सिद्धांतों का किया जा रहा है दरकिनार। जिस लक्ष्?य को लेकर भाजपा जनता के बीच पहुंची थी, उसमें भटकाव भी नजर आता है। इस भंवरजाल से भी भाजपा बाहर निकलने के लिए भीतर ही भीतर बेचैन हैं। अब कैसे निकलेगी यह तो वक्?त ही बताएगा? बेशक भाजपा मिशन 2013 को फतह करने के लिए कमर कस चुकी है, लेकिन पार्टी की आंतरिक गुटबाजी से कैसे पार पाएगा शिवराज?
सुभाष चंद्र
करीब तीन दशक की भाजपा धीरे-धीरे इस कदर अपना जनाधार बढ़ाती रही कि मध्य प्रदेश में बीते एक दशक से सत्ता में है। सत्ता का अपना चरित्र है। गुण-दोष है। लिहाजा, मध्य प्रदेश में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा इस दफा काफी संजीदा नजर आ रही है। इस संजीदगी का अहम कारण है - पार्टी का आंतरिक सर्वे, जिसने वरिष्ठ भाजपाइयों के चेहरे का नूर गायब कर दिया है। सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा हाईकमान किसी भी सूरत में जोखिम मोल लेने के लिए तैयार नहीं है। यही कारण है कि चुनाव नतीजों को प्रभावित करने वाले प्रभावशाली (बाहुबलियों) से लेकर जातीय समीकरणों पर उसकी पैनी नजर है। स्वयं पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय भी स्वीकारते हैं कि ये ऐसे दो कारक हैं, जो चुनाव को प्रभावित करते हैं। विजयवर्गीय का कहना है कि इनका सरकार की योजनाओं तथा उसके द्वारा जनहित में किए गए कामों से कोई मतलब नहीं होता है। इसीलिए इस तरह की जानकारी जुटाना पार्टी ने उचित समझा है। सरकार और संगठन के मुखिया की दिक्कत पार्टी में आंतरिक गुटबाजी को लेकर भी है।
दरअसल, भाजपा ने चुनावी तैयारी के क्रम में 25 फरवरी से 20 मार्च तक महाजनसंपर्क अभियान चलाया था। इसका मकसद मतदान केंद्र तक अपनी पैठ बनाने के साथ ऐसी जानकारियां जुटाना था, जो चुनाव में उसके पक्ष और विपक्ष में जा सकती हैं। पार्टी ने इसके लिए मतदान केंद्र स्तर तक का ब्योरा तैयार करने के लिए एक प्रपत्र तैयार किया और जिला इकाइयों तक भेजा। पार्टी के प्रदेश मुख्यालय से तैयार इस प्रपत्र में 12 सवालों के जरिए जानकारी मांगी गई। पार्टी जानना चाहती है कि मतदान केंद्र स्तर पर उसके कितने सदस्य हैं, वहीं दूसरे राजनीतिक दलों की क्या स्थिति है? इस प्रपत्र में मांगी गई दो जानकारियां सबसे अहम है। पार्टी ने मतदान केंद्र स्तर पर प्रभावशाली लोगों के ब्योरे के साथ जातीय समीकरणों का भी ब्योरा मांगा है। यह जानकारी विधानसभा चुनाव और कांग्रेस और दूसरे दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति बनाने को ध्यान में रखकर जुटाया जा रहा है। इस प्रपत्र के जरिए यह भी जानकारी जुटा रही है कि संबंधित मतदान केंद्र में किस दल के कौन से प्रमुख कार्यकर्ता हैं? आवासीय सोसायटी के पदाधिकारी और सदस्य कौन हैं? और तो और, कार्यकर्ताओं से मतदान केंद्र में पार्टी की जीत के लिए सुझाव भी मांगे गए हैं। साथ ही पिछले चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहा, इसका भी जिक्र कार्यकर्ता को करना है।
बताया जा रहा है कि इन प्रपत्रों के जरिए आई जानकारी के आधार पर ही पार्टी अपना चुनावी एक्शन प्लान तैयार कर सरकार से सहयोग लेगी, ताकि पार्टी के खिलाफ जा सकने वाले संकेतों को नियंत्रण में लिया जा सके। प्रदेश भाजपा से जुड़े लोगों का कहना है कि पार्टी की आंतरिक सर्वे के बाद संगठन में यह बात उठने लगी है कि आगामी विधानसभा चुनाव में 90 विधायकों के फिर से चुनाव जीतने को लेकर संशय है। लिहाजा, संगठन के पदाधिकारी 70 से अधिक विधायकों को दोबारा उम्मीदवार न बनाने का मन बना रहे हैं। लेकिन पार्टी की दिक्कत यह है कि टिकट नहीं मिलने पर ये नेता समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी सरीखे खेमों में चले जाएंगे और भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर कभी भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, तो कई बार दिल्ली में कई वरिष्ठ नेताओं से सलाह मशविरा कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महासचिव रामलाल भी थावरचंद गहलोत, अनंत कुमार, प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष प्रभात झा आदि नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। दरअसल, भाजपा को लगता है कि अगर मध्य प्रदेश में हैट्रिक लगानी है, तो कई कड़े फैसले लेने के साथ ही नए चेहरों पर दांव लगाकर युवा नेतृत्व को विकसित करना होगा, क्योंकि यह युग ही युवा शक्ति का है। यह चुनाव मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि शिवराज सिंह चौहान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काफी भरोसा करती है। संघ के कई वरिष्ठ प्रचारक उन्हें नरेंद्र मोदी से बेहतर मानते हैं। संगठन से जुड़े नेता ने बताया कि भाजपा की विशेष नजर इस बार उन सीटों पर भी है, जहां हम पिछले चुनाव में हार गए थे। आदिवासी बहुल इलाकों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने जो कार्य किया, वह भी लोगों को बताया जाएगा। हारी हुई विधानसभा की सीटों पर सरकार की उपलब्धियों के जरिए जनमानस के बीच अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। पार्टी की ओर से एक टीम बनाने की बात हो रही है, जिसका मुख्य काम तमाम आयोजनों के जरिए विरोधी पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने की होगी। उल्लेखनीय यह है कि बीते छह अप्रैल को जब भोपाल में भाजपा का स्थापना दिवस मनाया गया, तो प्रदेश अध्यक्ष और सांसद नरेंद्र सिंह तोमर ने विधायकों की बैठक में कहा कि नई कार्यसमिति बनने के बाद ‘महा जनसंपर्क अभियान’ हमारा पहला कार्यक्रम था। इसका फीडबैक मन को संतुष्ट करने वाला रहा। उन्होंने कहा कि चुनावी वर्ष के दृष्टिकोण से पार्टी के हर कार्यक्रम को भव्यता प्रदान करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा जनता पार्टी से जुड़ सके। ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक पंचायत एवं नगर क्षेत्र के वार्ड केंद्र तक आयोजन हों। तोमर ने सीधे तौर पर संगठन नेताओं से कहा कि हारी हुई विधानसभा सीटों पर मंत्री कार्यक्रम में उपस्थित हों, ताकि कोई भी क्षेत्र विकास पर्व से अछूता न रहे। विधानसभा क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों पर केंद्रित होर्डिंग्स लगे। साथ ही होर्डिंग्स पर नेतृत्वकर्ता के साथ भाजपा और विकास नजर आए। इसी दौरान संगठन मंत्री अरविंद मेनन ने भी कहा कि महा जनसंपर्क अभियान के माध्यम से भाजपा सरकार ने गत नौ वर्षों में जो जनता के बीच पैठ बनाई है, उसका फीडबैक प्राप्त हुआ है। साथ ही अनुसुचित जाति वर्ग तक हम पहुंचे हैं। मध्य प्रदेश में अनुसूचति जाति वर्ग का 17 प्रतिशत मत है। इस वर्ग का कांग्रेस से मोह भंग हो चुका है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि करीब तीन दशक से अधिक के सफर में भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपनी जड़ें तो मजबूत की है, शाखाओं को भी ताकतवर बना लिया। कई आदिवासी क्षेत्रों में भी संघ की अच्छी-खासी दखल हो गई। प्रदेश में भाजपा के इस फैलाव में पार्टी के दिग्?गज नेताओं के साथ लाखों कार्यकर्ताओं का त्?याग, बलिदान और भागीदारी है। सबसे अ?हम भूमिका अदा करने वाले नेताओं में कुशाभाऊ ठाकरे, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, प्?यारेलाल खंडेलवाल, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, वीरेंद्र कुमार सकलेचा, नारायण प्रसाद गुप्?ता सहित आदि शामिल हैं। त्?यागी और तपस्?वी ठाकरे ने तो अपने जीवन का अमूल्?य समय पार्टी को देकर न सिर्फ मध्?यप्रदेश में कई चेहरों को मुख्?यधारा के मैदान में उतारा और उन्?हें पार्टी नेतृत्?व भी सौंपा। उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान ने उसी मेहनत के फल में इजाफा किया।
