मंगलवार, 1 सितंबर 2009

आप दीपो भव:

स्थापना से लेकर आज तक सभी संगठन मंत्री तो संघ से भेजे गए। तपोनिष्ठ दीनदयाल उपाध्याय, वाजपेयी, मोदी, आडवाणी सभी के सभी तो संघ के प्रचारक ही रहे हैं। भाजपा आज वह अंगुलिमाल डाकू बन गयी है, जिसके पाप का भागी बनने के लिए कोई तैयार नहीं है। मातृ संगठन संघ के मुखिया भी स्पष्टï संकेत दे चुके हैं कि यदि भाजपा को आगे बढऩा है तो रास्ता खुद निष्कंटक बनाना होगा।
पुराणों में कथा है कि शुक्रदेव अपने पिता के साथ जंगल में एक कुटिया बनाकर रहते थे, जब वे अभी छोटे थे तो खेल-खेल में एक दिन उन्हें ख्याल आया कि अपनी कुटिया के बाहर गुलाब का पौधा लगाना चाहिए। खोजबीन कर वे कहीं से गुलाब के एक-दो पौधे लाए और उन्हें कुटिया के बाहर क्यारी में रोप दिया। नित्य नियम से वे उन पौधों को सींचते, उनकी छंटाई करते और धूप और तपिश से उनको बचाने का प्रबंध करते। कुछ दिनों बाद गुलाब की कली दिखाई देने लगीं लेकिन उसकी तुलना में कांटे कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहे थे। उन्होंने सोचा कि गुलाब खिलने में तो देर लगेगी। जाने कितने दिन लग जाएंगे तब तक तो ढेरों बड़े-बड़े कांटे उग आएंगे। यह सोचकर शुक्रदेव ने पौधों की देखभाल छोड़ दी।
तीमारदारी के अभाव में गुलाब के पौधे धीरे-धीरे मुरझाने लगे और आखिरकार एक दिन सूख गए। पिता ने शुक्रदेव से पूछा कि शौक में लगाए पौधों की देखभाल एकाएक बंद क्यों कर दी। शुक्रदेव बोले, 'इनमें फूलों की अपेक्षा तीक्ष्ण कांटे अधिक तेजी से बढ़ रहे थे, जो चुभते थे। इसलिए मैंने पौधों की देखभाल छोड़ दी।Ó शुक्रदेव का जवाब सुनकर पिता मुस्कराए फिर पास बैठाकर उसे समझाया, ''तुमने कांटों के भय से पौधों की देखभाल छोड़ दी, इसी कारण वे सूख गए। कांटों के भय से हर कोई ऐसा ही करता रहा तो गुलाब कैसे खिलेंगे।ÓÓ
वर्तमान में यही स्थिति राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ की है। सत्तारोहण के बाद संघ ने भाजपा से परोक्ष रूप से कुछ दूरी दिखाने की कोशिश की। इसके कुछ समय बाद भाजपा के सर्वमान्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी भी सक्रिय राजनीति से विलग हो गए। नतीजा, पार्टी के अंंदर एका का अभाव? पार्टी में गुटबाजी और पद लोलुप्ता प्राथमिकता होती गई। यूं कहें कि कभी अनुशासन का दंभ भरने वाले नेता वैचारिक स्तर पर निरंकुश दिखने लगे। आखिरकार पार्टी में रोज-रोज की जूतम पैजार के बाद पार्टी में बदलाव की कमान परोक्ष रूप से राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ को संभालनी पड़ी। इतिहास साक्षी है कि संघ प्रमुख अति महत्वपूर्ण मुद्दों पर भाजपाइयों को नागपुर तलब करते रहे हैं और वहीं से संदेश जारी किया जाता रहा है। मगर, हालिया घटनाक्रम में संघ के सभी शीर्ष नेता एक साथ दिल्ली में मौजूद हैं रहे और वरिष्ठ भाजपाइयों से मिले। मोहन भागवत समेत संघ के शीर्ष पदाधिकारी मोहन भैया जी जोशी , मदन दास देवी , सुरेश सोनी और दतात्रेय होसवले राजधानी में जुटे। एक-एक कर कई पार्टी नेताओं से घंटों मुलाकात की। उसके बाद संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने भाजपा में बदलाव के लिए सार्वजनिक रूप से तीन संदेश दिए। पहला, लालकृष्ण आडवाणी को विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देना होगा। दूसरा, पार्टी अध्यक्ष पद से दिसंबर में राजनाथ सिंह की विदाई हो जाएगी। तीसरा, पार्टी के सभी फैसलों में आडवाणी और राजनाथ सिंह की संयुक्त भूमिका रहेगी। संघ ने भाजपा में बदलाव के लिए इस बार दबाव बढ़ाकर इन दोनों नेताओं के सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा है। साथ ही यह संकेत भी दे दिया है कि भाजपा पर संघ की पकड़ ढीली नहीं हुई है।
