकि इसमें भी सस्ता प्याज खरीदकर महंगा बिल बनवाने जैसी गड़बड़ हो सकती है।
ऐसे में होना यह चाहिए था कि यदि होलसेल में प्याज की कीमतें कम हो रही है तो बूथों पर बिकने वाले प्याज की कीमतें भी कम होतीं, जिससे आम आदमी को राहत मिले। मगर हो उलटा रहा है खराब प्याज के उपभोक्ताओं को अधिक रुपये देने पड़ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि अभी तक सरकार रिटेलरों पर भी अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो पाई है।
इस मामले में दिल्ली सरकार के मंत्री राजकुमार चौहान का कहना है कि होलसेल में प्याज की कीमतें कम हो रही हैं तो बूथों पर बिकने वाले प्याज की कीमतें भी कम होनी चाहिए। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि क्रिसमस और 31 दिसंबर होने की वजह से प्याज की मांग अधिक हो जाती है। इसलिए भी कीमत बढ़ जाती हैं। मगर होलसेल और बूथों पर बिकने वाले प्याज की कीमतों में अधिक अंतर है तो सोमवार को रिव्यू किया जाएगा
सच तो यह भी है कि सरकार इस बार अच्छी बारिश से खुश थी। कह रही थी कि कीमतें कम होंगी और आर्थिक विकास दर ऊंची। अचानक प्याज की कीमतों में उछाल का दोष कृषि मंत्री शरद पवार ने ज्यादा बारिश के मत्थे मढ़ दिया। कहा कि प्याज उगाने वाले राज्यों में बेमौसम अतिरिक्त बारिश से प्याज की फसल खराब हो गई है, इससे कीमतें बढ़ गईं। विशेषज्ञों ने कहा कि बारिश का फसलों पर असर पड़ा हो सकता है, पर थोड़ा। इतना नहीं कि कीमतें अचानक आसमान छूने लगें। सरकार की ही संस्था नाफेड के प्रमुख ने कहा कि निर्यात में तेजी से प्याज के दाम बढ़े हैं। सरकार के लिए प्याज न हुआ मानो अंधों का हाथी हो गया। हरेक सफाई में अर्धसत्य है। पर सरकार का दोष सभी में समान और पूरा है। प्याज की फसलों को खराब करने वाली बारिश पिछली रात नहीं हुई। अक्टूबर-नवंबर के महीनों में जब बारिश हुई, सरकार इसके प्रभावों का अनुमान क्यों नहीं लगा सकी? खबर है कि निर्यात के लिए 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेटÓ के रूप में जो परमिट दिए जाते हैं, वे नवंबर में अक्टूबर की तुलना में 35 फीसदी और पिछले साल नवंबर की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा दिए गए। ये आंकड़े अब बाहर आ रहे हैं। सरकार के भीतर समय रहते किसी ने इनकी सुध क्यों नहीं ली?
व्यापारिक लॉबी आयात-निर्यात के जरिये ऊंची कीमतों और मोटे मुनाफे का खेल पहले भी खेलती रही है। समर्थ सरकारें अपने को उनके इस खेल का खिलौना नहीं बनने देतीं। अब सरकार ने प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी और आयात पर शुल्क खत्म कर दिए। इस बीच जो वारे-न्यारे होने थे, हो गए। कृषि मंत्री कह रहे हैं कि कीमतें नीचे आने में अभी तीन हफ्ते लगेंगे। मुहावरा प्याज के आंसुओं का है, पर दरअसल ये सरकार की नींद और अकर्मण्यता या शायद साठगांठ के आंसू हैं।
गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि बाजार में प्याज की कमी का फायदा सबसे ज्यादा ट्रेडर्स उठा रहे हैं। दिल्ली में थोक व्यापारियों ने मंगलवार को 34 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्याज खरीदा और उसे खुदरा बाजार में 80 रुपये किलो बेचा। व्यापारियों का मुनाफा प्रति किलो 46 रुपये यानी 135 फीसदी रहा। कुछ दिन पहले दिल्ली में थोक व्यापारियों ने 11,445 क्विंटल प्याज खरीदा। इस तरफ से सिर्फ एक दिन में व्यापारियों ने 4 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। यह मान लिया जाए कि थोक बाजार से खुदरा बाजार में ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट कॉस्ट लगता है और कुछ नुकसान की भी गुंजाइश रहती है। फिर भी क्या यह मार्जिन 135फीसदी बनता है? ध्यान रहे प्याज जल्दी खराब होने वाली चीज नहीं है। गौरतलब है कि थोक कीमतों से जुड़े आंकड़े नैशनल हॉर्टिकल्चर ऐंड डिवेलपमेंट फाउंडेशन द्वारा रोजाना इक्_ा किया जाता है। इसकी स्थापना नैफेड द्वारा की गई है। यह कहानी सिर्फ दिल्ली की नहीं है। देश भर के 44 बड़े प्याज बाजारों में यही स्थिति रही।

1 टिप्पणी:

Ashish ने कहा…

महाराष्ट्र माझा नामक एक वेबसाईट पे Most Corrupt Indian -२०१० के लिए मतदान चल रहा है, उसमे शरद पवार साहब को सब से ज्यादा वोट्स मिल रहे है, देखते है अखिर मैं कोन जितता है, भ्रष्टाचारी तो सब है लेकिन उन सबके बाप का खिताब जनता किसे देती है येह देखना रोमांचकारी होगा.