जानकारों का कहना है कि संघर्ष, जुझारूपन और लगातार सड़कों की लड़ाई लड़ने का जज्?वा लेकर भाजपा ने पहली बार 1990 में अपनी स्?पष्?ट बहुमत की सरकार प्रदेश में बनाई। यह सरकार ढाई साल का ही सफर तय कर पाई और उसके बाद राष्?ट्रपति शासन लग गया। फिर भाजपा को 1998 से 2002 तक संघर्ष का रास्?ता अपनाना पड़ा। हिं?दू ब्रांड नेता उमा भारती के नेतृत्?व में 2003 में फिर भाजपा की सरकार बनी। दूसरी बार 2008 में भी भाजपा ने अपना झंडा गाड़ा और अब तीसरी बार 2013 में भाजपा एक बार फिर तीसरी बार सत्?ता पर काबिज होने के लिए पूरी तरह से जोर-आजमाईश करने में लगी हुई है। अब नेतृत्?व मुख्?यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में है, जो कि अपनी छवि के सहारे प्रदेश में फिर से सरकार बनाने के लिए न सिर्फ बेताब है, बल्कि उसके लिए सक्रिय भी हैं। सरकार बनेगी अथवा नहीं यह तो वक्?त ही बतायेगा, लेकिन फिर भी भाजपा ने अपने मिशन को गति तो दी है।
यूं तो मध्?यप्रदेश भाजपा में गुटबाजी का बीजारोपण 90 के दशक में हो गया था, तब सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी आमने-सामने आ गए थे। जोशी के साथ पूर्व मुख्?यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा, रघुनंदन शर्मा, प्?यारेलाल खंडेलवाल, नारायण प्रसाद गुप्?ता एवं लक्ष्?मीनारायण शर्मा सहित आदि दिग्?गज हुआ करते थे, जबकि दूसरे गुट की अगुवाई पूर्व मुख्?यमंत्री सुंदरलाल पटवा के हाथों में होती थी। पटवा को आशीर्वाद कुशाभाऊ ठाकरे का रहा। यही वजह रही कि पार्टी पर पटवा की तूती बोलती रही है। धीरे-धीरे पार्टी की तस्?वीर बदली और गुटबाजी का रोग फैलता ही गया। इसके बाद 2005 में फिर भाजपा में बंबडर आया और उमा भारती को पार्टी से अलग होना पड़ा। इसके बाद वर्ष 2011 में उमा की फिर वापसी हो गई। इसके साथ उमा भारती ने अपने आपको मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर रखा। एक बार फिर वर्ष 2013 में भाजपा की राजनीति में उबाल आ गया है। इसकी वजह है उमा भारती को पार्टी का राष्?ट्रीय उपाध्?यक्ष बनाना है और दूसरी वजह पूर्व अध्?यक्ष्?ा प्रभात झा को भी उपाध्?यक्ष बनाना है। इन दोनों नेताओं को वर्तमान में विरोधी गुट का माना जा रहा है। यह नेता बार-बार कह भी रहे हैं कि वे पूरी तरह से गुटविहीन है, लेकिन किसी को विश्?वास नहीं हो रहा है। हालांकि, 8 अप्रैल को प्रदेश भाजपा कार्यालय में पार्टी के राष्?ट्रीय पदाधिकारी बने नेताओं के स्?वागत समारोह में भी सारे नेताओं ने एक स्?वर से यह कहा कि हम शिवराज के नेतृत्?व में हर हाल में सरकार बनाएंगे। काबिलेगौर है कि उमा भारती 7 साल बाद भाजपा कार्यालय पहुंची और प्रभात झा को जिस तरह से प्रदेश अध्?यक्ष पद से दरकिनार करके अलग किया गया था, वे भी फिर पार्टी कार्यालय पहुंचे। आशंका यह जाहिर की जा रही है कि उमा भारती अपनी कड़वी यादें आसानी से भुला नहीं पाएंगी, क्?योंकि उन्?हें भाजपा की राजनीति में भुला ही दिया गया था, जबकि प्रभात झा के साथ जो पर्दे के पीछे प्रतिघात हुआ है, उसका दर्द उन्?हें आज भी है, जिसे वे समय-समय पर बयां भी कर रहे हैं। आने वाले समय में प्रदेश भाजपा की राजनीति का ध्रुवीकरण हो जाए, हैरत नहीं होना चाहिए। इस पर पार्टी और सरकार की नजर तो है, लेकिन राजनीति में कब क्?या नया हो जाए, कोई कुछ नहीं कह सकता!
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