शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

जरूरत एक अदम्य साहस की

ये एक ऐसा जंग है जो हथियार के संग सियासी हलकों में भी लड़ा जा रहा है। और जब शब्द और शस्त्र के बल पर युद्घ होता है तो उसका हल निकलना काफी मुश्किल होता है। साथ ही जब इस कार्य में जासूसों का जाल बिछा हो और एक के बाद एक कई जासूस पकड़े जाएं, तो मामला और संगीन हो जाता है। इस सच्चाई को भारत और पाकिस्तान के आवाम से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता। पिछले छह दशक से भी अधिक समय से यह जंग चल रहा है। लेकिन अफसोस, कि इसका कोई हल नहीं निकल रहा है। उलट तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की बात जब भी आती है तो मामला और बिगड़ता चला जाता है। ऐसे में जरूरत इस बात को लेकर है कि भारतीय सत्ता पक्ष में एक ऐसा अदम्य साहसी नेता है जो इस मामले को जमीनी तौर पर सुलझा लें। जैसे कि वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को लेकर किया था। एक बार का ही झमेला और सदियों का समाधान।
गत दिनों जिस प्रकार से चंडीगढ़ में एक पाकिस्तानी जासूसों को पुलिस ने पकड़ा तो लोग भौंचक्क रह गए। चंडीगढ के सेक्टर-44 में एक किरायदार के रूप में रहने वाला शख्स अपने को पवन कुमार बताता था, जबकि उसका असली नाम कासिफ अली था, जो कि पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई के लिए काम करता था। ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में यह पहली घटना हो। पिछले महीने में ऐसे ही जासूस को फिरोजपुर से भी पुलिस ने अपनी गिरफ्त में लिया था। वह भी छद्म नाम और तमाम भारतीय सरकारी दस्तावेज के संग हर्बल दवा की दुकान चला रहा था। इन जासूसों ने पुलिस को पूछताछ के दौरान कई राज बताए हैं, जिससे अंदाजा लगता है कि पाकिस्तान फिर से कोई नई साजिश रच रहा है। यह अनायास नहीं है कि गुप्तचर एजेंसी ने भारतीय सुरक्षा तंत्र को यह सूचना मुहैया कराई है कि दर्जन भर से अधिक आतंकी भारत प्रवेश कर चुके हैं। जानकार भी मानते हैं कि पाकिस्तान पहले अपने जासूस भेजता है फिर आतंकी।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत में जितने भी आंतकी गतिविधियां संचालित होती रही हैं, उनमें अधिकत्तर प्रत्यक्ष तो कई मामलों में परोक्ष रूप से पाकिस्तान का ही हाथ होता है। कभी वहां की सरकार की सहभागिता होती है तो कई बार दूसरे संगठनों के, जिनका प्रभाव क्षेत्र पाकिस्तान ही होता है। हैरत की बात तो यह है कि जब भी भारत द्वारा शांति की बात की जाती है, सियासी रूप से पाकिस्तान की सरकार तो आगे आती है, लेकिन साथ ही साथ वह आतंकी घटनाओं की भी तैयारी कर रही होती है। ऐसे एक नहीं, कई उदाहरण हंै।
आश्चर्य तो इस बात को लेकर भी है कि न तो भारत की सरकार और न ही पाकिस्तान की सरकार ने ऐसा कोई उपाय अभी तक ढंूढ निकाला है जिसके सहारे इस स्थाई समस्या का समाधान हो सके। जब भी दोनों देशों के मंत्री स्तरीय अथवा सचिव स्तरीय वार्ताओं का आयोजन होता है और वह अपने चारित्रिक गुणों के कारण असफल होता है तो दोनों देेशों के संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोंकझोंक होती है। जैसे, संसद ही भारत-पाक का मंच बन गया हो। सत्तारूढ़ दल हतप्रभ होती है। विपक्षी कहते हैं कि वह दिग्भ्रमित है। वह आपस में लत्तम-धत्तम कर रही है। कुछ समय पूर्व भी विदेश मंत्री और गृह सचिव आपस में रस्साकशी करते नजर आएं, वह तो यहीं बयां कर रही है न...। पाकिस्तान से निपटने की बजाय वे एक-दूसरे को निपटाने में लगे रहे ।
अहम सवाल यह है कि कोई यह नहीं बता पा रहा है कि आखिर ऐसी कौन-सी नीति अपनाई जाए, जिससे 63 साल से चला आ रहा भारत-पाक गतिरोध भंग हो और ये दो पड़ोसी शांति से रह सकें। जानकारों की रायशुमारी के परिप्रेक्ष्य में बात की जाए तो आगरा, शर्म-अल-शेख और इस्लामाबाद की मिसाल देकर अब यह कहना गलत होगा कि दोनों देशों के बीच चल रही वार्ता बिल्कुल बंद कर दी जाए। वार्ता तो युद्धों के दौरान भी चलती रहती है। महाभारत में क्या होता था? सूर्यास्त के बाद पांडवों और कौरवों में रोज बात होती थी या नहीं? यह कहना भी ठीक नहीं कि जब तक सीमा-पार आतंकवाद चलेगा, बात नहीं होगी। क्यों नहीं होगी? जरूर होगी और जरा दो-टूक होगी। कोलमैन हेडली की कारस्तानी के जितने प्रमाण मिल रहे हैं, उनसे पाकिस्तान की बोलती बंद करने का मौका हमें मिल रहा है या नहीं? हमारे प्रमाणों और तर्को का असर दुनिया के अन्य देशों पर ही नहीं, पाकिस्तान की जनता पर भी होता है।
ऐसे में अहम सवाल यह है कि हमारा पक्ष मजबूत होते हुए भी हम मात क्यों खा जाते हैं? इसलिए खा जाते हैं कि हम बोलते हुए ही नहीं, सोचते हुए भी हकलाते रहे हैं। हमारे नेता और अफसरों को चिकनी-चुपड़ी बातें करने की लत पड़ी हुई है। क्या आज तक हमने पाकिस्तानियों से कभी आगे होकर पूछा कि आप कब्जा किया हुआ कश्मीर कब खाली करेंगे? आप संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर अमल कब शुरू करेंगे? देश की जनता अब यह कहने लगी है कि भारत की सरकारों ने कई सुनहरे मौके गंवा दिए। जब संसद पर सुबह हमला हुआ, तब यदि सूर्यास्त के पहले ही भारतीय जहाज पाकिस्तान के कुछ संदिग्ध अड्डों पर सांकेतिक हमला कर देते तो सारी दुनिया भारत की बहादुरी पर तालियां बजाती और पाकिस्तानी जनता यह समझ जाती कि उसकी सरकार के निकम्मेपन के कारण ही भारत को यह कार्रवाई करनी पड़ी है। मुंबई हमले के वक्त पाकिस्तान की जनता और फौज यह मानकर चल रही थी कि भारत अब ठोंकने ही वाला है, लेकिन हमारी सरकार जबानी जमा-खर्च करती रही। इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान की सरकार चोरी और सीनाजोरी करती रहती है। लातों के भूत क्या बातों से मानते हैं? अगर दिल्ली में कोई बहादुर सतर्क सरकार होती तो असमंजस में पड़ी नहीं रहती। जैसे ही संसद या मुंबई जैसा कांड होता, वह बयान बाद में जारी करती और फौजी कार्रवाई पहले करती। प्रवक्ता बाद में बोलता, बम पहले बोलते।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि युद्ध छेडऩे की हिम्मत अब तक हमेशा पाकिस्तान ने ही की है। वह कमजोर है, लेकिन जोरदार भारत को वही नाच नचाता है। जिस दिन पाकिस्तान यह महसूस कर लेगा कि 'पटरी पर आ जाऊं, वरना मेरी खैर नहींÓ, उसी दिन से वह भारत की बात सुनने लगेगा। संसद पर हुए हमले के बाद वाजपेयी सरकार ने सीमांत पर जो फौजें भेजी थीं, उसका कुछ असर हुआ कि नहीं? मुशर्रफ ने आगे होकर पहल की। 2004 के दक्षेस सम्मेलन में द्विपक्षीय संयुक्त वक्तव्य जारी करवाया और वादा किया कि अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होने देंगे। सामारिक मामलों के विशेषज्ञ उदय भास्कर के अनुसार, पाकिस्तान कभी भरोसे लायक रहा ही नही है। वह दूसरे देशों से हासिल हथियारों के बल पर कूदता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि पाक सेना के कई हथियार आतंकियों तक भी पहुंच चुके हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठनों का क्या संबंध हैं, ऐसे में भारत सरकार को हर छोटी से छोटी सूचनाओं पर गंभीरता से गौर करना होगा।