भाजपइयों और संघ के कुछ प्रचारकों से हुई बातचीत से तो अभी तक यही संकेत मिल रहे हैं कि सुषमा स्वराज आडवाणी की जगह विपक्ष की नेता, राजनाथ की जगह अरुण जेटली पार्टी अध्यक्ष और जेटली की जगह वेंकैया नायडू राज्यसभा में विपक्ष की नेता बन सकते हैं। सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू के नाम पर पार्टी में एकमत तैयार किया सकता है लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत अरूण जेटली को लेकर है। पार्टी में आडवाणी विरोधी खेमा जेटली को पार्टी की कमान सौंपने को तैयार नहीं है। साथ ही भाजपा में संगठन महासचिव का दायित्व संभाल चुके कुछेक व्यक्ति भी जेटली को नापसंद करते हैं। वैसी स्थिति में मुरली मनोहर जोशी को वाजपेयी के आर्शीवाद के साथ कुर्सी थमाई जा सकती है। मगर जोशी उम्र के आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ चले हैं, सो युवा वर्ग को उनके पक्ष में तैयार करना होगा। भाजपा मुख्यालय में चर्चा तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नामों की भी है, लेकिन ये दोनों नेता फिलहाल अपना प्रदेश छोडऩा नहीं चाहते।
भगवा बिग्रेड का एक तबका यह भी कहता है कि आडवाणी और मोहन भागवत के बीच केमिस्ट्री नहीं बन पा रही है। रज्जू भैया , के । सी . सुदर्शन तक तो भाजपा संघ के सामने नतमस्तक रहती थी , लेकिन अब मोहन भागवत चूंकि आडवाणी से उम्र में कम है , तो कहीं न कहीं संघ के सम्मान में भी कमी आई है , जिससे चलते संघ अब आडवाणी को बिल्कुल नहीं चाहता। हालांकि भगवा बिग्रेड के नेता अब मीडिया से बातचीत करने में कतरा रहे हैं , फिर भी नाम न छापने की शर्त पर संघ , विहिप और बीजेपी के नेताओं ने स्वीकारा कि अब वे सभी चाहते है कि एक बार ढंग से भाजपा की सफाई हो जाए। मजे की बात यह है कि अधिकांश नेता पार्टी की इस दुर्दशा से व्यथित होने के बजाए इस बात पर संतुष्टि जता रहे हैं कि यह नए प्रारूप पाने का दौर है। कुछ का तो यहां तक कहना है कि पार्टी का कांग्रेसीकरण हो गया है , जिसे दूर करने के लिए संघ को कड़े कदम उठाने पड़ रहे हैं। इस बावत भगवा बिग्रेड इस बात को हल्कापन देते हुए यह भी कह रहा है कि अभी वेट ऐंड वॉच की पोलिसी अपनाई जारी है , क्योंकि अभी पिक्चर बाकी है मेरे दोस्त।
सत्यापित सत्य है कि जब बात 'अपनोंÓ के बीच 'अपनोंÓ के छल-छद्मों की होती है खुले मैदान में नहीं होती। चारदीवारियों के बीच होती है। तभी तो पार्टी में चिंतन के लिए अभूतपूृर्व सुरक्षा और गोपनीयता को ध्यान में रखकर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कई होटल का बंदोबस्त किया था। तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद भाजपाई अपने अंर्तमन की ज्वाला को शांत नहीं कर पाए। तीन दिनों के चिंतन बैठक के बाद भी भाजपा ने एक बार फिर अपने सामने मौजूद असल सवालों से आंख चुराने की कोशिश की। जिन्ना प्रकरण को लेकर पार्टी अलाकमान ने जसवंत को निकालने में जहां एक दिन का भी समय नहीं लिया, वहीं पार्टी के आंतरिक ताने-बाने को एक बार फिर समय के हवाले कर दिया। सच तो यह भी है कि जसवंत सिंह को निकाले जाने के तरीके पर कई तरह के सवाल खड ़े हो गए हैं। पर्दे के