मंगलवार, 10 मार्च 2015

मसरत पर गरमा गई सियासत

जिस प्रकार से जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफती मोहम्मद सईद ने मसरत को रिहा किया और राज्य में भाजपा ने अपने सहयोगी पीडीपी पर आंखें तरेरी, उसके बाद राजनीतिक बहस-मुहाबिसों का दौर गरम हो चला है। अब तो कहा यह जा रहा है कि मसरत रिहा हो गया फक्तू रिहा होने के रास्ते पर है। इतना ही नहीं, बाकी 145 राजनीतिक कैदियों की फाइल जल्द ही खुलेगी। यानी कभी आंतकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के साथ रहे मसरत और कभी जमायत उल मुजाहिद्दीन के कमांडर रहे आशिक हसन फक्तू। उसके बाद कश्मीर की जेलो में बेद 145 कैदियों की रिहाई भी आने वाले वक्त में हो जायेगी, क्योंकि राजनीतिक कैदियों की रिहाई होनी चाहिए। यह मुद्दा भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए चलने वाली बातचीत में उठी थी। दरअसल, जम्मू कश्मीर की सरकार को लेकर जो नजरिया दिल्ली का है उसमें मउप्ती को केन्द्र के साथ हुये करार नामे पर चलना चाहिए, लेकिन लेकिन मुफ्ती सरकार जिस नजरिये से चल रही है, उसमें उसने निकाहनामा तो केन्द्र की भाजपा सरकार के साथ पढ़ा है लेकिन मोहब्बत कश्मीरी आंतकवादियों के लेकर कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती मोहम्मद सरकार द्वारा हुर्रियत नेता मसरत आलम की रिहाई पर सरकार की सहयोगी पार्टी भाजपा अब विपक्ष के निशाने पर आ गई है। पीडीपी के इस निर्णय से भाजपा में खासी नाराज दिख रही है। इस बीच पीडीपी ने अलगाववादी नेताओं की रिहाई को कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (सीएमपी) का हिस्सा बताकर भाजपा को और चिढ़ाया दिया है। पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने कहा कि यह सीएमपी का हिस्सा है। उन्होंने दावा कि मसरत को रिहा करने से पहले भाजपा से सलाह ली गई थी। भाजपा का कहना हैं कि उससे मसरत की रिहाई के बारे में सलाह नहीं ली गई थी। भाजपा की पूर्व सहयोगी शिवसेना ने कहा कि पीडीपी के साथ गठबंधन करने की कीमत चुकानी होगी। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा, हमने भाजपा को पहले ही चेताया था कि पीडीपी के साथ गठन की सरकार बनाना एक खतरा मौल लेना है। मसरत की रिहाई गलत है। मुफ्ती मोहम्मद एक सच्चे भारतीय नहीं है। इस बीच विवादों में घिरे मसरत आलम ने कहा कि सरकारें बदलती रहेगी लेकिन जमीन पर वास्तविकता एक ही रहेगा। आलम ने कहा, मुझे तीन बार जमानत दी गई इसलिए मैं मुझे रिहा किया गया है। मैंने अपना जीवन जेल में बिताया है इसलिए यह बड़ी बात नहीं होगी अगर मुझे दोबारा गिरफ्तार कर लिया जाता है।
जम्मू कश्मीर में भी भाजपा -पीडीपी के संबंधों में इसे लेकर तनाव है। अजब संयोग है कि आंतकवाद की दस्तक जब कश्मीर में रुबिया सईद के अपहरण के साथ होती है और केन्द्र सरकार पांच आतंकवादियों की रिहाई का आदेश देती है, तो वीपी सिंह सरकार को भाजपा उस वक्त समर्थन दे रही थी। ठीक दस बरस बाद 1999 जब एयर इंडिया का विमान अपहरण कर कंधार ले जाया जाता है और तीन आंतकवादियों की रिहाई का आदेश उस वक्त एनडीए सरकार देती है, जो भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में चल रही थी। अब 15 बरस बाद 2015 में जब जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उन आतंकवादियों की रिहाई के आदेश देते हैं, जिन पर देशद्रोह से लेकर आंतकवाद की कई धारायें लगी हैं, तो संयोग से कश्मीर की सरकार में भाजपा बराबर की साझीदार होती है।
अब चूंकि केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। संघ अपना वजूद दिखाना चाहती है। जाहिर है, इस बार भाजपा और संघ पीडीपी को कोई रियायत देने के मूड में नहीं है। लिहाजा, जम्मू-कश्मीर भाजपा ने तुरंत मोर्चा संभाला और कहा कि हमें इसकी जानकारी नहीं दी गई। जम्मू कश्मीर में अलगाववादी नेता मसरत आलम को रिहा करने के बाद न केवल घाटी में भूचाल आ गया है बल्कि संघ ने भी भाजपा पर आॅंखे तरेरी है। बताया गया है कि संघ नेता भाजपा-पीडीपी गठबंधन को लेकर पहले से ही खफा थी, लेकिन मसरत की रिहाई के बाद से तो संघ ने अपना रूख और अधिक कड़ा कर लिया है। संघ नेताओं ने भाजपा से कहा है कि उसने पीडीपी से गठबंधन कर अपनी नीतियों को दरकिनार करने में कोई कोर कसर नहीं रखा है। संघ ने कहा है कि भाजपा मुफ्ती मोहम्मद से जरा यह पूछे कि क्या वे भारतीय नहीं है और यदि उनका जवाब हाॅं में है तो फिर उन्होंने सीएम बनने के तुरंत ही बाद मसरत को क्यों छोड़ दिया। इधर सईद के निर्णय को लेकर भाजपा ने अभी पूरी तरह से पत्ते तो नहीं खोले है लेकिन माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुफ्ती से इस मामले को लेकर खुलकर चर्चा जरूर करने वाले है। बताया गया है कि जिस तरह से संघ ने अपने गुस्से का इजहार किया है उसके कारण घाटी में रहने वाले वे लोग नई परेशानी में पड़ जायेगी। इनमें वे लोग शामिल है जिन्हें अभी तक मूल अधिकारों की प्राप्ति नहीं हुई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार ये बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से आकर पंजाब प्रांत में बस गये थे, लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद अभी तक भारतीय का दर्जा तक नहीं मिला है। कुल मिलाकर इस तरह के लोग पीडीपी भाजपा गठबंधन के पाटों में पीसने के लिये मजबूर बने रहेंगे। जब विपक्षी दलों के तेवर सख्त हुए, तो संसद में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस तरह की गतिविधि भारत सरकार को जानकारी दिए बिना हो रही हैं और देश की एकता अखंडता के लिए जो भी जरूरी होगा उनकी सरकार करेगी।  देश की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। आलम की रिहाई को अस्वीकार्य बताते हुए मोदी ने आज कहा कि ऐसा भारत सरकार को जानकारी दिए बिना किया गया है।  सरकार बनने के बाद वहां जो कुछ भी गतिविधियां हो रही हैं, वे न तो भारत सरकार से मशविरा करके हो रही हैं और न भारत सरकार को जानकारी देकर हो रही हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि सदन में और देश में जो आक्रोश है, उस आक्रोश में मैं भी अपना स्वर मिलाता हूं। यह देश अलगाववाद के मुद्दे पर दलबंदी के आधार पर न पहले कभी सोचता था, न अब सोचता है और न आगे कभी सोचेगा।
इससे पूर्व गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले में राज्य सरकार के गृह विभाग से मिली रिपोर्ट को सदन के साथ साझा करते हुए कहा कि सरकार जन सुरक्षा पर किसी सूरत में समझौता नहीं करेगी।  केंद्र सरकार ने इस पूरे मामले को गंभीरतापूर्वक लिया है। राज्य सरकार से पूरा स्पष्टीकरण मांगा गया है। स्पष्टीकरण मिलने के बाद यदि जरूरत हुई तो कठोर से कठोर परामर्श जारी किया जाएगा। गृह मंत्री ने राज्य सरकार से मिली जानकारी के आधार पर बताया कि मसरत ने 2010 में घाटी में हुए उग्र प्रदर्शनों में मुख्य भूमिका निभाई थी। 1995 से लेकर अब तक उस पर 27 मामले दर्ज किए गए जिनमें देशद्रोह, हत्या का प्रयास और साजिश रचने के मामले हैं। उसे अदालत से 27 मामलों में जमानत मिल चुकी है। उसे फरवरी 2010 से अब तक आठ बार हिरासत में लिया गया है।  राज्य सरकार के गृह विभाग से मिली रिपोर्ट से केंद्र अभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं है तथा इस संबंध में और स्पष्टीकरण मांगे गए हैं।
ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि आखिर कौन है मसरत आलम ? उस पर क्या आरोप हैं, किस कानून के तहत मसरत हुआ था गिरफ्तार ? असल में, मसरत आलम को अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का करीबी माना जाता है। मसरत 2008-10 में राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों का मास्टरमाइंड रहा है। उस दौरान पत्थरबाजी की घटनाओं में 112 लोग मारे गए थे। मसरत के खिलाफ देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने समेत दर्जनों मामले दर्ज थे। उसे चार महीनों की तलाश के बाद अक्टूबर 2010 में पकड़ा गया था। मसरत पर संवेदनशील इलाकों में भड़काऊ भाषण के आरोप भी लग चुके हैं। मसरत आलम को अक्टूबर 2010 में श्रीनगर के गुलाब बाग इलाके से 4 महीने की मशक्कत के बाद गिरफ्तार किया गया था। गिलानी के करीबी माने जाने वाले मसरत आलम पर दस लाख रुपये का इनाम भी था। मसरत 2010 से पब्लिक सेफ्टी एक्ट यानी पीएसए के तहत जेल में बंद था। उसे बारामूला जेल में रखा गया था और उसकी रिहाई रात 9 बजे शहीद गंज पुलिस थाने से की गई। मसरत आलम की रिहाई के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा है कि पिछले चार साल से कश्मीर में शांति की एक बड़ी वजह यही थी कि मसरत आलम जेल में था। सीएम रहते मसरत आलम को जेल में डालने वाले उमर अब्दुल्ला ने भी ट्वीट कर इस फैसले पर सवाल खड़े किए। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि - आलम 2010 के विरोध प्रदर्शन का मास्टरमाइंड था। ये कोई संयोग नहीं है कि उसकी गिरफ्तारी के बाद प्रदर्शन खत्म हो गए। 2010 की गर्मियों में जो कुछ हुआ, वैसा दोबारा नहीं हुआ। अफजल गुरू की फांसी के बाद भी नहीं हुआ। क्योंकि आलम नहीं था। तो अब या तो मुफ्ती सईद से एक नए सौदे के तहत आलम बाहर आया है, या फिर वो घाटी में फिर उत्पात मचाने वाला है। वक्त ही बताएगा।

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