बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

फोन रखो, मैं घंटियाता हूं

घंटमणि का बज गया फोन,
डाला गया था उसमें, नया रिंगटोन।
गाना सुनकर हो गया वह मंत्रमुग्ध,
गुनगुनाने लगा, खो गया सुधबुध।
इतने में खत्म हो गया रिंगटोन,
होश आया उसे, किसने किया था फोन।
मिस्डकॉल पर उसने नंबर मिलाया,
पता नहीं किसने घंटी था बजाया।
स्पीकर ने उसे आवाज सुनाई,
अभी आता हूं, थोड़ा बीजी हूं भाई।
थोड़ी देर रुको, अभी आकर बतियाता हूं,
या फिर फोन रखो, मैं घंटियाता हूं।
यह सुन घंटमणि हो गया चिंतामग्न,
इस आदमी ने कर दिया मुझे नग्न।
घंटमणि रखा गया है मेरा नाम,
इस आदमी ने किया, घंटियाने का काम।
उसने सोचा, फिर फोन मिलाऊंगा,
खरी-खोटी खूब उसे सुनाऊंगा।
अभी हाल मैं उसे बताता हूं,
वह मुझे क्या, मैं उसे घंटियाता हूं।
यही सोचकर उसने, फिर फोन घुमाया,
निज कान से मोबाइल सटाया।
स्पीकर से दूसरी आवाज आई,
अभी बोला, तो तुम्हें नहीं दी सुनाई।
सुन लो ठीक से, जो कोई हो, ओ मिस्टर,
मैं बोल रहा हूं पुलिस कमिश्नर।
क्या तुम्हें शामत है आई,
जो बार-बार फोन घुमा रहा है भाई।
मैंने कह दिया, अभी मैं बीजी हूं,
न मैं तुम्हारी भौजाई, न बीवी हूं।
फिर मुझे तुम क्यों फोन घुमाता है,
क्षण-क्षण में मुझे ही घंटियाता है।
थोड़ी देर रुको, अभी आकर बतियाता हूं,
या फिर फोन रखो, मैं ही घंटियाता हूं।
घंटमणि को अब आया गुस्सा,
हवा में उसने मारा मुक्का।
गुस्से से उसका गला भर्राया,
दांत भीचकर वह गुर्राया।
घंटमणि रखा गया है मेरा नाम,
घंटियाने का किया तूने कैसे काम।
बार-बार तू ऐसे घंटियाएगा,
मेरे नाम पर तू बतियाएगा।
तुम रुको, मैं ही वहां आता हूं,
कान ऐंठकर अभी घंटियाता हूं।
इतने में उठ गया रिसीवर,
पता नहीं कहां गया कमिश्नर।
उधर से एक मधुर आवाज आई,
हैलो, कौन बोल रहा है भाई।
माफ करना, यह डायलर टोन है लगाई,
इसने तुम्हें दुख पहुंचाया होगा, घंटमणि भाई।
अब तू नहीं सुनेगा कभी,
थोड़ी देर रुको, अभी आकर बतियाता हूं,
या फिर फोन रखो, मैं घंटियाता हूं।

-विश्वत सेन

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

इस गांव में बेटी के जन्म के साथ पौधा लगाया जाता


बिहार में एक ऐसा गांव है, जहां बेटियों के जन्म के साथ पौधरोपण की परंपरा है। भागलपुर जिले के धरहरा गांव में जब किसी घर में बेटी जन्म लेती है तो तुरंत ही उस परिवार के सदस्य गांव में 10 पौधे लगाते हैं। भागलपुर जिला मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर स्थित धरहरा गांव में वर्षो पहले आंरभ की गई यह परंपरा आज गांव की संस्कृति बन गई है। पूर्व में इस गांव में वृक्ष कहीं-कहीं नजर आते थे लेकिन अब यह गांव वृक्षों से भरा पड़ा है। ये वृक्ष इन ग्रामीणों को आर्थिक रूप से भी सबल बना रहे हैं।
धरहरा ग्राम पंचायत के मुखिया विजय कुमार सिंह ने आईएएनएस को बताया कि यह परंपरा गांव में काफी पहले से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि बेटी के जन्म के साथ जो 10 पेड़ लगाए जाते हैं वह उनके विवाह के समय तक बड़ा हो जाता है और लोगों की कमाई का जरिया बन जाता है। सिंह कहते हैं कि यही कारण है कि आज इस गांव में कई लोग तीन से चार एकड़ जमीन पर लगे बगीचे के मालिक हैं। यही नहीं बेटियों के जन्मदिन मनाने के दौरान परिवार के लोग इन पेड़ों का जन्मदिन मनाना नहीं भूलते। करीब पांच हजार की आबादी वाले धरहरा गांव के विमलेश सिंह के पास दो एकड़ का बगीचा है। वह कहते हैं कि उनका विवाह वर्ष 1998 में हुआ। वर्ष 2003 में इनकी पहली बेटी का जन्म हुआ था, जिसके बाद उन्होंने पेड़ लगाया था।
राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क मंत्री वृषण पटेल ने बताया कि प्रत्येक वर्ष सरकार वैशाली, नालंदा, बोधगया जैसी परम्परागत थीम पर आधारित झांकी तैयार करती थी, जिसे दिल्ली भेजा जाता था। इस बार बालिका सशक्तीकरण को ध्यान में रखकर 'धरहरा की वन पुत्रियां' थीम पर आधारित झांकी भेजी गई, जिसे समिति ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि आमतौर पर आज के समय में बेटियों के जन्म के बाद दु:ख जताया जाता है, लेकिन भागलपुर के धरहरा में ऐसा नहीं है। वहां बेटी के जन्म के बाद 10 पौधे लगाने की परम्परा है। झांकी इस बात का द्योतक है कि समाज में बेटी और पेड़ के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सचिव राजेश भूषण ने बताया कि झांकी के साथ एक 'सोहर' का भी चयन किया गया है, जो आमतौर पर बेटी के जन्म की खुशी में स्त्रियां गाती हैं। झांकी की थीम का चयन राज्य स्तर पर विकास आयुक्त की अध्यक्षता में गठित एक समिति द्वारा किया जाता है, जिसे रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि बिहार के भागलपुर जिले के धरहरा गांव में जब किसी घर में बेटी का जन्म होता है तो उस परिवार के सदस्य गांव में 10 पौधे लगाते हैं।
भागलपुर जिला मुख्यालय के करीब 33 किलोमीटर दूर धरहरागांव में वर्षों पहले शुरू की गई यह परम्परा आज गांव की संस्कृति बन गई है। पहले इस गांव में पेड़ कहीं-कहीं नजर आते थे, लेकिन अब यह गांव पेड़ों से हरा-भरा है। ये पेड़ ग्रामीणों को आर्थिक रूप से भी सबल बना रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार, गांव में लैंगिक अनुपात एक हजार पुरुषों पर 871 महिलाओं का है। धरहरा गांव का क्षेत्रफल 1200 एकड़ है, जिसमें 400 एकड़ में पूरी तरह फलदार पेड़ हैं। पेड़ का मालिक वही व्यक्ति होता है, जो इसे लगाता है। ग्रामीण नरेश कुमार सिंह के मुताबिक, इस गांव में कई लोग तीन से चार एकड़ जमीन पर लगे बगीचे के मालिक बन गए हैं। जब लोग अपनी बेटी का जन्मदिन मनाते हैं तो वे पेड़ों का जन्मदिन मनाना भी नहीं भूलते। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी गांव का दौरा कर इस अनोखे कार्य के लिए लोगों की प्रशंसा कर चुके हैं।