पीछे खेली गई राजनीतिक शतरंज की चालों का अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें किसने किसको मात दी है। पार्टी के अंदर ही फुसफुसाहट है कि चिंतन बैठक से बाहर रखने के लिए ही पार्टी की कमजोरियों पर विचार-विमर्श से पहले जसवंत सिंह को बाहर का रास्ता दिखाना कितना उचित है, जबकि यही काम दिल्ली में किया जा सकता था या फिर चिंतन बैठक के बाद किया जा सकता था। जसवंत सिंह की बात सुनकर उन्हें उनके किए की सजा सुनाई जा सकती थी। घोषित रूप से तो पार्टी ने अपने प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर के माध्यम से कहलवा दिया कि पार्टी के संसदीय बोर्ड के पास किसी को भी पार्टा से निकालने के अधिकार हैं। लेकिन इस बात का जवाब कोई नहीं दे रहा कि जसवंत सिंह को पार्टा से निकालने के लिए आवश्यक प्रक्रिया का पालन करने में क्या दिक्कत थी। एक अन्य प्रवक्ता ने कहा कि प्रक्रिया का पालन तो किया जाना चाहिए था, जिससे कार्रवाई पर कोई उंगली न उठा सके। ऐसा नहीं किया गया, इसीलिए उंगलियां उठ रही हैं। इस प्रवक्ता ने इस बात से इनकार नहीं किया कि इस प्रकार के कदमों से पार्टी में अंतर्कलह और बढऩे की आशंका है। इस वक्त भाजपा कई प्रकार के संकटों से गुजर रही है, जिनमें नेतृत्व के सवाल ने पार्टी को परेशानी में डाला हुआ है। संघ ने युवा लेकिन अगली पांत के चार नेताओं से आगे देखने के निर्देश देकर आलाकमान की परेशानी को बढ़ा दिया है। शिमला से दिल्ली आते-आते मामला बिगड़ता ही चला गया। तभी तो संघ प्रमुख को दिल्ली आना पड़ा। वैसे ऐसा लगता है कि समय ने अपना चक्र पूरा कर लिया है। जिन्ना पर टिप्पणी करने से पार्टी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी के अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा था और मुंबई में हुए पार्टी के सिल्वर जुबली समारोह में राजनाथ सिंह की ताजपोशी हुई थी। अब जब राजनाथ सिंह का पार्टी के अध्यक्ष पद का कार्यकाल पूरा होने को है, जसवंत सिंह की किताब- 'जिन्ना : भारत, विभाजन, आजादीÓ से निकलकर जिन्ना का जिन्न फिर आ खड़ा हुआ है।
बहरहाल, भाजपा की मौजूदा दुर्दशा का कारण चुनावी हार के सदमे से उसका उबर नहीं पाना लगता है। शिमला चिंतन बैठक में छायाओं के पीछे भागने के बजाय काफी कुछ सोच-विचार की जरू रत है। पार्टी को ऐसे मुद्दे नहीं सूझ रहे, जिन्हें उठाकर वह जनता का ध्यान खींच सके। राष्ट्रीय महत्व के लगभग प्रत्येक महत्वपूर्ण मुद्दे पर उसकी भूमिका नकारात्मक रही है। आंतरिक रू प से वह विभाजन और स्थानीय स्तर पर बगावत की बेहद गम्भीर समस्या से जूझ रही है। इस तथ्य के बावजूद, कि कांग्रेस की तरह ही उसका व्यापक और बडा जनाधार है, वह आत्म-नाश के पथ पर बढ रही है। ऐसा लगता है कि भाजपा अपने पुनरूद्धार के लिए एक बार फिर संघ की विचारधारा की ओर बढ रही है। वह अपनी राजनीति चलाने के लिए स्वयं को पूरी तरह उसे सौंपने के लिए भी तैयार है। भाजपा के लिए यह त्रासदी ही होगी, यदि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को उठाने के लिए पर्याप्त राजनीतिक जनाधार होने के बावजूद वह ऐसा करेगी। वर्तमान में पार्टी के पास ऐसी कोई नीति नहीं है, जिसकी बदौलत वह उन राज्यों में गठजोड़ के लिए सहयोगी दल तलाश सके, जहां वह खुद के बूते नहीं लड़ सकती। राजनीतिक एकाकीपन अवश्यम्भावी लगता है। बदतर बात यह है कि भाजपा खुद ही ऐसा कर रही है।

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