यह तो पाक का स्वभाव ही है
14 अगस्त 1947 को स्थानीय समय रात्रि 10 बज कर 58 मिनट 56 सेकेंड पर कराची में, जब मेष लग्न उदित हो रहा था, तब पाकिस्तान का अभ्युदय हुआ। पाकिस्तान के जन्म के समय चतुर्दशी तिथि थी जो कि अशुभ मानी जाती है। जन्म लग्न में चर राशि है जो एक देश के लिए किसी भी कोण से अच्छा नहीं है। साथ ही लग्नेश का द्विस्वभाव राशि में होना भी अच्छा नहीं है। इसीलिए सन् 1971 में वह विभाजित हुआ। पाकिस्तान के अभी और विभाजित होने की संभावना है। लग्नेश-अष्टमेश मंगल की पराक्रम स्थान में स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि भारत दोस्ती के लाख प्रयास कर ले, पाकिस्तान उसे अपना शत्रु मानता है और मानता रहेगा। स्व.जुल्फिकार अली भुट्टो ने कभी सुरक्षा परिषद में ऐलान किया था कि उनका देश भारत से हजार वर्षों तक युद्ध करता रहेगा। उस समय सुरक्षा परिषद् ने क्या किया या आज भी अमेरिका क्या कर रहा है, यह सबको पता है। हमें इजरायल से कुछ सीखना चाहिए। इस स्थिति पर भारत के राजनयिकों व सरकार को पुन: विचार कर पाकिस्तान के लिए कोई स्थायी नीति बनानी चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं: