शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

समाज पर एक बदनुमा दाग



बचपन, इंसान की जिंदगी का सबसे हसीन पल, न किसी बात की चिंता और न ही कोई जिम्मेदारी। बस हर समय अपनी मस्तियों में खोए रहना, खेलना-कूदना और पढ़ना। लेकिन सभी का बचपन ऐसा हो यह जरूरी नहीं। कई देशों में आज भी बच्चों को बचपन नसीब नहीं है। आज दुनिया भर में 215 मिलियन ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। और इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पोंछे और औजारों के बीच बीतता है। भारत में यह स्थिति बहुत ही भयावह हो चली है। दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में ही हैं। 1991 की जनगणना के हिसाब से बाल मजदूरों का आंकड़ा 11.3 मिलियन था। 2001 में यह आंकड़ा बढ़कर 12.7 मिलियन पहुंच गया।
आसमान में पतंग उड़ाने, कहीं दूर तक सैर तक जाने, मजे -मौज और पढ़ाई करने वाले दिनों में अपनी इच्छाओं का दमन करके दुनिया के लगभग एक करोड़ बच्चे कहीं कल -कारखानों में, कहीं होटलों में तो कहीं उंची चहारदीवारियों में बंद कोठियों की साफ -सफाई में लगे हैं। कानून किताबों में पड़ उंघ रहा है। क्योंकि उसे जगाने वाले हाथ देखकर भी कुछ नहीं करते बल्कि कई बार तो वह खुद ही कानून तोड़ते नजर आते हैं। और इस पर भी दर्दनाक बात यह कि बच्चों के मुददे कभी विधानसभा और संसद में गंभीरता और नियमितता से उठाए ही नहीं जाते क्योंकि बच्चों का कोई वोट बैंक नहीं होता, बच्चों के मुददे जनप्रतिनिधियों को चर्चा में नहीं लाते।
 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 12 जून बाल मजदूरी के विरोध का दिन है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन आईएलओ 2002 से हर साल इसे मना रहा है। दुनिया भर में बड़ी संख्या में बच्चे मजदूरी कर कर रहे हैं। इनका आसानी से शोषण हो सकता है। उनसे काम दबा छिपा के करवाया जाता है। वे परिवार से दूर अकेले इस शोषण का शिकार होते हैं। घरों में काम करने वाले बच्चों के साथ बुरा व्यवहार बहुत आम बात है। 1992 में भारत ने कहा था कि भारत की आर्थिक व्यवस्था देखते हुए हम बाल मजदूरी हटाने का काम रुक रुक कर करेंगे, क्योंकि हम यह एकदम से रोक नहीं पाएंगे। अफसोस की बात यह है कि आज 21 साल बाद भी हम बाल मजदूरी खत्म नहीं कर पाए हैं। और आज भी पूरी तरह से इसके खात्मे की बात बहुत दूर लग रही है। अगर हम बालश्रम मंत्रालय के ही आंकड़े ले लें, तो वो एक करोड़ बच्चों की बात करते हैं। साफ है कि यह संख्या कम है। इनमें से 50 फीसदी बच्चे लड़कियां हैं। जिनमें से कई तस्करी का भी शिकार होती हैं।
बड़े शहरों के साथ-साथ आपको छोटे शहरों में भी हर गली नुक्कड़ पर कई राजू-मुन्नी-छोटू-चवन्नी मिल जाएंगे जो हालातों के चलते बाल मजदूरी की गिरफ्त में आ चुके हैं। और यह बात सिर्फ बाल मजदूरी तक ही सीमित नहीं है इसके साथ ही बच्चों को कई घिनौने कुकृत्यों का भी सामना करना पड़ता है। जिनका बच्चों के मासूम मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। उम्र के हिसाब से अगर बात करें, तो 10 से 14 साल की उम्र के बच्चों से मजदूरी के मामले में उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम, कर्नाटक, का हाल बहुत बुरा है। क्राय ने 2009-10 का विश्लेषण किया था। जिसमें देखा गया कि 10 से 18 साल के बच्चों में 42 फीसदी बच्चे असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं और इतने ही बिना किसी मजदूरी के काम कर रहे हैं। याद रखिए कि ये आंकड़े सरकारी हैं। दिल्ली की अगर बात करें, तो यहां सबसे ज्यादा समस्या गायब होते बच्चों की है। यहां हर दिन कम से कम 14 बच्चे गायब हो जाते हैं। ये फिर या तो बाल मजदूरी का शिकार होते हैं या फिर तस्करी का।
माना जा रहा है कि आज 60 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं, अगर ये आंकड़े सच हैं तब सरकार को अपनी आंखें खोलनी होगी। आंकड़ों की यह भयावहता हमारे भविष्य का कलंक बन सकती है। भारत में बाल मजदूरों की इतनी अधिक संख्या होने का मुख्य कारण सिर्फ और सिर्फ गरीबी है। यहां एक तरफ तो ऐसे बच्चों का समूह है बड़े-बड़े मंहगे होटलों में 56 भोग का आनंद उठाता है और दूसरी तरफ ऐसे बच्चों का समूह है जो गरीब हैं, अनाथ हैं, जिन्हें पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता। दूसरों की जूठनों के सहारे वे अपना जीवनयापन करते हैं। जब यही बच्चे दो वक्त की रोटी कमाना चाहते हैं तब इन्हें बाल मजदूर का हवाला देकर कई जगह काम ही नहीं दिया जाता। आखिर ये बच्चे क्या करें, कहां जाएं ताकि इनकी समस्या का समाधान हो सके। सरकार ने बाल मजदूरी के खिलाफ कानून तो बना दिए। इसे एक अपराध भी घोषित कर दिया लेकिन क्या इन बच्चों की कभी गंभीरता से सुध ली?
आखिर लक्ष्य पूरा नहीं होने के क्या कारण हैं? जवाब में कई कारण आते हैं।  हमारे देश में बच्चों के लिए काफी सारे अधिनियम हैं। हर एक्ट में बच्चे की उम्र का पैमाना अलग अलग है। इससे कंपनी को या उन लोगों को फायदा हो जाता है, जो मजदूरों को रखते हैं। जैसे चाइल्ड लेबर एक्ट में 14 साल से कम उम्र के बच्चे को काम पर रखना गैरकानूनी है, जबकि शादी के लिए कम से कम उम्र की सीमा 21 साल है, तो वोटिंग के लिए 18 साल। 15 साल का बच्चा भी बड़ा नहीं होता। वह चाइल्ड लेबर एक्ट में जा सकता है। बच्चे की कॉमन परिभाषा नहीं है। दूसरा मुद्दा यह है कि भारत में बच्चों के लिए काम करने वाली स्वास्थ्य, श्रम जैसे अलग अलग विभागों के बीच आपस में कोई सामंजस्य नहीं है।
बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए जरूरी है गरीबी को खत्म करना। इन बच्चों के लिए दो वक्त का खाना मुहैया कराना। इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ सरकार ही नहीं आम जनता की भी इसमें सहभागिता जरूरी है। हर एक व्यक्ति जो आर्थिक रूप से सक्षम हो अगर ऐसे एक बच्चे की भी जिम्मेदारी लेने लगे तो सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा। क्या आपको नहीं लगता कि कोमल बचपन को इस तरह गर्त में जाने से आप रोक सकते हैं? देश के सुरक्षित भविष्य के लिए वक्त आ गया है कि आपको यह जिम्मेदारी अब लेनी ही होगी। क्या आप लेंगे ऐसे किसी एक मासूम की जिम्मेदारी?

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