बुधवार, 8 सितंबर 2010

हिन्दू धर्म जीवन पद्धति है

हिन्दू धर्म विश्व में सर्वाधिक शालीन, भद्र, सभ्य और ' वसुधैव कुटुम्बकम् Ó की भावना प्रसारित करने वाली जीवन पद्धति है जो किसी संप्रदाय या पंथ से व्याख्यायित नहीं हो सकती। इस जीवन पद्धति के आधुनिक उद्गाता महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, शाहू जी महाराज, लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक, श्री अरविंद, महात्मा गांधी, डॉ. हेडगेवार, वीर सावरकर प्रभृति जननायक हुए। उन्होंने उस समय हिन्दू समाज की दुर्बलताओं, असंगठन और पाखण्ड पर चोट की। तेजस्वी-ओजस्वी वीर एवं पराक्रमी हिन्दू को खड़ा करने की कोशिश की। उन महापुरुषों को आज के नेताओं से छोटा या कम बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता। महात्मा गांधी ने दुनिया में एक आदर्श हिन्दू का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि आज सारी दुनिया भारत को महात्मा गांधी के देश के नाम से जानती है। डॉ. हेडगेवार ने भारत के हज़ारों साल के इतिहास में पहली बार क्रांतिधर्मा समाज परिवर्तन की ऐसी प्रचारक परम्परा प्रारम्भ की जिसने देश के मूल चरित्र और स्वभाव की रक्षा हेतु अभूतपूर्व सैन्य भावयुक्त नागरिक शक्ति खड़ी कर दी। इनमें से किसी भी महानायक ने नकारात्मक पद्धति को नहीं चुना। सकारात्मक विचार ही

उनकी शक्ति का आधार रहा। स्वामी दयानंद सरस्वती ने पाखंड खंडनी पताका के माध्यम से हिन्दू समाज को शिथिलता से मुक्त किया और ईसाई पादरियों के पापमय, झूठे प्रचार के आघातों से हिन्दू समाज को बचाते हुए शुद्धि आंदोलन की नींव डाली। जिसके परिणामस्वरूप हिन्दू समाज की रक्षा हो पाई। स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ ने विश्वभर में हिन्दू धर्म के श्रेष्ठतम स्वरूप का परिचय देते हुए ईसाई और मुस्लिम आक्रमणों के कारण हतबल दिख रहे हिन्दू समाज में नूतन प्राण का संचार करते हुए समाज का सामूहिक मनोबल बढ़ाया।

कोई भी इस सच से इनकार नहीं कर सकता कि हिन्दू धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है। वैसे इसे मानने वाले हर जगह हैं।

हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है, 'हिंसायाम दूयते या सा हिन्दुÓ अर्थात् जो अपने मन, वचन, कर्म से हिंसा से दूर रहे वह हिन्दू है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरों को कष्ट दे वह हिंसा है। सच तो यही है कि हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है, और न ही कोई 'पोपÓ। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं, और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फिऱ भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, हैं इन सब में विश्वास धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं), और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनों कर्म भोग सकता है, और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

हिन्दू विचारों को प्रवाहित करने वाले वेद हैं, उपनिषद् हैं, स्मृतियां हैं, षड्-दर्शन हैं, गीता, रामायण और महाभारत हैं, कल्पित नीति कथाओं और कहानियों पर आधारित पुराण हैं । ये सभी ग्रन्थ हिन्दुत्व के उद्विकास एवं उसके विभिन्न पहलुओं के दर्शन कराते हैं । इनकी तुलना विभिन्न स्थलों से निकलकर सद्ज्ञान के महासागर की ओर जाने वाली नदियों से की जा सकती है । किन्तु ये नदियाँ प्रदूषित भी हैं । उदाहरण के लिए झूठ पर आधारित वर्ण व्यवस्था को सही ठहराने और प्राचीन स्वरूप देने के लिए ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में कुछ अंश जोड़ा गया । ऊँच-नीच की भावना पैदा करने के लिए अनेक श्लोक गढ़कर मनुस्मृति के मूल स्वरूप को नष्ट कर दिया गया । पुराणों में इतनी अधिक काल्पनिक कथाएँ जोड़ी गयीं कि वे पाखण्ड एवं अंधविश्वास के आपूर्तिकर्ता बन गये । आलोचनाओं में न उलझकर किसी भी ग्रन्थ के अप्रासंगिक अंश को अलग करने पर ही हिन्दुत्व का मूल तत्त्व प्रकट होता है । मोटे तौर पर कहा जाए तो सामान्य हिन्दू का मन किसी एक ग्रन्थ से बँधा हुआ नहीं है । जैसे ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है किन्तु वहां जीवन्त संसदीय लोकतन्त्र है और अधिकांश लोकतान्त्रिक प्रक्रिया परम्पराओं पर आधारित है; उसी प्रकार सच्चे हिन्दुत्व का वास हिन्दुओं के मन, उनके संस्कार और उनकी महान् परम्पराओं में है ।

आज हम लोग उसी परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए एकत्रित हुए हैं। पूरे विश्व को एक नया संदेश देना चाहते हैं। पिछले कुछ समय से कई देशों में शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। कई संस्थाओं का अस्तित्व ही इसी पर है। उन लोगों को हम यह बताना चाहते हैं कि शाकाहार को हिंदू सनातन काल से पोषित करते आ रहे हैं। किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक है, क्योंकि शाकाहार का गुणज्ञान किया जाता है। शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है। इसीकारण यह तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के आजकल लगभग 30 प्रतिशत हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे भी गोमांस कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है।

इन तमाम बातों को कहने के पीछे हमारा मुख्य अभिप्राय केवल और केवल एक ही था। आज जो लोग हिंदुओं के विषय में कई प्रकार के दुष्प्रचार कर रहे हैं, भ्रामक जानकारी देने की असफल कोशिश कर रहे हैं, उनको यह बताना चाहते हैं कि हिंदू समाज अनादिकाल से ही अखिल विश्व के लिए सोचता आया है। आज भी वह केवल अपने लिए ही नहीं, सबके लिए सोच रहा है। पूरे विश्व का कल्याण कैसे हो, यही हमारी कोशिश रहती है।

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